न “लल्लू” यादव बिहार के पत्रकारों पर भड़कते और ना ही “लालू” यादव बनते, वैसे भड़कने का गुण “तेजस्वी” में क़म नहीं है 

बिहार की जनता कभी यह नहीं सोची कि जिस
बिहार की जनता कभी यह नहीं सोची कि जिस "लालटेन" को हज़ारों-लाखों लोगों को दिखाकर लालू प्रसाद यादव - राबड़ी देवी मतदाताओं को लुभा रहे हैं, अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं, ताकि उनकी सरकार बने, बनी रहे; उस लालटेन में उसके हिस्से का भी  तेल कभी नहीं डाले। यानि, वह लालटेन जो प्रदेश के लोगों के विकास का प्रतिक था, प्रदेश के विकास का प्रतिक था - कभी प्रकाशमय हुआ ही नहीं !!! विचार जरूर करें। 

सत्तर के दसक में तो कई बार लालू यादव इसलिए “भड़क” जाते थे स्थानीय पत्रकारों पर कि वे सभी हिन्दी साहित्य और भाषा के विद्वान होते थे। अंग्रेजी स्वरों को शुद्ध लिखने में तनिक कोताही नहीं करते थे। मसलन, लालू यादव अपने नाम में अंग्रेजी का “एल ए एल एलयू” और फिर यादव लिखते थे। अब उन दिनों के पत्रकारबंधु-बांधव “लल्लू यादव” लिख देते थे, तो वे हथ्थे से कवड़  जाते थे। बाद में  “एल ए एल एल यू” बदल गया  “एल ए एल यू” में और वे हो गए लालू यादव। 

बहरहाल, बिहार में चुनाव प्रचार-प्रसार गतिमान हो रहा है। आज अचानक सन 1978 में अमिताभ बच्चन की एक फिल्म  “त्रिशूल” याद आ गई, याद आ गया पटना जंक्शन के बगल वाला “वीणा सिनेमा हॉल”, अमिताभ बच्चन का बड़ा-बड़ा पोस्टर, उनके लम्बे हाथ और हाथ पर लिखा डायलॉग। 

कल तक लालू प्रसाद यादव अपना होठ भी हिलाते थे तो पटना से दिल्ली तक, दिल्ली से अमेरिका, लन्दन तक अखबार वाले, टीवी वाले, एजेन्सी वाले, सोशल मीडिया वाले टनाटन लिखते थे, छापते थे।  “अण्डरस्टैंडिंग” इतना अधिक था “नेताजी में और  पत्रकारों में कि लालू जी बोलें अथवा नहीं, भर-मुंह खैनी का थूक लबालब भरे रहने के  कारण, बोल पाएं अथवा नहीं; पत्रकार बंधू-बांधव “अपनी बात”, “मन की बात” को लालू प्रसाद के मुँह में धुसा देते थे, ताकि कहानी मसालेदार हो जाय। 

लालू प्रसाद भी सोचते थे चलो इसी बहाने “प्रचार-प्रसार” तो हो गया। उसी ज़माने में, त्रिशूल फिल्म बाजार में आने से पहले, जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण का बाजार इतना गर्म था की भारत के अख़बारों में किसी भी दूसरे नेताओं को, चाहे उभरते ही क्यों न हों, जगह  नहीं मिल पाता था; लालू प्रसाद “रास्ता” निकाल लेते थे। इसी प्रचार-प्रसार के चक्कर में वे स्वयं को कभी जख्मी, तो कभी अपहरण, तो कभी गिरफ़्तारी का भी “नौटंकी” कर देते थे – स्थानीय पटना के अख़बारों से लेकर दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग तक, कस्तूरबा बंधी मार्ग तक, कलकत्ता के चौरंगी और फ्रफुल्ल सरकार स्ट्रीट तक – चतुर्दिक प्रथम पृष्ठ पर बड़ी-बड़ी तस्वीरों के साथ छपे होते थे।” गजब का “कलाकार” थे लालू प्रसाद यादव उस ज़माने में। इन तमाम गुणों का सम्पूर्ण अभाव है पुत्रों में – फिर लालूजी जैसा नेता कैसे बन पाएंगे? एक करोड़ नहीं दस करोड़ का सवाल है। 

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उस ज़माने में लालू प्रसाद और बॉलीवुड के अमिताभ बच्चन दोनों प्रचार-प्रसार में “शिखर” की ओर अग्रसर थे।   “त्रिशूल” फिल्म में  हाथ पर वह डायलॉग लिखा होने के बाद भी,  अमिताभ बच्चन सदी के महानायक तक बन गए।  लेकिन लालू प्रसाद स्वयं और अपने चेला-चपाटियों के करतूतों के कारण “चाराखोर” हो गए।  दर्जनों मुकदमों में उनका हाथ-पैर फंसा, फिर सशरीर जेल में बंद हो गए। 

सरकारी खजाने की लूट, वह भी सार्वजनिक रूप से – अकेले नहीं, मिलजुल कर, जगन्नाथ मिश्र  से लेकर दर्जनों घुटने कद से आदमकद तक के नेता, डाक्टर, अधिकारी, समाजसेवी और न जाने कौन कौन सभी “गोंता” लगाए उस महायज्ञ में।  इसमें लगभग 44-मुक़दमे दर्ज हुए। कोई 500 से अधिक उनके चेले-चपाटी इन मुकदमों में फसने थे।  कुछ सजा काटे, कुछ मृत्यु को प्राप्त किये, कुछ मृत्यु के दरवाजे पर  कुहर रहे हैं। 

बिहार जहाँ 34 वर्ष पहले था, आज तक वहीँ है – सिवाय एक ऐतिहासिक चीज को छोड़कर: वह सिर्फ लालू प्रसाद थे जिन्होंने गरीब-गुरबाओं को, दबे-कुचलों को, दलितों को, समाज से उपेक्षित वर्गों को न केवल मुंह में दांतों को, जबड़ों को ऊपर-नीचे करने से ध्वनि निकलता है, बताया, समझाया; बल्कि आवाज भी दिया । ऐसी स्थिति में अगर बिहार के नेतागण अपने मतदाताओं को कहें कि वे प्रदेश का विकास करेंगे – विस्वास नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए क्योंकि “दूध का जला मठ्ठा भी फूक-फूक कर पिता है।”  

सब समय है। कल तक जो प्रचार-प्रसार के लिए विश्वव्यापी खिताब का हक़दार था, आज बोलते ही, मुंह खोलते ही चतुर्दिक आलोचनाओं की बारिस होने लगती है। जिस समय चारा-काण्ड अख़बारों की सुर्खियां बना, उस समय जो बच्चे जन्म लिए थे, आज न्यूनतम 34-वर्ष के हैं और भारत में तो 18 वर्ष का युवक-युवती न केवल मतदाता हो  ,बल्कि गुगुल महाशय की उपस्थिति के कारण सभी ऐतिहासिक जानकारियां “उँगलियों पर रखते” हैं। उन्ही उँगलियों का इस्तेमाल मतदान करने में भी करते हैं। 

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बहरहाल, बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एक बार फिर पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी सरकार पर हमला बोला और कहा कि पहले राज्य में अपराध और नरसंहार का बोलबाला था।  नितीश  कुमार बक्सर और भोजपुर जिले में चुनावी सभाओं को संबोधित करते हुए कहा कि पहले बिहार का क्या हाल था, यह बात किसी से छुपी-ढकी नहीं है। पहले राज्य में अपराध और नरसंहार का बोलबाला था लेकिन जबसे उन्हें सेवा का मौका मिला तब से राज्य कानून का राज स्थापित है। इसीका नतीजा है कि वर्ष 2018 के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े में बिहार 23वें नंबर पर नीचे चला गया है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने राज्य के हर वर्ग और क्षेत्र का न्याय के साथ विकास किया है। किसी की उपेक्षा नहीं की गई। 

नितीश कुमार ने उनके कार्यभार संभालने के पूर्व राज्य में शिक्षा के खराब बुनियादी ढांचे को लेकर लालू-राबड़ी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि बिहार में लगभग कोई भी शैक्षणिक संस्थान नहीं थे जो थे भी वह बेकार थे । लेकिन उनकी सरकार ने इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक और एएनएम कॉलेजों की स्थापना की है। साथ ही अब हर जिले में चिकित्सा महाविद्यालों की स्थापना का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने वादा किया कि जीतने के तुरंत बाद सभी विधायकों को दो महीने के भीतर उनके निर्वाचन क्षेत्रों की सभी समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए कड़ाई से निर्देश दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह कोई हवाबाज़ी नहीं करते हैं बल्कि ठोस योजना बनाते हैं। अध्ययन और सर्वेक्षण करते हैं तथा समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं।  

इधर, भाजपा के अश्विनी कुमार चौबे ने दावा किया कि विधानसभा चुनाव में बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की आंधी है, जिसमें महागठबंधन का तंबू उखड़ जाएगा। अनुसार,  बिहार राजग की आंधी चल रही है, जिसमें महागठबंधन का तंबू उखड़ जाएगा। चुनाव परिणाम आने के बाद महागठबंधन में शामिल दलों में से कोई बंगाल की खाड़ी में, कोई हिंद महासागर में और कोई अरब सागर में नजर आएगा। उन्होंने कहा कि महागठबंधन के जो बड़बोले नेता केवल बड़ी-बड़ी बाते कर रहे हैं वह चुनाव परिणाम के बाद किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। 

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अब देखिये न !! लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार के समुद्र के किनारे नहीं होने से राज्य में उद्योग स्थापित नहीं हो पाने के तर्क पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अब प्रदेश में हिंद महासागर लाएं क्या ? चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू यादव के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर रविवार को भोजपुरी भाषा में किए गए ट्वीट में कहा गया, बिहार में अब हिंद महासागर भेजा जाए क्या। पंद्रह सालों की नाकामी को केवल गाल बजाकर छुपाएंगे क्या। नीतीश कुमार, आप थक गए हैं, अब जाकर आराम कीजिए (बिहार में अब हिंद महासागर भेजऽल जाओ का? पंद्रह बरस के नाकामी के खाली गाल बजा के छिपाइबा? ए नीतीश! तू थक गईल बाऽडा अब जा आराम करऽअ)।

श्री यादव के ट्वीट के साथ पोस्ट किए गए एक कार्टून में कुछ लोग घड़े में पानी लेकर जा रहे हैं। उनसे एक व्यक्ति पूछता है, ई पानी लेकर कहां जा रहे हो भाई, कहीं आग लगी है क्या। इस पर वह जवाब देते हैं कि समुंदर बनाने जा रहे हैं, बिहार में नीतीश जी कहते हैं समुंदर दो तब कारखाना लगाउंगा। गौरतलब है कि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी हाल ही में एक चुनावी सभा में कहा था, बिहार में उद्योगों के नहीं आने की बड़ी वजह समुद्र किनारे का नहीं होना है। जो लोग उद्योग लगाते हैं, वह कहां लगाते हैं। उन राज्यों में जो समुद्र के किनारे हैं। बिहार तो स्थलरुद्ध प्रदेश है।  

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