लगता है पाण्डे जी को नितीश कुमार की कुर्सी से ‘लव’ हो गया है, ‘लईका’ पढ़ल-लिखल तो है ही, नौकरी में ‘राजनीति’ भी सीख ही लिया है

बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे: दुआओं में (वोट देने में) याद रखियेगा
बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे: दुआओं में (वोट देने में) याद रखियेगा

लगता है बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे को नितीश कुमार की कुर्सी से “लव” हो गया है। वैसे “लईका” पढ़ल-लिखल तो है ही और नौकरी में “राजनीति” भी सीख ही लिया है।

वैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा से ही नहीं, बिहार प्रशासनिक सेवा से अवकाश प्राप्त करने के बाद राजनीति में छलांग लगाने की बात होती थी। वे सेवाकाल में राजनीति की बारीकियां सीख जाते थे और राजनीति में कामयाबी हासिल करना आसान हो जाता था। परन्तु “यह उन दिनों की बात थी” जब “पेजर” का जमाना था। आज तो स्मार्टफोन का ज़माना है। और गुप्तेश्वर पाण्डे जी तो “स्मार्ट” हैं ही, भले प्रदेश स्मार्ट नहीं हुआ हो और मतदाताओं की तो बात ही छोड़िये। आजकल तो “अधिकारीगण राजनीति के गुरु हो गए हैं।”

वैसे, दिल्ली के 7-कल्याण मार्ग से ऊपर चढ़कर जैसे ही चाणक्यपुरी इलाके में प्रवेश लेंगे, अशोक होटल के पिछवाड़े स्थित बिहार सरकार के दफ्तर में गुफ्तगू चल रहा है कि पाण्डेय जी “बिहार के भावी मुख्य मंत्री भी हो सकते हैं आने वाले समय में । इसलिए “पुलिस की टोपी” उतारकर “राजनीति की टोपी” खुद भी पहनिए और आने वाले चुनाव में “जनता हो भी पहनाइए।”   तत्काल चर्चा यह है की पांडे जी को या तो बाल्मिकीनगर लोक सभा से चुनाव लाडवा दिया जाय . यह सीट बैद्यनाथ प्रसाद महतो की मृत्यु के कारण रिक्त है। याफिर आगामी विधान सभा चुनाव में बक्सर से चुनाव लड़ाया जाय 

जो जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद लालू प्रसाद यादव को वेटनरी कालेज के अहाते से मुख्य मंत्री कार्यालय की कुर्सी पर पालथी मारकर बैठे देखे होंगे, बगल में रखे “पीकदान” में “थूकते”, वे शायद यह भलीभांति जानते भी होंगे की सन 1980 के बाद से जब तक लालू प्रसाद और उनकी पार्टी और उनके नेताओं की तूती बजती रही और वे हमेशा “भूमिहारों, ब्राह्मणों” को ठेंघुने पर बैठाते रहे। प्रदेश के जाति-संघर्ष में “भूमिहार- ब्राह्मण” केन्द्र बिंदु रहा।

एक बात की चर्चा और है कि बिहार के युवक-युवतियां पहले प्रशासनिक सेवा में ज्वाइन करना चाहते हैं चाहे प्रदेश का हो अथवा संघ का। “कॉलर” ऊँचा रखना उनका पहला “धर्म” होता है। आप बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा या भारतीय रेवेन्यू सेवा के अधिकारियों की पूर्व की सूचि आंक सकते हैं, जो सरकारी नौकरी में रखकर सभी जोड़ – घटाव – गुणा – भाग सीखकर , नौकरी छोड़कर राजनीति में “ढूके” अपने-अपने अवकाशोपरांत स्वयं के लिए, परिवार के लिए निश्चिन्त होने के लिए। बात रही, समाज की और मतदाताओं की – उसे तो तिरस्कृत होने की, रहने की आदत हो गयी है।

वैसे कुछ समय पहले जम्मू कश्मीर के निवासी और साल 2010 बैच के IAS टॉपर शाह फैसल ने राजनीति में उतरने का फैसला किये थे।  यूपी के मेरठ में इनकम टैक्स (IT) विभाग की प्रिंसिपल कमिश्नर प्रीता हरित ने 20 मार्च 2019 को नौकरी से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस ज्वाइन किया था। ओडिशा की IAS अधिकारी अपराजिता सारंगी ने अपने पद से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। बिहार की रहने वाली अपराजिता 1994 बैच की IAS थीं। वे पांच साल तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहने के बाद स्वेच्छा से अवकाश के लिए आवेदन किया था।  अपराजिता को भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर होने में 11 साल बाकी थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने साल 1963 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) ज्वाइन किया था और 1989 में राजनीति में आने के लिए अय्यर ने स्वेच्छा से अवकाश ले लिया था। मानव संसाधन राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह महाराष्ट्र कैडर के 1980 बैच के IPS अधिकारी थे।  साल 2014 में उन्होंने मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। दिल्ली के मुख्य मंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने साल 1992 में इंडियन रेवेन्यू सर्विस ज्वाइन किया था। कुछ साल बाद पद से इस्तीफा देकर आर टी आई के लिए काम करने लगे और फिर राजनीति में। 2005 बैच के भा प्र से अधिकारी ओ पी चौधरी ने अगस्त 2018 में पद से इस्तीफा दे दिया था।  वे रायपुर के कलेक्टर का पद छोड़कर भ ज पा में  शामिल हुए थे।और सबसे महत्वपूर्ण बिहारी बाबू निखिल कुमार। दिल्ली पुलिस आयुक्त के बाद राजनीति में। 

ये भी पढ़े   लगता है "सब कुछ ठीक नहीं है" रफ़ी मार्ग, नई दिल्ली वाला कंस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में

विश्वस्त सूत्र का कहना है कि बिहार की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में “नितीश कुमार के अलावे पढ़ा-लिखा कोई भी नहीं है। साथ ही, नितीश कुमार ‘कुर्मी’ हैं, इसलिए सवर्णों में से एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति आना समय की पुकार है। सूत्र का कहना है कि राष्ट्रीय जनता दल के नेता अब लालू यादव के दिन लद गए। उनके पुत्रद्वय – तेजश्वी यादव और तेज प्रताप यादव – में “तेजी” सिर्फ नाम तक ही सीमित है। शैक्षिक दृष्टि से दोनों ‘नवमीं कक्षा’ भी उत्तीर्ण नहीं हैं। इसलिए “रेस” में आज तो नहीं ही हैं, आने वाले समय में भी ‘पीछे’ चलेंगे। अब वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष में नितीश कुमार “कुर्मी” हैं। सत्ता के मामले में भले भूमिहार लालू यादव और उनकी पार्टी की दवँगता से त्रसित रहा हो; नितीश कुमार की जाति से भी अन्तःमन से बहुत बेहतर सम्बन्ध नहीं रहा है। विकल्प की तलास जरूर थी।

बहरहाल, यदि देखा जाय तो जिस तरह लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान बिहार के ऐसे दो नेता हैं, जिन्होंने प्रदेश को अपने पांच-दसक से अधिक की राजनीतिक जीवन में “कुछ सकारात्मक स्वरुप नहीं दिए” – जबकि लालू  प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी प्रदेश के मुख्य मंत्री बने।  “स्वयंभू-दलित नेता” कहने वाले रामविलास पासवान कभी “दलितों” का नहीं हुए। मतदाताओं को बेवकूफ बनाया, जो कभी प्रदेश के लोगों का नेता हुआ ही नहीं – अपने-अपने परिवार, भाई-बहन-बेटा-बेटी को विधान सभा से लेकर संसद तक पहुंचाया। जबकि स्वयं को “दलित-नेता” कहते हैं। लालू यादव के  पुत्रद्वय  तेजस्वी यादव और तेजप्रतापयादव के अलावे बेटी मीसाभारती भी राजनीति में  सक्रिय हैं। सवाल यह है कि लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी  “अकस्मात् मुख्य मन्त्री” अपने परिवार को राजनीतिक संरक्षण, प्रोन्नत्ति, आधार देने के अलावे “प्रदेश को दिए” जो आने वाले समय में प्रदेश की जनता आस्वस्त हो की उन्हें लालू यादव-राबड़ी देवी के पुत्र-पुत्री देंगे। लालू यादव के पुत्रद्वय “नवमीं कक्षा”  पढ़े हैं और पुत्री निशा भारती की शैक्षणिक योग्यता पर अनेकानेक बार प्रश्नचिन्ह लगा है। वैसी स्थिति में प्रदेश में आने वाले दिनों में शिक्षा का क्या महत्व रह जायेगा, यह बहुत ही बेहतरीन शोध का विषय होगा। प्रदेश के लोग कर्पूरी ठाकुर के मुख्य मंत्रित्व काल से प्रदेश में शिक्षा की स्थिति देख   चुके हैं। जहाँ तक प्रदेश में अन्य विकासों का सवाल है – यह तय है कि लालू यादव के पुत्रद्वय और बेटी प्रदेश को  प्रकार की दिशा नहीं दे सकते हैं।

ये भी पढ़े   "६८-वर्ष" और "४७-वर्ष" में "युवा कौन है इसका निर्णय अब भारत का मतदाता करेगा

श्रीकृष्ण सिन्हा से लेकर नितीश कुमार तक बिहार अब तक 23 नेताओं को मुख्य मंत्री के रूप में देखा, आँका। कईयों को दूसरे-तीसरे-चौथे-पांचवें बार सिंघासन पर बैठाया; तो कोई सिंघासन का अवलोकन करते-करते 74-वर्षीय वृद्ध हो गए, ह्रदय में छिद्र भी हो गया। कोई 72-वर्ष के हो गए। कोई  किडनी, ह्रदय, फेफड़ा, रक्तचाप, डाईबिटिज इत्यादि जानलेवा बिमारियों से ग्रसित होने के बावजुद राजनीति से मोह भंग नहीं हुआ।  अब अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में अपने सन्तानों को आगे ला रहे हैं। बिहार में प्रदेश के मुख्य मन्त्री नितीश कुमार को छोड़कर, लगभग सभी ”ठेंघुने-कद” से लेकर ”आदम-कद” के नेतागण, चाहे लालू प्रसाद यादव हों, राम विलास पासवान हों, सभी धृतराष्ट्र के तरह ‘पुत्रमोह’ से ग्रसित  हो गए हैं और अपनी अगली पीढ़ी को प्रदेश का कमान हाथ में देकर “निश्चिन्त” हो जाना चाहते हैं, भले ही, प्रदेश सम्पूर्ण रूप से गर्त में क्यों न चला जाय। प्रदेश के लोगों के बारे में, मतदाताओं के बारे में तो पूछिए ही नहीं।

कमला कान्त पाण्डेय फेसबुक पर लिखते हैं: बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लिया। बीएमपी डीजी एस के सिंघल को डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। गृह विभाग ने उक्त संदर्भ में आज देर रात्रि अधिसूचना जारी कर दी। बिहार विधान सभा चुनाव में गुप्तेश्वर पांडेय को बक्सर या भोजपुर के किसी सीट से एनडीए का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इस बात की प्रबल संभावना है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी गुप्तेश्वर पांडेय ने स्वैच्छिक अवकाश के लिए आवेदन किया था, लेकिन गृह मंत्रालय ने उनके आवेदन को अस्वीकृत करते हुए बिहार सरकार की सेवा में बने रहने का निर्देश जारी किया था। उस समय चर्चा थी कि गुप्तेश्वर पांडेय बक्सर संसदीय सीट से बतौर भाजपा उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे।

गुप्तेश्वर पांडेय 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। 31 जनवरी 2019 को उन्हें बिहार का डीजीपी बनाया गया था। उनका कार्यकाल पूरा होने में करीब 5 महीने का वक्त बचा हुआ है.राज्य के पुलिस महानिदेशक के रूप में गुप्तेश्वर पांडेय का कार्यकाल 28 फरवरी 2021 को पूरा होने वाला है। बिहार की राजनीति में कदम रखने की मंशा अब फलीभूत होती नजर आ रही है। बिहार ही नहीं सम्भवतः देश के पहले भारतीय आरक्षी सेवा के अधिकारी हैं जो पुलिस प्रमुख के पद से इस्तीफा देने के साथ विधान सभा चुनाव मे ताल ठोंकेंगे।

इसकी तरह कुमार ऋषिकेश जी लिखते हैं: ” चौबे जी (पांडे जी से) – मेरे अंगने में तुम्हारा भी तो काम है !! चौबे जी से मेरा मतलब महान चिंतक अश्विनी चौबे से है। चिंतक इसलिए कह रहा हूं क्योंकि एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सोने के आरोपों पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा था कि मैं सो नहीं रहा था बल्कि चिंतन कर रहा था। अंगने से मेरा मतलब चौबे जी का संसदीय क्षेत्र बक्सर है और पांडे जी तो आज ट्रेंडिंग में है, उनका परिचय क्या ही दें हम।

बहरहाल, गुप्तेश्वर पांडे के इस्तीफे और चुनाव लड़ने को लेकर जो अटकलें लगाई जा रही थी उन पर अब पूर्णतया विराम लग गया है । पांडे जी के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को स्वीकृति मिल गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि वे बतौर एनडीए उम्मीदवार चौबे जी के अंगने बक्सर को चुनाव के दौरान गुलजार करेंगे। राजनीति में उतरने को लेकर पांडे जी की रूहानी जवाल की पटकथा तो पहले से ही तैयार थी , पिछले कुछ दिनों के उनके काम करने के तरीक़े ने सब जाहिर कर दिया था । उनका इस्तीफा उस कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाने की दिशा में पहला कदम है।

ये भी पढ़े   चर्चाएं 'हॉट-स्पॉट' में है कि क्या बख्तियारपुर वाले नीतीश कुमार दिल्ली के 6-मौलाना आज़ाद रोड में 'लैंड' हो रहे हैं ?

चंद दिनों पहले किसी पत्रकार ने पांडे जी के इस्तीफे और चुनाव को लेकर एक खबर चला दी थी । पांडे जी ने उस पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि यह निम्न स्तर की पत्रकारिता है। पांडे जी, आपके चुनाव लड़ने से किसी को कोई परेशानी नहीं है , आपका संवैधानिक हक है , लड़िए । वैसे भी आप विधानसभा चुनावों के लिए परफेक्ट कैंडिडेट हैं । बक्सर में स्वर्ण वोटरों को साधने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है । लेकिन कोई आपकी मंशा जाहिर करता है तो उस पर इतना बिगड़ने की क्या जरूरत है।

अभी कुछ दिनों पहले उन्हें रात में किसी पत्रकार ने फोन कर दिया था तो वे गालियां बकते हुए सुने गए । पत्रकार ने सोचा होगा कि जिस व्यक्ति के पास वह फोन कर रहा है वह 12 करोड़ आवाम वाले प्रदेश के पुलिस महकमे का मुखिया है, दर्द समझेगा। लेकिन डीजीपी साहब को इतनी रात गए किसी की फोन करने की बात नागवार गुजरी और वे पत्रकार पर भड़क गए। अब तो यह बात पानी की तरह साफ हो गई है कि डीजीपी के पद पर जो व्यक्ति बैठा था वह कहने को तो पुलिस विभाग का मुखिया था लेकिन वह सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहा था । ऐसा पहली बार नहीं है जब पांडे जी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी हो । इससे पहले भी उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था । तब वे बक्सर सीट पर भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ना चाहते थे । लेकिन टिकट नहीं मिला तो उन्होंने अपने इस्तीफे की अर्जी वापस ले ली ।
पिछले चुनावों की तुलना में इस बार एनडीए की , खासकर नीतीश की छवि बेहद खराब है । जनता में नीतीश को लेकर नकारात्मक लहर है । हो सकता है आप सुशांत मामले को प्रकाश में लाकर थोड़ा माहौल में परिवर्तन करें । बस इसी के लिए आपका चौबे जी के अंगने और आपके गृह जिले में आपका काम है, ताकि बिहार में थोड़ी हवा बदली जाए । लेकिन जो जनता आपकी इतनी असमत करती है वह अहमक नहीं है , इतना याद रखिए । वैसे भी सबको पता ही है कि आप सेवा करने के लिए चुनाव तो लड़ेंगे नहीं । जब जनता कि सेवा ही करनी रहती तो आप तो डीजीपी थे ।आप उस पद पर रहते हुए बिहार की जनता की खूब सेवा कर सकते थे , बिहार पुलिस की बिगड़ी छवि को सुधार सकते थे । लेकिन जनता से आप इसीलिए इतना जुड़े क्योंकि आपकी मंशा ही कुछ और थी ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here