यह “आम रास्ता नहीं है” : 125 करोड़ लोगों के लिए भी “आम-रास्ता” जन्तर – मन्तर पर बंद हो जाते हैं

संसद भवन की ओर नेताजी ​
संसद भवन की ओर नेताजी ​

​यह “आम रास्ता नहीं है”, संसद में 793 मोहतरमायें और मोहतरम को “रोती-चिल्लाती आवाम” चुनकर भेजती है “एक उम्मीद के साथ” – परन्तु

यह आम रास्ता नहीं है। यहाँ 3,287,263 किलोमीटर भारत की चौहद्दी में फैले कोई 814.5 मिलियन मतददाताओं द्वाराप्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 793 संसद सदस्यों लोक सभा और राज्य सभा को चुनकर भेजती है एक उम्मीद के साथ।विभिन्न रंगों में कुर्तापैजामा, धोती, साड़ी, स्थानीय पोशाकों कोपहनकर प्रवेश लेते हैं। फ़ोटो खिंचवाते हैं, अखबार में छपवाते हैं, टीवी पर बाईट देते हैं कोई साईकलपर आते हैं, कोई मोटर साईकिल पर, कोई नए कारपोरेट घराने के नव उत्पादित मोबाईल फोन के साथ, तो कोई तबला-डुग्गी क्रिकेट के बैट के साथ भारत राष्ट्र और राष्ट्र के लोगों का “सेवा” करने के लिए।

भारत के 125 करोड़ और अधिक लोगों के लिए “आम-रास्ता” जय सिंह – II द्वारा निर्मित दिल्ली के जन्तर मंतर चौराहे पर घमासान पुलिस बंदोबस्त के साथ बंद हो जाती है।यहाँ से चंद कदम दूर पार्लियामेंट स्ट्रीट थाना भी है। कभी यहाँ पटियाला हाउस कोर्ट हुआ करता था, लोगों को “न्याय” दिलाने के लिए।

पहले भारत की जनता बोट क्लब तक अपनी आवाज बुलंद करती थी, ताकि राजनेतागण उनकी बातोंको सुन सकें। प्रतिबंधों के बाबजूद तत्कालीन राजनेता उनकी आवाजों को दबा नहीं पाते।उनकी आवाज विजय चौक के रास्ते रायसीना हिल पर स्थित कार्यालयों को बेध देती थी। आज बोट क्लब दिल्लीके धुमक्कड़ों का अड्डा हो गया है।कृषि भवन, रेल भवन, शास्त्री भवन, उद्योग भवन, सेना भवन मेंकार्य करने वाले भारत सरकार के कर्मचारी कार्यअवकाश के समय यहाँ तास के बाबन पत्ते फेकते हैं या फिर अपने टिफिन बॉक्स खाकर पेड़ों के छाँव में कुछ पल विश्राम करते हैं, या ठंढक में महिला कर्मचारीगण स्वेटर बुनती दिखाई देती हैं।शेष संवेदनशील जगहों परभारतीय टीवी कंपनियों का ओ. वी. वान लगा होता है, इन राज नेताओं की “छोटी-छोटी बातों को बड़े बड़े शब्दों में, ऊँची-ऊँची आवाजों में जनता तक पहुँचाने के लिए ताकि नेता भी खुश रहें और जनता भी अन्धकार में गोंता लगाती रहे।

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बहरहाल, कल बजट सत्र में लोकसभा और राज्य सभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई ।

ज्ञातब्य हो की विभिन्न कारणों से इस सत्र के दौरान लोक सभा में 127 घंटे और 45 मिनट तक सदन में कार्य बाधित रहा। लोक सभा ने नौ घंटे और 47 मिनट देर तक बैठकर अविलम्बनीय सरकारी कार्य भी पूरा किया।जबकि राज्य सभा गतिरोध के कारण बहुमूल्य 120 घंटे बर्बाद हो गये जबकि मात्र 45 घंटे कामकाज हुआ।

इधर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने दूसरे चरण में लगातार बने रहे गतिरोध पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं केवल इतना कहना चाहती हूं कि यह सभा सदस्यों के लिए जनहित तथा लोक कल्याण के मुद्दों को उठानहेतु सर्वाधिक पवित्र मंच है। मैं सदस्यों द्वारा अपने अपनेअपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दों को उठाने सेसंबंधित उनकी चिंताओं को समझती हूं लेकिन उन्हें देश के व्यापकहितों को भी ध्यान में रखना होगा।’’ उन्होंने कहा कि उनका हमेशा से यह प्रयासरहा है कि सदस्यों को सभा में मुद्दों को उठाने का अवसर मिले।

उधर राज्य सभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने इस पर खेद जताते हुये कहा कि लोगों की चिंताओं और उनकी वास्तविक अपेक्षाओं को पूरा करने में हमारा योगदान नगण्य रहा।पीएनबी घोटाला मामले, आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग तथा कावेरी जल विवाद सहित विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के कारण पांच मार्चसे शुरु हुये बजट सत्र के दूसरे चरण में लगातार गतिरोधबना रहा।जिसके कारण सरकारी विधेयक तो क्या बजट के महत्वपूर्ण अंग, वित्त विधेयक पर भी उच्च सदन में चर्चा नहीं हो सकी।

नायडू ने उच्च सदन के महत्व के बारे में राज्यसभा के पहले सभापति सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं प्रथम प्रधानमंत्रीजवाहर लाल नेहरू के वक्तव्यों का उल्लेख करते हुये कहा ‘‘इस लंबे सत्र के अंत में हमारे देश के लोगों की चिंताओं को संबोधित करने और उनकी वास्तविक आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने में हमारे योगदान के रुप में हमारे पासबताने को कुछ नहीं है।… परिणामस्वरूप हम सब गंवाने वाले हैं इनमें विपक्ष, सत्तापक्ष, सरकार तथा सबसे महत्वपूर्ण जनता एवं राष्ट्र शामिल हैं, आप सबको यह विचार करने की जरूरत है कि हम सब मिल कर सभी पक्षों के लिये गंवा देने वाली स्थिति में कैसे पहुंच गये जबकि हम इसे सभी पक्षों के लिये हासिल करने वाली स्थिति बनासकते थे। अब जागने और आगे बढ़ने का समय आ गया है।’’

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लोक सभा में बजट सत्र के दौरान कुल 29 बैठकें हुईं जो 34 घंटे और पांच मिनट तक चलीं।इनमें से सात बैठकें सत्र के पहले भाग और 22 बैठकें सत्र के दूसरे भाग में हुईं।

उल्लेखनीय है कि बजट सत्र की शुरुआत 29 जनवरी को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के साथ हुई थी कोविंद ने राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार संसद के केन्द्रीय कक्ष में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया था। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक फरवरी को वित्तीय वर्ष 2018-19 का आम बजट पेश किया था।इसमें रेल बजट भी शामिल था। बजट सत्र का पहला चरण नौ फरवरी को पूरा हुआ था।दूसरा चरण पांच मार्च को शुरू हुआ।दूसरे चरण के दौरान उच्च सदन में लगभग 60 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हुआ और उन्हें सदन में विदाई दी गयी।

सत्र केदौरान विभिन्न राज्यों से 58 सदस्य निर्वाचित होकर आये इनमें केन्द्रीय मंत्रियों जेटली, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, धर्मेन्द्र प्रधान, थावरचंद गहलोत, सपा की जया बच्चन, राकांपा की वंदना चह्वाण सहित कई सदस्य पुनर्निर्वाचित होकर उच्च सदन में आये हैं।

सत्र के दूसरे चरण में पीएनबी बैंक घोटाला, आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग तथा कावेरी जल विवाद सहित विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के सदस्य बार बार आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करते रहे। हंगामे के कारण एक भी दिन प्रश्नकाल और शून्यकाल नहीं चल सका। कल सदन स्थगित होने के बाद भी तेदेपा के सदस्यआंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर आसन के समक्ष धरना देकर करीब पांच घंटे तक बैठे रहे। बाद में उन्हें मार्शल के जरिये सदन से बाहर करवाया गया।

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सत्र के दौरान भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक चर्चा और पारित करने के लिये सदन के पटल पररख भी दियागया किंतु विपक्ष के हंगामे के कारण इस पर मतविभाजन नहीं होने से सरकार इसे पारित कराने में नाकाम रही।इस विधेयक पर सदन की प्रवर समिति पहले ही अपनी रिपोर्ट पेश कर चुकी थी।

​जो भी हो,लोकसभा में कार्य निष्पादन की दर बेहद खतरनाक तरीके से गिर रही है ।13वीं और 14वीं लोकसभा का कार्य निष्पादन प्रतिशत क्रमश:91 और 87 फीसदी था जो मौजूदा लोकसभा में गिरकर 72 फीसदी पर आ गया है ।पंद्रहवीं लोकसभा में शीतकालीन सत्र पर पूरी तरह पानी फिरने और पिछले मानसून सत्र में भी समय की भरी बर्बादी केबाद 22 नवंबर से चालू शीतकालीन सत्र के दोनों सदनों के अब तक के सभी दिन हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं।

इस हंगामे में विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों के सदस्य शामिल थे। पिछले 25 साल में 15वीं लोकसभा पहली ऐसी लक सभा रही है जिसकी कार्यवाही न सिर्फ सर्वाधिक बाधित हुई है बल्कि इसकी कार्य क्षमता में भी भारी गिरावट आयी ।

​लोकसभा में कामकाज के लिए निर्धारित घंटों की समीक्षा दर्शाती है कि आठवीं लोकसभा की पहली बैठक 15 जनवरी 1985 को हुई थी और 14 जनवरी 1990 को इसका कार्यकाल समाप्त होना था लेकिन इसे चार साल, दस महीने और 16 दिन के बाद 27 नवंबर 1989 को भंग कर दिया गया। निर्धारित समय से पहले भंग हुई आठवीं लेाकसभा ने निर्धारित 2910 घंटे की बजाय 3223. 50 घंटे काम किया और उसका कार्य निष्पादन का प्रतिशत 111 फीसदी रहा।

उधर 15वीं लेाकसभा में अभी तक निर्धारित 1110 घंटे में से केवल 798 घंटे ही काम हुआ है यह आंकड़ा दिखाता है कि वर्तमान लोकसभा ने अभी तक अपनी क्षमता से केवल 72 फीसदी काम किया ​है। ​​(इनपुट भाषा के श्री नरेश कौशिक के सौजन्य से)​

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