पटना/नई दिल्ली : पिछले लोक सभा चुनाब के बाद जो 165 सदस्य 16 वे लोक सभा में चयनि होकर आये थे, उनकी आयों में लगभग 137 फीसदी की बृद्धि हुयी थी पिछले लोक सभा में चयनित होने के बाद, यानि 2009 और 2014 के बीच। इसमें सबसे अधिक तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के नेता-अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा का था।
सिन्हा का 2009 में कुल संपत्ति जो 15 करोड़ थी, 2014 में 131.74 करोड़ हो गयी। सिन्हा साहेब अब कांग्रेस पार्टी में आ गए हैं।
देखने की बात तो अगले आम चुनाब के होगा जब माननीय सांसद अपनी-अपनी आय को चुनाब आयोग के सामने दिखाएंगे। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि वर्तमान 165 करोड़पति सांसदों की संख्या या तो और अधिक हो जाय, या फिर ये सभी “राईट टू रिकॉल” के तहत मतदाताओं की उँगलियों का शिकार हो जाएँ। स्रोत का कहना है कि यदि वर्तमान केंद्र सरकार के कार्यों की समीक्षा तो चुनाब ही करेगा और इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता की वर्तमान सरकार का क्रिया-कलाप भारतीय आवाम, मतदाताओं के पक्ष में नहीं रहा है।
पटना के एक स्रोत का कहना है कि बिहार के दो लोगों की आयों की तुलना अगर करें तो आप दंग हो जायेंगे। दोनों राजनीतिक क्षेत्र के ही हैं। एक ने कभी राजनीतिक क्षेत्र में अपनी दबंगता नहीं दिखाए और यही कारण है कि आज भी बिहार के ही नहीं, सम्पूर्ण भारत के लोगों के लिए वे एक “चारित्रिक मापदण्ड” के लिए मशहूर हैं; जबकि दूसरे बिहार की कभी विकास के तरह तो देखा ही नहीं, सिर्फ अभिनेता के रूप में ख्याति पाने के कारण प्रदेश की राजनीतिक क्षेत्र का भरपूर लाभ उठाये हैं। इन दोनों में एक थे – बाबू राजेन्द्र प्रसाद और दूसरे हैं शत्रुघ्न सिन्हा।
शत्रुघ्न सिन्हा के अलावे शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले की है। सुश्री सुले की आय 2009 में 51.53 करोड़ थी, जो 2014 में 113.90 करोड़ हो गयी। आने वाले समय में आय में कितनी फीसदी बढ़ेगी यह कहा नहीं जा सकता। वैसे देश का आर्थिक विकास दर भले ही कभी 7.40 फीसदी बढे या नहीं, लेकिन 165 करोड़पति सांसदों की आमदनी औसतन 7.40 करोड़, यानि 137 फीसदी की बृद्धि हुयी। डिम्पल यादव की आय में 210 फीसदी की वृद्धि हुयी थी जबकि मुलायम सिंह यादव की आय में वृद्धि का प्रतिशत 613 फीसदी था।
बहरहाल, राजेन्द्र प्रसाद का जिक्र करते उन्होंने कहा की देश के नेताओं के स्विस बैंक में कथित खातों और करोड़ों रुपये के घोटाले के बीच देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू का बैंक खाता आज भी देश के एक राजनेता की सादगी और राजनीतिक चरित्र की अद्भुत नजीर है।
पंजाब नेशनल बैंक की पटना स्थित एक्जिबिशन रोड शाखा के मुख्य प्रबंधक एसएल गुप्ता के अनुसार बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने 23 मई 1962 तक बतौर राष्ट्रपति देश की सेवा करने के बाद पटना लौटने पर यहां पंजाब नेशनल बैंक :पीएनबी: की इस शाखा में 24 अक्तूबर 1962 को खाता खुलवाया था, जिसका खाता क्रमांक अब 038000010030687 है।
उन्होंने बताया कि देश के प्रथम राष्ट्रपति के खाते को धरोहर के रूप में सहेज कर रखा गया है, क्योंकि यह पीएनबी के लिए गर्व की बात है। सम्मान के तौर पर प्रथम राष्ट्रपति को हमने ‘प्राइम कस्टमर’ का दर्जा दिया है। वह हमारे लिए सम्मानीय ग्राहक हैं।
नियमानुसार एक साल तक खाते का इस्तेमाल नहीं करने पर उसे ‘निष्क्रिय’ घोषित कर दिया जाता है, लेकिन राजेन्द्र बाबू का खाता अभी भी ‘सक्रिय’ है। इस खाते से लेन देन नहीं होता है, लेकिन इसमें प्रति छमाही ब्याज जमा होता है और इस वक्त इसमें 1813 रुपये जमा है। इसमें अंतिम दफा छह मार्च 2012 को ब्याज जमा हुआ था।
पंजाब नेशनल बैंक ने राजेंद्र बाबू की तस्वीर और उनके खाते को बैंक में प्रदर्शित किया है, जिस पर बड़े-बडे अक्षरों में खुदा है, ‘‘देश के प्रथम राष्ट्रपति भी हमारे सम्मानजनक ग्राहक थे।’’
राजनीतिक विचारक के. गोविंदाचार्य के अनुसार, ‘‘भारत की परंपरा रही है कि सत्ता के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति सादगी, मितव्ययता और देशभक्ति का जीवंत स्वरूप हो, जैसे डा. राजेन्द्र प्रसाद रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि बाजारवाद का भार, अभाव में तड़पता 80 फीसदी जनमानस अपेक्षा करता है कि राष्ट्रपति पद के साथ अपना रिश्ता जोड़ सके। इस तरह देश के आमजन का भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ नाता जुड़ेगा। गांधीवादी विचारक और पटना के गांधी संग्रहालय के सचिव रजी अहमद राजेंद्र बाबू की सादगी को आने वाली नस्ल के लिए मिसाल बताते हैं।
वह कहते हैं, ‘‘राजनीतिक गिरावट के इस दौर में राजेंद्र बाबू, डा. जाकिर हुसैन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे राष्ट्रपति आने वाली पीढी के लिए रौशनी हैं। वर्तमान दौर का राजनैतिक चरित्र भावी पीढी को दिशा नहीं दे सकता।’’
अहमद कहते हैं, ‘‘राजेंद्र प्रसाद जैसे देश का संविधान बनाने वाले लोगों ने भारत को स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर बनाने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। अब समय बदलने के साथ राजनीति का चरित्र बदला है। अब सेवा पर नहीं मेवा पर जोर दिया जाता है।’’ वह कहते हैं कि आज का समाज सब कुछ पैसे पर तौलता है। अब मर्यादाओं पर हमले हो रहे हैं और राजनीति की लक्ष्मण रेखा लांघी जा रही है। (भाषा के दीपक सेन, धर्मेन्द्र राय और संपदकीय सहयोग अतनु दास के सौजन्य से)