नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आज संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में अंतिम भाषण देते कहा कि आज नए संसद भवन में हम सब मिलकर के नए भविष्य का श्रीगणेश करने जा रहे हैं। आज हम यहां विकसित भारत का संकल्प दोहराना फिर एक बार संकल्पबद्ध होना और उसको परिपूर्ण करने के लिए जी-जान से जुटने के इरादे से नए भवन की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये भवन और उसमें भी ये सेंट्रल हॉल एक प्रकार से हमारी भावनाओं से भरा हुआ है। हमें भावुक भी करता है और हमें हमारे कर्तव्य के लिए प्रेरित भी करता है। आजादी के पूर्व ये खंड एक प्रकार से लाइब्रेरी के रूप में इस्तेमाल होता था। लेकिन बाद में संविधान सभा की बैठक यहां शुरू हुई और उन संविधान सभा के बैठकों के द्वारा गहन चर्चा, विचार करके हमारे संविधान ने यही पर आकार लिया। यही पर 1947 में अंग्रेजी हुकूमत ने सत्ता हस्तांतरण किया, उस प्रक्रिया का भी साक्षी हमारा ये सेंट्रल हॉल है। इसी सेंट्रल हॉल में भारत के तिरंगे को अपनाया गया, हमारे राष्ट्रगान को अपनाया गया। और ऐतिहासिक अवसरों पर आजादी के बाद भी सभी सरकारों के दरमियान अनेक अवसर आए जब दोनों सदनों ने मिलकर के यहां पर भारत के भाग्य को गढ़ने की बात पर विचार किया, सहमति बनाई और निर्णय भी लिए।
आज हम यहां से विदाई ले करके नए भवन में जा रहे हैं। संसद के नए भवन में बैठने वाले हैं। और ये शुभ है, गणेश चतुर्थी के दिन बैठ रहे हैं। लेकिन मैं आप दोनों महानुभावों को एक प्रार्थना कर रहा हूं, एक विचार आपके सामने रख रहा हूं। मैं आशा करता हूं कि आप दोनों मिल करके उस विचार पर जहां भी जरूरत पड़े मंथन करके कुछ निर्णय अवश्य करिए। और मेरी प्रार्थना है, मेरा सुझाव है कि अब हम जब नए सदन में जा रहे हैं, तब इसकी गरिमा कभी भी कम नहीं होनी चाहिए। इसे सिर्फ पुरानी पार्लियामेंट कह करके छोड़ दें, ऐसा नहीं होना चाहिए। और इसलिए मेरी प्रार्थना है कि भविष्य में अगर आप सहमति दें दोनों महानुभाव, तो इसको संविधान सदन के रूप में जाना जाए। ताकि ये हमेशा-हमेशा के लिए हमारी जीवन प्रेरणा बना रहेगा और जब संविधान सदन कहेंगे तब उन महापुरुषों की याद इसके साथ जुड़ जाएगी जो कभी संविधान सभा में यहां बैठा करते थे, गणमान्य महापुरुष बैठा करते थे, और इसलिए भावी पीढ़ी को ये तोहफा भी देने का अवसर हमें जाने नहीं देना चाहिए।
मैं फिर एक बार इस पवित्र भूमि को प्रणाम करता हूं। यहां पर जो तपस्या हुई है, जनकल्याण के लिए संकल्प हुए हैं, उसको परिपूर्ण करने के लिए सात दशक से भी अधिक समय से जो पुरुषार्थ हुआ है, उन सबको प्रणाम करते हुए मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं और नए सदन के लिए आप सबको शुभकामनाएं देता हूं। ये भवन नया है, यहां सबकुछ नया है, सारी व्यवस्थाएं नई हैं, यहां तक आपके सब साथियों को भी आपने एक नए रंग-रूप के साथ प्रस्तुत किया है। सब कुछ नया है लेकिन यहां पर कल और आज को जोड़ती हुई एक बहुत बड़ी विरासत का प्रतीक भी मौजूद है, वो नया नहीं है, वो पुराना है। और वो आजादी की पहली किरण का स्वयं साक्षी रहा है जो आज अभी हमारे बीच उपस्थित है। वो हमारे समृद्ध इतिहास को जोड़ता है और जब आज हम नए सदन में प्रवेश कर रहे हैं, संसदीय लोकतंत्र का जब ये नया गृहप्रवेश हो रहा है तो यहां पर आजादी की पहली किरण का साक्षी, जो आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देने वाला है, वैसा पवित्र सैंगोल और ये वो सैंगोल है जिसको भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का स्पर्श हुआ था, ये पंडित नेहरू के हाथों में पूजाविधि कर-करके आजादी के पर्व का प्रारंभ हुआ था। और इसलिए एक बहुत महत्वपूर्ण अतीत को उसके साथ ये सैंगोल हमें जोड़ता है। तमिलनाडु की महान परंपरा का वो प्रतीक तो है ही देश को जोड़ने का भी, देश की एकता का भी वो प्रतीक है। और हम सभी माननीय सांसदों को हमेशा जो पवित्र सैंगोल पंडित नेहरू के हाथ में शोभा देता था वो आज हम सबकी प्रेरणा का कारण बन रहा है, इससे बड़ा गर्व क्या हो सकता है।
1952 के बाद दुनिया के करीब 41 राष्ट्राध्यक्षों ने इस सेंट्रल हॉल में हमारे सभी माननीय सांसदों को संबोधित किया है। हमारे राष्ट्रपति महोदयों के द्वारा 86 बार यहां संबोधन किया गया है। बीते 7 दशकों में जो भी साथी इन जिम्मेदारियों से गुजरे हैं, जिम्मेदारियों को संभाली हैं, अनेक कानूनों, अनेक संशोधन और अनेक सुधारों का हिस्सा रहे हैं। अभी तक लोकसभा और राज्यसभा ने मिलकर करीब-करीब 4 हजार से अधिक कानून पास किए हैं। और कभी जरूरत पड़ी तो Joint Session के माध्यम से भी कानून पारित करने की दिशा में रणनीति बनानी पड़ी और उसके तहत भी दहेज रोकथाम कानून हो, बैंकिग सर्विस कमिशन बिल हो, आतंक से लड़ने के लिए कानून हो, ये संयुक्त सत्र में पास किए गए हैं, इसी गृह में पास किए गए हैं। इसी संसद में मुस्लिम बहन, बेटियों को न्याय की जो प्रतीक्षा थी, शाहबानो केस के कारण गाड़ी कुछ उल्टी पाटी पर चल गई थी, इसी सदन ने हमारी उस गलतियों को ठीक किया और तीन तलाक के विरूद्ध कानून हम सबने मिलकर के पारित किया। संसद ने बीते वर्षों में ट्रांसजेंडर को न्याय देने वाले कानूनों का भी निर्माण किया। इसके माध्यम से हम ट्रांसजेंडर के प्रति सद्भाव और सम्मान के भाव के साथ उनको नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य बाकी जो सुविधाएं हैं, एक गरिमा के साथ प्राप्त कर सकें, इसकी दिशा में हम आगे बढ़े हैं। हम सभी ने मिलकर हमारे दिव्यांगजनों के लिए भी, उनकी जरूरतों को देखते हुए, उनके aspirations को देखते हुए ऐसे कानूनों को निमार्ण किया जो उनके उज्ज्वल भविष्य की गारंटी बन गए। आर्टिकल-370 हटाने से लेकर, वो विषय ऐसा रहा शायद ही कोई दशक ऐसा होगा कि जिसमें चर्चा न हुई हो, चिंता न हुई हो और मांग न हुई हो, आक्रोश भी व्यक्त हुआ, सभागृह में भी हुआ, सभागृह के बाहर भी हुआ, लेकिन हम सबका सौभाग्य है कि हमें इस सदन में आर्टिकल-370 से मुक्ति पाने का, अलगावाद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम। और इस महत्वपूर्ण काम में माननीय सांसदों की, संसद की बहुत बड़ी भूमिका है। जम्मू-कश्मीर में इसी सदन में निर्मित हुआ संविधान, हमारे पूर्वजों ने जिसे दिया वो महामूल्य दस्तावेज, जम्मू-कश्मीर में लागू करते हैं तो इस मिट्टी को प्रणाम करने का मन कर रहा है।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार द्वारा आज लोक सभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम प्रस्तुत करने के लिए प्रधानमंत्री जी का आभार प्रकट किया। X प्लेटफॉर्म पर अपनी पोस्ट में श्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज भारत की सनातन संस्कृति के अनुरूप “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:” को देश के लोकतंत्र में चरितार्थ करके दिखाया है। उन्होंने कहा कि आज लोकसभा में पेश हुआ ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ एक ऐसा निर्णय है, जिससे हमारी नारी शक्ति को सही मायने में उनका अधिकार मिलेगा। श्री शाह ने कहा कि मोदी जी ने दिखाया है कि ‘Women led Empowerment’ मोदी सरकार के लिए एक नारा नहीं, बल्कि एक संकल्प है, और, इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए करोड़ों देशवासियों की ओर से मोदी जी का हृदय से अभिनंदन करता हूँ।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि चाहे नीति हो या नेतृत्व, भारत की नारी शक्ति ने साबित किया है कि वे किसी भी क्षेत्र में किसी से कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का मानना है कि नारी शक्ति के सहयोग और सामर्थ्य के बिना एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण संभव नहीं है। श्री शाह ने कहा कि देश की महिला शक्ति को उनका अधिकार देने वाला मोदी सरकार का यह निर्णय, आने वाले समय में एक विकसित और समृद्ध भारत के निर्माण का मुख्य स्तंभ बनेगा।
आज जम्मू और कश्मीर शांति और विकास के रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध हुआ है और नए उमंग, नए उत्साह, नए संकल्प के साथ जम्मू-कश्मीर के लोग आगे बढ़ने का कोई मौका अब छोड़ना नहीं चाहते हैं। ये दिखाता है कि संसद के सदस्यों ने मिलकर के संसद के भवन में कितने महत्वपूर्ण काम किए हैं। माननीय सांसदगण लालकिले से मैंने कहा था, यही समय है, सही समय है। एक के बाद एक घटनाओं की तरफ हम नजर करेंगे, हर घटना इस बात का गवाह दे रही है कि आज भारत एक नई चेतना के साथ पुर्नजागृत हो चुका है। भारत नई ऊर्जा से भर चुका है और यही चेतना यही ऊर्जा इस देश के कोटि-कोटि जनों के सपनों को संकल्प में परिवर्तित कर सकती है और संकल्प को परिश्रम की पराकष्ठा कर-करके सिद्धी तक पहुंचा सकती है, ये हम देख सकते हैं। और मेरा विश्वास है, देश जिस दिशा में चल पड़ा है इच्छित परिणाम अवश्य प्राप्त होंगे। हम गति जितनी तेज करेंगे, परिणाम उतने जल्दी मिलेंगे।
आज भारत पांचवी अर्थव्यवस्था पर पहुंचा है। लेकिन पहले तीन में पहुंचने के संकल्प के साथ बढ़ रहा है। और मैं जिस स्थान पर बैठा हूं, जो जानकारियां प्राप्त होती हैं उसके आधार पर, विश्व के गणमान्य लोगों से बातचीत करता हूं उसके आधार पर, मैं बड़े विश्वास से कह रहा हूं, हम में से कुछ लोगों को निराशा हो सकती है। लेकिन दुनिया आश्वस्त है, ये भारत टॉप-3 में पहुंच कर रहेगा। भारत का बैंकिंग सेक्टर आज अपनी मजबूती के कारण से फिर एक बार दुनिया में सकारात्मक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। भारत का गर्वनेंस का मॉडल, यूपीआई , डिजिटल स्टेक। मैं इस जी-20 में देख रहा था, मैंने बाली में भी देखा। टेक्नॉलोजी की दुनिया को लेकर के भारत का नौजवान जिस प्रकार से आगे बढ़ रहा है, पूरे विश्व के लिए कौतुहल भी है, आकर्षण भी है और स्वीकृति भी है। हम सब उस ऐसे कालखंड में हैं। मैं कहूंगा हम लोग एक भाग्यवान लोग हैं।
सामाजिक न्याय, ये हमारी पहली शर्त है। बिना सामाजिक न्याय, बिना संतुलन, बिना समभाव, बिना समत्व हम इच्छित परिणामों को घर के भीतर प्राप्त नहीं कर सकते हैं। लेकिन सामाजिक न्याय की चर्चा बहुत सीमित बनकर रह गई है, हमें उसको व्यापक रूप में देखना होगा। हम किसी गरीब को कोई सुविधा दें, किसी समाज में दबे-कुचले व्यक्ति को कोई सुविधा दें, वो तो सामाजिक न्याय की एक प्रक्रिया है, लेकिन उसके घर तक पक्की सड़क बन जाए ना वो भी सामाजिक न्याय के लिए उसको मजबूती देती है। उसके घर के नजदीक में बच्चों के लिए अगर स्कूल खुल जाएं तो वो भी उसको सामाजिक न्याय की मजबूती देती है। उसको बिना खर्च अगर आरोग्य में, समय के जरूरत पड़ने पर वो मिले, तब जाकर के सामाजिक न्याय की मजबूती मिलती है। और इसलिए जिस प्रकार से समाज व्यवस्था में सामाजिक न्याय की जरूरत है, वैसी ही राष्ट्र व्यवस्था में सामाजिक न्याय की आवश्यकता है।
आज विश्व की नजर भारत पर है। शीत युद्ध के समय हमारी पहचान गुटनिरपेक्ष देश के रूप में रही है। उस समय की जो जरूरत थी, उसके जो लाभ होने थे, उस समय से हम गुजरे हैं। लेकिन अब भारत का स्थान कुछ और बना है। और इसलिए उस समय गुट निरपेक्ष की आवश्यकता अवश्य रही होगी, आज हम उस नीति को ले करके चल रहे हैं, जिस नीति को अगर हमें पहचानना है तो विश्वमित्र के रूप में हम आगे बढ़ रहे हैं, हम दुनिया से मित्रता कर रहे हैं। दुनिया हमारे में मित्र खोज रही है। ये शायद विश्व में भारत ने और दूरी नहीं, जितनी हो सके उतनी निकटता के जरिए, उस रास्ते पर चल करके हम अपने विश्वमित्र के भाव को आज सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं और मुझे लगता है कि इसका लाभ आज भारत को हो रहा है।
हमारे यहां कहा जाता है ‘यद भावं तद भवति’ और इसलिए हमारा भाव जैसा होता है वैसे ही कुछ घटित होता है ‘यद भावं तद भवति’ और इसलिए हम जैसी भावना करते हैं और हमने जैसी भावना करके प्रवेश किया है, मुझे विश्वास है, भावना भीतर जो होगी हम भी वैसे ही खुद भी बनते जाएंगे और वो बहुत स्वाभाविक है। भवन बदला है मैं चाहूंगा भाव भी बदलना चाहिए, भावना भी बदलनी चाहिए।
संसद राष्ट्र सेवा का सर्वोच्च स्थान है। ये संसद दलहित के लिए नहीं है, हमारे संविधान निर्माताओं ने इतनी पवित्र संस्था का निर्माण दलहित के लिए नहीं सिर्फ और सिर्फ देशहित के लिए किया है। नए भवन में हम सभी अपने वाणी से, विचार से, आचार से संविधान के जो स्पिरिट है उन मानदंडों को लेकर के नए संकल्पों के अनुसार नवी भाव को लेकर के, नई भावना को लेकर के, मैं आशा करता हूं अध्यक्ष जी आप कल भी कह रहे थे, आज भी कह रहे थे, कभी स्पष्ट कह रहे थे, कभी थोड़ा लपेट कर भी कह रहे थे हम सांसदों के व्यवहार के संबंध में, मैं मेरी तरफ से आपको आश्वासन देता हूं कि हमारा पूरा प्रयास रहेगा और मैं चाहूंगा कि सदन के नेता के नाते हम सभी सांसद आपकी आशा-अपेक्षा में खरे उतरें। हम अनुशासन का पालन करें देश हमें देखता है, आप जैसा दिशानिर्देश करे।