सर्वोच्च न्यायालय : धार्मिक परम्पराएं और रीति -रिवाज संविधान के सिंद्धान्तो के अनुरूप होनी चाहिए

शबरीमला मंदिर
शबरीमला मंदिर

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से १७५ किमी की दूरी ​पर पम्पा है और वहाँ से चार किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग १००० मीटर की ऊंचाई पर​ प्रसिद्द शबरीमला मंदिर है। ​इस मंदिर में 10-50 साल के आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित ​है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि प्रवेश वर्जित ​करने जैसे रीति रिवाज अथवा धार्मिक प्रथाओं को संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप होना होगा।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुये कहा कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ “सार्वजनिक स्वास्थ,सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता” के आधार पर रोका जा सकता है।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ भी शामिल हैं। पीठ ने टिप्पणी की कि 1950 में संविधान लागू होने के बाद सभी कुछ संविधान के दायरे में है।

कंब रामायण, महाभागवत के अष्टम स्कंध और स्कंदपुराण के असुर कांड में जिस शिशु शास्ता का जिक्र है, अयप्पन उसी के अवतार माने जाते हैं। कहते हैं, शास्ता का जन्म मोहिनी वेषधारी विष्णु और शिव के समागम से हुआ था। उन्हीं अयप्पन का मशहूर मंदिर पूणकवन के नाम से विख्यात 18 पहाडि़यों के बीच स्थित इस धाम में है, जिसे सबरीमला श्रीधर्मषष्ठ मंदिर कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि परशुराम ने अयप्पन पूजा के लिए सबरीमला में मूर्ति स्थापित की थी। कुछ लोग इसे रामभक्त शबरी के नाम से जोड़कर भी देखते हैं।​ मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।​ शबरीमला शैव और वैष्णवों के बीच की अद्भुत कड़ी है।

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न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब 800 साल पुराने भगवान अय्यप्पा मंदिर का संचालन करने वाले त्रावंकोर देवास्वम बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि न्यायालय को यह परखना होगा कि क्या यह प्रथा सही विश्वास पर आधारित है जो एक समुदाय में सदियों से चली आ रही है। लोगों का मानना है श्री अयप्पन ब्रह्माचारी थे। इसलिए यहां वे छोटी बच्चियां आ सकती हैं, जो रजस्वला न हुई हों या बूढ़ी औरतें, जो इससे मुक्त हो चुकी हैं।

उन्होंने कहा कि देश की मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है और आस्था पर आधारित इन परंपराओं के परखने से मुद्दों का पिटारा खुल जायेगा। पीठ ने सिंघवी से कहा कि देवस्वाम बोर्ड को यह स्थापित करना होगा कि एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेशन वर्जित करना धार्मिक परपंरा का आवश्यक और अनिवार्य हिस्सा है।

पीठ ने केरल उच्च न्यायालय में बोर्ड के कथन में अंतर्विरोध की ओर ध्यान आकर्षित किया और कहा कि यह स्वीकार्य स्थिति थी कि तीर्थयात्रा शुरू होने पर पहले पांच दिन सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्गो की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति होती थी और इसके बाद भीड़ बढ़ने की वजह से उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था।

शबरीमला मंदिर परिसर में श्रद्धालुगण
शबरीमला मंदिर परिसर में श्रद्धालुगण

इससे पहले, 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केरल के इस प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर में 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के औचित्य पर सवाल उठाया था। पीठ का कहना था कि महिलाओं में दस वर्ष की आयु से पहले भी मासिक धर्म शुरू हो सकता है। इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका में वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचन्द्रन का कहना था कि एक विशेष आयु वर्ग की महिलाओं को अलग करना उन्हें अछूत मानने जैसा है जो संविधान के अनुच्छेद 17 में निषिद्ध है।

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पीठ इस तर्क से सहमत नहीं थी और उसका कहना था कि संविधान का अनुच्छेद 17 इस मामले में शायद लागू नहीं हो सके क्योंकि मंदिर में प्रवेश से वंचित की जा रही महिलाओं में सवर्ण वर्ग की भी हो सकती हैं और यह प्रावधान सिर्फ अनुसूचित जातियों से संबंधित है। केरल सरकार ने पहले न्यायालय से कहा था कि वह इस मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है।

सबरीमला मंदिर में दस से पचास आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की व्यवस्था को ‘इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन’ और अन्य ने चुनौती दे रखी है।

बहरहाल, कुछ लोगों का कहना है कि करीब 700-800 साल पहले दक्षिण में शैव और वैष्णवों के बीच वैमनस्य काफी बढ़ गया था। तब उन मतभेदों को दूर करने के लिए श्री अयप्पन की परिकल्पना की गई। दोनों के समन्वय के लिए इस धर्मतीर्थ को विकसित किया गया। आज भी यह मंदिर समन्वय और सद्भाव का प्रतीक माना जाता है। यहां किसी भी जाति-बिरादरी का और किसी भी धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति आ सकता है। यह मंदिर स्थापत्य के लिहाज से तो खूबसूरत है ही, यहां एक अजीब किस्म की शांति का अहसास भी होता है। जिस तरह यह 18 पहाडि़यों के बीच स्थित है, उसी तरह मंदिर के प्रांगण में पहुंचने के लिए भी 18 सीढि़यां पार करनी पड़ती हैं। मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं।

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