नई दिल्ली, 2 जनवरी : उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने के फैसले को सोमवार को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया। पीठ ने बहुमत से लिए गए फैसले में कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी ।हालांकि न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने सरकार के फैसले पर कई सवाल उठाए।
न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ – जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन – ने कहा कि आर्थिक मामले में संयम बरतने की जरूरत होती है और अदालत सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकती।
जस्टिस नागरत्ना ने असहमति जताते हुए कहा, “यह भी रिकॉर्ड में लाया गया है कि विमुद्रीकृत मुद्रा नोटों के मूल्य का 98% बैंक नोटों के लिए बदल दिया गया है जो एक कानूनी निविदा बनी हुई है। बैंक नोटों की एक नई 2000 रुपये की सीरीज भी बैंक द्वारा जारी किया गया था। इससे पता चलता है कि यह उद्देश्य स्वयं उतना प्रभावी साबित नहीं हो सकता था जितना कि इसकी मांग की गई थी। हालांकि, यह अदालत बताए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रभावशीलता के आधार पर एक कानून की वैधता पर अपना निर्णय नहीं देती है।“ जबकि, जस्टिस गवई ने कहा, “यह प्रासंगिक नहीं है कि तय उद्देश्यों को प्राप्त किया गया है या नहीं। क्या आवश्यक है कि एक उद्देश्य होना चाहिए जो उचित उद्देश्यों से किया गया हो और उद्देश्यों के साथ उचित संबंध होना चाहिए।”
बहुमत के फैसले में कहा गया कि 8 नवंबर, 2016 के फैसले की प्रक्रिया में कोई गलती नहीं थी। साथ ही फैसले ने आनुपातिकता के चार-आयामी टेस्ट को संतुष्ट किया। कोर्ट ने कहा, “हम पाते हैं कि तीन उद्देश्य (काले धन, आतंक-वित्तपोषण और नकली मुद्राओं पर अंकुश लगाना) उचित उद्देश्य हैं। हमने माना है कि उद्देश्यों के साथ एक उचित संबंध था। जहां तक वैकल्पिक उपायों से संबंधित तीसरे टेस्ट का संबंध है, हमने माना है कि विमुद्रीकरण द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए वैकल्पिक उद्देश्य नहीं हो सकते हैं। चौथा यह है कि क्या इन उद्देश्यों के महत्व और संवैधानिक अधिकारों की सीमाओं के बीच उचित संबंध था। इन चार टेस्ट को लागू करते हुए हमने माना है कि आनुपातिकता के सिद्धांत द्वारा कार्रवाई को प्रभावित नहीं किया जा सकता है।”
कोर्ट का फैसला
1. भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र सरकार को उपलब्ध शक्ति का प्रयोग बैंक नोटों की सभी सीरीज के लिए किया जा सकता है। केवल इसलिए कि पहले दो मौकों पर विमुद्रीकरण पूर्ण विधानों के माध्यम से किया गया था, यह नहीं माना जा सकता है कि ऐसी शक्ति आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत केंद्र सरकार के पास उपलब्ध नहीं है।
2. आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) अत्यधिक प्रतिनिधिमंडल के लिए प्रदान नहीं करती है क्योंकि इसमें एक अंतर्निहित सुरक्षा है कि केंद्रीय बोर्ड द्वारा सिफारिश के माध्यम से ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जाना है। इस प्रकार, धारा 26(2) उक्त आधार पर निरस्त किये जाने योग्य नहीं है।
3. दिनांक 8 नवंबर 2016 का फैसला लेने की प्रक्रिया में किसी भी तरह की गलती नहीं थी।
4. दिनांक 8 नवंबर 2016 की अधिसूचना आनुपातिकता के टेस्ट को संतुष्ट करती है और उक्त आधार पर खारिज नहीं की जा सकती।
5. नोटों के आदान-प्रदान के लिए प्रदान की गई अवधि को अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
6. भारतीय रिजर्व बैंक के पास 2017 अधिनियम की धारा 4(2) के तहत धारा 3 और 4(1) के प्रावधानों के अलावा धारा 4(1) के तहत जारी अधिसूचना की अवधि से परे विमुद्रीकृत नोटों को स्वीकार करने की स्वतंत्र शक्ति नहीं है। जस्टिस नागरत्न ने नोटबंदी को गैरकानूनी बताते हुए कहा कि घोषणा केवल संभावित रूप से संचालित होगी और पहले से की गई किसी भी कार्रवाई को प्रभावित नहीं करेगी। चूंकि अधिसूचना पर कार्रवाई की गई है, यथास्थिति को बहाल नहीं किया जा सकता है और इसलिए याचिकाओं में कोई राहत नहीं दी जा सकती है।
उधर, भारतीय जनता पार्टी ने नोटबंदी पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को ‘‘ऐतिहासिक’’ करार दिया और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से सवाल किया कि क्या नोटबंदी के खिलाफ अभियान चलाने के लिए वह देश से माफी मांगेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने यहां संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आतंकवाद की रीढ़ को तोड़ने में नोटबंदी ने महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने कहा, ‘‘यह फैसला देशहित में किया गया था। इससे अर्थव्यवस्था भी साफ सुथरी हुई।”
उन्होंने कहा, ‘‘ये पूरी नीति आतंक के वित्त पोषण, जाली नोट और धन शोधन, आदि को रोकने के लिए की गई थी। इस ऐतिहासिक निर्णय को आज अदालत ने सही पाया है जबकि कांग्रेस ने इसे लेकर काफी हंगामा किया था।’’ प्रसाद ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की टिप्पणी को रेखांकित करने पर उन्हें आड़े हाथ लिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता बहुमत के फैसले की अनदेखी कर रहे हैं और अपमानजनक बयान दे रहे हैं।
बहरहाल, इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी 58 याचिकाओं को भी खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को पलटा नहीं जा सकता है। नोटबंदी में कोई त्रुटि नहीं है। कोर्ट ने टिप्पणी देते हुए कहा कि रिकॉर्ड की जांच के बाद हमने पाया कि निर्णय लेने की प्रक्रिया केवल इसलिए त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती क्योंकि ये केंद्र सरकार से निकली है। ज्ञातव्य है कि 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे देश के नाम संदेश देकर रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोट बंद करने का ऐलान कर दिया था। परिणामस्वरूप अगले ही दिन बैंकों के सामने कई महीनों तक लंबी कतारें देखने को मिली थी। सरकार को उम्मीद थी कि इससे काला धन वापिस आ जाएगा, परन्तु, सरकार के पास 1 लाख करोड़ रुपये का काला धन ही आया।