नीतीश कुमार के ‘पेट के दांत के नीचे मसले गए आर सी पी’, अन्य कई नेता पंक्तिबद्ध ​(भाग-2) ​

​माइक्रोस्कोप से ​गहन​ अन्वेषण करते आर सी पी ​

नई दिल्ली / पटना :  ‘अंबपाली’ नाटक में मुजफ्फरपुर (बिहार) वाले हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर रामवृक्ष बेनीपुरी जी जब ‘अंबपाली’ के प्रेम और विश्वास में अरुण ध्वज बीमार हो जाता है और ‘अंबपाली’ उसे देखने तक नहीं आती है; फिर ‘मौसी’ अंबपाली की सहेली से कहती है: “तुम मर्दों के ह्रदय को नहीं जानती बेटी, वह जल्दी तपता नहीं है, जब एक बार तप गया तो खुद भी जलता है और दूसरों को भी जलाता है। अंबपाली की सहेली अरुण ध्वज की देखभाल करती है। जब बहुत समय निकल जाता है और अरुण ध्वज का शरीर ‘जीवित’ भी नहीं रहता, तब ‘अंबपाली’ का आती है।  उसे देख उसकी सहेल्ही कहती हैं: ‘मैं अपने सामर्थ भर तुम्हे चाहने वाले को, स्नेह, प्रेम करने वाले को ढ़ोती रही; अब इस लाश को तुम ढ़ो, समय का यही तकाजा है।’ 

बेनीपुरी जी का मुजफ्फरपुर में सिर्फ ‘लीची’ के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है। बेनीपुरी का मुजफ्फरपुर गवाह है, जब ‘लंगट सिंह’ तत्कालीन जॉर्ज फर्नांडिस को ‘सहारा’ दिए और बाद में जॉर्ज फर्नांडिस ही ‘लंगट सिंह’ को ही पटकन मार दिए। बिहार के राजनेताओं, खासकर जो सिंहासन पर बैठे होते हैं, उनको अपने ‘अनुयायियों’, ‘समर्थकों’, ‘मतदाताओं’ के प्रति इससे बेहतर सम्बन्ध नहीं होता है। ‘स्वहित’ में कुछ भी करने को तत्पर होते हैं। इतना ही नहीं, आज़ादी के बाद देश के बड़े-बड़े नौकरशाहों की हेंकड़ी, राजनेताओं की हेंकड़ी, मंत्रियों-संतरियों की हेंकड़ी दिल्ली के राजपथ से लेकर प्रदेशों के सचिवालयों की ओर उन्मुख सड़कों से मिलने वाली पतली गलियों से भागते, निकलते देखा है भारत का मतदाता। 

प्रथम चुनाव के बाद, चाहे दिल्ली के संसद में बैठने के लिए हो या फिर राज्यों की विधान सभाओं में, चाहे प्रथम आम चुनाव में 20 करोड़ मतदाता हों या आज का 135 करोड़ आवाम, सबों को अपनी-अपनी उंगलियों पर नाज है, जिस पर प्रत्येक पांच सालों में (अगर अन्य बातें सामान्य हों) रंगीन स्याही पोतते हैं, नाज है। कितने मोहतरमाओं और मोहतरमो को किल्ली के क़ुतुब मीनार की ऊंचाई से जमीं पर लुढ़कते, लोट-पोट होते देखी है देश की जनता। वह जानती है – आज उनका है तो कल उसका होगा। बिहार के राजनेता और बिहार के अधिकारियों के बाद राजनीतिक दुनिया के नए-अन्य अभ्यर्थीगण इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं। वे भूल जाते हैं कि वे ‘समय के सीसीटीवी’ के अधीन हैं। 

​आरसीपी (तस्वीर उनके फेसबुक पेज से)​

लेकिन एक बात समझ से पड़े है कि नितीश कुमार ही नहीं, पटना विधान सभा से लेकर, देश के सभी विधान सभाओं में और संसद में सबसे ऊँची कुर्सियों पर बैठे महानुभाव आखिर राजनीति के किस विद्यालय से शिक्षा ग्रहण करते हैं कि सभी उनके ‘अनुयायी’ और ‘पिछलग्गू’ ही बने रहते हैं, जब तक कोई मौका नहीं मिले। मौका मिलते ही ऐसा पटकन मारते कि जीवन पर्यन्त वह ‘भुक्तभोगी’ भूल नहीं पाता है। इसलिए देश के विद्वानों ने कहा है कि ‘राजनेताओं पर विश्वास नहीं करें। उनकी स्थिति हाथी दांत जैसी ही होती है। दिखाने के अलग, खाने के अलग।” बिहार के मामले में अब तक के सभी मुख्यमंत्रियों में बाबू नीतीश कुमार की राजनीति और उनके दांत बिलकुल अलग है। अगर ‘मुस्की’ लिए तो समझ जाएं कहीं ‘कहर’ गिरने वाला है; अगर हंसकर बगल में बैठाए तो गाँठ बाँध लें पेट वाला दांत अपना काम करना प्रारम्भ कर दिया है। बाबू आर सी पी भी नीतीश कुमार के पेट वाले दांत को नहीं देख सके, चाहे वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अव्वल अधिकारी ही क्यों न हों।    

क्योंकि अंततः वही हुआ जिसका कयास लगाया जा रहा था। खेल खत्म नहीं हुआ है, अभी तो खेल की बुनियाद पड़ी है। यह बुनियाद कितनी मजबूत है, वक्त के साथ सामने आएगा। चूंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत राज्यसभा चुनाव में खीरू महतो को प्रत्याशी घोषित कर अलग संदेश दिया है। इससे जदयू में आरसीपी सिंह को लेकर जारी संशय खत्म हो गया। पिछले कुछ दिनों से वह नीतीश की तारीफ में पुल बांध रहे थे ताकि बात बन जाये। लेकिन नीतीश और ललन सिंह ने अपना-अपना बदला कैसे ले लिया। इस तरह नीतीश की कटिंग सियासत के शिकारों में एक और नाम जुड़ गया आरसीपी सिंह का। कभी नीतीश के बेहद करीबी और सत्ता में शक्तिशाली हैसियत रखनेवाले आरसीपी सिंह को जिस तरह टिकट के लिए तरसाकर बेटिकट कर दिया गया वह उनके लिए कभी नहीं भूलने वाला अपमान माना जा सकता है। 

ये भी पढ़े   दिल्ली में पर्दे के पीछे​ उठापटक के बीच मोदी जी बना लिए अपनी सरकार

पटना के वरिष्ठ पत्रकार कमला कान्त पांडे का कहना है कि केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह को जदयू ने एक और बड़ा झटका दिया है। वह पटना के जिस बंगले में रहते थे उस बंगले को अब मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को आवंटित कर दिया गया है। आरसीपी जिस बंगले में रह रहे थे वह बंगला स्ट्रैंड रोड में स्थित मंत्री पूल का था और जदयू विधान पार्षद संजय कुमार सिंह उर्फ संजय गांधी के नाम से आवंटित था। अब यह बंगला बिहार सरकार ने मुख्य सचिव आमिर सुबहानी के नाम से अलॉट कर दिया है। विधान पार्षद संजय कुमार सिंह को अब 10 एम स्टैंड रोड बंगला अलॉट हुआ है। पटना में अबतक केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का आवासीय पता 7-स्टैंड रोड था। 

जब उनसे पूछा कि क्या सच में बाबू नीतीश कुमार के पेट में भी दांत है? पांडे जी कहते हैं: “बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ऐसे पहले किस्मत वाले नेता हैं जिन्होंने कई नेताओं को हाशिये पर धकेल उनके राजनीतिक कैरियर को खत्म कर दिया, वहीं कई की सियासी दुकान को नेस्तनाबूद कर दिया। इसके बावजूद उनका खुद का सियासी सितारा बुलंदी पर ही है। इसकी वजह है उनका जुबानी हमला और हंगामा से दूर रहना। इसकी बजाय वह मोहरों का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं और मोहरों को कब-कहां इस्तेमाल करना चाहिए, इसमें उनके सामने कोई नहीं टिक पाता. यही वजह है कि नीतीश कुमार से पंगा लेने की कोई कोशिश नहीं करता. क्षेत्र चाहे जो हो, नीतीश कुमार की इच्छा के खिलाफ कुछ नहीं होता। 

बहरहाल, जदयू ने राज्यसभा चुनाव के लिए अपने प्रत्याशी के नाम का एलान कर तीसरी बार राज्यसभा पहुंचने की उम्मीद लगाये आरसीपी सिंह पटना से दिल्ली करते रह गये और पार्टी ने खीरू महतो को अपना उम्मीदवार बनाकर झारखंड वासियों और जदयू समर्थकों को कुछ नया करने के लिए संदेश दिया है। फिलहाल खीरू महतो झारखंड जदयू के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वह झारखंड में 2005 से 2009 तक मांडू विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। जमीनी कार्यकर्ता हैं। समता पार्टी के जमाने से साथ रहे हैं। कुर्मी जाति से आते हैं, ऐसे में केन्द्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह को बड़ा झटका लगना स्वाभाविक तो है ही, यह नीतीश कुमार की दूरगामी रणनीति का हिस्सा भी है। उसी रणनीति के तहत राज्यसभा की दो सीटों में एक कर्नाटक से तो दूसरी झारखंड से प्रतिनिधित्व दिया है। बिहार, मणिपुर और झारखंड में पहले से जदयू ने झंडा गाड़ रखा है।. अब पार्टी का विस्तार कर्नाटक में अनिल हेगड़े और झारखंड में खीरू महतो के माध्यम से किया जायेगा। 

ये भी पढ़े   पटना कालेज @ 160 : ईंट, पत्थर, लोहा, लक्कड़, कुर्सी, टेबल, प्रोफ़ेसर, छात्र, छात्राएं, माली, चपरासी, प्राचार्य सबके थे रणधीर भैय्या (12)

पांडे जी बिहार की वर्तमान राजनीति का विश्लेषण करते कहते हैं ‘नीतीश कुमार के फैसले ने आरसीपी सिंह के भविष्य को ही दांव पर लगा दिया है। नियमानुसार केन्द्र सरकार में मंत्री बने रहने के लिए लोकसभा अथवा राज्यसभा का सदस्य होना जरूरी है। आरसीपी सिंह राज्यसभा सदस्य की हैसियत से केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। अब जबकि राज्यसभा में उनका कार्यकाल शेष नहीं रहा, अधिक दिनों तक मंत्री बना रहना संभव नहीं है। नियम के अनुसार उन्हें 6 महीने के अंदर लोकसभा अथवा राज्यसभा में से किसी भी एक सदन की सदस्यता नहीं हासिल कर पाने की स्थिति में उनका मंत्री पद चला जायेगा। संभवतः यही वजह रही कि राज्यसभा की सदस्यता के नवीकरण की उम्मीद में वह जदयू उम्मीदवार की घोषणा होने से पहले से ही पटना में डेरा जमा चुके थे।’ 

जबकि, उनके समर्थक लगातार उनसे मिलने पहुंच रहे थे। परंतु, राज्यसभा प्रत्याशी के नाम की घोषणा के साथ ही उनके खेमे में सन्नाटा छा गया। लगातार 12 साल तक राज्यसभा सदस्य रहे रामचन्द्र प्रसाद सिंह की उम्मीदवारी को लेकर खींचतान के बीच उनके समर्थक लगातार सक्रिय रहे। पटना में उनके समर्थक रणनीति बनाते रहे। उम्मीदवार की घोषणा से एक दिन पहले नीतीश-ललन-आरसीपी की मुलाकात हुई थी, ऐसे में किसी को उम्मीद नहीं थी कि आरसीपी सिंह का पत्ता कट जायेगा। लेकिन उम्मीदवारी का ऐलान होते ही आरसीपी सिंह खेमे में सन्नाटा छा गया, उनमें मायूसी छा गयी। टिकट नहीं मिलने पर चुप नहीं बैठे रहने की बात करने वाले समर्थक कोने में दुबक गए। आरसीपी सिंह भी सिर्फ इतना ही कह पाये- ‘यह पार्टी का निर्णय है’, इस एक लाइन के अलावा कुछ नहीं कहा। 

​आरसीपी (तस्वीर उनके फेसबुक पेज से)​

पांडेजी का कहना है कि नौकरशाह से राजनेता बने आरसीपी को अब भान हो गया होगा कि जो व्यक्ति समाजवादी विचारधारा के प्रखर प्रवक्ता और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, पीके सिन्हा, शम्भु शरण श्रीवास्तव जैसे राजनेताओं को बख्श नहीं सका तो आरसीपी सिंह किस खेत की मूली हैं। फाइनल राउंड में वह उस ललन सिंह से पिछड़ गये, जो नीतीश कुमार के साथ जुगलबंदी में हमेशा उनके आस-पास रहा करते थे। जदयू अध्यक्ष रहे आरसीपी सिंह का ललन सिंह से तनाव तब बढ़ा, जब भाजपा द्वारा जदयू के लिए छोड़े गये एक मात्र मंत्री पद पर आरसीपी ने कब्जा कर लिया। इसी के बाद उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा। उनकी जगह ललन सिंह जदयू के अध्यक्ष बने। इसी के बाद शुरू हुई राज्यसभा की ऐसी कहानी, जिसमें ललन सिंह ने आरसीपी सिंह को मात दे दी। 

संख्या बल कम रहने की वजह से इस बार जदयू के पास मात्र एक सीट पर जीत हासिल करने की ताकत बची थी। उस एक सीट पर झारखंड जदयू अध्यक्ष खीरू महतो को राज्यसभा भेजने का फैसला कर लिया गया। जबकि मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार में जदयू के इकलौते  मंत्री आरसीपी सिंह की राज्यसभा सदस्यता जुलाई 2022 में खत्म हो रही है। राजनीतिक हलकों में इस बात की खासी चर्चा है कि आरसीपी सिंह की विदाई तय करने में उनकी भाजपा से नजदीकी भी एक वजह रही। 

दरअसल, नरेन्द्र मोदी सरकार में जदयू का कोटा बढ़ाने के लिए नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को ही जिम्मेदारी सौंपी थी। वो पार्टी अध्यक्ष भी थे। राज्यसभा सदस्य भी थे। लेकिन बावजूद इसके वह नरेन्द्र मोदी सरकार को मना नहीं पाये। चूंकि दो मंत्री पद मिलने की सूरत में आरसीपी सिंह और ललन सिंह, दोनों ही केन्द्रीय मंत्री बनते, लेकिन आरसीपी सिंह भाजपा को झुका नहीं पाये।  खुद केन्द्रीय मंत्री बने भाजपा से नदजीकी दिखाने लगे। दरअसल, इन सबमें अगर किसी एक व्यक्ति का फायदा है, तो वो हैं ललन सिंह। आरसीपी सिंह की विदाई से ललन सिंह को जदयू कोटे से केन्द्रीय मंत्री का पद मिल सकता है। इसके साथ ही नीतीश कुमार के ‘इगो’ को भी कुछ हद तक सुकून पहुंचा होगा। 

ये भी पढ़े   रेणुजी के बहाने: 'ये आकाशवाणी पटना है....भयानक जल जमाव के कारण पटना 'पनिया' गई है, 'तंत्र' ढ़ीले हो गए हैं

ज्ञातव्य हो कि आरसीपी सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा के उत्तरप्रदेश कैडर के पूर्व अधिकारी हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश के ही कुर्मी नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा ने नीतीश कुमार से ‘मिलवाया’ था। बिहार में नीतीश कुमार के सत्ता संभालने के बाद आरसीपी सिंह लम्बे वक्त तक उनके प्रधान सचिव रहे थे। नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के मुस्तफापुर निवासी आरसीपी सिंह भी कुर्मी जाति से आते हैं। राजनीति में आने के लिए उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति साल 2010 में लेकर जदयू में शामिल हुए थे। तब उन्हें नीतीश कुमार के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बैठाया गया था। हालांकि नीतीश कुमार पर आरसीपी सिंह के माध्यम से क्षेत्रवाद (नालन्दा) और कुर्मी जातिवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे रहे थे। इसकी वजह से उन्हें अक्सर आरसीपी सिंह के लिए ढाल बनना पड़ता था। 

लेकिन जब आरसीपी का भाजपा के प्रति झुकाव बढ़ने लगा और वो भाजपा से जदयू के लिए सही मोलतोल नहीं कर पाये एवं खुद के लिए मंत्रालय लेकर चुप हो गये, तो फिर नीतीश कुमार शांत कैसे बैठ सकते थे? वैसे भी, नीतीश कुमार के बारे में कभी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद कहा करते थे, ‘उसके तो पेट में भी दांत है ’-. मतलब यह कि जिस तरह पेट के अंदर के दांत नहीं दिखाई देते, उसी तरह नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है इसका आभास किसी को नहीं हो पाता। 

पांडेजी कहते हैं: ‘राज्यसभा का टिकट कटने का दर्द आरसीपी सिंह के चेहरे पर उस समय साफ दिखा जब वह उम्मीदवार नहीं बनाये जाने के बाद पहली बार मीडिया से मुखातिब हुए। हालांकि, उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिससे लगे कि वह टिकट कटने से गहरी पीड़ा में हैं. उन्होंने कहा- ‘हम लम्बे समय तक नीतीश कुमार के साथ रहे हैं, उनके साथ काम किया है। नीतीश कुमार जो भी निर्णय लेंगे वो मेरे पक्ष में ही रहेगा। मुझे पार्टी में बहुत सम्मान मिला है, इसके लिए मैं उनका आभार प्रकट करता हूँ। मैंने 12 साल तक संगठन में काम किया है। मैंने हरेक गांव में बूथ स्तर पर कार्यकर्ता बनाया है। आपको आज हर गांव में जदयू के कार्यकर्ता मिलेंगे। मैंने इस पार्टी को बिहार की जड़ों तक पहुंचाया। हमारे शुभचिंतक हर गांव में हैं। जदयू की सबसे बड़ी ताकत संगठन है। मैं सांसद नहीं तो क्या, संगठन में ही रहकर काम करूँगा। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा- ‘मैंने कोष्ठों की संख्या 33 की थी, इसे घटाकर 12-13 कर दिया गया है। हर चीज को बढ़ाया जाता है न कि घटाया जाता है.’

हे प्रभु ‘उन्हें’ माफ़ कर देना – ​आरसीपी (तस्वीर उनके फेसबुक पेज से)​

बहरहाल, आरसीपी सिंह ने जहां नीतीश कुमार की तारीफ की वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा की खिंचाई भी की। इसके साथ ही आरसीपी सिंह केन्द्र सरकार में जदयू के प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन(आनुपातिक प्रतिनिधित्व) के दावे के मामले में भाजपा के साथ खड़े दिखे। उन्होंने भाजपा के गठबंधन का मजबूत सहयोगी बताते हुए कहा कि 303 सांसद होने के बावजूद भाजपा ने उन्हें मंत्री बनने का मौका दिया, यह भाजपा का बड़प्पन है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here