राजीव बॉस !! तुस्सी ग्रेट आदमी थे, दिल्ली में दिल से मुस्कुराता पत्रकार नहीं मिले, आप से मिलकर ठहाका लगाने का मन होता था 

हिन्दी पत्रकारिता के हस्ताक्षर राजीव कटारा नहीं रहे 
हिन्दी पत्रकारिता के हस्ताक्षर राजीव कटारा नहीं रहे 

राजीव बॉस !! तुस्सी ग्रेट आदमी थे। विगत 30-वर्षों में दिल्ली में दिल से मुस्कुराता पत्रकार नहीं मिले, दिखे; आप से मिलकर गजब का ठहाका लगाने का मन होता था – आपको भी, मुझे भी। कल ही तो देवोत्थान एकादशी था। भगवान उठे थे। ईश्वर को उठते ही उन्हें आपकी तक्षण जरुरत हो गई। उनसे प्रार्थना करता हूँ आपको शांति दें और परिवार, परिजनों को शक्ति। 

25 मार्च 2006 को भारत के शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह खान के 91 वां जन्म-दिन मनाकर अपने कमरे में पत्नी-बेटा के साथ आया ही था, तभी फोन की घण्टी ट्रिंग-ट्रिंग की। फोन पर लिखा था: “Rajiv Katara Calling” मैं फोन की हरी बटन को दबाया ही था कि उधर से वक्ता कहते हैं: “गुरुदेव की जय हो। आप तो पूरा छाये हुए हो। पीटीआई, आईएएनएस के टीकर्स पर।  दोनों ने कोई 10-12 पैराग्राफ की कहानी चलाई है।”

मैं सांस लेकर उन्हें कुछ बोलूं, की फिर उधर से आवाज आती हैं: “मृणाल जी कहीं हैं कि किताब जरूर लेते आएंगे।” दूसरे छोड़ पर सम्मानित मित्र राजीव कटारा थे। 

तीन दिन बाद दिल्ली वापस आने पर मैं सपरिवार हिन्दुस्तान समाचार पत्र के कस्तूरबा गाँधी मार्ग पर धमका। हमारे लिए दफतर नया नहीं था। उनके दफ्तर तक पहुँचने में हिन्दुस्तान टाईम्स अखबार के रिपोर्टिंग, डेस्क को लांघना पड़ता था। स्वाभाविक है पुराने मित्र लोग सपरिवार देखकर अचंभित हो रहे थे। महिला मित्रगण अधिक मुस्कुरा रहीं थीं और इधर पत्नी और पुत्र कह रहे थे: “आप यंग फीमेल जर्नलिस्ट्स में ज्यादा फेमस हैं। अब तक पुरुष जर्नलिस्ट गले नहीं मिले, लेकिन महिला जर्नलिस्ट गले भी मिल रहीं हैं।”

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मैं उनकी बातों को सुनते आगे बढ़ रहा था यह बोलते की “दिल्ली की पत्रकारिता की 15-साल की कमाई तो यही है महिलाओं का विस्वास जीतना।” तभी एक पुरुष सफ़ेद पैजामा और लाल टुह-टुह कुर्ता पहने सामने गले में लिपट गए। सज्जन का पैजामा कोई एक फुट ही दिख रहा था। कुर्ता शरीर के कंधे से पैर तक (नीचे कोई एक फुट छोड़कर) कब्ज़ा किये हुए थे। इससे पहले की हम सभी उनके कमरे में जाएँ, वे सीधा श्रीमती मृणाल जी के पास ले गए। मृणाल जी हमारे प्रयास से बहुत खुश थीं। फिर हम सभी कुछ देर तक विषय पर बात किये। अगले सप्ताह हिन्दुस्तान में यह लिखा देखा। लेखक थे राजीव कटारा। 

क्योंकि बिस्मिल्लाह तो एक शुरुआत है: राजीव कटारा 

उसी वर्ष 21 अगस्त को उस्ताद का निधन हो गया। हमारे द्वारा आयोजित जन्मदिन उनके जीवन का अंतिम जन्मदिन था। हम पत्नी-पुत्र के साथ बनारस में ही थे। उस्ताद की तबियत ख़राब होने और अस्पताल में भर्ती होते ही हम सभी वहां पहुँच गए थे। हेरिटेज अस्पताल में मेरी पत्नी नीना से उस्ताद काफी बात किये। यह उनकी अंतिम बातचीत थी उनके जीवन की।

उस्ताद की जाने के साथ ही राजीव कटारा हिन्दुस्तान अखबार में एक पन्ने का श्रद्धांजलि लिखा “अलविदा शहनाई से शहंशाह” – फिर एक फोन की घंटी बजी। फोन करने वाले राजीव कटारा थे।

वे कहते हैं: “गुरुदेव!!! नीना जी से उस्ताद की अंतिम बातचीत है। एजेंसी ने कॉपी फाईल किया है। आप बातचीत को लिखकर तुरंत ईमेल कर दें। यह मेरा नहीं, श्रीमती मृणाल जी की गुजारिश है।” आदेश का पालन हुआ। अगले दिन हिन्दुस्तान के श्रद्धांजलि पृष्ठ पर पांच-कॉलम में उस्ताद की तस्वीर के साथ छापा था: “इण्डिया गेट की बात है, हिंदुस्तान की बात है।”

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राजीव बॉस !! तुस्सी ग्रेट आदमी थे। विगत 30-वर्षों में दिल्ली में दिल से मुस्कुराता पत्रकार नहीं मिले, दिखे; आप से मिलकर गजब का ठहाका लगाने का मन होता था – आपको भी, मुझे भी। कल ही तो देवोत्थान एकादशी था। भगवान उठे थे। ईश्वर को उठते ही उन्हें आपकी तक्षण जरुरत हो गई। उनसे प्रार्थना करता हूँ आपको शांति दें और परिवार, परिजनों को शक्ति। 

नमन 

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