लगता है “सब कुछ ठीक नहीं है” रफ़ी मार्ग, नई दिल्ली वाला कंस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में

कंस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत एक पंजीकृत सोसाइटी है
कंस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत एक पंजीकृत सोसाइटी है

नयी दिल्ली: लुटियन दिल्ली में स्थित ‘कंस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया’ न तो राज्य (सरकार) के स्वामित्व वाला है, न ही उसके द्वारा वित्त पोषित या नियंत्रित है। यह संसद के तहत कोई निकाय भी नहीं है, बल्कि यह ‘सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट’ के तहत एक पंजीकृत सोसाइटी है और यह एनजीओ मौजूदा एवं भूतपूर्व सांसदों द्वारा संचालित किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव की पुस्तक से यह जानकारी सामने आई है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) पर आधारित श्याम लाल यादव की पुस्तक ‘‘आरटीआई से पत्रकारिता..खबर, पड़ताल, असर’’ में कंस्टीट्यूशन क्लब आफ इंडिया के संदर्भ में यह बात सामने आई है कि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मावलंकर आडिटोरियम का प्रशासनिक नियंत्रण कंस्टीट्यूशन क्लब आफ इंडिया (सीसीआई) को हस्तांतरित करने की अगस्त 2014 में मंजूरी दी थी। हालांकि, संप्रग के शासनकाल में कंस्टीट्यूशन क्लब आफ इंडिया के इस तरह के अनुरोध पर तत्कालीन शहरी विकास मंत्री कमलनाथ ने ‘‘अनापत्ति’’ दिया था। फिर भी, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इसे खारिज कर दिया था।

पुस्तक के अनुसार, आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के तहत इन परिसम्पत्तियों का प्रशासनिक नियंत्रण पहले लोकसभा सचिवालय से शहरी विकास मंत्रालय के पास स्थानांतरित किया गया और फिर यह सीसीआई को स्थानांतरित किया गया।

इसमें कहा गया है कि दस्तावेज दशार्ते हैं कि सीसीआई सचिव और पूर्व मंत्री राजीव प्रताप रूडी चाहते थे कि सीपीडब्ल्यूडी एक नये परिसर का निर्माण करें जिसके लिये सीपीडब्ल्यूडी ने 140 करोड़ रूपये का आरंभिक अनुमान लगाया था और शहरी विकास मंत्रालय को इसकी मंजूरी देनी थी। लोकसभा सचिवालय ने आडिटोरियम के नवीकरण के लिये 7.07 करोड़ रूपये की धनराशि मंजूर की थी और सीपीडब्ल्यूडी द्वारा एक अगस्त 2014 से कार्य आरंभ किया जाना अपेक्षित था। लेकिन छह जनवरी 2015 को तत्कालीन आवास एवं शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू के कार्यालय ने उनकी अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला किया कि सदस्यों द्वारा इस्तेमाल करने के लिये नये परिसर का निर्माण तीन वर्ष के अंदर किया जाए।

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पुस्तक में कहा गया है कि मीरा कुमार द्वारा अपील खारिज किए जाने के बाद एनडीए के सत्ता में आने पर राजीव प्रताप रूडी ने सुमित्रा महाजन के समक्ष अपील की और सीसीआई का नियंत्रण हस्तांतरित करने के पक्ष में कारण बताए। इस नई अपील पर लोकसभा सचिवालय ने कहा कि शहरी विकास मंत्रालय ने मावलंकर आडिटोरियम का प्रशासनिक नियंत्रण 1989 में स्थानांतरित कर दिया था, पर इसने स्वामित्व नहीं दिया था तथा कानूनी तौर पर लोकसभा सचिवालय इसे आगे किसी तीसरे पक्ष को सुपुर्द नहीं कर सकता ।

पुस्तक में कहा गया है कि इसलिये सुमित्रा महाजन ने 13 जुलाई 2014 को यह मंजूरी दी थी कि मावलंकर आडिटोरियम का प्रशासनिक नियंत्रण शहरी विकास मंत्रालय को सुपुर्द किया जा सकता है । छह अगस्त 2014 को यह सूचना लोकसभा सचिवालय को दे दी गई। इससे पहले 25 जुलाई 2014 को तत्कालीन आवास एवं शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने सूचित किया कि सीसीआई द्वारा मावलंकर आडिटोरियम का प्रबंधकीय नियंत्रण अपने हाथ में लिये जाने पर शहरी विकास मंत्रालय को कोई आपत्ति नहीं है। इसके परिणामस्वरूप अगस्त 2014 से मावलंकर आडिटोरियम का भी नियंत्रण अब सीसीआई के पास है ।

आरटीआई आधारित स्टोरी संबंधी इस पुस्तक में कहा गया है कि सीसीआई को मावलंकर आडिटोरियम का नियंत्रण प्रदान करने के लिये किये गए प्रयासों के साथ ही रूडी ने विठ्ठल भाई पटेल हाऊस (वी पी हाऊस) के 41 सुइट्स पर भी ध्यान दिया और इसी तरीके से 32 सुइट्स का नियंत्रण सीसीआई को स्थानांतरित कर दिया गया। (भाषा के सौजन्य से)

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