नई दिल्ली: इधर ज्ञानेश कुमार और डॉ. सुखबीर सिंह संधू भारत निर्वाचन आयोग में चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाले, उधर चुनावी बॉन्ड को लेकर भारत का सर्वोच्च न्यायालय ने फिर सख्त रुख अपनाया। न्यायालय ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक ने बॉन्ड संख्या का खुलासा नहीं किया है। इसलिए बैंक को नोटिस जारी किया जाय। न्यायालय ने अपने पंजीयक (न्यायिक) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निर्वाचन आयोग द्वारा सीलबंद कवर में सौंपे गए आंकड़ों को स्कैन किया जाए। साथ ही, उन्हें डिजिटल माध्यम से उपलब्ध कराने पर काम भी किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने निर्वाचन आयोग की अर्जी पर सुनवाई की इसमें चुनावी बॉन्ड मामले में कोर्ट के 11 मार्च के आदेश के एक हिस्से में संशोधन का अनुरोध किया गया था।
वैसे विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि चुनावी बॉन्ड निर्गत होने की तारीख से इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखने तक राजनीतिक पार्टियों के अलावे भारत का चुनाव आयोग (आयुक्तगण) के साथ-साथ भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष और अन्य आला अधिकारी इस पूरे प्रकरण से भली भांति अवगत थे। अगर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दर्ज नहीं किया गया होता तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजनेताओं, राजनीतिक पार्टियों, अध्यक्ष सहित भारतीय स्टेट बैंक के आला अधिकारियों और चुनाव आयुक्त बिना डकार लिए सम्पूर्ण मामले को डकार जाते। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रहित में सर्वोच्च न्यायालय के सम्मानित न्यायमूर्ति भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों के साथ-साथ चुनाव आयोग के अधिकारियों के विरुद्ध भी अनुशासनिक कार्रवाई करने की दिशा में कदम उठायें।
वैसे जिस कालखंड में चुनावी बॉन्ड की शुरुआत हुई थी उस समय डॉ. नसीम जयदी (19 अप्रैल, 2015 – 5 जुलाई, 2017) थे और जब यह न्यायालय में याचिका के रूप में आया, इन कालखंडों में चुनाव आयोग में आंचल कुमार ज्योति (6 जुलाई, 2017 – 22 जनवरी, 2018), ओम प्रकाश रावत (23 जनवरी, 2018 – 1 दिसमबर, 2018), सुनील अरोड़ा (2 दिसंबर 2018 – 12 मई 2021), सुनील चन्द्रा (13 अप्रैल, 2021 – 14 मई, 2022) और वर्तमान में राजीव कुमार (15 मई, 2022 से ) मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं और अन्य दो-दो चुनाव आयोग और भी रहे। सूत्रों का कहना है कि जितने भी अधिकारी थे, अथवा हैं, उन्हें चुनावी बॉन्ड के बारे में जानकारी नहीं हो, यह मानना मुश्किल है।
इसी तरह, सन 2017 में जब चुनावी बाउंड योजना पेश की गई, उस समय भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष थी अरुंधति भट्टाचार्य। सुश्री भट्टाचार्य के बाद रजनीश कुमार भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष बने और फिर वर्तमान अध्यक्ष दिनेश कुअमार खड़ा विगत 7 अक्टूबर, 2020 से कार्यालय में पदस्थापित हैं। सूत्रों का मानना है कि चुनावी बॉन्ड, राजनितिक पार्टियों को लाभ, दाताओं द्वारा ख़रीदा गया बाउंड सभी एक सुनिश्चित और योजनावद्ध तरीके से किया गया। इतना बड़ा आर्थिक घपलावाजी भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों और चुनाव आयोग की मिलीभगत के बिना संभव हो ही नहीं सकता है। वैसी स्थिति में अगर भारत का सर्वोच्च न्यायालय चुनाव बॉन्ड को ‘असंवैधानिक’ करार किया है, तो इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि आने वाले दिनों में ‘इस असंवैधानिक क्रिया कलाप से जुड़े सभी महामानवों के विरुद्ध भी कार्रवाई हो।” वैसे स्वतंत्र भारत में इस ‘आधिकारिक रूप से बहुत बड़ा आर्थिक स्कैम कहा जा सकता है जो राष्ट्र के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। सूत्रों का कहना है कि राष्ट्र के लोगों की आस्था वर्तमान संविधान पीठ में बहुत अधिक है।
उधर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त चुनावी बॉण्ड की विशिष्ट अक्षरांकीय संख्या (यूनीक अल्फा-न्यूमेरिक नंबर) का खुलासा करना चाहिए था। न्यायालय ने इस संबंध में बैंक से जवाब मांगा।प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने निर्वाचन आयोग की उस अर्जी पर सुनवाई की जिसमें चुनावी बॉण्ड मामले में न्यायालय के 11 मार्च के आदेश के एक हिस्से में संशोधन का अनुरोध किया गया है। न्यायालय ने अपने पंजीयक (न्यायिक) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निर्वाचन आयोग द्वारा सीलबंद कवर में सौंपे गए आंकड़ों को स्कैन किया जाए और उन्हें डिजिटल माध्यम से उपलब्ध कराया जाए।
इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि इस काम को शनिवार शाम पांच बजे तक पूरा करना बेहतर रहेगा और एक बार यह कार्य हो जाने के बाद मूल दस्तावेज निर्वाचन आयोग को वापस कर दिए जाएं। उसने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के इन अभ्यावेदनों पर गौर किया कि एसबीआई ने चुनावी बॉण्ड की विशिष्ट अक्षरांकीय संख्या का खुलासा नहीं किया है।
पीठ ने बैंक को नोटिस जारी किया और मामले में आगे की सुनवाई के लिए 18 मार्च की तिथि तय की। निर्वाचन आयोग ने अपनी अर्जी में कहा कि न्यायालय के 11 मार्च के आदेश में कहा गया था कि सुनवाई के दौरान सीलबंद लिफाफे में उसके द्वारा शीर्ष अदालत को सौंपे गए दस्तावेजों की प्रतियां आयोग के कार्यालय में रखी जाएं लेकिन उसने अपने पास दस्तावेजों की कोई प्रति नहीं रखी है। आयोग ने कहा कि उसने दस्तावेजों की कोई प्रति अपने पास नहीं रखी है। उसने कहा कि इन दस्तावेजों को वापस किया जाए ताकि वह न्यायालय के निर्देशों का पालन कर सके।
आज, यानी शनिवार को भारत में 18 वीं लोक सभा के गठन के लिए चुनाव तारीखों की घोषणा की जाएगी। समय का चक्र देखिये, मुख्य चुनाव आयुक्त श्री राजीव कुमार ने निर्वाचन सदन में नवनियुक्त चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार और डॉ. सुखबीर सिंह का स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि नवनियुक्त चुनाव आयुक्तों के लिए आगामी बारह सप्ताह अति व्यस्त और चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं। श्री राजीव कुमार ने इस ऐतिहासिक घड़ी में भारत निर्वाचन आयोग में दोनों चुनाव आयुक्तों के शामिल होने के महत्व पर जोर दिया। यह ऐसा समय है, जब टीम ईसीआई दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 2024 के आम चुनाव कराने के लिए पूरी तरह तैयार है। वैसे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में एक अधिसूचना 14 मार्च, 2024 को राजपत्र में प्रकाशित की गई थी। केरल काडर के श्री ज्ञानेश कुमार और उत्तराखंड काडर के डॉ. सुखबीर सिंह संधू भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1988 बैच के अधिकारी हैं।
बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आंकड़े स्कैन हो जाने और डिजिटल माध्यम से उपलब्ध होने के बाद मूल दस्तावेज निर्वाचन आयोग को लौटा दिए जाएं। शीर्ष कोर्ट के सख्त रुख के बाद बैंक ने आंकड़ा चुनाव आयोग को सौंपा था जिसे आयोग ने गुरुवार को जारी किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल यह सुनिश्चित करें कि दस्तावेजों को स्कैन और डिजिटल किया जाए।एक बार प्रक्रिया पूरी होने के बाद मूल दस्तावेजों को चुनाव आयोग को वापस दे दिया जायेगा। वह इसे 17 मार्च को या उससे पहले वेबसाइट पर अपलोड करने का काम कर देगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को मतदान पैनल द्वारा सीलबंद लिफाफे में दाखिल किए गए डेटा को स्कैन और डिजिटाइज किए जाने के बाद मूल दस्तावेज चुनाव आयोग को वापस करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया। SBI ने बॉन्ड का यूनिक नंबर जारी नहीं किया गया है। कोर्ट में SBI की ओर से कोई मौजूद नहीं था। अब शीर्ष अदालत ने SBI से मांगा है जवाब। सोमवार को फिर होगी मामले की सुनवाई। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट रूप से कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को बान्ड की खरीद और भुनाने के संबंध में पहले से बताए गए विवरणों के अलावा, चुनावी बान्ड संख्या यानी यूनिक नम्बर का भी खुलासा करना होगा।गौरतलब है कि एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड की खरीद और इसे पाने वाले लोगों के नाम चुनाव आयोग को सौंप दिया है। कोर्ट ने कहा कि उसे चुनावी बॉन्ड की संख्या (अल्फा-न्यूमेरिक नंबरों) का खुलासा भी करने को कहा गया था, जो उसने नहीं किया है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि एसबीआई की तरफ से कौन पेश हो रहा है। उन्होंने कहा कि एसबीआई ने पूरे नंबर का खुलासा नहीं किया है। इसको बैंक को जानकारी देनी होगी।
चुनावी बांड योजना पर फैसला लाइव: घटनाक्रम का घटनाक्रम
2017: वित्त विधेयक में चुनावी बांड योजना पेश की गई
14 सितंबर, 2017: मुख्य याचिकाकर्ता एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
3 अक्टूबर, 2017: SC ने एनजीओ द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र और EC को नोटिस जारी किया।
2 जनवरी, 2018: केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया।
7 नवंबर, 2022: चुनावी बांड योजना में उस वर्ष में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 करने के लिए संशोधन किया गया, जहां कोई भी विधानसभा चुनाव निर्धारित हो सकता है।
16 अक्टूबर, 2023: CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली SC पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा।
31 अक्टूबर, 2023: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
2 नवंबर, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
15 फरवरी, 2024: सुप्रीम कोर्ट ने योजना को रद्द करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 12 अप्रैल, 2019 के कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद से खरीदे गए चुनावी बांड का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। शामिल किए जाने वाले विवरण हैं- प्रत्येक चुनावी बांड की खरीद की तारीख, बांड के खरीदार का नाम, खरीदे गए चुनावी बांड का मूल्य, और उन राजनीतिक दलों का विवरण जिन्होंने अंतरिम आदेश के बाद से चुनावी बांड के माध्यम से योगदान प्राप्त किया है।
2017-18 के दौरान राष्ट्रीय राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त 50% से अधिक धन के स्रोत अज्ञात रहे, यह दर्शाता है कि देश की राजनीतिक फंडिंग प्रणाली कितनी गहरी और अपारदर्शी है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि छह पार्टियों, मुख्य रूप से भाजपा को विभिन्न स्रोतों से 1,293 करोड़ रुपये का दान मिला, लेकिन उन्होंने 689 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोतों से प्राप्त होने के रूप में दिखाए।इसमें से 215 करोड़ रुपये चुनावी बांड के माध्यम से जुटाए गए थे, जो कॉर्पोरेट दानदाताओं से धन प्राप्त करने के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाया गया अपारदर्शी तरीका है।भाजपा को सबसे अधिक दान मिला, कुल मिलाकर 1,027 करोड़ रुपये, और इसलिए स्रोतों के बारे में अधिकांश जानकारी छिपा दी गई।
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
मौजूदा नियमों पर प्रभावभारत में किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल द्वारा किसी व्यक्ति से प्राप्त की जाने वाली मौद्रिक योगदान सीमा को ₹2,000 तक सीमित कर दिया गया है – जो ₹20,000 की पिछली सीमा से 10% की कमी दर्शाता है। यह वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से किया गया था। चुनावी बांड की शुरूआत ने निगमों द्वारा किए गए योगदान की सीमा को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है, जो पहले पिछले तीन साल की अवधि में संगठन की औसत शुद्ध कमाई के 7.5% तक सीमित थी। कंपनी अधिनियम, 2013 में एक संशोधन ने इस बदलाव को सुनिश्चित किया।इस योजना के परिणामस्वरूप व्यक्तियों या निगमों के लिए उनके राजनीतिक योगदान के संबंध में व्यापक जानकारी प्रदान करने की अनिवार्य बाध्यता समाप्त हो गई। अपनी वार्षिक वित्तीय रिपोर्ट में राजनीतिक दान के व्यापक विवरण की रिपोर्ट करने के बजाय, कंपनियों को अब केवल चुनावी बांड की खरीद के लिए एक समेकित राशि का खुलासा करने की आवश्यकता होगी। इस संबंध में आयकर अधिनियम, 1961 के तहत प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन किया गया।विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) को विपक्ष के समर्थन से सरकार द्वारा “विदेशी” इकाई की परिभाषा को व्यापक बनाने के लिए संशोधित किया गया था, जिसका स्पष्ट उद्देश्य उन फर्मों के दायरे का विस्तार करना था जो कानूनी रूप से राजनीतिक योगदान दे सकते थे।
इन संशोधनों के परिणाम स्पष्ट और शोचनीय दोनों थे। कोई भी व्यक्ति, निगम, या हित समूह अब किसी भी राशि का खुलासा किए बिना किसी भी राजनीतिक दल को अप्रतिबंधित धनराशि दान कर सकता है, और कोई भी व्यक्ति, नागरिक, पत्रकार या नागरिक समाज का प्रतिनिधि कोई भी संबंध स्थापित नहीं कर पाएगा। जनवरी 2018 से स्थगित और 1 मार्च 2018 से शुरू होकर, चुनावी बांड की पहली किश्त दस दिनों की अवधि में खरीद के लिए उपलब्ध कराई गई थी। भारतीय स्टेट बैंक ने चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में अपनी चार शाखाओं में इन चुनावी बांडों को जारी और भुनाया।
31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए राजनीतिक दलों के “अंकेक्षित लेखा योगदान विवरण” का विश्लेषण, जो आयकर विभाग और भारत के चुनाव आयोग दोनों को विधिवत प्रस्तुत किया गया था से पता चलता है कि भाजपा ने ₹215 करोड़ की राशि के चुनावी बांड प्राप्त किए। जबकि कांग्रेस पार्टी को केवल ₹5 करोड़ मिले। उल्लेखनीय है कि किसी भी अन्य पंजीकृत राजनीतिक दल, राष्ट्रीय या क्षेत्रीय, ने चुनावी बांड के माध्यम से किसी भी प्रकार का योगदान प्राप्त करने की सूचना नहीं दी है।
चुनावी बांड बिक्री का तीसरा चरण 1 मई से 10 मई तक चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और नई दिल्ली में ग्यारह एसबीआई शाखाओं के साथ-साथ असम, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान में नामित शाखाओं में खरीद के लिए निर्धारित किया गया था। सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत एक आवेदन अन्य प्रासंगिक विवरणों के साथ मार्च और अप्रैल के महीनों के दौरान प्रत्येक अधिकृत शाखा द्वारा बेचे गए दाताओं की संचयी संख्या और चुनावी बांड की कुल मात्रा के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए मई 2018 में दायर किया गया था। केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने जून 2018 में आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इस तरह के डेटा के संकलन के परिणामस्वरूप “बैंक के संसाधनों का अनुपातहीन विचलन” होगा, लेकिन ऐसे सभी बांडों की बिक्री के लिए केवल मूल्य-वार आंकड़े दिए गए। निर्दिष्ट शाखाएँ जो किसी अन्य एप्लिकेशन में दी गई जानकारी से मेल नहीं खातीं। हालाँकि, जुलाई 2018 में, एसबीआई के पहले अपीलीय प्राधिकरण (एफएए) ने इस गलती को स्वीकार किया कि पहले दिए गए चुनावी बांड बिक्री डेटा – ₹100,000 मूल्यवर्ग के 10 बांड, ₹10,00,000 के 38 बांड और ₹1,00,00,000 के 9 बांड। मूल्यवर्ग, कुल ₹12.93 करोड़ – गांधीनगर शाखा के लिए, वास्तव में, भारतीय स्टेट बैंक की बेंगलुरु शाखा का “संबंधित” था। आरटीआई आवेदक ने सरकार के पारदर्शिता के दावों पर अफसोस जताया।
ज्ञातव्य हो कि भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश कुमार ने 13 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दी थी । उन्होंने इसमें कहा- हमने चुनाव आयोग को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल्स हैं। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है। लिफाफे में दो पीडीएफ फाइल भी हैं। ये पीडीएफ फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है। हलफनामे के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया डेटा 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच खरीदे और इनकैश कराए गए बॉन्ड का है।
बैंक के अनुसार, 1 अप्रैल से 11 अप्रैल, 2019 तक 3 हजार 346 चुनावी बॉन्ड खरीदे गए थे। इनमें 1 हजार 609 इनकैश कराए गए। 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच कुल 22 हजार 217 बॉन्ड खरीदे गए। 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 तक कुल खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की संख्या 18,871 थी। इनमें 20 हजार 421 बॉन्ड इनकैश कराए गए। इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में भारतीय स्टेट बैंक की याचिका पर 11 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई की थी। SBI ने कोर्ट से कहा था- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया? सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- SBI 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। इलेक्शन कमीशन सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक इसे वेबसाइट पर पब्लिश करे।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। साथ ही भारतीय स्टेट बैंक को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को देने का निर्देश दिया था। 4 मार्च को SBI ने न्यायालय में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। इसके अलावा कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें 6 मार्च तक जानकारी नहीं देने पर SBI के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।
पार्टीचुनावी चंदा (करोड़ में)
बीजेपी – 6060.50
टीएमसी – 1609.50
कांग्रेस – 1421.90
भारत राष्ट्र समिति – 1214.70
बीजू जनता दल. – 775.50
डीएमके – 639
वाईएसआर कांग्रेस – 337
टीडीपी. – 218.90
शिवसेना – 159.40
आरजेडी – 72.50
आम आदमी पार्टी. – 65.50
जनता दल सेक्युलर – 43.50
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा – 36.50
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी – 30.50
जनसेना पार्टी – 21
समाजवादी पार्टी – 14.10
जेडीयू – 14
जेएमएम – 13.50
शिरोमणि अकाली दल – 7.30
एआईएडीएमके – 6.10
सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट – 5.50
राष्ट्रीय जनता दल – 10.01
महाराष्ट्र गोमंतक पार्टी – 0.60
जेके नेशनल कॉन्फ्रेंस – 0.50
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र प्रदेश – 0.50