​मंत्रीजी, अधिकारीगण गुलछर्रे उड़ाएं, आज़ादी के शहीदों के वंशज धूल फाँकते रहे : इन्क्रेडेबल इंडिया

शहीद उधम सिंह के वंशज
शहीद उधम सिंह के वंशज

पिछले दिनों १३ अप्रैल को ऐतिहासिक जालियाँवाला बाग़ नरसंघार का 99 वर्ष पूरा हुआ और इतिहास के पन्नों में सौवें वर्ष में दाहिला मिला। जल्लियांवाला बाग़ कांड के अतिरिक्त भारतीय स्वाधीनता संग्राम के कई ऐसे नामी-गरामी घटनाएं हैं, क्रांतिकारियों और शहीदों की सूची है, जिनके वंशज सिर्फ जो गुमनाम ही नहीं, ​उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह अलग बात है कि इन विगत वर्षों में क्रान्तिकारियों और शहीदों का नाम राजनीतिक विपरण बाज़ार में जोड़ों से बिका, और बिक रहा है; परन्तु उनके वंशजों को देखने वाला न तो नेता है, न अधिकारी और भारत के लोगों के बारे में तो चर्चा ही नहीं करें।

कोई दस वर्ष पहले एक दिन कार्यालय-काल में महान क्रांतिकारी तात्या टोपे के वंशज कानपूर के जिलाधिकारी के पास पॅहुचते है। उनसे प्रार्थना करते हैं कि सरकारी दस्तावेज के आधार पर उन्हें जिला प्रशासन की ओर से एक कागज का टुकड़ा लिखा दें जो यह बता सके की वे तात्या टोपे के वंशज हैं। जिलाधिकारी के निजी कर्मचारी उनके गर्दन पर हाथ देकर बाहर निकाल देते हैं। कहते हैं वे किसी तात्या टोपे को नहीं जानते।

पंजाब के मुख्य मंत्री जलियांवाला बाग़ कांड के मुख्य नायक उधम सिंह के वंशज को {मातृपक्ष) सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए चिट्ठी देते हैं। यह तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा भी अनुशंसित होता है। परन्तु उधम सिंह का परिवार कपडे की दूकान पर कार्य करता रहा। पिछले दिनों एक वंशज आत्महत्या भी किया।

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के परिवार को मध्य प्रदेश की सरकार कोई पचास वर्ष पूर्व प्रचुर मात्रा में जमीन देती है। समयक्रम में उस जमीन को सरकार खुद हड़प लेती है उधम सिंह की प्रतिमा बनाने के लिए, मुफ्त में। शेष जमीन सफ़ेद वस्त्र पहने स्थानीय नेतागण और दबंग कब्ज़ा कर लेते हैं।

यह कैसी बिडंबना है ? भारत में पंचायत से लेकर संसद तक नेताओं और उनके परिवार, परिजनों, पत्नियों, पुत्रों, बहुओं, सालों, सालियों सभी के लिए स्थान सुरक्षित है। सभी उन क्रांतिकारियों और शहीदों के नाम को भुनाकर नेतागिरी करते हैं, करेंगे। परन्तु शायद ही इनमे से कोई नेता किसी भी क्रांतिकारियों और शहीदों के परिवारों के लिए कुछ किये हों या मन में करने की तमन्ना रखते हैं।

बहरहाल. भाषा संवाद एजेंसी की एकता थानी ने विस्तार से जलियांवाला बाग़ कांड पर कहानी की है। आप भी पढ़ें।

सौ बरस बीते, पर उन लम्हों की आग आज भी धू धू कर धधकती है, जब बेदर्द अंग्रेज हुक्मरानों ने तीन तरफ मकानों से घिरे एक मैदान में हिंदुस्तानियों की निहत्थी भीड़ को गोलियों से भून डाला था। बाहर जाने का एक संकरा सा रास्ता और ऐसे में जान बचाने के लिए कोई दीवार फांद गया, कोई पेड़ के पीछे छिप गया और जब बचने की कोई सूरत न नजर आई तो गोद में दुधमुंहे बच्चे लिए माएं एक कुएं में कूद गईं।

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कौन थे ये लोग और क्यूं चले आए थे उस दिन वहां अंग्रेज सरकार का जुल्म आजमाने? जान चले जाने का खौफ होने के बावजूद कहां से आता था वह हौंसला, जो आजादी के परवानों को देश पर निसार होने का जज्बा देता था और कैसा था वह जब्र जो हर सितम मुस्कुराकर सह जाता था। इन तमाम सवालों के जवाबों और जलियावालां बाग से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्यों से लोग अब भी अनजान हैं।पंजाब सरकार ने देश के स्वतंत्रता संग्राम को एक नयी दिशा देने वाले पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग की अहमियत को प्रत्येक देशवासी तक पहुंचाने और यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसके महत्व से रूबरू कराने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई है।

पंजाब के संस्कृति और स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू जलियांवाला बाग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि यह वह तीर्थ है जिसने लोगों में आजादी हासिल करने की अलख जगाई। पंजाब ने जलियांवाला बाग के रूप में देश की आजादी के हवन में आहूति देकर उसकी लपट को जैसे आसमान की बुलंदियों तक पहुंचा दिया।‘‘भाषा’’ के साथ एक खास मुलाकात में सिद्धू कहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों को यह बताने के लिए कि पंजाब की मिट्टी से निकले बहुत से वीरों ने आजादी की लौ को अपने खून से रौशन रखा। यही वीर देश के असली हीरो हैं और इनके बारे में जानकारी देने के लिए जल्दी ही जलियांवाला बाग में विशेष आयोजन किए जाएंगे।

उन्होंने कहा, “यहां लेजर शो दिखाया जाएगा। शहीदों की कुर्बानी के बारे में फिल्में दिखाई जाएंगी ताकि ‘हीरो’ की बात होने पर लोग सलमान, शाहरूख जैसे ‘रील हीरो’ की नहीं, बल्कि भगत सिंह, उधम सिंह, अशफाकुल्लाह और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे ‘रियल हीरो’ की बात करें।”

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सिद्धू ने बताया कि उन्होंने पंजाब के ऐतिहासिक स्थलों का बुनियादी ढांचा मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर 100 करोड़ रूपए की राशि की मांग की है, जिसके जरिए जलियांवाला बाग के साथ साथ चमकौर साहिब, कलानौर और हुसैनीवाला जैसे शहीदों से जुड़े ऐतिहासिक स्थानों को नया स्वरूप दिया जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि केन्द्र सरकार जल्द ही यह राशि आवंटित करेगी।

उन्होंने बताया कि पंजाब के इतिहास और संस्कृति के बारे में राज्य के हर बच्चे को अवगत कराने के लिए इसे ​पाठ्यक्रम में लाया जाय।​

देश की आजादी की लड़ाई को एक नया तेवर देने वाले 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला कांड को अंग्रेजों के लिए एक चेतावनी करार देते हुए प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास कहते हैं, “जलियांवाला बाग से निकली चिंगारी से अंग्रेज सरकार को यह समझ आ गया कि अब इस आग को रोकना मुश्किल होगा। इस घटना के बाद युवकों का एक ऐसा वर्ग उभरकर सामने आया जो यह मानता था कि आजादी केवल विनय घोषणाओं से नहीं मिलेगी और उसके लिए कुर्बानी देनी होगी।”

इस घटना ने 12 मील दूर अपने घर से चलकर यहां तक आए 12 बरस के भगत सिंह जैसे आजादी के बहुत से मतवालों को जैसे रातोंरात जवान कर दिया और वह भारत माता को आजादी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने निकल पड़े।

विश्वास का भी मानना है कि देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले वीर ही दरअसल देश के वास्तविक नायक हैं और अब समय आ गया है कि भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन हो और नायकों की परिभाषा बदली जाए। देश की राष्ट्रीयता की परिभाषा फिर से तय हो ताकि आने वाली पीढ़ियां यह जान सकें कि कुछ लोग ऐसे थे, जो सिर्फ इसलिए मर जाना चाहते थे ताकि आने वाली पीढ़ियां आजादी की पुरनर्म हवा में सांस ले सकें।

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जलियाँवाला बाग के उस घटना का जिक्र करें तो सौ बरस पहले की वह घटना आज भी हर संवेदनशील मन को झकझोर देती है। मैदान के चारों तरफ बने मकानों की दीवारों में धंसी गोलियों के निशान, और एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत का मंजर जैसे दिल दहला देता है। यहां हर दिन आने वाले हजारों लोगों में से बहुत से लोग उस पिरामिड नुमा पत्थर के नजदीक बैठकर फफक फफककर रोने लगते हैं, जिसपर लिखा है, “यहां से चलाई गई थीं गोलियां।’’ यह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है। सारे देश की तरह पंजाब में भी आजादी की आंधी चल रही थी। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में, ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों और पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉक्टर सत्यपाल एवं सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में हजारों की भीड़ जमा थी। उस दिन बैसाखी होने के कारण बहुत से लोग अपने बच्चों को मेला दिखाने लाए थे।

वह रविवार का दिन था और शाम को करीब साढ़े चार बजे लगभग 20,000 व्यक्ति इकट्ठा थे। अंग्रेज सरकार इस सभा को अवैधानिक घोषित कर चुकी थी। बाग के एक कोने

शहीदों के आँकड़े सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है। जलियाँवाला बाग में 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी थी, जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आँकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे।

दुनियाभर के मुल्कों में आजादी के लिए लोगों ने कुर्बानियां दी हैं, लेकिन यह अपनी तरह की पहली घटना है, जिसमें एक ही स्थान पर एक साथ इतने लोगा शहीद हुए हों।

​(भाषा की रिपोर्ट में ​संपादकीय सहयोग : अतनु दास​)

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