कहीं ‘बोझल” तो नहीं हो गए, लालू-नीतीश के ‘स्वयंभू-करीबी’ कहने वाले श्याम रजक मुद्दत बाद चुनावी मैदान से ओझल हैं

पैंट -शर्ट पहनते थे श्री श्याम रजक जी - फाईल फोटो 
पैंट -शर्ट पहनते थे श्री श्याम रजक जी - फाईल फोटो 

आख़िर लालू प्रसाद यादव अपना “प्यादे का चाल चल ही दिए” प्रदेश के पूर्व मंत्री श्याम रजक को एक हाथ दूर खड़ा करके।

राष्ट्रीय जनता दल के साथ साथ जनता दल (युनाइटेड) के लोगों में भी इस विषय को लेकर एकमत है। “लालूजी बहुत बेहतर किये। लालूजी के विचार के ख़िलाफ़ तेजस्वी और तेजप्रताप जा भी नहीं सकते। यह अलग बात है कि जनता दल युनाइटेड से बहार निकांले के बाद रजक जी अपने पूर्व गुरुदेव के शरण में चले गए और गुरुदेव तत्काल उन्हें अपना भी लिए, लेकिन जितना हम सभी ललुलि को जानते हैं, वे कभी अन्तःमन से नहीं अपनाये उन्हें।

बिहार राज्यपाल के प्रधान सचिव श्री चैतन्य प्रसाद द्वारा निर्गत 16 अगस्त, 2020 की चिठ्ठी से स्पष्ट हैं कि “कुछ तो गलत हुआ है उनके द्वारा तभी मुख्यमंत्री की सलाह पर तत्काल प्रभाव से उन्हें राज्य के मंत्री पद से और मंत्रिमंडल से निकाल दिया गया था। कभी लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों के “स्वयंभू-करीबी” कहने वाले श्याम रजक मुद्दत बाद पहली बार चुनावी मैदान से ओझल हो गये।

राज्यपाल कार्यालय से निर्गत चिठ्ठी - श्री श्याम रजक मंत्री और मंत्रिमंडल से बाहर 
राज्यपाल कार्यालय से निर्गत चिठ्ठी – श्री श्याम रजक मंत्री और मंत्रिमंडल से बाहर 

विगत साढ़े तीन से भी अधिक दसक से श्याम रजक धीरे-धीरे “स्वयंभू दलित नेता बनते-बनते एक प्रमुख दलित चेहरा बन गए थे। नितीश के  मंत्रिमण्डल से निकले जाने के बाद वे  राजद में शामिल हुए थे। मगर उनकी सीट फुलवारीशरीफ गठबंधन में माले के खाते में चली गई। अब राजद के स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें जगह नहीं मिल पाई है।
 
बहरहाल, बिहार में दूसरे चरण में पटना जिले में होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता और पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव लगातार सातवीं बार जीत दर्ज करने की फिराक में हैं तथा भाजपा की आशा सिन्हा और मुख्य सचेतक अरुण कुमार सिन्हा ‘पांच का दम’ दिखाने को बेताब हैं।

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सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह की जन्मस्थली के लिए चर्चित पटना साहिब सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर ढाई दशक से भाजपा का भगवा झंडा ही लहराता रहा है। नंदकिशोर यादव यहां के चुनावी पिच पर सिक्सर लगा चुके हैं। सातवीं बार जीत का सेहरा अपने नाम करने के इरादे से चुनावी मैदान में उतरे श्री यादव को चुनौती देने के लिये महागठबंधन के घटक कांग्रेस ने प्रवीण कुशवाहा पर दाव लगाया है। इस सीट पर कुल 22 उम्मीदवार चुनावी अखाड़ें में उतरे हैं, जिनमें 18 पुरुष और चार महिला शामिल हैं।

श्री यादव ने पटना साहिब सीट से वर्ष 1995 में भाजपा के टिकट से पहली बार चुनाव लड़ा और तत्कालीन विधायक जनता दल के प्रत्याशी महताब लाल सिंह को परास्त कर दिया। इसके बाद जीत का सिलसिला बदस्तूर वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव तक जारी रहा। वर्ष 2015 में श्री यादव से टक्कर लेने के लिए राजद ने पटना नगर निगम के उप महापौर रह चुके और कभी नंदकिशोर यादव को अपना राजनीतिक गुरू बताने वाले संतोष मेहता को टिकट दिया। भाजपा के श्री यादव ने राजद के श्री मेहता को कड़े मुकाबले में 2792 मतों के अंतर से परास्त किया।  

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