फूलन के गाँव में ‘लड़कियां’ भी सुरक्षित है और गाय-बकरियां भी, बच्चियां ‘बढ़ने’ के लिए ‘पढ़ने’ जा रही है ताकि कोई शोषण न कर सके

फूलन देवी का गाँव गोरहा का पूर्वाम में लड़कियां सुरक्षित हैं

गोरहा का पूर्वा (जालौन, उत्तर प्रदेश) : आत्मसमर्पण के वक्त फूलन कही थी ‘उसकी गाय-बकरी’ को भी जगह मिले। यह एक महत्वपूर्ण शर्त थी फूलन की। आज फूलन के गाँव में महिला, लड़कियों के साथ बकरियों, गायों को सुरक्षित देखकर, लड़कियों को सरकारी और फूलन के परिवार के लोगों द्वारा खोले गए विद्यालयों की और जाते देख मन खुश हो गया। आखिर फूलन भी तो यही चाहती थी कि उसकी गाँव की लड़कियां पढ़े, मजबूत हो जिससे उसका कोई शोषण नहीं कर सके, चाहे अपना ही क्यों न हो। आज दबे कुचले मतदाताओं के साथ भले राजनेता लोग छल-प्रपंचकर लें, लेकिन ‘देवी’ स्वरुप पूजा-अर्चना होती है फूलन की उसके गाँव में – यही सच है, और उसके परिवार, परिजन के लोग उसकी विचारधारा को मजबूत बनाने में लगे हैं। 

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले का गोरहा का पूर्वा गाँव और इस गाँव में रहने वाले लोग बहुत खुश हैं। भर पेट भोजन भी है और उनकी बकरियां, गाय भी सुरक्षित हैं। इस गाँव के लोग भी भारत के 28 राज्यों, आठ केंद्र शासित प्रदेशों, 787 जिलों, 649481 गाँव, 268000 पंचायतों और 6562 तहसीलों में रहने वाले लोगों जैसा ही है। वैसे देश के अन्य गाँव, शहर, जिलों, तहसीलों से आने वाले अधिकारियों, पदाधिकारियों, नेताओं, मंत्रियों के गाँव में विकास की रेखाएं जितनी दिखती हैं, आज़ादी के 78 वर्ष बाद भी गोरहा का पूर्वा गाँव में प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनी सड़क, विद्यालय आदि तो दिखती है, लेकिन ‘विकास की रेखाएं’ उतनी गहरी नहीं दिखती जितनी जालौन जिलाधिकारी, विकास पदाधिकारी और लखनऊ के सचिवालय में फाइलों पर रंग-बिरंगे स्याही में लिखा प्रखर दीखता है। 

देश के अन्य भागों से रोजी-रोटी के लिए पलायित होने वाले, शिक्षा के लिए पलायन करने वालों जैसी स्थिति इस गाँव में भी है। बच्चों के हाथों में रखे स्लेटों पर शिक्षा की रेखाएं दिखती तो है, लेकिन भैंसों के पीठ पर बैठते ही वे रेखाएं मिट जाती है। फूलन देवी के नाम से विख्यात या कुख्यात रहा इस गाँव में आज़ादी के 78 साल बाद भी बच्चों के शरीर पर उतने वस्त्र नहीं दीखते जितनी होनी चाहिए। ढंढ गिरने के साथ शहरों में मालिक-मोख्तारों के घरों में पलने वाले कुत्ते-बिल्ली के शरीर पर विभिन्न ब्रांडो के वस्त्र जैसा गोरहा का पूर्वा गाँव में बकरियों, भैंसों या गायों का भाग्य नहीं है। यहाँ के लोग बोड़ियों की सिलाई कर अपने पशुओं के शरीर को ढँक देते हैं।  शाम में गोइठा-झाड़ इकठ्ठा कर आग लगा देते ताकि वातावरण में गर्मी हो। यहाँ उम्र के हिसाब से बच्चों के शरीर का विकास और गठन जिस कदर होना चाहिए, पौष्टिक भोजन और बेहतर स्वास्थ्य के अभाव में नहीं दीखता है। जाती के आधार पर देश में राजनीति की दुकानदारी चलने वाले नेता और पार्टियां इस गाँव को भी नहीं बक्से हैं।

हाँ, इस गाँव को देखकर सबसे बेहद ख़ुशी इस बात की होती है कि अब इस गाँव की बच्चियों के तरफ कोई नजर उठाकर नहीं देखता है। बच्चियां, बच्चे सरकार द्वारा खोले गए विद्यालयों में शिक्षित होने के लिए कदम बढ़ाये हैं। यह गाँव फूलन देवी का गाँव है। यहाँ रहने वाले मल्लाह जाती के लोग ही नहीं, अन्य दलित और उपेक्षित लोग भी देवी-देवताओं की तरफ फूलन देवी को भी पूजते हैं, सम्मान देते हैं। जिन बातों को लेकर कभी फूलन बन्दुक उठायी थी, उन बातों को यमुना और चम्बल नदी के इस पार नहीं आने देने के लिए शैक्षिक और बौद्धिक रूप से सज्ज हो रही है। पिताओं की बात तो अलग, गाँव की माताएं भी आज अपनी बच्चियों को इतना शिक्षित और मजबूत बनाने की कोशिश कर रही हैं जिससे किसी भी परिस्थितियों का सामना करने में उसके पैर नहीं डगमगायें। 

पहली बार तत्कालीन आनंद बाजार पत्रिका समूह के छायाकार श्री जगदीश यादव फूलन की तस्वीर को सार्वजनिक किये था ‘सन्डे’ पत्रिका में। यह तस्वीर ग्वालियर जेल की है जहाँ श्री यादव स्वयं साड़ी और प्रसाधन के सामानों की व्यवस्था फूलन की बड़ी बहन रुक्मिणी की सहायता से किये थे

भारत के साढ़े छः लाख गाँव और गोरहा का पूर्वा गाँव में एक ख़ास अंतर है, वह है पहचान का। देश के साढ़े छह लाख गाँव को भारत के लोग भले नहीं जानते हों, अथवा उन गाँव में जन्म लेने वाले लोगों में अपने गाँव का नाम रौशन करने की क्षमता भले नहीं हो, परन्तु गोरहा का पूर्वा अपनी एक 18 वर्षीय बेटी के कारण विश्वविख्यात हो गयी थी आज से पांच दशक पूर्व। इतना ही नहीं, भारत ही नहीं, विश्व का शायद ही कोई लेखक, पत्रकार, छायाकार रहे होंगे जिनके पैरों के निशान इस गाओं की मिट्टी पर नहीं बनी हो। गोरहा का पूर्व फूलन देवी जिसकी कहानी अपने आप में एक कहानी है। गरीब और वंचित लोगों के लिए, फूलन देवी गरीबी से अमीरी की ऐसी कहानी पेश करती है जो बॉलीवुड में कभी नहीं देखी जा सकती। वह नारीत्व के शोषण और उत्कृष्टता का प्रतीक है।

ये भी पढ़े   क्या आप आज़ादी के योद्धा शहीद तात्या टोपे की तलवार, गुप्ती, लकड़ी का बक्सा या अन्य धरोहर खरीदना चाहते हैं ? 

उन काले दिवस से आज तक फूलन देवी के परिवार से जुड़े सोमरन पाल पहलवान कहते हैं: “हमें नाज है कि हम इस गाँव के नागरिक हैं। हमें नाज है कि इस गाँव में फूलन जन्म ली। हमें नाज है कि फूलन इस गाँव की ही नहीं, सम्पूर्ण मल्लाह जाति के लिए, दबे-कुचलों के लिए एक मिशाल है और रहगी। अखिल भारतीय पाल महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री पाल कहते हैं: “विगत कई वर्षों से फूलन देवी के संबधी श्री सुभाष कश्यप जी जिस कदर फूलन देवी की सोच को उनके गाँव में परिमार्जित कर रहे हैं, चाहे बच्चों की शिक्षा की बात हो या जीवन यापन की बात हो या फूलन की माता की देख्रकघ करने की बात हो, हम सभी उनके साथ हैं। 

सोमरन पाल पहलवान

श्री पाल का कहना है कि “फूलन की मृत्यु के बाद उसके नाम को दर्जनों लोगों ने राजनीतिक बाजार में बेचा। परन्तु फूलन की विचारधारा को किसी ने भी जमीनी सतह पर नहीं उतरा। श्री कश्यप और उनके पिता श्री हरफूल सिंह कश्यप फूलन को आत्मसमर्पण करने के बाद ग्वालियन जेल से तिहार जेल तक और फिर उसके जीवन काल तक उसके पीछे खड़े रहे। आज न फूलन जीवित है और ना ही उसके पिता, लेकिन सुभाष कश्यप फूलन की विचारघारा को जीवित रखे हैं ताकि यहाँ की बेटियां शिक्षित हो, रोजी-रोजगार का अवसर हो।” इस गाँव की  आवादी करीब 5000 है और तक़रीबन 1174 मतदाता आज की तारीख में है जो पंचायत से लेकर विधान सभा और लोक सभा के अभ्यर्थियों को चुनाव में अपना मत देते हैं।”

उधर सुभाष कश्यप का कहना है कि “फूलन बहुत ही निर्धन और समाज से उपेक्षित जाति से आती थी, अनपढ़ थी, अशिक्षित थी, देखने में सुन्दर भी नहीं थी – परन्तु महिलाओं की सुरक्षा के प्रति उसका विचार उतना ही सबल और प्रवल था। फूलन भले एक हार-मांस का शरीर थी, लेकिन उसकी मृत्यु के बाद आज भी उसका नाम, समाज के प्रति, अपने जाति की महिलाओं के प्रति, पीड़ितों के प्रति उसकी जो वेदना और संवेदना थी, जीवित है। फूलन कभी भी अपनी पिछली जिंदगी की कड़वी यादों से पूरी तरह बाहर भी नहीं आ पायीं और यही कारण है कि मरते दम तक उसने महिलाओं की सुरक्षा की बात करती रही।”

फूलनदेवी

कहते हैं जमीनी विवाद के चलते फूलन ने अपने ही चचेरे भाई पर ईंट से वार कर दिया था। फूलन के इस स्वभाव के चलते उनकी शादी उनसे उम्र में 30 साल बड़े पुत्तीलाल मल्लाह से करा दी गई थी, जो पास के गांव में ही रहता था। मायके वालों ने फूलन को जल्द ही ससुराल भेज दिया था। ससुराल में फूलन को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। एक बच्ची के लिए ये सब कितना पीड़ादायक हो सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ससुराल से प्रताड़ना झेलने के बाद फूलन मदद की उम्मीद से अपने मायके वापस लौटी लेकिन यहां उसे एक झूठे इल्जाम लगाकर जेल भेज दिया गया। जब वह बाहर आयी उसका उठना – बैठना डाकुओं की समूह के साथ होने लगा और देखते-ही-देखते फूलन गुर्जर सिंह की गैंग में शामिल हो गयी।

गाँव वालों का कहना है कि खेती के अलावे उनकी आमदनी का, जीवन यापन का कोई अन्य श्रोत नहीं है। यही कारण है कि आज इस गाँव में ही नहीं, सम्पूर्ण इलाके में पशु-पालन, खासकर गाय, भैंस, बकरी आदि एक उद्योग के रूप में जन्म लिया है। जब एक महिला से पूछा कि फूलन को किस पशु से अधिक प्यार था? वह कहती है उसके पिता के पास गाय और बकरी थी। प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कालखंड में ग्रामीण इलाकों में लागू किये गए प्रधानमंत्री सदन योजना के तहत बनी सड़क के किनारे खड़े होकर जा दाहिने हाथ सामने देखा तो यमुना-चम्बल नदी की धारा दूर दिखाई दी। लोगों का कहना है कि अगस्त महीने के बाद से अगले दो महीने तक यह सम्पूर्ण इलाका जलमग्न रहता है। गाँव में पानी का प्रवेश नहीं होता, परन्तु नदी के किनारे का इलाका होने के कारण साल में कोई दो महीना यहाँ के लोगों का खेत-खलिहान पानी के चपेट में होता है।

ये भी पढ़े   बिहार के मुख्यमंत्री सम्मानित नीतीश कुमार जी से प्रदेश से पलायित एक पत्रकार का निवेदन 🙏

खाने-पीने की समस्या के साथ साथ जीवन जीने के खातिर उस काल खंड में आधा गाँव खली हो जाता है। कहते हैं आज से कोई 41-वर्ष पहले गोरहा का पूर्वा के एक मल्लाह के घर में जन्म ली फूलन देवी, जो अब तक चम्बल की घाटियों में बन्दुक की गोलियों से अपना हस्ताक्षर कर चुकी थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की अगुआई और मध्यप्रदेश के शीर्षास्थ नेता अर्जुन सिंह के नेतृत्व में अपने कई साथियों के साथ आत्म सपर्मण की थी, सरकार के सामने कई शर्तों में कुछ शर्तें थी कि न तो उसे और ना ही उसके समूह के किसी भी व्यक्ति को फांसी की सजा दी जाएँगी। उसका कहना था कि कारावास की सजा अधिक से अधिक आठ साल होगी। किसी को भी हथकड़ी नहीं लगाया जाएंगे। सभी को एक साथ एक ही कारावास में रखा जायेगा। कारावास मध्यप्रदेश में होगा न की उत्तर प्रदेश में। उसके परिवार को और उसके गाय बकरियों को जगह मिलेगा और अंततः उसके भाई शिवनारायण को नौकरी मिलेगी। शर्तें बहुत गंभीर नहीं थी, स्वाभाविक था की श्रीमती गाँधी उन सभी शर्तों पर मुहर लगा दी। फूलन 13 फरवरी, 1983 को हज़ारो-हज़ार लोगों के बीच फूलन देवी आत्मा समर्पण की। तत्कालीन सरकार जितनी भी बातें मानी थी, सभी पूरी की सिवाय एक के आठ वर्ष का कारावास 11 वर्ष हो गया और अंततः 1994 में तिहाड़ कारावास से मुक्त हो गई।

फूलन देवी का गाँव गोरहा का पूर्वा नदी के किनारे

आज मुद्दत बाद नदी के किनारे बसे गोरहा का पुरवा गाँव की ओर जाती सड़क के दोनों तरफ, गाँव में, खेत खलिहानों में यहाँ तक कि फूलन के घर के पास रंग बिरंगी गाय, भैंस, बकरियां दिखाई दी, उसे देखते ही आत्म समर्पण के समय फूलन द्वारा राखी जाने वाली अनेकों शर्तों में से एक शर्त याद आ गया – गाय, बकरियों को स्थान मिलेगा। फूलन देवी 25 जुलाई, 2001 को भले इस दुनिया को अलविदा कर दी, लेकिन आज उसके गाँव में, हर घरों में पशुपालन, खासकर बकरी पालन, एक व्यवसाय के जन्म लिया है जो सैकड़ों परिवारों का भरण पोषण करता हैं। हां यह बात अलग है कि फूलन देवी की 90+ वर्षीय माँ, जो जीवन के अंतिम वसंत में सांस ले रही है, इस कालखंड में देश और विश्व के किसी भी व्यक्ति से, संभ्रांतों से वह सहयोग नहीं मिला, मिल रहा है, जिन्होंने उनकी बेटी के नाम को बेचकर अपना नाम और अर्थ कमाया था। शायद यही दुनिया है।

आज फूलन देवी के पिता देवीदीन नहीं हैं। माँ मूला देवी 90+ वर्ष की हो गयी है। ढ़लती उम्र में आँखों की रोशनी भी कमजोर हो गयी है। फूलन देवी भी नहीं हैं। बहन रामकली भी दुनिया को अलविदा कर दी है। भाई शिवनारायण अपने परिवार के साथ ग्वालियर में रहता है। शिवनारायण को फूलन ही अपने शर्तों के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार में नौकरी लगायी थी। आज सेवारत है और तत्कालीन सरकार द्वारा दी गयी जमीन और अन्य सुविधाओं का देखरेख कर जीवन यापन कर रहे हैं। छोटी बहन मुन्नी भी स्वश्थ नहीं है। मुला देवी कभी गोयरहा का पूर्वा तो कभी ग्वालियर अपने पुत्र के पास आती जाती रहती है। उसके पास रामकली का बेटा मोहन निषाद रहता है ताकि अपनी नानी की देख रेख कर सके।

ये भी पढ़े   विशेष रिपोर्ट: पटना का 'सिन्हा लाइब्रेरी' भारत का बेहतरीन सात-मंजिला पुस्तकालय होने वाला है

फूलन के गाँव में बकरियां

बहरहाल, उत्तर प्रदेश-राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में 100 किमी की परिधि में फैला हुआ एक भूभाग हैं चम्बल जहाँ की भूमि बीहड़ है जिसमें खेती नहीं की जा सकती है, लेकिन यहां दस्यु बहुत होते थे। उनमें से एक नाम फूलन देवी का भी था। फूलन भी समाज की कई कुरीतियों में से एक बाल विवाह का शिकार 11 साल की उम्र में बनीं जब उनके ही पिता ने नाबालिग फूलन की शादी अधेड़ उम्र के शख्स पुत्तीलाल मल्लाह से कर दी। उनको ससुराल में बहुत प्रताड़ित किया गया और उनके पति का व्यवहार भी उनके लिए ठीक नहीं था। प्रताड़ना से बाद फूलन मायके आ गई। यह भी कहा जाता है कि चचेरे भाई ने चोरी के झूठे इल्जाम में फूलन को जेल भिजवा दिया। यहीं से उनकी जान-पहचान बागियों से होनी शुरू हुई। शायद समय और प्रारब्ध यह चाहता था। फूलन ने अपने पति को छोड़ दिया और वह डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई। फूलन की आयु उस समय 20 साल रही होगी। 

फूलन देवी का जीवन दर्शाता है कि महिलाओं का संघर्ष निरंतर जारी है, खासकर भारत जैसे दुनिया के कुछ हिस्सों में जहां पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता प्रचलित नहीं है, साथ ही जाति व्यवस्था जो सभी के लिए समानता में बाधा डालती है। यह एक सुखद कहानी नहीं है, लेकिन देवी के लिए साझा करने लायक कहानी है, जो भारत में कई अन्य महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है जो निम्न जाति की महिला हैं जो शक्तिहीन लगती हैं। देवी अलग थीं क्योंकि उन्होंने न्याय के रूप में जो देखा उसे लागू करने के लिए कानून के बाहर लड़ाई लड़ी। बैंडिट क्वीन की किंवदंती जीवित है।

सुभाष कश्यप

प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बानी सदर पर खड़े होकर नदी पार इशारा करते पाल कहते हैं: “इस नहीं के उस पार ही बेहमई गाँव है जहाँ गोरहा का पूर्वा की बेटी अपनी आवरू लूटने वालों को सजा दी थी। पाल फूलन के साथ दशकों रहे थे। वे कहते हैं कि 1981 साल का 14 फरवरी। पुलिस वर्दी में सज्ज फूलन अपने साथियों के साथ बेहमई गाँव पहुंची। फूलन की आँखों में बदले की ज्वाला जल रही थी। फूलन और उसके साथियों ने पूरे गाँव को चारों और से घेर लिया। उस दिन गाँव में शादी का आयोजन था। फूलन ने लालाराम ठाकुर के बारे में खूब पूछताछ की। कोई पुख्ता जानकारी ना मिलने पर फूलन ने उस गाँव के 22 लोगों को एक कतार में खड़ा किया और गोलियों से भून डाला। ये सभी लोग ठाकुर जाति से ताल्लुक रखते थे। ये घटना बेहमई नरसंहार के नाम से अगले दिन पूरे देश में फ़ैल गयी। बेहमई नरसंहार के बाद बाद फूलन का नाम दिल्ली की सड़कों पर सुनायी देने लगा। गोरहा का पूर्वा की बेटी दस्यु महारानी बन गई। 

उधर कश्यप कहते हैं कि “भारत के समाज के गरीबों और गरीबी की कहानी भारत ही नहीं, विश्व के बाज़ारों में एक व्यवसाय के रूप में चलता है। यहाँ के गरीब और गरीबी देश के ही एक संभ्रांत समाज का, तथाकथित रूप से समाज कल्याण में लगे लोगों और संस्थाओं के लिए अमीरी का दस्तक होता है। इतिहास गवाह है कि भारत में गरीबी अथवा महिला त्रासदी पर जितनी भी फ़िल्में बनायीं गयी है, फिल्म के निर्माता और निवेशक मालामाल हो गए हैं। जबकि जिन विषयों पर फिल्मांकन किया गया होता है, वे समयांतराल गरीबी रेखा के नीचे मीलों दूर चले जाते हैं। और फूलन की कथा-व्यथा इस त्रासदी से अलग नहीं है। 

कश्यप इस बात पर बल देते हैं कि गाँव की किसी भी लड़की को शिक्षित करने में, बुजुर्गों को उनके जीवन के अंतिम बसंत में वे फूलन की विचारधारा के तहत हमेशा खड़े हैं और रहेंगे। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here