“ईक्षाशक्ति” की घोर किल्लत है सरकारी क्षेत्रों में; फिर कार्य कैसे होगा, ​कौन करेगा ? ​

स्वदेशी तकनीक से विकसित अत्याधुनिक ‘सीवर सफाई मशीन’
स्वदेशी तकनीक से विकसित अत्याधुनिक ‘सीवर सफाई मशीन’

नई दिल्ली : ​आप शायद विस्वास नहीं करेंगे, लेकिन यह सत्य है। भारत में जहाँ प्रत्येक ७०९ लोगों पर एक पुलिसकर्मी है, वहीँ प्रत्येक ४०० व्यक्तियों पर एक-एक गैर-सरकारी संगठन भी हैं। यदि आंकड़ों को माना जाय तो वर्तमान समय में देश में जितने प्राथमिक से माध्यमिक शिक्षा तक के विद्यालय हैं, उनसे दो-गुना अधिक और यक़ीनन सरकारी अस्पतालों से २५० गुना अधिक गैर-सरकारी संगठन कागज़ पर ”भाग-मिल्खा-भाग” कर रहे हैं, दौड़ रहे हैं।

भारत में ३१ लाख से अधिक गैर-सरकारी संगठन देश के २६ राज्यों में निबन्धित हैं जो सरकारी और अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली राशियों में से न्यूनतम २० प्रतिशत राशि “कुर्सी के नीचे से” सम्बंधित विभागाध्यक्षों, कर्मचारियों को देकर जीवित हैं, फल -फूल रहे हैं। हाँ, विशेष परिस्थिति में कईयों को ब्लैकलिस्ट भी किया गया है। लेकिन हथकंडों के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल कर ”व्हाईट लिस्ट” में शामिल होने में इन्हे देर नहीं लगता। इस ३१ लाख गैर-सरकारी संगठनो के अतिरिक्त केंद्र शासित प्रदेशों में इनकी संख्या लगभग ८२,००० है।

पिछले दिनों आधुनिक भारत के स्वच्छता अभियान के अधिष्ठाता डॉ बिन्देश्वर पाठक, देश में पहली बार एक गैर-सरकारी संगठन – सुलभ इंटरनेशनल सोसल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन – की ओर से सीवर-लाइनों की सफाई में जुड़े लाखों कर्मचारियों को यह आस्वस्त किये की सफाई करने के दौरान किसी भी कर्मचारी की अब मृत्यु नहीं होगी, उनकी पत्नियां अब विधवा नहीं होंगी, उनके बच्चे अब अनाथ होंगे, सीवर लाईन कभी भी जाम नहीं होगा – बसर्ते इस सफाई कार्य के लिए जिम्मेदार विभाग, अधिकारीगण, अन्य महानुभाव उन कर्मचारियों के जीवन – मोल को समझें। डॉ पाठक का कहना था की अब वे यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते की देश में ऐसे उपरकण नहीं है, जो सीवर लाइनों की सफाई कार्य में मदद कर सके और जान-माल को रोक सके।

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भारत में स्वच्छता के अधिष्ठाता डॉ बिन्देश्वर पाठक ​जिन्होंने सर पर मैला धोने की कुप्रथा का अंत किये ​
भारत में स्वच्छता के अधिष्ठाता डॉ बिन्देश्वर पाठक ​जिन्होंने सर पर मैला धोने की कुप्रथा का अंत किये ​

“मैं, यानि सुलभ, सीवर की सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की होने वाली मौत की रोकथाम के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित अत्याधुनिक ‘सीवर सफाई मशीन’ ​लेकर उपस्थित हूँ। यह मशीन देश पहली बार आया है, जिसे मैं लेकर आया हूँ। ​यह मशीन कैमरा और अन्य सुविधाओं से लैस ​है और ​इस मशीन से मैनहोल को साफ किया जा सकेगा।​ इससे सीवर के अंदर जाकर सफाई की जा ​सकती तथा जहरीली गैस से लोगों की होने वाली मौत पर नियंत्रण लगाया जा ​सकता है ।​ यदि मैनहोल के अंदर लोगों को जाना भी पड़े तो उसके लिए सुरक्षा उपकरणों को भी लगाया गया है।​ अब यह सम्बद्ध विभाग, सरकारी संस्थाओं, सरकारों, नगर निगमों की ईक्षा शक्ति पर निर्भर करता है कि वे इस मशीन को प्राथमिकता दें, या कर्मचारियों की जान-माल को नजर-अंदाज करें। अब वे यह नहीं कह सकते की आधुनिक उपकरण देश में ;उपलब्ध नहीं है, क्योंकि सुलभ मानव जीवन को नुकसान पहुंचाये बिना गहरे सीवरों की सफाई सुनिश्चित करने के लिए एक अनूठा उपकरण खरीदा है।​”

उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों ने सुरक्षा उपायों के सुझाव दिये और इस कार्य को करने के लिए आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था की गयी।​ डॉ पाठक ​के अनुसार नयी मशीन मैनहोल के आवधिक यांत्रिक सफाई के लिए आदर्श है​, इसमें शक्तिशाली जेट पंप लगा है जो प्रति मिनट 150 लीटर पानी के प्रवाह के लिए सक्षम है​ और विशेष रूप से डिजाइन किए गए लचीले स्टील रॉड का उपयोग करके डी-चोकिंग सीवर लाइन में भी सक्षम है।​ ​नयी सुलभ सीवर सफाई मशीन वाहन सुरक्षा, इलेक्ट्रो-हाइड्रोलिक रूप से संचालित​ है। यह सीवर जेटिंग सह रॉडिंग सह मैकेनिकल मैनहोल डिस्लीटिंग मशीन के साथ​ व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों और सीवर त्वरित दृश्य पाइप निरीक्षण कैमरा के साथ है​, जो सीएनजी चालित है जिसे आठ फुट चौड़ी गलियों में भी ले जाया जा सकता है।​ ज्ञातब्य है कि ​पिछले तीन वर्षों के दौरान,सीवर लाइनों की​सफाई के दौरान 1300 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों की मौत हुई हैं।

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​पिछली जनगणना के अनुसार देश में कुल ७९३५ शहर हैं​,​ जिसमे करीब ३७७ मिलियन लोग, यानि देश की आवादी का ३१.२ फ़ीसदी रहते हैं। देश में करीब २०५ नगर निगमें हैं।

शहर विकास मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि जब तक सरकार, चाहे केंद्र​ की सरकार हो या राज्यों ​की; नगर निगमों में बैठे अधिकारीगण किसी के जीवन के महत्व को नहीं समझेंगे, इस उपकरण का इस्तेमाल होना प्रश्नवाचक चिन्ह लगाता है और इसका सबसे बड़ा कारण है इस कार्य के निमित्त आवण्टित राशियों का बन्दर-बाँट।

​बच्चों को स्वच्छता के बारे में बताते डॉ पाठक ​
​बच्चों को स्वच्छता के बारे में बताते डॉ पाठक ​

कोई भी व्यक्ति, जिनके हाथों में अधिकार है (अपवाद छोड़कर) कभी नहीं चाहेंगे की वे इस नवीन उपकरण को लगाकर खुद आर्थिक रूप से कमजोर होते चले जाएँ। उनका कहना है कि सम्पूर्ण आवंटित राशियों में से न्यूनतन २० फीसदी राशि इन अधिकारीयों के लिए सुरक्षित हो जाता है ​निर्गत होने से पहले ही ​- दूसरे शब्दों में, अगर किसी ठेकेदार​ को किसी तरह का कार्य, चाहे सफाई ही क्यों न हो​, आवंटित किया जाता है तो उसे २० प्रतिशत राशि “देना पड़ता” है​ ​। अब बचे ८० फीसदी राशि में कितना कार्य होगा और कितना बंदरबाँट​,​ यह सम्पूर्ण रूप से ठेकेदारों के विवेक पर निर्भर करता है।

​अधिकारी का कहना है इस नवीनतम मशीन की कीमत अगर ४० लाख है तो देश के सभी २०५ नगर निगम खरीद सकते हैं – एक मशीन नहीं, दस-दस मशीन। लेकिन उन्हें २० फीसदी राशि नहीं मिल पायेगी, क्योंकि इसकी कीमत सर्वविदित है। अगर २० फीसदी दिए बिना खरीदने बात नहीं होती है तो स्वाभाविक है की मशीन की गुणवत्ता ख़राब होगी। आखिर वह भी कहाँ से पैसा देगा ?

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जब डॉ पाठक से इस विषय पर पूछा तो उनका कहना था की सरकार को, नगर निगमों को देश में जो ”सफ़ेद गैर-सरकारी संस्थाएं” हैं, जो सरकार को अपनी कमाई का एक-एक पैसे का हिसाब देती है, समय पर कर चुकाती है, जिनकी छवियों पर कोई दाग नहीं है, देश का दो-दो शहरों में सफाई का सम्पूर्ण कार्य – सीवर लाइनों की सफाई सहित – उन्हें दे दें। अब यदि सरकारी आंकड़ों को देखें तो देश में कोई ३००० ऐसे गैर-सरकारी संस्थाएं तो जरूर हैं जो “बेदाग़” हैं और जिनके कार्य-कलापों पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकते। लेकिन इसके लिए “ईक्षाशक्ति” का होना नितांत आवश्यक है।

डॉ पाठक एक बात और कहे: उनका कहना था की जिस किसी भी अधिकारी की लापरवाही के कारण सीवर लाइनों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की मृत्यु हो; सम्बद्ध नगर निगम मृतक के परिवारों का भरण-पोषण, बच्चों की शिक्षा का सम्पूर्ण जबाबदेही ले, साथ ही, उस अधिकारी को न्यूनतम २० वर्षों की सजा हो।

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