“पत्नी के साथ ‘अप्राकृतिक यौन’ ‘अप्राकृतिक अपराध’ नहीं है” 😢 यानी भले पत्नी ‘मृत्यु’ को प्राप्त कर ले ‘पति’ भा.न्या.सं के धारा 375 और धारा 377 से परे  

बिलासपुर / नई दिल्ली :  क़ानूनी दृष्टि से न्यायालय का निर्णय सर्वोपरि है, लेकिन पारिवारिक, सामाजिक और मानवीय दृष्टि से आज भले नहीं, आने वाले समय में शीर्षस्थ न्यायालय के सम्मानित न्यायमूर्तिगण के साथ-साथ भारत का संसद इस बात पर विचार जरूर करेगा जब “छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने यह कहा कि भारतीय न्याय संहिता (भारतीय दंड संहिता) की धारा 375 के तहत पति द्वारा अपनी वयस्क पत्नी के साथ बिना सहमति के भी पत्नी की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में लिंग का प्रवेश या किसी भी प्रकार की अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध ‘अप्राकृतिक अपराध ‘ नहीं माना जा सकता है और उक्त न्याय संहिता के धारा 377 के तहत उक्त क्रिया के लिए उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।” 

यह अलग बात है कि उक्त कार्य के बाद पत्नी की मृत्यु हो जाती है। न्यायालय ने बलात्कार, अप्राकृतिक अपराध और अपनी पत्नी के गुदा में हाथ डालने के यौन कृत्य के माध्यम से अपनी पत्नी की मृत्यु का कारण बनने के लिए आरोपी गोरखनाथ शर्मा को बरी कर दिया।

न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने 17-पृष्ठ के आदेश में यह कहा कि “उक्त कानूनी स्थिति को ध्यान में रखते हुए तथा धारा 375 की संशोधित परिभाषा और संबंध के प्रकाश में, जिसके लिए सहमति न लेने अर्थात पति और पत्नी के बीच और धारा 376 का अपराध न करने का अपवाद प्रदान किया गया है, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा में शरीर के उन हिस्सों अर्थात महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में लिंग का प्रवेश शामिल है, जिसके लिए सहमति की आवश्यकता नहीं है। 

वैसी स्थिति में पति और पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध को अप्राकृतिक अपराध नहीं बनाया जा सकता है। ऐसे में स्पष्ट रूप से धारा 375 की परिभाषा और धारा 377 के अप्राकृतिक अपराध के प्रकाश में इन दोनों स्थितियों में विरोधाभास है। यह भी कानून का एक अच्छी तरह से स्थापित सिद्धांत है कि यदि बाद के अधिनियमन के प्रावधान पहले वाले के प्रावधानों से इतने असंगत या विरोधाभासी हैं तो दोनों एक साथ नहीं रह सकते।”

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न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 पर भरोसा जताते हुए यह कहा कि “यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है, तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य इन परिस्थितियों में बलात्कार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति की अनुपस्थिति अपना महत्व खो देती है। इसलिए, इस न्यायालय का विचार है कि अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता है।”

न्यायालय ने यह भी कहा की “इस न्यायालय द्वारा मृत्यु पूर्व कथन की सावधानीपूर्वक जांच करने पर भी, उसे दोषसिद्धि दर्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं पाया जा सकता, क्योंकि अन्य साक्ष्यों से इसकी पुष्टि नहीं होती, इसलिए मृत्यु पूर्व कथन की सत्यता पर संदेह है।” माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नईम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में आपराधिक अपील संख्या 1978/2022 में रिपोर्ट की गई 2024 आईएनसी 169 05.05.2024 को तय की गई है, जिसमें पैराग्राफ 6 और 7 में निम्नानुसार माना गया है।” 

न्यायालय ने कहा, “धारा 375, 376 और 377 आईपीसी के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि धारा 375 आईपीसी की संशोधित परिभाषा के मद्देनजर, धारा 377 आईपीसी के तहत पति और पत्नी के बीच अपराध का कोई स्थान नहीं है और इस तरह बलात्कार नहीं माना जा सकता। 

यहां यह उल्लेख करना उचित है कि वर्ष 2013 में धारा 375 आईपीसी में संशोधन में अपवाद-2 प्रदान किया गया है, जो कहता है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है और इसलिए यदि धारा 377 के तहत परिभाषित कोई अप्राकृतिक यौन संबंध पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया जाता है, तो इसे भी अपराध नहीं माना जा सकता है।”

अपने फैसले में, अदालत ने कहा कि यदि पत्नी 15 वर्ष से अधिक उम्र की है, तो पति द्वारा “किसी भी संभोग” या यौन कृत्य को किसी भी परिस्थिति में दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता है और इस तरह, अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति की अनुपस्थिति महत्व खो देती है। इसलिए अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनाया जा सकता। 

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भारत में वैवाहिक बलात्कार कानून द्वारा दंडनीय नहीं है। हाई कोर्ट के फैसले में अब अप्राकृतिक यौन संबंध को भी सजा के दायरे से बाहर कर दिया गया है। अप्राकृतिक यौन संबंध और गैर इरादतन हत्या के आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था, लेकिन हाई कोर्ट से राहत मिल गई। एक पुरुष और उसकी वयस्क पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध सजा के लायक नहीं है

विदित हो कि 11 दिसंबर 2017 को आरोपी गोरखनाथ शर्मा पर अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगा था। आरोप था कि वे कथित तौर पर पीड़िता, अपनी पत्नी के गुदा में अपना हाथ डाला था। बाद में उसने दर्द की शिकायत की और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उसकी मौत हो गई। उसकी मृत्यु से पहले, उसका मृत्युपूर्व कथन दर्ज किया गया, जिसमें उसने कहा कि उसके पति द्वारा किए गए अप्राकृतिक यौन कृत्य के कारण वह बीमार हो गई। पति पर बलात्कार (धारा 375), अप्राकृतिक अपराध (धारा 377) और भारतीय दंड संहिता की लापरवाही से मृत्यु (धारा 304) के तहत मामला दर्ज किया गया। 

पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने कहा कि मृत्यु का कारण पेरिटोनिटिस और मलाशय में छेद होना था। बाद में कुछ गवाह अपने बयान से पलट गए और मृतक का मृत्यु पूर्व कथन दर्ज करने वाले कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने अदालत में कहा कि यद्यपि मृतक ने उसे बताया था कि उसके पति ने उसके साथ जबरदस्ती अप्राकृतिक यौन कृत्य किया था, लेकिन इसका उल्लेख मृत्यु पूर्व कथन में नहीं किया गया था। 

साक्ष्यों पर विचार करने और मृत्युपूर्व कथन पर भरोसा करने के बाद निचली अदालत ने शर्मा को आईपीसी की धारा 375, 377 और 304 के तहत अपराधों का दोषी पाया और उसे दस साल की सजा सुनाई। इसके परिणामस्वरूप उच्च न्यायालय में अपील की गई।

आरोपी के वकील अधिवक्ता राज कुमार पाली ने दलील दी कि दोषसिद्धि केवल मृत्यु पूर्व कथन पर आधारित थी और उसकी प्रामाणिकता ही संदिग्ध थी। यह भी दलील दी गई कि ट्रायल कोर्ट ने दो गवाहों के बयानों पर विचार नहीं किया, जिन्होंने अपने न्यायालयीन बयानों में स्वीकार किया था कि पीड़िता को अपने पहले प्रसव के तुरंत बाद बवासीर हो गई थी, जिसके कारण उसके गुदा से रक्तस्राव होता था और पेट में दर्द होता था। 

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राज्य के वकील ने दलील का विरोध किया और कहा कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के आधार पर आरोपी को सही ढंग से दोषी ठहराया है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तर्कों और साक्ष्यों पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने धारा 375 और धारा 377 की जांच की। राज्य की और से उप-सरकारी अधिवक्ता प्रमोद श्रीवास्तव दलील कर रहे थे। 

न्यायालय ने रेखांकित किया, “यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है, तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य इन परिस्थितियों में बलात्कार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति की अनुपस्थिति अपना महत्व खो देती है, इसलिए, इस न्यायालय का विचार है कि अपीलकर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता है।” 

मृत्यु पूर्व कथन के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि किसी अन्य साक्ष्य द्वारा इसकी पुष्टि नहीं की गई है। “इस न्यायालय द्वारा मृत्यु पूर्व कथन की सावधानीपूर्वक जांच करने पर भी इसे दोषसिद्धि दर्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं पाया जा सकता, क्योंकि अन्य साक्ष्यों से इसकी पुष्टि नहीं हुई है, इसलिए मृत्यु पूर्व कथन की सत्यता पर संदेह है।” धारा 304 भारतीय दंड संहिता के तहत दोषसिद्धि के संबंध में, उच्च न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस बारे में कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया है कि वर्तमान मामले में अपराध कैसे हुआ। इसलिए, धारा 304 के तहत दोषसिद्धि विकृत और स्पष्ट रूप से अवैध है, न्यायालय ने कहा।

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