नई दिल्ली: ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं लोक सभा के काल खंड (1996-2004) में तीन प्रधानमंत्री बने। अटल बिहार बाजपेयी, एच डी देवेगौड़ा और आइ.के. गुजराल प्रधानमंत्री कार्यालय में शोभायमान हुए। इन तीनों में वाजपेयी का कार्यकाल संतोषजनक रहा। परन्तु मिथिला के लोग संतुष्ट नहीं थे। राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात को स्वीकार करेंगे कि मिथिला के लोग, यानी मतदाता मिथिलांचल की उपेक्षा के कारण भी वाजपेयी से एक-हाथ की दुरी रखे। यह वाजपेयी जानते थे। परिणाम यह हुआ कि जब तेरहवीं लोकसभा का गठन हुआ और वाजपेयी के हाथ देश का कमान आया, वे सर्वप्रथम मिथिला के लोगों की लंबित मांग को स्वीकार करते मैथिली भाषा को संविधान के आठवें सूची में स्थान दिए। वर्ष 2003 था।
मैथिली भाषा को आधिकारिक भाषा बनने के बाद भी भले मिथिला का कल्याण नहीं हुआ हो उन लोगों के हाथों जो मैथिली भाषा को लेकर संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर ऊँची-ऊँची कुर्सियों पर विराजमान हुए, लेकिन ‘मैथिली भाषा’ को एक सम्मानित स्थान मिलने के कारण मिथिलांचल के लोग लाल-पीला-हरा रंग का वस्त्र के स्थान पर गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे। गली-कूची के नुक्कड़ों पर, चौराहों पर, बसों में, ट्रेनों में, खेत-खलिहानों में, पोखरों में ‘कमल’ खिलाने लगे। इन विगत वर्षों में मैथिली भाषा का विकास भले नहीं हुआ हो, मैथिली भाषा में पूर्वी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, असम, पंजाब की भाषाओँ का आधिपत्य जमने लगा, लेकिन मैथिली भाषा के प्रति ‘वेदना और संवेदना’ होने के कारण संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित परीक्षाओं में बैठने वाले अभ्यर्थियों को काल अवश्य हुआ, निजी तौर पर।
समय बीतता गया और राजनीतिक गलियारे में, चाहे बिहार का विधानसभा हो, विधान परिषद् हो, लोक सभा हो या राज्यसभा – मिथिलांचल की राजनीति अपना स्थान बनाने लगा। आज वाजपेयी के आदेश के 21 वर्षों के बाद भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में मिथिलांचल के लिए एक और राजनीतिक प्यादा चला – भारत के संविधान का मैथिली में अनुवादित कर संविधान के 75 वें वर्षगाँठ पर राष्ट्र के साथ मिथिला के लोगों को समर्पित किया गया। इससे पूर्व मिथिला के दो मर्मज्ञ विद्वान एन.एल. दास और वैराव लाल दास संविधान को मैथिली में अनुवादित कर प्रकाशित कर चुके हैं। दुर्भाग्य यह रहा की मिथिला के लोग शायद जाने भी नहीं होंगे। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कहते हैं: “मैथिली भाषा में संविधान प्रकाशित होना गौरव की बात है, लेकिन इसका व्यावहारिक उपयोग सिर्फ राजनीतिक अखाड़े में ही होगा।”
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में मैथिली भाषा को संविधान के अष्ठम सूची में स्थान मिला। साल 2003 था। इस भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलने के बाद अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाओं, खाकर संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं बैठने वाले अभ्यर्थियों ने भरपूर लाभ उठाया। अनेकानेक छात्र-छात्राएं [परीक्षाओं में मैथिली विषय लेकर उत्तीर्ण हुए। महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापित हुए। अष्ठम सूची में दर्ज होने के कोई 21 वर्ष बाद, भारत को गणराज्य घोषित होने के 75वें वर्ष के अवसर पर आज संविधान दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मैथिली और संस्कृत में संविधान का विमोचन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और अन्य नेता उपस्थित थे। इस अवसर पर एक विशेष डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया गया। यह मैथिली भाषा के लिए एक बड़ा कदम है। इसमें कोई दो मत नहीं है।
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में संविधान अंगीकार किए जाने के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में भाग लेते अपने अपने संबोधन में कहा कि 75 वर्ष पहले, आज ही के दिन, संविधान सदन के इसी केंद्रीय कक्ष में, संविधान सभा ने स्वतंत्र राष्ट्र के संविधान निर्माण का महती कार्य संपन्न किया था। उसी दिन, संविधान सभा द्वारा हम भारत के लोगों ने संविधान को अंगीकार, अधिनियमित और स्वयं को समर्पित किया था। हमारा संविधान हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य की सुदृढ़ आधारशिला है। हमारा संविधान हमारी सामूहिक और व्यक्तिगत गरिमा सुनिश्चित करता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज संविधान दिवस और संविधान की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्र को शुभकामनाएं दीं। एक्स पर अपनी एक पोस्ट में प्रधानमंत्री ने लिखा: “सभी देशवासियों को भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ के पावन अवसर पर संविधान दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
उधर, अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद ने संविधान दिवस पर भारतीय संविधान को विविध भारतीय भाषाओं में प्रस्तुत करने के लिए भारत सरकार का और अनुवादकों एवं प्रकाशको का धन्यवाद ज्ञापित किया है। डॉक्टर धनाकर ठाकुर संस्थापक अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद एवं नेशनल मेडिकल ऑर्गेनाइजेशन ने आज संविधान दिवस पर देश की जनता को बधाई देते हुए कहा कि “मैथिली या बिहार के अधिकांश भाग और झारखंड और पश्चिमी बंगाल के कुछ क्षेत्र के लोगों की मातृभाषा है। मैथिली करीब सात करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है और मैथिली में संविधान को पहले ही स्वर्गीय प्रोफेसर नित्यानंद लाल दास एवं भैरव लाल दास जी ने प्रस्तुत कर दिया था। अब सरकारी सहयोग से यह अधिकृत रूपसे प्रकाशित हुआ है । संविधान की मूल भावनाओं का आदर करते हुए सभी भाषाओं में इसे प्रस्तुत करने के इस कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद में सराहा है और आशा की है कि इसकी ऑडियो बनाकर भारत सरकार का सूचना प्रसारण विभाग विविध भाषाओं में इसे प्रसारित करेगा तो वे लोग भी जो कि पढ़ लिख नहीं सकते हैं किंतु ऐसे लाखों मजदूर भी सफर करते हुए या गांवों में रहते हुए भी जब संविधान को अपनी भाषाओं में सुनेंगे तो अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे और अपने नागरिकोचित कर्तव्यों को संपादित करेंगे तभी एक श्रेष्ठ भारत का निर्माण होगा जो कि विश्व का जगतगुरु होगा।”
राष्ट्रपति ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर सभी देशवासियों ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाया। अगले वर्ष 26 जनवरी को हम अपने गणतंत्र होने की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। ऐसे समारोह हमें राष्ट्र की अब तक की यात्रा को समझने और भविष्य की बेहतर योजना बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे समारोह हमारी एकता भी मजबूत करते हैं और दर्शाते हैं कि राष्ट्रीय लक्ष्यों को पाने के हमारे प्रयासों में हम सभी एकजुट हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संवैधानिक आदर्शों को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ ही सभी नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से शक्ति मिलती है। हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक के मौलिक कर्तव्यों का भी स्पष्ट उल्लेख है। भारत की एकता और अखंडता की रक्षा, समाज में सद्भाव को बढ़ावा देना, महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित करना, पर्यावरण की रक्षा करना, वैज्ञानिक समझ विकसित करना, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा और राष्ट्र को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाना नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में शामिल है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान की भावना के अनुरूप, आम लोगों का जीवन बेहतर बनाने के लिए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करने का दायित्व मिला है। उन्होंने कहा कि संसद द्वारा पारित अनेक अधिनियमों में लोगों की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिली है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने समाज के सभी वर्गों, विशेषकर कमजोर वर्गों के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं। ऐसे निर्णय से लोगों के जीवन में सुधार हुआ है और उन्हें विकास के नए अवसर प्राप्त हो रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रयासों से देश की न्यायपालिका न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास कर रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान एक जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज है। हमारे दूरदर्शी संविधान निर्माताओं ने बदलते समय की आवश्यकता अनुरूप नए विचारों को अपनाने की व्यवस्था बनाई थी। हमने संविधान द्वारा सामाजिक न्याय और समावेशी विकास से जुड़े कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल किए हैं। एक नई सोच के साथ हम वैश्विक समुदाय के बीच भारत की नई पहचान स्थापित कर रहे हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का निर्देश दिया था। आज हमारा देश अग्रणी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही विश्व बंधु के रूप में भी अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर (अवकाशप्राप्त) अरविन्द सुन्दर झाका कहना है कि “विगत दिनों जब प्राचीन भाषाओँ के मामले में सरकार का निर्णय हुआ था, मैथिली भाषा उपेक्षित रहा। भारत के संविधान को मैथिली भाषा में अनुवादित कर प्रकाशन करना और राष्ट्रूपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री जैसे गणमान्य लोगों के हाथों लोकार्पित करना प्रतिष्ठा की बात अवश्य है। लेकिन इसे राजनीति से भी अलग कर नहीं देखा जा सकता है। दो दशक पहले जब मिथिला के लोगों ने यह निर्णय ले लिए था कि वे भाजपा के लिए मतदान नहीं करेंगे, तो वाजपेयी जी मैथिली को संविधान के आठवें सूची में स्थान दिए। कुछ वर्ष पहले यह निर्णय लिया गया बिहार सरकार के किसी भी मंत्री/राजनेता को सम्मानित नहीं किया जायेगा, संविधान का मैथिली में अनुवाद हो गया। इससे आम नागरिक को क्या लाभ होगा, यह तो नहीं कह सकते, लेकिन भाषा को सम्मान मिला है, यह स्वागत योग्य है। इसे ‘रिमेडियल मेजर’ कह सकते हैं। वैसे मैथिली भाषा में संविधान का अनुवाद मिथिला के मूर्धन्य दास जी कर चुके हैं।”
राष्ट्रपति ने कहा कि लगभग तीन-चौथाई सदी की संवैधानिक यात्रा में राष्ट्र ने उन क्षमताओं को प्रदर्शित करने और परंपराएं विकसित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमने जो पाठ सीखे हैं, उन्हें अगली पीढ़ियों तक पहुंचाना आवश्यक है। राष्ट्रपति ने कहा कि 2015 से प्रत्येक वर्ष ‘संविधान दिवस’ आयोजन युवाओं में हमारे राष्ट्र के संस्थापक दस्तावेज, संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सहायक रहा है। उन्होंने देश के सभी नागरिकों से अपने आचरण में संवैधानिक आदर्शों को शामिल करने, मौलिक कर्तव्यों का पालन करने और वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के निर्माण के राष्ट्रीय लक्ष्य के प्रति समर्पण के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया।
उप-राष्ट्रपति अपने भाषण में कहा कि आज का यह महत्वपूर्ण दिन इतिहास में मील का पत्थर है, क्योंकि हम भारत में अपने संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रहे हैं, जो विश्व के सबसे बड़े और सबसे ऊर्जस्वी लोकतंत्र के लिए उल्लेखनीय उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि ‘यह हमारे संविधान के मूलभूत मूल्यों पर गंभीरता से विचार करने तथा इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि करने का अवसर है। यह उत्कृष्ट कृति हमारे संविधान निर्माताओं की गहन दूरदर्शिता और अटूट समर्पण का उपहार है, जिन्होंने लगभग तीन वर्षों में हमारे देश की नियति को आकार दिया, मर्यादा और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत किया, और असंगत तथा मतभेदों वाले मुद्दों को सर्वसम्मति और समझदारी से सुलझाया।”
उप-राष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक काल में, जब संसदीय विमर्श में शिष्टाचार और अनुशासन की कमी हो गई है, आज हमें अपनी संविधान सभा की सुन्दर कार्यप्रणाली के प्राचीन गौरव को दोहराते हुए सभी समस्याओं को हल करने की आवश्यकता है। संविधान की प्रस्तावना के प्रारंभिक शब्द, “हम भारत के लोग” बहुत गहरे अर्थ रखते हैं। वे लोकतंत्र में नागरिकों के अंतिम अधिकार को स्थापित करते हैं, और संसद उनकी आवाज के रूप में कार्य करती है। संविधान की प्रस्तावना प्रत्येक नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का आश्वासन देती है। जब लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की बात आती है तो यह हमारा “ध्रुवतारा” है और कठिन परिस्थितियों में हमारा “प्रकाश स्तंभ” है।
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान दुनिया में सबसे अनूठा है क्योंकि यह सबसे लंबा और एकमात्र सचित्र संविधान है, जिसमें हमारी सभ्यता की 5,000 वर्षों की यात्रा को कलाकृतियों में दर्शाया गया है। हमारा संविधान लोकतंत्र के तीन स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – को बड़े शानदार तरीके से स्थापित करता है। इनमें से प्रत्येक की भूमिका निर्धारित है। लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तब होता है जब इसकी संवैधानिक संस्थाएँ अपने अधिकार क्षेत्र का पालन करते हुए आपसी सामंजस्य और एकजुटता के साथ काम करती हैं। सरकार के इन अंगों के कामकाज में, अपने-अपने क्षेत्र की विशिष्टता ही वह तत्व है जो भारत को समृद्धि और समानता की अभूतपूर्व ऊंचाइयों की ओर ले जाने में अभूतपूर्व योगदान देता है।
बिहार राज्यपाल भी अपने सन्देश में कहा है की ’75वें संविधान दिवस के अवसर पर भारतीय संविधान की देवभाषा संस्कृत के साथ-साथ बिहार के मिथिलांचल की भाषा मैथिली में अनूदित प्रतियों के विमोचन के लिए माननीय राष्ट्रपति जी के प्रति हार्दिक आभार। इससे मैथिली भाषा का गौरव बढ़ा है।’ यानी, विद्वान और विदुषी कहते हैं कि भारत का संविधान अब मैथिली भाषा में भी पढ़ा जा सकता हैं। मंगलवार को भारत की दो प्राचीन भाषा मैथिली और संस्कृत में अनुदित संविधान की प्रतियों का विमोचन किया गया।
अब व्यवहारिकता की नजर से भारत के संविधान को देखा जाय। बड़े-बड़े राजनितिक विद्वान और विश्लेषक तो यहाँ तक चीड़-फाड़ कर सिलाई कर रहे है कि मिथिलांचल में लोकसभा की एक दर्जन सीटें हैं और लगभग 100 से अधिक विधानसभा सीट है। और इंकार नहीं किया जा सकता है कि मैथिली भाषा में प्रकाशित यह मिथिलांचल की राजनीतिक व्यवस्था का धुवीकरण में एक हथियार हो सकता है। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर भी इस मैथिली भाषा में अनुवादित संविधान को देखा जा सकता हैं।
बहरहाल, आज़ादी के बाद बिहार में लगभग 32 वर्ष तक, यानि 1972 तक अर्थात पांचवीं विधानसभा तक जब तक श्रीकृष्ण सिंह, दीपनारायण सिंह, विनोदानंद झा, के बी सहाय, भोला पासवान शास्त्री, हरिहर सिंह मुख्यमंत्री रहे, ठीक ठाक था। पार्टी की पकड़ मतदाताओं के साथ-साथ विकास पर भी था। लेकिन पार्टी और नेताओं की पकड़ दारोगा प्रसाद राय, केदार पांडेय और अब्दुल ग़फ़ूर के मुख्यमंत्री बनने के बाद खिसकने लगी थी। प्रदेश में अनेकानेक कारणों से सकता के प्रति आवाज उठने लगी थी। सं 1975 में जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही कांग्रेस समाप्ति के रास्ते पर अग्रसर हो गयी थी।जगन्नाथ मिश्र प्रदेश में मुख्यमंत्री तीन बार बने और अपने समय काल में उनसे प्रदेश को और कांग्रेस पार्टी को जितना आघात पहुंचा, शायद किसी भी कांग्रेसी नेता से नहीं हुआ होगा, मजबूती के साथ सत्ता में रही कांग्रेस संपूर्ण क्रांति, क्षेत्रीय दलों का उभार, वामपंथ का प्रभाव और कथित खेमाबंदी के कारण धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई। कांग्रेस की समाप्ति का फायदा प्रदेश के दूसरी राजनीतिक पार्टियों को खास कर, जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल को हुई।
आजादी के बाद बिहार में वर्ष 1952 में 276 सीटों के लिए हुए पहले विधानसभा चुनाव में 239 यानी 86.55 प्रतिशत सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस महज 38 साल बाद 1990 में 324 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में 71 यानी लगभग 22 प्रतिशत सीटों के आंकड़े पर ही सिमट कर रह गई। इतना ही नहीं, आने वाले वर्षों में इसके कमजोर पड़ते जनाधार को पूरे देश ने देखा। 1995 के चुनाव में तो इसकी सीट का गणित 29 सीट यानी लगभग नौ प्रतिशत सीट पर रुक गया। 2010 में 243 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज चार सीटें यानी 1.65 प्रतिशत सीट ही मिल पाई। दरअसल, कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध में वर्ष 1975 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार की धरती से शुरू हुई “संपूर्ण क्रांति” को दबाने के लिए वर्ष 1977 में लागू राष्ट्रपति शासन में बिहार में सातवीं विधानसभा का चुनाव कराया गया। 318 सीटों पर हुए इस चुनाव में 214 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी ने पहली बार कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती दी। जनता पार्टी ने कांग्रेस के विजय रथ को महज 57 सीटों पर ही रोक दिया। इस चुनाव में निर्दलीय को 25 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को 21 सीटें मिली थीं।
ऐसा नहीं है कि इतने खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस हमेशा के लिए धराशायी हो गई। और आज जनता दल (यूनाइटेड) यानी नीतीश कुमार ‘स्वहित’ के लिए शनैः शनैः अपनी पार्टी के लोगों को भाजपा को सौंप रहे हैं। कहते हैं पार्टी में विभाजन के बावजूद कांग्रेस के एक गुट कांग्रेस (आई) के बैनर तले डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व में वह वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत से फिर से उठ खड़ी हुई। 324 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कांग्रेस (आई) को 169 सीटें मिलीं जबकि जनता दल (एस) चरण ग्रुप को 42 और भाकपा को 23 सीटें मिलीं। कांग्रेस का कारवां यहीं नहीं रुका 1985 के चुनाव में उसने और बेहतर प्रदर्शन किया और 196 सीटों पर जीत दर्ज की वहीं लोक दल को 46 और आईएनडी को 29 सीटें मिलीं। लेकिन, इसके बाद के चुनावों में जो हुआ उसने कांग्रेस को पूरी तरह से कमजोर कर दिया और वह फिर उठ नहीं पाई। यही हश्र बाबू नीतीश कुमार का है और आने वाले दिनों में और ख़राब होने वाला है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अलावे प्रदेश का मतदाता अधिक जानता हैं। और यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो जानते ही हैं।
बिहार में लोक सभा के 40 स्थान हैं जिसमें दर्जन से भी आधी स्थान मिथिलांचल में है। प्रदेश में 243 विधानसभा स्थान हैं। जब 2003 में मैथिली भाषा को आधिकारिक दर्जा मिला, तब 243 सदस्यों वाली विधान सभा में 2005 में जनता दल (यु) विधायकों की संख्या 88 थी जो 2010 विधान सभा में बढ़कर 115 हुई। 2005 में सुशील मोदी (अब दिवंगत) की अगुआई में भाजपा की संख्या 55 थी जो 2010 में 91 हो गई। राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों की संख्या 2005 में 54 थी, जो 2010 में घटकर 22 हो गई। पांच साल बाद 2015 विधानसभा में भाजपा 53 पर आ गयी, जनता दल (यु) 71 पर, कांग्रेस 27 पर और राष्ट्रीय जनता दल 80 पर पहुँच गयी। इसके अगले विधानसभा में आरजेडी 80 से 75 पर आयी, जबकि भाजपा 53 से 74 पर और जनता दल (यु) 71 से 43 पर। कांग्रेस 27 से लुढकर 19 पर पहुंची।