‘बैटल ऑफ़ बक्सर’: ‘दो-रूपया प्रति पन्ना’ की दर से जानकारियां प्राप्त करें, कौन-कौन ‘भूतपूर्व-सांसद कितना निचोड़ते’ हैं राजकीय कोषागार से

पानी की तरह बहता है पैसा भूतपूर्व सांसदों/विधायकों के पेंशन पर

नई दिल्ली / पटना : कल भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का एक दस्तावेज देखकर सन 1958 में बनी सत्येन बोस द्वारा निर्मित ‘चलती का नाम गाड़ी’ फिल्म याद आ गई। इस फिल्म में गीतकार थे मजरूह सुल्तानपुरी, संगीतकार थे सचिन देव बर्मन। इस गीत का बोल था “मैं सितारों का तराना…मैं बहारों का फ़साना…रूप का तुम हो खज़ाना…तुम हो मेरी जाँ ये माना…लेकिन पहले दे दो मेरा…पांच रुपैया बारा आना…पाँच रुपैया…बारा आना-आआ…मारेगा भैया…ना ना ना ना-आआ।” 

इस गीत का जिक्र इसलिए किया हूँ कि अगर उस दस्तावेज को माने तो भारत के संसद के किसी भी पूर्व माननीय सम्मानित सदस्यों के बारे में पेंशन से संबंधित जानकारियां की वे पेंशनभोगी हैं या नहीं, उनका परिवार पेंशनभोगी है अथवा नहीं – दो रुपये प्रति पृष्ठ के हिसाब से जानकारियां उपलब्ध की जा सकती है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण जानकारी यह है कि जब आप दो रूपये प्रति पृष्ठ के हिसाब से जमा कर देंगे तो आपको जो जानकारी मिलेगी उसे देखकर, पढ़कर आपके होश उड़ जायेंगे, आपको गश आ जायेगा, आपका सुगर डीप कर जायेगा, आपको चक्कर आ जायेगा और आप चारो-खाने चित्त गिर जायेंगे। अगर आप भारतीय प्रशासनिक/पुलिस/राजस्व या अन्य सेवाओं की सकरकारी नौकरी प्राप्त करने की पनकी में नहीं खड़े हैं, देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, चिकित्सीय इत्यादि व्यवस्था पर शोध करना चाहते हैं, तो यह खबर आपके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

विगत दो दशकों में, यानी सं 2000-01 वित्तीय वर्ष से 2020-21 वित्तीय वर्ष तक भारत सरकार के खजाने से कुल 8,771,486,000/- रुपये की निकासी हुई है। यह रुपये, जो आने वाले दिनों में दो-गुना, तीन-गुना, चार-गुना और अधिक होने वाली है। यह रकम वर्तमान में लोकसभा / राज्यसभा के क्रमशः 1981 एवं 741 भूतपूर्व सदस्यों के पेंशन पर व्यय होता है। आंकड़ों के अनुसार 2000 -2001 में 46833000/- रुपए, 2001-2002 में 32102000/- रुपए, 2003-2004 में 73492000/- रुपए, 2004-2005 में 104993000/- रुपए, 2005-2006 में 108762000/- रुपए, 2006-2007 में 227902000/- रुपए, 2007-2008 में 252595000/- रुपए, 2008-2009 में 316242000/- रुपए 2009-2010 में 391447000/- रुपए, 2010-2011 में 624146000/- रुपए, 2011-2012 में 253790000/- रुपए, 2012-2013 में 552597000/- रुपए, 2013-2014 में 596684000/- रुपए, 2014-2015 में 623984000/- रुपए, 2015-2016 में 650798000/- रुपए, 2016-2017 में 535629000/- रुपए, 2017-2018 में 554382000/- रुपए, 2018-2019 में 580216000/- रुपये, 2019-2020 में 705100000/- रुपए और 2020-2021 में 992209000/- रुपये। वैसी स्थिति में देश में विकास कहाँ होगा, कैसे होगा आप जाने।

जहाँ तक बिहार का प्रश्न है, अब तक प्रदेश के 991 ‘पूर्व विधायकों और उनकी आश्रित पत्नियों के खाते में “क्रेडिट” होती है। यह क्रिया-प्रक्रिया का कोई अंत नहीं है, क्योंकि विधायकों की संख्या क्रमशः बढ़ेंगे। स्वाभाविक है राशि भी बढ़ेगी ही। वैसी स्थिति में प्रदेश के 38 जिलों में, 101 अनुमंडलों में, 534 पंचायत समितियों और 8387 पंचायतों में रहने वाले लोग यह कैसे विश्वास करेंगे कि उनके घरों में भी विकास के दीपक जलेंगे? संभव है ये सभी विधायक महोदय मन-ही-मन सोचते भी होंगे, अपने से पूछते भी होंगे की “कैसी सरकार है? कैसी व्यवस्था है? कैसे लोग बाग है? कैसी नियम-कानून है? कभी कोई आवाज भी नहीं उठाता कि सरकारी कोष से इतनी बड़ी रकम क्यों खर्च होती है?

प्लासी युद्ध 23 जून, 1757 के बाद 22/23 अक्टूबर 1764 में बक्सर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नवाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणाम में बंगाल, बिहार, उड़ीसा का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया। चाहे इतिहास को कितना भी ममोड़ा जाय, ‘बैटल ऑफ़ बक्सर’, इतिहास में अमिट है । विगत दिनों  बक्सर के ही शिव प्रकाश राय सैद्धांतिक तौर पर प्रदेश की राजनीतिक व्यवस्था और जनता द्वारा कर के रूप में सरकारी कोष में जमा राशि का सार्वजनिक जानकारी के अभाव में कैसे नोच-खसोट होता है, एक युद्ध के रूप में बिगुल बजाया है – सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना प्रदान करने के क्रम में। 

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दिनांक 27-07-2021 को भारत सरकार के वित्त मंत्रालय (व्यय विभाग) के केंद्रीय पेंशन लेखा कार्यालय के पत्रांक CPAO/RTI/2020-21/LS-RS/P-137/762  OTH2108088, OTH 2118951 के तहत शिव प्रकाश राय को लिखा है: “उपरोक्त विषय के संदर्भ में आपका आरटीआई आवेदन पत्र दिनांक 28-05-2021 सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत राज्य सभा सचिवालय से पात्र संख्या RS/2(155)/2021-RTI दिनांक 01-07-2021 एवं लोक सभा सचिवालय से पत्र संख्या 1(675)/IC/21 दिनांक 08-07-2021 के द्वारा इस कार्यालय को प्राप्त हुआ है, के बिंदु संख्या 1 एवं 2 के सन्दर्भ से सम्बंधित अनुभागों एवं इस कार्यालय में उपलब्ध जानकारी के आधार पर सूचित किया जाता है कि वर्तमान में लोकसभा और राज्यसभा के क्रमशः 1981 एवं 741 भूतपूर्व सदस्य पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही यह भी अवगत कराया जाता है कि लोकसभा / राज्यसभा के पूर्व सदस्यों के के आश्रितों का अलग से कोई वर्ग नहीं है, उपर्युक्त पेंशनभोगी / पारिवारिक पेंशन भोगी सभी मिश्रित हैं। उपरोक्त सदस्यों की सूचि प्राप्त करने के लिए आपको 2/- रूपये प्रति पेज के हिसाब से भुगतान करना होगा तत्पश्चाय्त आपको सुच डाक द्वारा प्रेषित कर दी जाएगी।  इन सूचियों के पेजों की संख्या 59 है, अतः आप 118/- रुपये का भुगतान पोस्टल ऑर्डर / बैंक ड्राफ्ट /डिमांड ड्राफ्ट / बाइबंकर्स चेक द्वारा वेतन एवं लेखा अधिकारी, केंद्रीय पेंशन लेखा कार्यालय, नई दिल्ली के पक्ष में कर संसद सदसयों की सूचि प्राप्त कर सकते हैं। भूतपूर्व सांसदों का वर्ष 2000-2001 से 2020-2021 में दिए गए पेंशन पर कुल खर्च का ब्यौरा संलंग हैं।”  

जहाँ तक बिहार के भूतपूर्व विधायकों को पेय पेंशन का सवाल है, बिहार विधान सभा के प्रभारी सचिव के अनुसार 2015-16 वित्तीय वर्ष में 996 विधायकों के पेंशन / पारिवारिक पेंशन पर कुल 424300000/- रुपये खर्च किये गए।  अगले वित्तीय वर्ष, यानी 2016-17 में भूतपूर्व विधायकों की संख्या 981 हो गई और उनपर कुल 414795000/- रुपये खर्च किये गए। सन 2017-2018 वित्तीय वर्ष में पेंशन और पारिवारिक पेंशन भोताओं की संख्या में इजाफा हो कर 1062 हो गया और पेंशन तथा पारिवारिक पेंशन के माध में कुल 449874000/- रुपये खर्च किये गए। इसी तरह 2018-2019 वित्तीय वर्ष में संख्या 1037 हो गई तथा इस माध में कुल 441477000/- रुपये व्यय हुए। जबकि 2020-२०२१ वित्तीय वर्ष में वैसे भोक्तओं की संख्या में पूर्व वित्तीय वर्ष की तुलना में कमी तो आई (संख्या 1008 हो गई), लेकिन पेंशन / पारिवारिक पेंशन के माध में व्यय राशि बढ़कर 607300000 हो गयी। 

ज्ञातव्य हो कि आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय को बिहार विधानसभा सचिवालय से दी गई जानकारी के अनुसार राज्य में ऐसे 12 राजनेता हैं जिन्हें एक से डेढ़ लाख तक की रकम पेंशन के रूप में मिलती है । जबकि, 70 राजनीतिज्ञ ऐसे हैं जो 75 हजार से एक लाख रुपये तक की पेंशन पाते हैं और 254 पूर्व एमएलए-एमएलसी को 50 से 75 हजार तक की रकम मिलती है । रमई राम ऐसे राजनेता हैं जिन्हें पेंशन के तौर पर सर्वाधिक 1,46,000 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं । चारा घोटाले के आरोपी रहे जगदीश शर्मा दूसरे नंबर पर आते हैं । उन्हें सवा लाख रुपये की पेंशन मिलती है । इसी तरह अलकतरा घोटाले के आरोपी रहे मो. इलियास हुसैन को 1,01,000 रुपये दिए जाते हैं । है कुछ कहने के लिए आप मतदाताओं के पास? 

शिव प्रकाश राय के मुताबिक बिहार विधानसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार दिवंगत 446 विधायकों- विधान पार्षदों के पारिवारिक पेंशन पर पिछले वित्तीय वर्ष में 23 करोड़ 85 लाख रुपये खर्च किए गए । बतौर पेंशन इनमें सर्वाधिक 1,09,500 रुपये पूर्व कांग्रेस नेता महावीर चौधरी की विधवा वीणा देवी के खाते में भेजे जाते हैं । ऐसे करीब डेढ़ दर्जन राजनेता हैं जिनकी विधवाओं को 70 हजार से लेकर एक लाख रुपये पारिवारिक पेंशन के रुप में मिलते हैं । क्षेत्रवार देखें तो सबसे ज्यादा पटना जिले में 30 दिवंगत विधायकों की पत्नियां पारिवारिक पेंशन पा रहीं है । इसके बाद मुजफ्फरपुर में 23 को और पूर्णिया, पूर्वी चंपारण तथा दरभंगा में 20-20 विधायकों की विधवाओं के खाते में पेंशन की राशि भेजी जा रहीं है । 

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औसतन 35,000 रुपये प्रतिमाह की दर से 991 पूर्व-विधायक, उनकी विधवा को बिहार सरकार ‘पेंशन’ देती आ रही है। यानी एक महीने में 3,46,85,000 रुपये उन विधायकों / विधवाओं को देती है। यानी एक साल में 41, 62,20,000 रूपये भुगतान करती है। संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि ही होती जाएगी क्योंकि 243 सदस्यों वाली विधान सभा में और 75 विधान परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद अगर वे पुनः निर्वाचित हुए, चयनित हुए तो सरकारी खजाने पर ‘वेतन-स्वरुप’ वजन आएगा; अन्यथा, इसी पेंशन वाली संख्याओं में वृद्धि होती जाएगी, जब तक दोनों जने जीवित हैं, प्रदेश की सरकारी कोषागार को पेंशन का वजन उठाना बाध्यकारी है। अब यह कहना हिमालय की ऊंचाई पर चढ़ने के बराबर है कि सालाना 41, 62,20,000 रूपये का भुगतान विगत कितने वर्षों से होती आ रही है और आगामी कितने शताब्दी तक होता रहेगा – अनुत्पादक। वैसी स्थिति में बिहार की मतदाता अपने गाँव में, पंचायत में, प्रखंड में, जिला में सरकारी स्तर पर बेहतर शिक्षा, भर-पेट भोजन, उचित दवाई, भर-तन कपड़ा के बारे में सोचे – व्यर्थ है। इसे कहते हैं “जान-सेवा” और ”सरकारी-लूट।” 

एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में कर्मचारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है । किंतु, सांसद व विधायक इसके अपवाद हैं । वे एक या उससे अधिक पेंशन पाने के हकदार हैं । ऐसे में अगर कोई राजनेता एक बार विधायक बनता है और उसके बाद फिर सांसद बन जाता है तो उसे विधायक की पेंशन के साथ-साथ लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता मिलता है। इसके बाद अगर वह किसी सदन का सदस्य नहीं रह जाता है तो उसे विधायक के पेंशन के साथ-साथ सांसद का पेंशन भी मिलता है । बिहार में एक एमएलए या एमएलसी को 35,000 की राशि न्यूनतम पेंशन के तौर पर मिलती है। लेकिन यह एक साल विधायक रहने पर ही मिलती है। इसके बाद वह जितने साल विधायक रहते हैं, उतने वर्ष तक हर साल उनके पेंशन में तीन-तीन हजार रुपये तक की बढ़ोतरी होती है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति पांच साल तक एमएलए रहता है तो उसे एक साल के लिए 35,000 तथा अगले चार साल के लिए अतिरिक्त 12,000 रुपये अर्थात कुल 47,000 रुपये मिलेंगे। इसके अतिरिक्त वह संसद के किसी सदन के सदस्य रहे होते हैं तो उन्हें उस सदन के सदस्य के तौर पर अलग पेंशन मिलता है। 

ठीक इसी तरह मौजूदा नियम के अनुसार एक सांसद यदि दोबारा निर्वाचित होता है तो उसकी पेंशन राशि में दो हजार रुपये प्रतिमाह की और बढ़ोतरी कर दी जाती है और यही क्रम आगे भी चलता जाता है। पहले यह नियम था कि वही पूर्व सांसद पेंशन के योग्य माना जाएगा जिसने बतौर सांसद चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया हो। 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार ने इसमें संशोधन करके यह प्रावधान कर दिया कि यदि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बनेगा तो वह पेंशन का हकदार होगा और तब से यही व्यवस्था चल रही है । 

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आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय कहते हैं, ‘‘यह कौन सा नियम है कि ये लोग जहां-जहां रहेंगे, वहां-वहां से पेंशन लेंगे। एक आदमी को एक जगह से पेंशन मिलना चाहिए। ऐसा नहीं कि विधायक रहे तो उसका पेंशन, विधान परिषद का सदस्य रहे तो उसका पेंशन राज्यसभा सदस्य रहे तो उसका पेंशन, लोकसभा सदस्य रहे तो उसका पेंशन और नहीं तो जहां नौकरी में रहे उससे भी पेंशन लें. एक-एक आदमी पांच-पांच जगहों से पेंशन ले रहा है।’ आरटीआई के तहत दी गई सूचना से यह भी पता चला है कि दिवंगत विधायकों तथा उनके दिवंगत आश्रितों के खाते में भी पेंशन की रकम भेजी गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद की माता व स्व. ठाकुर प्रसाद की धर्मपत्नी विमला देवी, राज्य के पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन की माता व भाजपा के पूर्व विधायक स्व. नवीन किशोर सिन्हा की पत्नी मीरा सिन्हा तथा राजद नेता विजय सिंह यादव के बैंक अकाउंट में पेंशन की रकम भेजी गई। जबकि इन तीनों का निधन हो चुका है। 

सूचना देने के लिए एक जुलाई, 2021 का संदर्भ लिया गया है। हालांकि, रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट कर इस सूचना को गलत बताते हुए कहा कि 25 दिसंबर, 2020 को माताजी के निधन के बाद 31 दिसंबर, 2020 को ही उनका पेंशन अकाउंट बंद करा दिया गया है। अकाउंट में पैसा आना संभव ही नहीं है। वहीं मंत्री नितीन नवीन ने कहा कि इसी साल मार्च महीने में मां के निधन के बाद 13 मई को बैंक को मेल कर सूचना दे दी गई थी. उनके निधन के बाद इस बीच खाते में राशि भेजी गई थी जिसे बैंक ने वापस ले लिया है। शिव प्रकाश राय कहते हैं, “मिली सूचना के अनुसार राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के चचेरे भाई सच्चिदानंद सिंह (रामगढ़), मेदिनी राय (बेगूसराय), विश्वनाथ राय (रामगढ़) का मामला भी कुछ इसी तरह का है। इसकी जांच सख्ती से होनी चाहिए। तभी स्थिति साफ हो सकेगी। ” वहीं इस संबंध में न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि हालांकि पेंशन की राशि दूसरे विभाग से जारी की जाती है। किंतु इसमें गलती किस स्तर से हुई, उसकी जांच कराई जाएगी. वैसे इसकी एक प्रक्रिया है जिसके तहत पेंशनभोगी को साल में एक बार लाइफ सर्टिफिकेट देना पड़ता है। 

2017 में लोक प्रहरी नाम की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूर्व सांसदों को मिलने वाले पेंशन व अन्य भत्तों को बंद करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि सांसद के पद से हटने के बाद भी जनता के पैसे से पेंशन लेना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुच्छेद 106 का उल्लंघन है। संसद को यह अधिकार नहीं है कि गरीब कर दाताओं के ऊपर सांसदों और उनके परिवार को पेंशन राशि देने का बोझ डाले। हालांकि अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि हमारा मानना है कि विधायी नीतियां बनाने या बदलने का सवाल संसद के विवेक के ऊपर निर्भर है। इस बीच सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसे पूर्व सांसद भी हैं, जिन्होंने पेंशन लेने से इनकार कर दिया था।

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