बिहार में पर्यटन का विकास महज सरकारी दफ्तरों के फाइलों तक ही सीमित है। फाइलों पर अधिकारियों द्वारा रंग-बिरंगे स्याहियों से लिखे शब्द और पंक्तियाँ और भी चमकदार बना देती हैं उन पर्यटक स्थलों को। हाँ, जो पर्यटक स्थल “दुघारू” हैं, जहाँ जिला प्रशासन अथवा प्रदेश सरकार को आमदनी होती है; उनपर तो अधिकारियों की अलग दृष्टि होती है । लेकिन जहाँ स्थानीय लोगों की, मतदाताओं की आस्था जुड़ी हैं, उनके बारे में सोचना उनकी आदतों में नहीं है। यदि देखा जाय तो बिहार में अनेकानेक ऐसे “देव-स्थलें” हैं जहाँ लोगों की आस्था उत्कर्ष पर है परन्तु स्थानीय अधिकारी या राज्य सरकार की सोच और नियत जमीन के अन्दर दफ़न है। ऐसे में ही औरंगाबाद से पर्यटन स्थल देव तक की जाने वाली सड़को के बीच बना नहर पर नंगा-पुलिया” का है। किसी भी समय कोई भी हादसा हो सकती है। गाडी नहर में गिर सकती है, बच्चे नहर में फिसल सकते हैं – पुलिया पर रेलिंग नहीं है। यह सड़क औरंगाबाद से अनपूरा होते हुए देव को जाती है। लाल बिघा, के ग्रामीण शत्रुघन यादव कहते हैं: “छठ पर्व में हजारों गाड़ियों का आना जाना इसी रास्ते से होता है, कई बार लोग इस पुलिया के समीप दुर्घटना का शिकार होकर लोग मौत के गले लगा चुके हैं, बाद में तो सरकारे मुआवजा का मलहम जरूर लगा देती है, लेकिन जिसका परिवार चला जाता है वह वापिस नहीं आता है। स्थानीय लोग जिला प्रशासन और पथ निर्माण विभाग से अनेकानेक बार निवेदन किये, परन्तु सभी कुम्भकरण की नींद में सोये हैं। (औरंगाबाद से राजेश मिश्रा)
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