सर्वोच्च न्यायालय: ‘कोई रोक नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर चीज के साथ आगे बढ़ सकते हैं”   

नए संसद का प्रस्तावित स्वरुप 

भारत का सर्वोच्च न्यायालय आज भारत के सॉलिसिटर जेनेरल को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘कोई रोक नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर चीज के साथ आगे बढ़ सकते हैं।” सर्वोच्च न्यायालय के इस कथन को “हल्के” में नहीं लेना चाहिए। यह शब्द केंद्र सरकार की क्रिया-शैली को बताता है जिससे भारत का सर्वोच्च न्यायालय खुश नहीं है, संतुष्ट नहीं है।  
 
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने कहा कि उसने कुछ गतिविधियों का संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई के लिए स्वत: संज्ञान लिया है। न्यायमूर्ति खानविलकर ने मामले का अंतिम निपटारा न होने के बावजूद निर्माण कार्य आगे बढ़ाने को लेकर गहरी नाराजगी जतायी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘कोई रोक नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर चीज के साथ आगे बढ़ सकते हैं। याचिकाएं भूमि उपयोग बदलाव सहित विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की गई हैं। ये सभी अभी शीर्ष अदालत में विचाराधीन हैं।

वैसे, उच्चतम न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले नये संसद भवन के शिलान्यास को सोमवार को हरी झंडी तो दे दी, लेकिन वहां फिलहाल कोई भी निर्माण कार्य शुरू नहीं करने का निर्देश दिया। शिलान्यास आगामी 10 दिसंबर को होगा। लोकसभा सचिवालय ने बताया कि नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य इस साल दिसंबर से शुरू होकर अक्टूबर 2022 तक पूरा हो जाएगा। 

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने थोड़े अंतराल पर दो बार हुई सुनवाई के बाद कहा, ”केंद्र सरकार को इस महत्वाकांक्षी परियोजना की कागजी कार्रवाई और 10 दिसंबर को प्रस्तावित नए संसद भवन के शिलान्यास समारोह की अनुमति होगी लेकिन वह निर्माण या तोड़फोड़ संबंधी कार्यों को अंजाम नहीं दे सकती। 

ये भी पढ़े   बस नम्बर DL 1PC 0149 के चार 'हवसी' जिसने निर्भया का सामूहिक बलात्कार किया था, 22 जनबरी को फाँसी पर चढ़ेंगे  

इधर संसद के सूत्रों के अनुसार, वर्तमान संसद भवन 8838 वर्ग मीटर में बना हुआ है। नई इमारत बनाने के लिए परिसर के अंदर ही 8822 वर्ग मीटर खाली जगह उपलब्ध है। ऐसे में नया भवन बनाने के लिए बाहर के किसी भवन को गिराए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।  इसके निर्माण पर कुल 971 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है।

उच्चतम न्यायालय ने पांच नवम्बर को उन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी, जिनमें केन्द्र की महत्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना पर सवाल उठाए गए हैं। यह योजना लुटियंस दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे दायरे में फैली हुई है। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पहले शीर्ष अदालत में तर्क दिया था कि परियोजना से उस ‘‘धन की बचत’’ होगी, जिसका भुगतान राष्ट्रीय राजधानी में केन्द्र सरकार के मंत्रालयों के लिए किराये पर घर लेने के लिए किया जाता है।  

पीठ की नाराजगी झेलते हुए सॉलिसिटर जनरल ने सरकार से निर्देश हासिल करने के लिए कल तक का समय मांगा, लेकिन न्यायालय ने आज ही सरकार से बातचीत करके वापस आने के लिए कहा और थोड़ी देर के लिए सुनवाई रोक दी गई। थोड़ी देर के बाद, श्री मेहता वापस आ गए और उन्होंने क्षमायाचना करते हुए न्यायालय को आश्वस्त किया कि कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ों की कटाई नहीं होगी। नींव का पत्थर रखा जाएगा लेकिन, कोई और परिवर्तन नहीं होगा। न्यायमूर्ति खानविलकर ने श्री मेहता का बयान रिकॉर्ड पर लेते हुए आदेश किया कि 10 दिसंबर को होने वाला शिलान्यास कार्यक्रम जारी रहेगा, लेकिन कोई निर्माण कार्य नहीं होगा।

ये भी पढ़े   अदालतों में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग से 'वादी' और 'प्रतिवादी' के बीच की दूरी समाप्त हो सकती है.....

बहरहाल, टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने पिछले महीने मौजूदा संसद भवन के पास नये भवन के निर्माण के लिए टेंडर हासिल किया था। इसका निर्माण सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत किया जा रहा है. नया संसद भवन त्रिकोणीय होगा। लोकसभा सचिवालय के अनुसार संसद की नई बिल्डिंग में हर सांसद के लिए अलग कार्यालय होगा और हर कार्यालय सभी आधुनिक डिजिटल तकनीकों से लैस होगा। नए संसद भवन में कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, सांसद लॉज, लाइब्रेरी, कमेटी रूम, भोजनालय और पार्किंग की व्यवस्था होगी। इस भवन में 1400 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की जाएगी। (भाषा/वार्ता के सहयोग और सौजन्य से)  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here