‘जिगर के टुकड़े’ काल से बिहार-झारखण्ड का शिक्षा तंत्र और विध्वंसकारी त्रासदी, ‘सड़क’ वाले ‘ब्लैकबोर्ड’ पर दिखने लगे

मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के प्रबन्ध निदेशक नरेन्द्र कुमार झा

पटना:  ‘जिगर के टुकड़े’ – काल से आज तक राज्य के शिक्षा तंत्र में जो कुछ भी किया गया है, उसे विध्वंसकारी त्रासदी के सिवा और कुछ कहा भी नहीं जा सकता। सातवें दशक में ‘जिगर के टुकड़ों’ ने परीक्षा (पर-इच्छा) को स्वेच्छा (स्व-इच्छा) में बदल डाला। आठवें दशक में विश्वविद्यालयों के अधिनियम/परिनियम के खुलकर राजनीतिकरण हुए। शिक्षकों की नियुक्ति-प्रोन्नति के दृढ़ बंधेजों को अपनी सुविधानुसार इतना लचीला कर दिया गया कि जिन्हें रोड पर होना चाहिए था, वे ब्लैकबोर्ड पर दिखाई पड़ने लगे। नवें दशक के मध्य से आज तक की अवधि में नियुक्तियां (कुलपति की हो या प्रतिकुलपति की, प्रधानाचार्य की हो या कुल-सचिव की, शिक्षक की हो या शिक्षकेत्तर कर्मचारी की) खुले बाजार की वस्तु बनकर रह गई। 

“Buy now, pay later” के तर्ज पर “teach now, learn later”के ब्रिगेड रंगरूटों को प्राथमिक शिक्षकों की वर्दी में तैनात कर दिया गया, तो मुन्ना भाई- एमबीबीएस डिग्रीधारियों ने कॉलेजों में टंगे ब्लैकबोर्डों का भार सम्भाल लिया। कुर्ता-बंडी धारियों की खुदगर्जी और लघुदर्शिता के कारण से भी गाॅड-फादर, आईएएस आफिसरान अपनी अप्रौढ़ सोच, बदनीयतियों एवं कुवृत्तियों से मदहोश होकर जैसी नीति निर्धारण करते रहे हैं; उसी का अंजाम है, राज्य के शिक्षा तंत्र में की वर्तमान स्थिति।

कारण चाहे जो कुछ भी हो, दायित्व चाहे जिसका भी हो पर इस यथार्थ को नकारा नहीं जा सकता कि विगत चार-पांच दशकों के दौरान राज्य का शिक्षा तंत्र, दिशाहीनता का शिकार रहा है। आज शिक्षातंत्र पर पूर्ण रूप से असामाजिक तत्वों का कब्जा हो चुका है। नतीजा यह है कि हमारे पास न तो पुराने आदर्श रह गए हैं और न कोई ठोस नवीन की रूप-रेखा। आज नई पीढ़ी के पास न कोई मानदण्ड है, न ज्ञान है और न अनुभव, जिससे वह अपने चिंतन और अपनी गतिविधियों को नियंत्रित कर सके। यह खतरे की स्थिति है। अगर इसका अवरोध और सुधार नहीं हुआ, तो इससे भयानक परिणाम निकल सकते हैं। 

ज्ञान विहीन डिग्रीधारी नई पीढ़ी अपने भविष्य के प्रति किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। कारण, उसकी सोच अप्रौढ़, अपरिपक्व व्यक्तित्व और आत्मविश्वास भीरुता  है। हम आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में संक्रान्ति की अवस्था से गुजर रहे हैं। इसे भी नकारा नहीं जा सकता कि आर्थिक सम्पन्नता जीवन और प्रगति का बुनियादी आधार है। 

लेकिन काश! नई पीढ़ी इस तथ्य को स्वीकारने का सामर्थ्य रखती कि जिन्दगी का मकसद वहीं तक खत्म नहीं होता। कठोर परिश्रम के बल पर अर्जित ज्ञान, डिग्री और अनुभव के प्रति पनपी अरूचि, नई पीढ़ी का दुर्बल पक्ष है। आज, राज्य के नवयुवक वर्ग के समक्ष जो प्रश्न है, वह केवल सैद्धान्तिक ही नहीं है, उसका सम्बन्ध उनकी जीवन की सारी प्रक्रिया से जुड़ा है और उसके समुचित निदान और समाधान पर ही उनका भविष्य निर्भर करता है। यह डिग्रीधारी नवयुवक वर्ग समाज में स्वयं को असहज/विकल महसूस कर रहा है जो उसके नैतिक पतन का संकेत है। सम्भ्रान्त तरुणों के जीवन से जुड़ी समस्याओं का एकमात्र समाधान उसकी सोच और व्यक्तित्व की परिपक्वता है जिसके आवश्यक है – गहन अध्ययन और विद्वान अध्यापक का स्नेह एवं मार्ग दर्शन। गुरू के नाम पर शिक्षा-शास्त्री तो अतीत का विषय बनकर रह गया है।

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जिगर के टुकड़े और सम्पूर्ण क्रांति : शैक्षणिक पाठशाला

‘जिगर के टुकड़े’ और ‘सम्पूर्ण क्रांति’ की देन है – बुद्धिजीवी-युग, जिसका अर्थ होता है – बुद्धि या तिकड़म से जीविका करनेवाला। आज विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में शिक्षक पदों पर शिक्षा-शास्त्री नहीं, बल्कि कोरे बुद्धिजीवियों ने अपनी पैठ बना रखी है। प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक छात्र-छात्राओं का पाठ्य-पुस्तक एवं ज्ञान-अर्जन से जुड़ी पुस्तकों का अध्ययन के प्रति विमुख होने का मुख्य कारण है,‌ बुद्धिजीवी शिक्षकों की विषय में अज्ञानता और खुली-किताब सिस्टम परीक्षातंत्र,‌ जिसे समाज और प्रशासन की स्वीकार्यता प्राप्त हो चुकी है। आचरण,‌ व्यवहार और सहिष्णुता में अप्रत्याशित गिरावट वर्तमान पीढ़ी का स्वयं अर्जन है या पूर्ववर्तियों का उपहार, अपने आप में एक सवाल बना हुआ है। यह त्रासदी नहीं तो क्या है कि जिन उपलब्धियों पर इन्हें नाज है,‌ वे उनकी प्राकृत नासमझी के सिवा कुछ और नहीं।

कुलाधिपतियों ने 12 यूनिवर्सिटी स्पेक्ट्रम के आबंटन में ‘हम भी’ की उद्घोषणा की। ‘हथौडा़ गिराने’ की संस्कृति से राज्य के विश्वविद्यालयों में भूचाल आया और बहुत कुछ हुआ जो नहीं होना चाहिए था। कुलाधिपति महोदय के सुर से सुर मिलाते कुलपतियों द्वारा नियुक्त प्रिंसिपलों ने भी स्वेच्छा से शंखनाद किया ‘हम भी’। राज्य के शिक्षा मंदिरों में घंटी का बजना बन्द हो गया और चहल-पहल परिसर उजाड़ हो गए। यह है बिहार की मेधावी पीढ़ी (?)। शिक्षा-परीक्षा के मानसिक, तनाव से मुक्त रखने का अधिकार इनके स्वयं का अर्जन है। इस वर्तमान पीढ़ी (?) को बिहार पर गर्व है, और बिहार के वर्तमान पीढ़ी पर। गजब का है, यह पारस्परिक नाज का रिश्ता। प्रश्न उठता है, क्या कल के बिहार के अनुरूप है इसकी वर्तमान पीढ़ी की बौद्धिक उपलब्धियां ? क्या यह कहना उचित होगा कि बौद्धिक दृष्टिकोण से आज की पीढ़ी बिहार को परिभाषित करती है?……”

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बहरहाल, आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के प्रबन्ध निदेशक नरेन्द्र कुमार झा कहते हैं कि “पटना कॉलेज व पटना विश्वविद्यालय की पत्रिकाओं/रिसर्च जर्नलों/पटना यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स बोर्ड/विश्वविद्यालय दर्पण आदि का प्रकाशन लगभग 53 वर्ष पहले से ही पूर्णतः बन्द था। हमने अभी से 10 वर्ष पूर्व इन पत्रिकाओं को पुनर्स्थापित किया। एक ओर हमने पटना विश्वविद्यालय की ‘मानविकी एवं समाज विज्ञान की शोध-पत्रिका’ (Annual Research Journal & Social Science) के प्रकाशन को 2011 में प्रारम्भ किया तो दूसरी ओर पटना कॉलेज की शोध-पत्रिका  “Current Studies (A Research of Patna College)– का पुनः आरम्भ आठ वर्ष पूर्व हुआ। शोधकर्ताओं की हेतु हमें केन्द्रीय स्तर पर ISS भी प्राप्त हो चुका है। पटना विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका Research Journal of Humanities & Social का ISSN 2277-2022 (UGC Approved List of Journal No. 64257) है जबकि पटना कॉलेज की शोध-पत्रिका Current Studies का ISSN 2347-9833 है।” 

नरेन्द्र कुमार झा आगे कहते हैं कि “पटना विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका का प्रति वर्ष का एक भोल्युम लगभग 600-700 पृष्ठों का होता है जबकि पटना कॉलेज की शोध-पत्रिका लगभग 225 पृष्ठों की होती है। हम लोग पटना विश्वविद्यालय की पत्रिका का अबतक 9 भोल्युम प्रकाशित कर चुके हैं। हमारे द्वारा प्रकाशित दोनों रिसर्च जर्नल/शोध पत्रिका यूजीसी से मान्यता प्राप्त करने वाला बिहार का अकेला जर्नल है। इन दोनों पत्रिकाओं के अतिरिक्त हम 10 साल से प्रति वर्ष पटना महाविद्यालय स्थापना दिवस (9  जनवरी) की तिथि को ‘पटना काॅलेज पत्रिका’ का भी प्रकाशन करते हैं। इसी तरह 2022 में हम पटना विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस (1  अक्टूबर) की तिथि को ‘विश्वविद्यालय दर्पण’ का प्रकाशन करके उसका लोकार्पण 1  अक्तूबर 2022  को ‘ह्वीलर सिनेट हाॅल’ में करने का प्रयास करेंगे।”

उनका कहना है कि  “आज भी (लॉक-डाउन की अवधि में भी) हम स्नातकोत्तर के उपरान्त शिक्षकों को अपने विषय की पुस्तक लिखने हेतु प्रेरित करते हैं। हमारे द्वारा उनकी पुस्तकों का प्रकाशन आज भी जारी है। कतिपय लेखक 3-5 वर्ष के अन्दर अपनी पुस्तकों के प्रकाशन के फलस्वरूप ‘पीएचडी’ भी प्राप्त करते हैं, मतलब, लेक्चरर को प्रोफेसर की उपाधि प्रदान होती है।” 

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बिहार के शिक्षाविदों, विद्वानों, विदुषियों से अपील करते नरेन्द्र कुमार झा कहते है कि “यदि शिक्षा से सम्बद्ध अपना आलेख हमें डाक पता अथवा व्हाट्सएप के माध्यम से प्रेषित करते हैं तो हम उसे उपयुक्त पत्रिका में प्रकाशित करने का यथासंभव प्रयास भी करेंगे। आपकी अभिरुचि पर हम मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी द्वारा प्रकाशित की गई महाविद्यालय/विश्वविद्यालय की पत्रिकाओं की कुछ तस्वीरें भी व्हाट्सएप कर सकते हैं।”

डाक पता:
प्रबन्ध निदेशक,
मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी,
तारा भवन, अशोक राजपथ, पटना – 800 004
दूरभाष: 0612-2678389 / मोबाईल: 89874-92351/89867-62237/व्हाट्सएप: 94717-84609
इ-मेल: nkjha48@gmail.com/ noveltyandco@gmail.com

ज्ञातव्य हो कि मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी मूलतः आजादी से पूर्व 1937-38 में ही संस्थापित हुआ था। उस समय हम देश की सबसे अच्छी लेखन सामग्रियों (कलम, पेंसिल, रोशनाई, कोरस कार्बन, कागज, रजिस्टर, फाइल इत्यादि) का क्रय-विक्रय करते थे। इन सामग्रियों को आठ वर्ष उपरान्त पूर्णतः विराम लगाकर सन 1945-46 में पुस्तकों के प्रकाशन का शुभारम्भ किया जो आज भी कायम है। इस संस्थान के माध्यम से बिहार में लेखकों का निर्माण किया गया, महाविद्यालयों के सेवाकर्मी बना । सन 1949-50 में एक अन्य शैक्षिक संस्थान मेसर्स अजन्ता प्रेस प्रा० लिमिटेड के माध्यम से विद्यालयों के भी सेवाकर्मी बने।

नरेंद्र कुमार झा कहते हैं: “आम नागरिक हेतु हमारा लक्ष्य एक ही था, है और आगे भी रहेगा – बिना किसी प्रचार-प्रसार के अपने शैक्षिक संस्थान के माध्यम से शैक्षणिक क्षेत्रों में सदैव सेवा कर्मी बने रहना। हम किस वर्ग/श्रेणी में कब-कब सफल या असफल हुए हैं वह हमारे नहीं रहने के बाद ही देश की जनता (विशेषकर मिथिलांचल भारतीय आम नागरिक) पूर्णतः जान सकेगी। मेरा मानना है कि कतिपय ‘विषयों’ का इतिहास उन्हीं लेखिकाओं/लेखकों से समयावधि में साझा किया जा सकता है जिसमें उन्हें अभिरुचि हो। आज के युग में साझा-परिचर्चा के अन्तर्गत सरकारी व गैर-सरकारी प्रबुद्ध शैक्षणिक संस्थानों के क्रियाकलापों का विषय प्रमुख है। खासकर इसलिए भी क्योंकि आजकल शैक्षणिक क्षेत्रों की वर्तमान युग की जायका से हमें  समाचार पत्र बखूबी अवगत कराते हैं। यदि हम अपने प्रदेश में निश्चित रूप से शैक्षणिक संस्थानों का ‘घोटाला’ सार्वजनिक कर समाजसेवी बनना चाहते हैं तो इसका पहला पथ है हमारी एकजुटता में एकता। हमें ईमानदारी से खबरों का अवलोकन करके देश के आम नागरिक के बीच हमारी शैक्षिक एकजुटता का संदेश पहुंचना भी अति आवश्यक है। 

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