नई दिल्ली: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, देश में 127 दूषित स्थल हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने 19 दूषित स्थलों के उपचार के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के लिए धन मुहैया कराया है, साथ ही,’भारत में दूषित स्थलों के आकलन और उपचार’ के लिए एक मार्गदर्शन दस्तावेज एमओईएफ एंड सीसी द्वारा जारी किया गया है। सीपीसीबी ने ‘दूषित स्थलों की पहचान, निरीक्षण और मूल्यांकन’ पर एक संदर्भ दस्तावेज जारी किया है। इसके अलावा, राज्य सरकारों ने 13 दूषित स्थलों के उपचार की पहल की है।
लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने भारत सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत खतरनाक अपशिष्टों (प्रबंधन, हैंडलिंग और सीमा पार आवागमन) नियम, 2008 के स्थान पर खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमा पार आवागमन) (एचओडब्लूएम) नियम, 2016 को अधिसूचित किया है, ताकि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक अपशिष्टों का सुरक्षित भंडारण, उपचार और निपटान सुनिश्चित किया जा सके।
उन्होंने कहा कि सीपीसीबी ने देश में खतरनाक अपशिष्टों के प्रभावी प्रबंधन के लिए तकनीकी दिशा निर्देश प्रकाशित किए हैं।इसके अलावा, एक संसाधन के रूप में खतरनाक और अन्य अपशिष्टों के उपयोग के लिए, सीपीसीबी ने खतरनाक अपशिष्ट की 71 विभिन्न श्रेणियों के लिए 102 मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) तैयार की हैं। इतना ही नहीं, मंत्री ने कहा कि वर्ष 2018-24 के दौरान, सीपीसीबी को 08 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी)/प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) से एचओडब्लूएम नियम, 2016 के नियम 23.(2) के अनुसार संबंधित एसपीसीबी/पीसीसी द्वारा 283 दोषी इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने के प्रस्ताव प्राप्त हुए। जिसमें महाराष्ट्र में सबसे अधिक (238) है, छत्तीसगढ़ में 16, गुजरात में 17 है।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि सरकार ने, हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन (जीआईएम), वन्यजीव आवासों का एकीकृत विकास, प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैम्पा), नगर वन योजना (एनवीवाई) और तटीय आवासों और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (एमआईएसएचटीआई) आदि विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के अंतर्गत धनराशि उपलब्ध कराई है। इस धनराशि का उपयोग राज्य और केंद्र शासित प्रदेश वन क्षेत्रों के भीतरी और बाहरी क्षेत्रों में वन लगाने, वन परिदृश्य बहाल करने, आवास में सुधार करने, मृदा और जल संरक्षण और सुरक्षा के उपाय करने और इसके ज़रिए पारिस्थितिकी की बहाली के लिए कर रहे हैं।
नवीनतम भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर)-2021 के अनुसार , देश का कुल वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा प्रकाशित की गई है। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (एनएएफसीसी) की स्थापना भारत के संवेदनशील राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए की गई थी, जिसमें नाबार्ड राष्ट्रीय कार्यान्वयन इकाई (एनआईई) के रूप में कार्य कर रहा है। एनएएफसीसी के तहत विभिन्न राज्यों में कुल 30 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। 2022 में एनएएफसीसी को योजना से गैर-योजना में बदल दिया गया।
पृथ्वी के तापमान में हो रही वृद्धि की पृष्ठभूमि में देश के विभिन्न भागों में मौसम में चरम बदलाव देखे जा रहे हैं। गर्म होते पर्यावरण और क्षेत्रीय मानवजनित प्रभावों के बीच जटिल अंतर क्रियाओं के कारण स्थानीय स्तर पर भारी वर्षा की घटनाओं, सूखे और बाढ़ की घटनाओं और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि हुई है। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) सहित अपने कई कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है।
विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य के विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए एनएपीसीसी के अनुरूप जलवायु परिवर्तन पर अपनी राज्य कार्य योजनाएं (एसएपीसीसी) तैयार की हैं। किसी आपदा की स्थिति में कुशल प्रतिक्रिया और राहत सुनिश्चित करने के लिए आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति है। आपदा प्रबंधन योजना आपदा जोखिम प्रबंधन में राज्य सरकारों सहित सभी हितधारकों की सहायता के लिए तैयार की गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने कई चरम मौसमी और जलवायु संबंधी घटनाओं पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। भारत ने आपदा रोधी अवसंरचना तैयार करने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग को बढ़ावा देने में भी सक्रिय और अग्रणी भूमिका निभाई है।
उधर, हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन (जीआईएम) जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के आठ मिशनों में से एक है। इसका उद्देश्य भारत के वन की सुरक्षा, बहाली और वृद्धि करना तथा चिन्हित क्षेत्रों में वन और गैर-वन क्षेत्रों में पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापना गतिविधियों को अंजाम देकर जलवायु परिवर्तन का का मुकाबला करना है। जीआईएम के तहत गतिविधियाँ वित्त वर्ष 2015-16 में शुरू की गई थीं। अब तक सत्रह राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश को 155130 हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण/पारिस्थितिकी बहाली के लिए 909.82 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। महाराष्ट्र के पालघर जिले के दहानू डिवीजन में वृक्षारोपण/पारिस्थितिकी बहाली के लिए 464.20 हेक्टेयर क्षेत्र को जीआईएम के तहत लिया गया है।