भाजपा में भी “आला-कमान” की संस्कृति जागृत हो गई है, लेकिन “स्वीकार” नहीं करते लोग 

प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली : कोई 37-वर्ष पूर्व सन 1984 में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस पार्टी को देश के कोने-कोने से, गली-कूचियों से सहानुभूति मिली। वह सहानुभूति मतदान के दौरान मत-पेटी में गिरा और संसद में कांग्रेसी सांसदों की संख्या 426 हो गयी। कांग्रेस पार्टी के एक-एक आदमी, पटना के चौहट्टा से कलकत्ता के चौरंगी तक, मुंबई के नरीमन पॉइंट से दिल्ली के राजपथ होते अकबर रोड तक सभी “आला” नेता हो गया और “आला-कमान” की परंपरा और मजबूत हो गयी। 

उस वर्ष भारतीय जनता पार्टी के मात्र दो सांसद, दो कुर्सियां पकड़े, भारत के राष्ट्रपति भवन से कोई 750 मीटर दूरी पर स्थित सर एडविन ल्यूटन्स और हर्बेर बारमेर द्वारा निर्मित संसद भवन के कोने में टिमटिमा रहे थे। एक-दूसरे को देखकर मन-ही-मन गदगद हो रहे थे। स्वाभाविक है, कहाँ 426 और कहाँ दो। कांग्रेस वाले “मुस्कुराते” भी थे,  “हँसते” भी थे, “तिरछी नजर” से देखते भी थे। वजह भी था – सबों पर समय और सहानुभूति का आशीष था । सबों के चेहरों पर “गौरव” कम, “घमण्ड” अधिक दीखता था। आज भी भारतीय संसद की एक-एक ईंट और उस ज़माने के संसद के क्रिया-कलाप चश्मदीद गवाह है। विश्वास नहीं हो तो पूछ लीजिये संसद से।

आठ साल बाद राजीव गाँधी की हत्या हो गयी। साल था 1991 और महीना-दिन था मई महीना का 21 तारीख। राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद काँग्रेस पार्टी में नेतृव वाला गुण समाप्त हो गया। यह अलग बात है कि राजीव गाँधी की पत्नी अथवा उनके पुत्र राहुल गाँधी अथक प्रयत्न किये, कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई तो वे भी जानते हैं और पार्टी के नेता से लेकर कार्यकर्त्ता तक। कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी खिंचा-तानी बढ़ने लगा। पार्टी को संगठित करने, कार्यकर्ताओं के विस्वास को अडिग रखने की बात तो प्रदूषित यमुना में फेक दें, सभी नेता, चाहे घुटने – कद के हों या ठेंघुने कद के; सभी प्रधान मंत्री की कुर्सी का ख्वाब देखने लगे। अनेकानेक छोटी-छोटी पार्टियों की मदद से कांग्रेस, जो कभी तनकर बिना हांफे ‘मॉर्निंग वाक्पा” करती थी, जेठ महीने में भी बैशाखी पर चलने लगी। धन्यवाद के पात्र रहे डॉ मनमोहन सिंह जिन्होंने दस साल का सफल नेतृत्व दिया देश को। लेकिन आख़िर वे भी वृद्ध हो रहे थे और समय भी साथ छोड़ रहा था पार्टी को। 

खैर, साढ़े-तीन दसक बाद काँग्रेस पार्टी अपने “आला” नेताओं के कारण “रसातल” में चली गयी। काँग्रेस पार्टी का वही हाल हुआ जैसा “गयासुर” को भगवान् विष्णु फल्गु नदी में जमीन के अन्दर धंसा दिए थे। गयासुर में जो गुन था, उसे गौरव के स्थान पर “घमण्ड” हो गया; सर पर नाचने लगा था। कांग्रेस में भी यही हाल था नेताओं का। समयांतराल कांग्रेस पार्टी में, नेताओं के विचारधाराओं में “दीमक” लग गया। स्वाभाविक है – बदलाव। 

ये भी पढ़े   ढाई लोगों की ‘सरकार’ और 40,07,707 ‘घुसपैठिए’ !! ​अरे बाबा रे बाबा ​!!!!!

इसलिए 9 वीं लोक सभा (1989) में भाजपा की संख्या संसद में 2 से 85 हो गयी। यानी 83 कुर्सियों का इजाफा। जब 10 वीं लोक सभा (1991) का चुनाव हुआ तो भाजपा को 35 और कुर्सियाँ मिली। फिर 11 वीं लोक सभा (1996) में 161 कुर्सियाँ, 12 वीं लोक सभा (1998) में 182 कुर्सियाँ, 13 वीं लोक सभा (1999) में 182 कुर्सियाँ बरकरार रहीं । लेकिन 14 वीं लोक सभा (2004) और 15 वीं लोक सभा (2009) में लोगों का विस्वास पुनः काँग्रेस की ओर आई। वजह – मनमोहन सिंह। 

लेकिन 16 वीं लोक सभा (2014) चुनाव में भाजपा गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री के रूप में चुनाव लड़ी। लोग गुजरात मॉडल को देश में प्रयोग करना चाहते थे। लोगों ने साथ दिया। विस्वास “मत” में बदला और भाजपा को कुल 282 कुर्सियां मिली और प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठे नरेंद्र मोदी। इस समय तक भाजपा के पुराने लोग भी साथ थे। लेकिन समयांतराल सभी किनारे हो गए, किनारे कर दिए गए। कुछ कुछ हो गए। कुछ को समय किनारे कर दिया। विगत 17 वीं लोक सभा (2019) में भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुआई में 303 कुर्सियों पर कब्ज़ा की। 

इन वर्षों में भाजपा में जो भी परिवर्तन हुआ हो, एक मुख्य परिवर्तन यह देखने को मिला कि “काँग्रेस जैसा ही भाजपा में आला-कमान वाली संस्कृति का विकास हो गया। यानी “वन-मेन-शो” – होना भी स्वाभाविक है – आख़िर, भाजपा के वर्तमान 303 सदस्यों में, चाहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा साहेब ही क्यों न हों, इतनी ताकत तो नहीं है कि वे भारतीय संसद (लोक सभा) के कुल 543 कुर्सियों में से 303 कुर्सियों पर कब्ज़ा कर लें।  यदि देखा जाय तो “शाम-दाम-दंड-भेद” सभी ताकतों को अपना कर देश की राजधानी दिल्ली की संसद पर कब्ज़ा ही माना जायेगा। काँग्रेस पार्टी महज 52 कुर्सियों को लेकर टकटकी निगाह से एक-दूसरे को देख रही है। हालात, यह हो गई की जहाँ न्यूनतम 55 कुर्सियाँ चाहिए “विपक्ष” ;कहलाने के लिए, तीन कुर्सियाँ कम हैं । और “नेतृत्व को लेकर” पार्टी में जो हालात है वह “चिन्तनीय” तो है ही, “निन्दनीय” भी है। 

ये भी पढ़े   ​"वो" आयीं और "वो" निकाले गए यानि ​प्रियंका का आना और जेटली का जाना
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा साहेब

बहरहाल, भाजपा के “आला-कमान” और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज विपक्षी दलों पर देश में ‘‘राजनीतिक अस्थिरता’’ पैदा करने के लिए उनकी सरकार के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के तहत ‘‘भ्रम व अफवाहें’’ फैलाने की साजिश रचने का आरोप लगाया और कहा कि ऐसे प्रयासों से देश को लंबे समय तक नुकसान पहुंचेगा। अपनी पार्टी के 41वें स्थापना दिवस के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि किसानों की जमीन छिन जाने, आरक्षण समाप्त करने, नागरिकता खत्म करने जैसे ‘‘काल्पनिक भय’’ दिखाकर कुछ दल और संगठन लोगों को भ्रमित करते रहते हैं।
इसे एक ‘‘गंभीर चुनौती’’ बताते हुए उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे जनता के बीच जाकर इन साजिशों का पर्दाफाश करने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं। उन्होंने कहा, ‘‘आज एक प्रकार का सिलसिला शुरू हुआ है… एक नयी प्रकार की व्यूह रचना सार्वजनिक जीवन में आई है। आज गलत विमर्श बनाए जाते हैं। कभी सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) को लेकर, कभी कृषि कानूनों को लेकर तो कभी श्रम कानूनों को लेकर।’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘इसके पीछे सोची-समझी राजनीति है। यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है। इसका मतलब है देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करना। इसलिए देश में तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जाती है, भ्रम फैलाये जाते हैं, झूठ फैलाया जाता है। काल्पनिक मायाजाल खड़ा किया जाता।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कभी कहा जाता है कि संविधान बदल दिया जाएगा, कभी कहा जाता है कि आरक्षण समाप्त कर दिया जाएगा, कभी कहा जाता है नागरिकता छीन ली जाएगी तो कभी कहा जाता है किसानों की जमीन छीन ली जाएगी।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सब ‘‘कोरा झूठ’’ है और कुछ लोगों व संगठनों द्वारा इन्हें तेजी से फैलाया जाता है और भाजपा कार्यकर्ताओं को इनसे बहुत अधिक चौकन्ना रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं को बहुत जानकारी के साथ देशवासियों के बीच जाते रहना होगा और उन्हें जागरुक करते रहना होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘यह काल्पनिक भय खड़ा करने वाले जो कुछ लोग हैं, उनमें ज्यादातर तो वो हैं जो अपनी पराजय को स्वीकार न कर पाने की वजह से ऐसा करते रहते हैं। कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ की वजह से करते हैं। कुछ लोगों की तो भाजपा से जन्मजात दुश्मनी है इसलिए करते हैं।’’

ये भी पढ़े   जब 'समाजवादी' मुलायम सिंह यादव मन ही मन बुदबुदाए: "जाओ अपर्णा बहु !!! अपनी जिंदगी जी लो, अपनी पहचान बना लो....."

मोदी ने कहा, ‘‘यह लोग ऐसे कार्य कर रहे हैं जो देश को बहुत लंबे समय तक नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए भाजपा के हर कार्यकर्ता को सतर्क रहना है। उनके अनुसार, भाजपा के संस्कार हैं कि वह हर व्यक्ति तक पहुंचती है और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूरी संवेदनशीलता के साथ काम करती है।

उन्होंने कहा कि देश में छोटे किसानों की संख्या लगभग 10 करोड़ से भी अधिक है लेकिन पहले की सरकारों के लिए वे कभी प्राथमिकता में नहीं रहे। मोदी के अनुसार, ‘‘बीते वर्षों में हमारी सरकार की कृषि से जुड़ी हर योजना के केंद्र में छोटे किसान रहे। वो चाहे नए कृषि कानून हों, पीएम किसान सम्मान निधि हो या किसान उत्पाद संगठनों की व्यवस्था हो। या फिर फसल बीमा योजना और आपदा के समय ज्यादा मुआवजा सुनिश्चित करना।’’ वे दावा किये कि कृषि संबंधी सरकार की हर योजना का लाभ देश के छोटे किसानों को हुआ है। ज्ञात हो कि दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर तीन नये केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग 180 दिनों से प्रदर्शन चल रहा है।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर केरल और पश्चिम बंगाल में कथित राजनीतिक हत्याओं का मामला भी उठाया और कहा कि ऐसी विषम परिस्थितियों में भाजपा के कार्यकर्ता डटकर मुकाबला करते हैं। ‘भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ता पार्टी के लिए अपना बलिदान दे चुके हैं। सैकड़ों कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया गया है। केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हमारे कार्यकर्ताओं को धमकी दी जाती है, उन पर हमले होते हैं, उनके परिवार पर हमले होते हैं। लेकिन देश के लिए जीना-मरना और एक विचारधारा को लेकर डटे रहना ही भाजपा कार्यकर्ताओं की विशेषता है।’’

मोदी के अनुसार, राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद को भी 21वीं सदी का भारत देख रहा है। स्थानीय आकांक्षाओं के सहारे जो स्थानीय पार्टियां खड़ी हुईं, बाद में वो भी एक परिवार की या एक-दो लोगों की पार्टियां बन कर रह गईं। नतीजा सामने है। ऐसी पार्टियों ने जो नकली धर्मनिरपेक्षता का नकाब पहन रखा था, वह भी उतरना शुरू हो गया। धर्मनिरपेक्षता का हमारे यहां मतलब बना दिया गया है कि कुछ ही लोगों के लिए योजनाएं। कुछ ही लोगों के लिए काम, वोट बैंक के हिसाब से नीतियां।’’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here