कोई भी बनारसी ‘पान घुलाते समय बात करना पसंद नहीं करता’, मजा ‘किरकिरा’ हो जाता है 

पान

बनारस : अगर आप किसी बनारसी का मुँह फूला हुआ देख लें तो समझ जाइए कि वह इस समय पान घुला रहा है। पान घुलाते समय वह बात करना पसन्द नहीं करता। अगर बात करना जरूरी हो जाए तो आसमान की ओर मुँह करके आपसे बात करेगा ताकि पान का, जो चौचक जम गया होता है, मज़ा किरकिरा न हो जाए। शायद ही ऐसा कोई बनारसी होगा जिसके रूमाल से लेकर पायजामे तक पान की पीक से रँगे न हों। गलियों में बने मकान कमर तक पान की पीक से रंगीन बने रहते हैं। बनारसी पान से कितनी पुरदर्द मुहब्बत करते हैं। भोजन के बाद तो सभी पान खाते हैं, लेकिन कुछ बनारसी पान जमाकर निपटने (शौच करने) जाते हैं, कुछ साहित्यिक पान जमाकर लिखना शुरू करते हैं और कुछ लोग दिन-रात गाल में पान दबाकर रखते हैं।

बनारस के अलावा अन्य जगह पाना खाया जाता है, लेकिन बनारसी पान खाते नहीं, घुलाते हैं। पान घुलाना साधारण क्रिया नहीं हैं। पान का घुलाना एक प्रकार से यौगिक क्रिया है। यह क्रिया केवल असली बनारसियों द्वारा ही सम्पन्न होती है। आधुनिक भारतवर्ष में हिन्दी साहित्यकारों, लेखकों, कवियों का पैदावार तो पूछिए ही नहीं, खासकर सोसल मीडिया के जन्म साथ तो गजगाजा गए हैं; लेकिन बनारस को समझने और शब्दबद्ध करने में सम्मानित श्री बिश्वनाथ मुखर्जी साहेब को कोई हरा नहीं सकता।

पान मुँह में रखकर लार को इकट्ठा किया जाता है और यही लार जब तक मुँह में भरी रहती है, पान घुलता है। कुछ लोग उसे नाश्ते की तरह चबा जाते हैं, जो पान घुलाने की श्रेणी में नहीं आता। पान की पहली पीक फेंक दी जाती है ताकि सुर्ती की निकोटिन निकल जाए। इसके बाद घुलाने की क्रिया शुरू होती है। बनारस में पान की खेती नहीं होती, लेकिन, बनारसी पान सारे संसार में प्रसिद्ध है और बनारसी बीड़ों की महत्ता सभी स्वीकार करते हैं। लगभग सभी किस्मों के पान, चाहे जगन्नाथ जी का हो, गयाजी का हो, कलकत्ताजी का हो, यहाँ आते हैं। पान का जितना बड़ा व्यावसायिक केन्द्र बनारस है, शायद उतना बड़ा केन्द्र विश्व का कोई नगर नहीं है।

काशी में इसी व्यवसाय के नाम पर दो मुहल्ले बसे हुए हैं। सुबह सात बजे से लेकर ग्यारह बजे तक इन बाजारों में चहल-पहल रहती है। केवल शहर के पान विक्रेता ही नहीं, बल्कि दूसरे शहरों के विक्रेता भी इस समय इस जगह पान खरीदने आते हैं। यहाँ से पान ‘कमाकर’ विभिन्न शहरों में भेजा जाता है। ‘कमाना’ एक बहुत ही परिश्रमपूर्ण कार्य है — जिसे पान का व्यवसायी और उसके घर की महिलाएँ करती हैं, यही ‘कमाने’ की क्रिया ही बनारसी पान की ख्याति का कारण है।

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इस समय भी बनारस में दस हजार से अधिक पुरुष और स्त्रियाँ ‘कमाने’ का कार्य करते हैं। कमाने का महत्त्व इसी से समझा जा सकता है कि इस समय जो पान बाजार में हरी देशी पत्ती के नाम पर चालू है, उसे ही लोग एक साल तक पकाते हुए उसकी ताजगी बनाये रखते हैं। ऐसे पानों को ‘मगही’ कहा जाता है। मगही जब सस्ता होता है तब पैसे में बीड़ा मिलता है, लेकिन जब धीरे-धीरे स्टाक समाप्त होने लगता है तब चार आने बीड़ा तक दाम देने पर प्राप्त नहीं होता।

वैसे, बनारस जनता मगही पान के आगे अन्य पान को ‘घास’ या ‘बड़ का पत्ता’ संज्ञा देती है, किन्तु मगही के अभाव में उसे जगन्नाथी पान का आश्रय लेना पड़ता है, अन्यथा प्रत्येक बनारसी मगही पान खाता है। इसके अलावा साँची-कपूरी या बंगला पान की खपत यहाँ नाम मात्र की होती है। ‘बंगला पान’ बंगाली और मुसलमान ही अधिक खाते हैं। मगही पान इसलिए अधिक पसन्द किया जाता है कि वह मुँह में जाते ही घुल जाता है।

बनारस में पान की हजारों दुकानें हैं। इसके अलावा ‘डलिया’ में बेचनेवालों की संख्या कम नहीं है। प्रत्येक चार दुकान या चार मकान के बाद आपको पान की दुकानें मिलेंगी। महाल के मकानों, गलियों और सारे शहर की सड़कों पर पान की पीक की मानो होली खेली जाती है। पान में इतनी सफाई रहने के बावजूद पान खानेवाले शहर को गन्दा किये रहते हैं। वैसे यहाँ का दुकानदार अपनी दुकान में किसी किस्म की गन्दगी रखना पसन्द नहीं करता। सिवाय अपने हाथ और कपड़ों को कत्थे के रंग से रँगकर रखने के, वह सभी सामान खूब साफ रखता है। आदमकद शीशा, कत्थे का बर्तन, चूने की कटोरी, सुपारी का बर्तन और पीतल की चौकी माँज-धोकर वह इतना साफ रखता है कि बड़े-बड़े कर्मकांडी पंडित के पानी पीने का गिलास भी उतना नहीं चमक सकता।

याद रखिए कोई भी बनारसी पान विक्रेता अपने पान की दुकान की चौकी पर हाथ लगाने नहीं देगा और न लखनऊ, दिल्ली, कानपुर, आगरा की तरह चूना माँगने पर चौकी पर चूना लगा देगा कि आप उसमें से उँगली लगाकर चाट लें। आप सुर्ती खाते हैं तो आपको अलग से सुर्ती देगा—यह नहीं कि जर्दा पूछा और अपनी इच्छा के अनुसार जर्दा छोड़ दिया। यहाँ तक कि चूना भी आपको अलग से देगा। आप उसकी दुकान छू दें, यह उसे कतई पसन्द नहीं, चाहे आप कितने बड़े अधिकारी क्यों न हों! आपको पान खाना है, पैसा चौकी पर फेंकिए, वह आपके लिए दिल्ली, लखनऊ की तरह पहले से पान में चूना-खैर लगाकर नहीं रख छोड़ता। आपकी माँग के अनुसार वह तुरन्त लगाकर आपको पान देगा। कुछ जगहों पर पहले चूना लगाकर उस पर कत्था लगाते हैं। बनारस में यह नियम नहीं है।

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पान

बहरहाल, कभी आपने पनवाड़ी के घरों में टोकड़ी में रखे पान को गौर से देखा है? अगर नहीं, तो देखिएगा – वैसे आज की पीढ़ी तो पनवाड़ी शब्द से भी अनभिज्ञ होंगे) पनवाड़ी कभी भी अपने पास सम्पूर्ण पान (डण्ठल लगा और अगला हिस्सा नुकीला) नहीं रखता। वह हमेशा अपने यहां पान का अगला हिस्सा और पीछे का हिस्सा काटकर रखता है। जानते हैं क्यों ? ब्रह्मा जी अनुसार: इन स्थानों पर “दारिद्रय” का निवास होता है। 

कभी भी पान में तम्बाकु डाल कर नहीं खाना। जीवन में कभी भी रात के समय पान नहीं खाना और तुम्हारा दुश्मन भी नहीं खाये, यह प्रयास जरूर करना। क्योंकि कथ्थे में रात्रिकाल में दारिद्रय का निवास होता है इसलिए जब भी पान खाना पान का अगला हिस्सा और पिछला हिस्सा हटाकर, बिना तम्बाकू डाले सूर्यास्त से पहले ही खाना। साथ ही, जीवन में कभी मौका लगे तो पान के पौधों के जड़ों में पानी अवश्य देना। उसके बेल को अवश्य धोना श्रद्धा साथ क्योंकि ये साक्षात नागराज का स्वरुप है जिन्होंने समुद्र-मंथन के समय अहम् भूमिका निभाए थे। इस नागवल्ली भी कहते हैं। यह अद्भुत सुगन्धित लता ब्रह्माण्ड के सभी देवी-देवताओं को बेहद पसंद है। इसलिए: पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्। एलालवंगसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।। मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि। 

बहरहाल, अनिल कुमार श्रीवास्तव जिला उद्यान अधिकारी, महोबा,पत्र सूचना कार्यालय,नई दिल्ली के अनुसार पान एक बहुवर्षीय बेल है, जिसका उपयोग हमारे देश में पूजा-पाठ के साथ-साथ खाने में भी होता है। खाने के लिये पान पत्ते के साथ-साथ चूना कत्था तथा सुपारी का प्रयोग किया जाता है। ऐसा लोक मत है कि पान खाने से मुख शुद्ध होता है, वहीं पान से निकली लार पाचन क्रिया को तेज करती है, जिससे भोजन आसानी से पचता है। साथ ही शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। भारत में पान की खेती लगभग 50,000 है. में की जाती है। इसके अतिरिक्त पान की खेती बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैण्ड, फिलीपिंस, पापुआ, न्यूगिनी आदि में भी सफलतापूर्वक की जाती है।

भारत वर्ष में पान की खेती प्राचीन काल से ही की जाती है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग- अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे संस्कृत में नागबल्ली, ताम्बूल हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पान मराठी में पान/नागुरबेली, गुजराती में पान/नागुरबेली तमिल में बेटटीलई, तेलगू में तमलपाकु, किल्ली, कन्नड़ में विलयादेली और मलयालम में बेटीलई नाम से पुकारा जाता है। देश में पान की खेती करने वाले राज्यों में प्रमुख राज्य निम्न है। पान अपने औषधीय गुणों के कारण पौराणिक काल से ही प्रयुक्त होता रहा है। आयुर्वेद के ग्रन्थ सुश्रुत संहिता के अनुसार पान गले की खरास एवं खिचखिच को मिटाता है। यह मुंह के दुर्गन्ध को दूर कर पाचन शक्ति को बढ़ाता है, जबकि कुचली ताजी पत्तियों का लेप कटे-फटे व घाव के सड़न को रोकता है। 

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अजीर्ण एवं अरूचि के लिये प्रायः खाने के पूर्व पान के पत्ते का प्रयोग काली मिर्च के साथ तथा सूखे कफ को निकालने के लिये पान के पत्ते का उपयोग नमक व अजवायन के साथ सोने के पूर्व मुख में रखने व प्रयोग करने पर लाभ मिलता है।पान एक लताबर्गीय पौधा है, जिसकी जड़ें छोटी कम और अल्प शाखित होती है। जबकि तना लम्बे पोर, चोडी पत्तियों वाले पतले और शाखा बिहीन होते हैं। इसकी पत्तियों में क्लोरोप्लास्ट की मात्रा अधिक होती है। पान के हरे तने के चारों तरफ 5-8 सेमी0 लम्बी,6-12 सेमी0 छोटी लसदार जडें निकलती है, जो बेल को चढाने में सहायक होती है।पान में मुख्य रूप से निम्न कार्बनिक तत्व पाये जाते हैं, इसमें प्रमुख निम्न हैः फास्फोरस, पौटेशि‍यम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक, शर्करा और कीनौलिक यौगिक होते हैं। पान में गंध व स्वाद वाले उड़नशील तत्व पाये जाते हैं, जो तैलीय गुण के होते हैं। ये तत्व ग्लोब्यूल के रूप में पान के “मीजोफिल” उत्तकों में पाये जाते हैं। जिनका विशेष कार्य पान के पत्तियों में वाष्पोत्सर्जन को रोकना तथा फफूंद संक्रमण से पत्तियों को बचाना है। अलग-अलग में ये गंध व स्वाद वाले तत्व निम्न अनुपात में पाये जाते हैं। जैसे- मीठा पान में 85 प्रतिशत सौंफ जैसी गंध, कपूरी पान में 0.10 प्रतिशत कपूर जैसी गंध, बंगला पान में 0.15-.20 प्रतिशत लवंग जैसी, देशी पान में 0.12 प्रतिशत लबंग जैसी । उल्लेखनीय है कि सभी प्रकार के पान में यूजीनॉल यौगिक पाया जाता है, जिससे पान के पत्तों में अनुपात के अनुसार तीखापन होता है। इसी प्रकार मीठा पान में एथेनॉल अच्छे अनुपात में होता है, जिससे इस प्रकार के पान मीठे पान के रूप में अधिक प्रयुक्त होते हैं।

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