138 साल ​पुराना ‘मनीऑर्डर’ ​प्रथा संभवतः अब इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) के नाम से जाना जायेगा

​मनीऑर्डर बना ​ इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी)
​मनीऑर्डर बना ​इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी)

नई दिल्ली : एक लाख 55 हज़ार डाकघरों, कोई 16 करोड़ से अधिक खाता धारकों, जहाँ दो करोड़ 60 लाख करोड़ से भी अधिक राशि जमा है और जिस भारतीय डाक का सालाना राजस्व 1500 करोड़ से भी अधिक है – सरकार की नजर पर गयी है। जिस मनीऑर्डर सेवा का प्रारम्भ सं 1880 में तत्कालीन वाइसराय और गवर्नर जेनेरल रॉबर्ट बुलबेर लिटन एडवर्ड के समय हुआ था, इस व्यवस्था का ‘आधुनिकीकरण’ कर अब इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) खुलने जा रहा है, जिसका उद्घाटन कल प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी करेंगे।

वैसे इस बात की सम्पूर्णता के साथ पुष्टि की गयी है कि इस भुगतान बैंक में भारत सरकार की 100% हिस्सेदारी है। इस डाक विभाग के व्यापक नेटवर्क और तीन लाख से अधिक डाकियों और ग्रामीण डाक सेवकों का लाभ मिलेगा। इसका मकसद देश में डाकघरों की व्यापक पहुंच के माध्यम से लोगों तक वित्तीय समावेशन के लाभ पहुंचाना है। उद्घाटन के साथ ही आईआईपीबी की 650 शाखाएं और 3,250 सुविधा केंद्र काम करना शुरू कर देंगे। उद्घाटन दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में होगा।

यह भी कहा गया है कि आईपीपीबी की स्थापना केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को तेजी से पाने के लिए की गई है। इसकी कल्पना आम आदमी के लिए एक सस्ते, भरोसेमंद और आसान पहुंच वाले बैंक के तौर पर की गई है। देश के 1.55 लाख डाकघरों को 31 दिसंबर 2018 तक आईपीपीबी प्रणाली से जोड़ लिया जाएगा। आईआईपीबी अपने खाताधारकों को भुगतान बैंक के साथ-साथ चालू खाता, धन हस्तांतरण, प्रत्यक्ष धन अंतरण, बिलों के भुगतान इत्यादि की सेवाएं भी उपलब्ध कराएगा।

​देश भर में इसके एटीएम और माइक्रो एटीएम भी काम करेंगे। साथ ही मोबाइल बैंकिंग एप, एसएमएस और आईवीआर जैसी सुविधाओं के माध्यम से भी बैंकिंग सेवाएं लोगों तक पहुंचाएगा।

लगभग 500 साल पुरानी ‘भारतीय डाक प्रणाली’ आज दुनिया की सबसे विश्वसनीय और बेहतर डाक प्रणाली में अव्वल स्थान पर है। आज भी हमारे यहाँ हर साल क़रीब 900 करोड़ चिठियों को भारतीय डाक
द्वारा दरवाज़े – दरवाज़े तक पहुंचाया जाता है। ​अंग्रेजों ने ​सैन्य और खुफ़िया सेवाओं की मदद के मक़सद लिए भारत में पहली बार 1688 ​में मुंबई में ​पहला डाकघर खोला। फिर उन्होंने अपने सुविधा के लिए देश के अन्य इलाकों में डाकघरों की स्थापना करवाई। 1766 में लॉर्ड क्लाईव द्वारा डाक-व्‍यवस्‍था के विकास के लिए कई कदम उठाते हुए, भारत में एक आधुनिक डाक-व्यवस्था की नींव रखी गई। इस सम्बंध में आगे का काम वारेन हेस्‍टिंग्‍स द्वारा किया गया, उन्होंने 1774 ​में कलकत्ता में पहले जनरल पोस्‍ट ऑफिस की स्‍थापना की। यह जी.पी.ओ. (जनरल पोस्‍ट ऑफिस) एक पोस्‍टमास्‍टर जनरल के अधीन कार्य करता था। फिर आगे 1786 ​में मद्रास और 1793 में बंबई प्रेसीडेंसी में ‘जनरल पोस्‍ट ऑफिस’ की स्थापना की ​गई।

ये भी पढ़े   स्वर्ग से दिवन्गत वाजपेयी जी भी कहते होंगे "मोदीजी, यह अच्छी बात नहीं है - सोच बदलें"
1774 ​में कलकत्ता में पहले जनरल पोस्‍ट ऑफिस की स्‍थापना
1774 ​में कलकत्ता में पहले जनरल पोस्‍ट ऑफिस की स्‍थापना

1837 में एक अधिनियम द्वारा भारतीय डाकघरों के लिए एक अखिल भारतीय सेवा को प्रारम्भ किया गया और फिर 1854 के ‘पोस्‍ट ऑफिस अधिनियम’ से पूरी डाक प्रणाली के स्‍वरूप में एक नया बदलाव आया और पहली अक्तूबर 1854 को एक महानिदेशक के नियंत्रण में भारतीय डाक-प्रणाली ने आधुनिक रूप में काम करना प्रारम्भ कर दिया। उस समय भारत में कुल 701 डाकघर थे। इसी साल ‘रेल डाक सेवा’ की भी स्थापना हुई और भारत ​से ब्रिटेन और चीन के बीच ‘समुद्री डाक सेवा’ भी प्रारम्भ की गई। इसी वर्ष देश भर में पहला वैध डाक टिकट भी जारी किया ​गया।

1854 में डाक और तार दोनों ही विभाग अस्तित्व में आए। शुरू से ही दोनों विभाग जन कल्याण को ध्यान में रख कर चलाए गए। लाभ कमाना उद्देश्य नहीं था। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सरकार ने फैसला किया कि विभाग को अपने खर्चे निकाल लेने चाहिए। उतना ही काफ़ी होगा। 20वीं सदी में भी यही क्रम बना रहा। डाकघर और तार विभाग के क्रियाकलापों में एक साथ विकास होता रहा। 1914 के प्रथम विश्व युद्ध की शुरूआत में दोनों विभागों को मिला दिया ​गया।

कोई भी संस्थान डाकघर जितना आदमी की ज़िंदगी के इतने क़रीब नहीं पहुंच सका है। डाकघर की पहुंच देश के कोने कोने तक है। एक वजह यह भी है कि जिसके कारण सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को लोगों तक पहुंचने में होने वाली कठिनाई की स्थिति में ये डाकघर जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल करते हैं।

पहली बार भारतीय डाकघर को राष्ट्रीय महत्व के एक अलग संगठन के रूप में स्वीकार किया गया और उसे 1 अक्टूबर 1854 को डाकघर महानिदेशक के सीधे नियंत्रण में सौंप दिया गया। इस तरह डाक विभाग ने सन् 2004 में 1 अक्टूबर को अपने 150 वर्ष पूरे किये। भारतीय डाक व्यवस्था कई व्यवस्थाओं को जोड़कर बनी है। 650 से ज्यादा रजवाड़ों की डाक प्रणालियों, ज़िला डाक प्रणाली और जमींदारी डाक व्यवस्था को प्रमुख ब्रिटिश डाक व्यवस्था में शामिल किया गया था। इन टुकड़ों को इतनी खूबसूरती से जोड़ा गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक संपूर्ण अखंडित संगठन है।

ये भी पढ़े   'प्राकृतिक आपदाओं' से बचने के लिए 'बंजर भूमि' को 'हरा-भरा', 'कृषि योग्य' बनाना होगा और इसके लिए प्राकृतिक कृषि ही एकमात्र विकल्प है (भाग-4)

भारतीय राज्यों के वित्तीय और राजनीतिक एकीकरण के चलते यह आवश्यक और अपरिहार्य हो गया कि भारत सरकार भारतीय राज्यों की डाक व्यवस्था को एक विस्तृत डाक व्यवस्था के अधीन लाए। ऐसे कई राज्य थे जिनके अपने ज़िला और स्वतंत्र डाक संगठन थे और उनके अपने डाक टिकट ​चलते थे। इन राज्यों के लैटर बाक्स हरे रंग में रंगे जाते थे ताकि वे भारतीय डाकघरों के लाल लैटर बाक्सों से अलग नज़र आएं। सन 1908 में भारत के 652 देशी राज्यों में से 635 राज्यों ने भारतीय डाक घर में शामिल होना स्वीकार किया। केवल 15 राज्य बाहर रहे, ​जिसमे हैदराबाद, ग्वालियर, जयपुर और ट्रावनकोर प्रमुख हैं।

​सन 1925 में डाक और तार विभाग का बड़े पैमाने पर पुनर्गठन किया गया। विभाग की वित्तीय स्थिति का जायजा लेने के लिए उसके खातों को दोबारा व्यवस्थित किया गया। उद्देश्य यह पता लगाना था कि विभाग करदाताओं पर कितना बोझ डाल रहा है या सरकार का राजस्व कितना बढा रहा है और इस दिशा में विभाग की चारों शाखाएं ​यानि डाक, तार, टेलीफोन और बेतार कितनी भूमिका निभा ​रहे हैं।

​सन 1857 के आंदोलन के दौरान डाक विभाग भी अछूता नहीं रहा। आगजनी और लूटमार​, ​हत्या​ आदि घटनाएं हुईं। ​हिंसा खत्म हो जाने के बाद भी साल भर तक कई डाकघरों को दोबारा नहीं खोला जा सका। लगभग पांच माह तक चलने वाली​ 1920 की डाक हड़तालों ने देश की डाक सेवा को पूरी तरह ठप्प कर दिया था।

​बहरहाल, इस हफ्ते की शुरूआत में मंत्रिमंडल ने आईआईपीबी के व्यय को बढ़ाकर 1,435 करोड़ रुपये करने की मंजूरी दे दी थी। ताकि आईआईपीबी इस क्षेत्र में पहले से मौजूद पेटीएम पेमेंट्स बैंक, एयरटेल पेमेंट्स बैंक इत्यादि से प्रतिस्पर्धा कर सके।

ये भी पढ़े   इतिश्री रेवा खंडे: भारत ने जैश का शिविर नष्ट किया, बड़ी संख्या में आतंकी मारे गए

आज़ादी के समय देश भर में 23,344 डाकघर थे। इनमें से 19,184 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में और 4,160 शहरी क्षेत्रों में थे। आजादी के बाद डाक नेटवर्क का सात गुना से ज्यादा विस्तार हुआ है। आज एक लाख 55 हज़ार डाकघरों के साथ भारतीय डाक प्रणाली विश्व में पहले स्थान पर है। लगभग एक लाख 55 हज़ार से भी ज़्यादा डाकघरों वाला भारतीय डाक तंत्र विश्व की सबसे बड़ी डाक प्रणाली होने के साथ-साथ देश में सबसे बड़ा रिटेल नेटवर्क भी है। यह देश का पहला बचत बैंक भी था और आज इसके 16 करोड़ से भी ज़्यादा खातेदार हैं और डाकघरों के खाते में दो करोड़ 60 लाख करोड़ से भी अधिक राशि जमा है। इस विभाग का सालाना राजस्व 1500 करोड़ से भी अधिक है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here