“कल्याणी फॉउंडेशन” की ‘अचल’ संपत्ति पर सरकार की नजर, ‘सार्वजनिक’ ट्रस्ट ‘अकेले’ नहीं चला सकता कोई  

महारानीअधिरानी काम सुन्दरी जी और डॉ हेतुकर झा 
महारानीअधिरानी काम सुन्दरी जी और डॉ हेतुकर झा 

दरभंगा/पटना/नई दिल्ली : जितने ही ‘सन्देहास्पद’ स्थिति में दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह का निधन हुआ, जितने ही आनन्-फानन में इनका दाह-संस्कार उनकी दोनों महारानियों की उपस्थिति में कर दिया गया, महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद जितनी ही तेजी से दरभंगा राज का पतन हुआ –  यह आने वाले समय में देश के अन्वेषण-शोधकर्ता के लिए शोध का एक विषय होगा। बहरहाल, प्रदेश के मुख्य मन्त्री नितीश कुमार महाराजा दरभंगा के दिल्ली के दरभंगा लेन और दरभंगा स्थित विशाल भवनों को घरोहर के रूप में विकसित करने का विचार कर रहें हैं। सूत्र के अनुसार सरकार की इक्षा है कि उस स्थान को बिहार प्रदेश के लोगों के हितों में, शिक्षा के क्षेत्र को सवल बनाने के लिए किया जाय और इस दिशा में शीघ्र ही महारानी साहिबा से भी मिलने की सम्भावना है।   

ट्रस्ट डीड 

कहा जाता है कि महाराजाधिराज अपनी मृत्यु के बाद भी, दरभंगा ही नहीं, भारत के विभिन्न शहरों में जितनी सम्पत्तियाँ छोड़ गए थे, उन सम्पत्तियों के सहारे भारत के बराबर भौगोलिक क्षेत्रफल का एक और देश जोड़कर भारत को बृहत्-भारत बनाया जा सकता था। स्वतन्त्र भारत में सरकार की मदद से देश में आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, मानवीय क्रांतियाँ लायी जा सकती थी, जिससे देश के लोगों का अध्यधिक भलाई हो सकता था – लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जो हुआ, साथ ही, जो हो रहा है, वह मिथिलाञ्चल ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत-राष्ट्र के लोगों के लिए, विशेषकर जो महाराजाधिराज के प्रति नतमस्तक थे, “दुःखद” प्रकरण मानते हैं। 

ट्रस्ट डीड

खैर, वर्तमान में सबसे अधिक खबर में हैं, ‘कंट्रोवर्सी’ नहीं कहेंगे अभी तक क्योंकि यह बात “सार्वजनिक नहीं हो पाया है, सरकार तक नहीं पहचुँ पायी है, सरकारी अधिकारियों के कान खड़े नहीं हुए हैं – महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन का क्रिया-कलाप । यह फॉउंडेशन भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन आय-कर से सम्बंधित सभी सुविधाओं का उपयोग करता हैं। आज भी करोड़ो-अरबों की संपत्ति, विशेषकर भू-भाग, पुरात्तव, ऐतिहासिक कागजातों के अलावे चल-अचल सम्पत्तियाँ हैं इस फॉउंडेशन के पास । लेकिन फॉउंडेशन मुख्य रूप से “एक व्यक्ति” चलता है। 

ट्रस्ट डीड

पटना सचिवालय सूत्रों के अनुसार प्रदेश के मुख्य मन्त्री नितीश कुमार महाराजा दरभंगा के दिल्ली के दरभंगा लेन स्थित भवन को घरोहर के रूप में विकसित करने का विचार कर रहें हैं। सूत्र के अनुसार सरकार की इक्षा है कि उस स्थान को बिहार प्रदेश के लोगों के हितों में, शिक्षिक क्षेत्र को सवाल बनाने के लिए किया जाय और इस दिशा में शीघ्र ही महारानी साहिबा से भी मिलने की सम्भावना है।
 

ट्रस्ट डीड

सूत्रों के अनुसार, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के “डोनर ट्रस्टी”, यानि महाराजी अधिरानी काम सुंदरी अपने जीवन के 90 वसंत पार कर चुकी हैं और वृद्धावस्था के अंतिम पड़ाव पर पहुँच गयी हैं। सूत्र का कहना है कि “महाराजा दरभंगा अपने जीवन काल में अनेकानेक दान किये हैं, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद प्रदेश के विकास में योगदान नगण्य हो गयी है । सरकार चाहती है कि वर्तमान अचल सम्पत्तियों का उपयोग प्रदेश के कल्याणार्थ किया जाय और इसके लिए महारानी साहिबा से सरकार के प्रतिनिधिगण मिल भी सकते हैं। इस सम्पूर्ण कार्य को मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार स्वयं देखेंगे। 

ये भी पढ़े   #विशेषरिपोर्ट: आरटीआई-2005 'केंद्र' का है, 'पुलिस','पब्लिक ऑर्डर' 'राज्य का विषय' है; और 'आरटीआई कार्यकर्ताओं' की 'रक्षा/सुरक्षा' किसकी जिम्मेदारी ?
ट्रस्ट डीड

बहरहाल, डॉ हेतुकर झा जो महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के संस्थापक और लाईफ-टाईम ट्रस्टी के साथ साथ मैनेजिंग ट्रस्टी भी थे, उनकी मृत्यु हो चुकी है। दो अन्य “इन्वाइटेड ट्रस्टीगण अपने-अपने कार्य काल को दो-बार पूरा कर अवकाश प्राप्त कर चुके हैं। 

ट्रस्ट डीड

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के ट्रस्ट डीड के अनुसार लाईफ़ टाईम ट्रस्टी-मैनेजिंग ट्रस्टी की मृत्यु होने पर उसका पहला संतान (पुरुष) अगर सभी दृष्टि से अहर्ताओं को पूरा करता है, तो ट्रस्ट के अन्य सम्मानित ट्रस्टियों के अनुशंषा पर लाइफ-टाईम मैनेजिंग ट्रस्टी/मैनेजिंग ट्रस्टी  बन सकता है – लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है, जबकि अनेकानेक पत्राचार भी किये गए है। अंत में बचे “को-ट्रस्टी” जो आज की तारीख में इतने बड़े साम्राज्य एकमात्र मालिक हैं। 

ट्रस्ट डीड

दरभंगा के लोगों का ही नहीं, दरभंगा राज परिवार से जुड़े अन्य लोगों का कहना है की “खुदा-न-खास्ते अगर महारानी साहिबा की मृत्यु हो जाती है, तो वैसी स्थिति में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन की सम्पूर्ण सम्पत्तियों पर एकाधिकार “को-ट्रस्टी” का हो जायेगा, जो जनहित में, जिस उद्देश्य से इस संस्था की स्थापना की गयी थी, चकनाचूर हो जायेगा। 

ट्रस्ट डीड

ज्ञातब्य हो कि अपनी मृत्यु से पूर्व 5 जुलाई 1961 को कोलकाता में उन्होंने अपनी अंतिम वसीयत की थी। कोलकाता उच्च न्यायालय द्वारा वसीयत सितम्बर 1963 को प्रोबेट हुई और पं. लक्ष्मी कान्त झा, अधिवक्ता, माननीय उच्चतम न्यायालय, वसीयत के एकमात्र एक्सकुटर बने और एक्सेकुटर के सचिव बने पंडित द्वारिकानाथ झा । वसियत के अनुसार दोनों महारानी के जिन्दा रहने तक संपत्ति का देखभाल ट्रस्ट के अधीन रहेगा और दोनों महारानी के स्वर्गवाशी होने के बाद संपत्ति को तीन हिस्सा में बाँटने जिसमे एक हिस्सा दरभंगा के जनता के कल्याणार्थ देने और शेष हिस्सा महाराज के छोटे भाई राजबहादुर विशेश्वर सिंह जो स्वर्गवाशी हो चुके थे के पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह , राजकुमार यजनेश्वर सिंह और राजकुमार शुभेश्वर सिंह के अपने ब्राह्मण पत्नी से उत्पन्न संतानों के बीच वितरित किया जाने का प्रावधान था । 

ये भी पढ़े   अंखफोड़बा काण्ड का 42 वर्ष: 'क़ानूनी न्याय' नहीं मिला, दो आँख फूटने का मुआवजा 750/- रूपये/माह, 'गंगाजल' फिल्म 16,67,31,350/- रुपये कमा लिया
ट्रस्ट डीड

सूत्रों के अनुसार, छोटी महारानी महाराजा के बाद अधिकांस समय दरभंगा हाउस केंद्र सरकार द्वारा लेने के बाद उससे सटे आउट हाउस में दिल्ली में रहने लगी और दरभंगा आने पर नरगोना पैलेस में। 1980 के आसपास से नरगोना कैंपस में बेला पैलेस के सामने नवनिर्मित कल्याणी हाउस में आने पर रहती हैं। 1990 से अधिक समय दरभंगा में रहने लगीं है और दरभंगा रिलीजियस ट्रस्ट जिसके अधीन 108 मंदिर है और सीताराम ट्रस्ट जिसके अधीन वनारस के बांस फाटक, गोदोलिया चौक के नजदीक राममंदिर आता है के एकमात्र ट्रस्टी हैं, उक्त मंदिर के गेट के समीप कुछ अंश जमीन की बिक्री कर दी गयी है। 

ट्रस्ट डीड

इनसे पूर्व बड़ी महारानी राजलक्ष्मी जी इसके ट्रस्टी थीं। राजलक्ष्मी जी ने महाराज कामेश्वर सिंह के चिता पर माधवेश्वर में मंदिर का निर्माण करवायी थी। छोटी महारानी कामसुन्दरी जी महाराज कामेश्वर सिंह कल्याणी ट्रस्ट बनवायी जिसके तहत किताबों का प्रकाशन ,महाराजा कामेश्वर सिंह जयंती आदि कराती हैं। पंडित दुर्गानंद झा, मेनेजर के ट्रस्टी बनने के बाद श्री केशव मोहन ठाकुर, पूर्व IAS की नियुक्ति हुई और उनके बाद दरभंगा राज के एक पदाधिकारी श्री मित्रा और फिर श्री बुधिकर झा मेनेजर रहे।

ट्रस्ट डीड

जहाँ तकमहाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन का सवाल है, सूत्रों के अनुसार, डॉ हेतुकर झा जो महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के संस्थापक और लाईफ-टाईम ट्रस्टी और मैनेजिंग ट्रस्टी थे, उनकी मृत्यु 19 अगस्त, 2017 को हो गयी। वैसे फॉउंडेशन के कागजातों में प्रावधान उल्लिखित हैं कि लाइफ-टाइम ट्रस्टी अथवा मैनेजिंग ट्रस्टी की मृत्यु के बाद, उनका संतान, यदि पुरुष होगा और सभी अहर्ताएं पूरा करता होगा, तो  लाइफ टाईम ट्रस्टी / मैनेजिंग ट्रस्टी बन जायेगा; लेकिन डॉ झा अपने जीवन काल में उत्तराधिकारी का नाम उल्लिखित नहीं कर सके। उन अहर्ताओं में भारत या भारत के बाहर विदेश शैक्षणिक स्नस्थाओं से न्यूनम स्नातक होना आवश्यक हैं। 

ट्रस्ट डीड

डॉ हेतुकर झा के तीन बालक हैं – तेजकर झा, श्रुतिकार झा और मधुकर झा। इन तीनो संतानों में तेजकर झा सबसे अधिक शिक्षित हैं। वे पटना विश्वविद्यालय से समाजशात्र विषय में स्नातकोत्तर तो हैं ही, साथ ही, एडवान्स रिसर्च मेथोडोलॉजी में विशिष्ठता भी प्राप्त किये हैं। इसके अलावे वे सिस्टम्स डेवलपमेंट्स, मार्केटिंग और सेल्स मैनेजमेंट्स में डिप्लोमा धारक हैं। इतना ही नहीं, तेजकर झा के दोनों छोटे भाइयों ने लिखकर यह दे दिया है कि उनके पिता के उस स्थान के प्रति कोई लगाव नहीं है, वे उस स्थान को धरह नहीं करना चाहते हैं और उनके सबसे बड़े भाई ही उस स्थान के काबिल और योग्य हैं। 

ये भी पढ़े   कोरोना महाशय पहुंचे सर्वोच्च न्यायालय, 44-कर्मचारी हुए संक्रमित अब तक 
ट्रस्ट डीड

ट्रस्ट डीड के अनुसार, फॉउंडेशन का कार्यकारी शक्ति मैनेजिंग ट्रस्टी में निहित है। बाद में, दिसंबर 1998 में एक सप्लीमेंट्री डीड ऑफ़ रेक्टिफिकेशन पारित कर फॉउंडेशन में  दो “इंवाइटिज ट्रस्टीज” का पद जोड़ा गया, जिसका कार्यकाल दो वर्ष निर्धारित किया गया। साथ ही, इस बात का भी प्रावधान किया गया कि इस इन्वाइटेड ट्रस्टीज के कार्यकाल को एक-टर्म के लिए और बढ़ाया जा सकता है। बसर्ते बोर्ड ऑफ़ लाईफ टाईम ट्रस्टीज / मैनेजिंग ट्रस्टी का अनुमोदन हो। 

ट्रस्ट डीड

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन एक पब्लिक ट्रस्ट है और सरकार द्वारा निर्धारित आयकर से सम्बंधित सभी सुविधाओं का लाभ भी उठता है – चाहे आमदनी हो या डोनेशन। सूत्रों के अनुसार “डॉ हेतुकर झा की मृत्यु 2017 में होती है। बाद में डॉ सुरेंद्र गोपाल, जो एक इन्वाइटी ट्रस्टी थे, अपने दो टर्म कार्यकर अवकाश प्राप्त करते हैं। पुनः, पध्मश्री मानव बिहारी वर्मा, जो दूसरे इन्वाइटेड ट्रस्टी थे, वे भी अपना दो कार्यकाल पूरा कर 2018 में अवकाश प्राप्त करते हैं। अब इस फॉउंडेशन में न तो कोई लाईफ़ टाईम /मैनेजिंग ट्रस्टी है, न इन्वाइटेड ट्रस्टीज है, जो डोनर ट्रस्टी हैं वे 90 वर्ष से भी अधिक हैं और फॉउंडेशन का क्रिया-कलाप देखने, समझने की स्थिति में नहीं हैं।  अंत में, यह फॉउंडेशन पूर्णरूपेण सीओ-ट्रस्टी के हाथ में आ गया है।”

ट्रस्ट डीड

सवाल यह है की ऐसा क्यों?

ट्रस्ट डीड

“ट्रस्ट डीड के क्लॉज 36 के अनुसार: “The Caluse 36 of the Trust Deed gives the Board of Trustees power to form and promulgate rule for the management but that too is subject to approval of all the trustees. One Trustee cannot deny the rights of the other life time trustee as given in trust deed by invoking the powers in Clause 11 of the deed, especially when there is no ambiguity or controversy regarding the male descendants, their qualification and choice.”

ट्रस्ट डीड

 
बहरहाल, विगत 14 सितम्बर 2020 को डॉ हेतुकर झा के बड़े पुत्र तेजकर झा ने  महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के “को-ट्रस्टी” उदय नाथ झा को एक पत्र लिखकर यह पूछा है कि ट्रस्ट डीड के मुताबिक वे (उदय नाथ झा) उन्हें (तेजकर झा) उनके पिता (डॉ हेतुकर झा) के उत्तराधिकारी के रूप में लाईफ टाइम ट्रस्टी/मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में कार्य करने के अधिकार से वंचित कैसे रख सकते हैं। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here