सब ‘अंक का खेल’ है: नीरज चोपड़ा ’87 मीटर’ भाला इसलिए फेंक पाए क्योंकि भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में ’78 मंत्री’ हैं

पहला मंत्रिमंडल

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी के विजय चौक पर देश के चयनित राजनेता इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि टोकियो ओलम्पिक में हरियाणा का नीरज चोपड़ा 87 + मीटर भाला इसलिए फेंक सका क्योंकि दिल्ली के केंद्रीय मंत्रिमंडल में 78 मंत्री हैं। यह महज “अंक का खेल” है। 

बहरहाल, कोई आठ सौ अठ्ठासी महीने पूर्व जब देश का पहला 14-सदस्यीय केंद्रीय मंत्रिमंडल बना था, तब तत्कालीन राजनेता शायद सोचे भी नहीं होंगे कि आने वाले दिनों में भारत के मंत्रिमंडल में “सम्मानित” मंत्रियों की संख्या देश की आज़ादी के “डायमंड जुबली” में  आज़ादी-वर्ष की संख्या से भी अधिक हो जाएगी । आधिकारिक तौर पर आगामी 15 अगस्त को देश के 134 करोड़ लोग अपनी स्वतंत्रता का 74 वां वर्ष समाप्त कर, 75 वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। और विगत 7 जुलाई, 2021 को केंद्रीय मंत्रिमंडल में उठापटक के बाद अब मंत्रियों की कुल संख्या 78 पहुँच गयी है। 

गणित विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या विगत टोकियो ओलम्पिक में नीरज चोपड़ा द्वारा संपन्न “जेवलिन थ्रो” की संख्या का ही “विपरीत” रूप है। टोकियो ओलम्पिक में नीरज चोपड़ा 87. 58 मीटर भला फेंके थे। विगत माह केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जोड़-घटाव-गुणांक-भाग के बाद मंत्रियों की संख्या 78 हो गई है जिसमें “कैबिनेट” स्तर के 31 मन्त्री है, दो स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री हैं और 45 राज्य मंत्री हैं। 

15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिलने के बाद और 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान लागू करने के बाद 1952 में भारत का पहला आम चुनाव सम्पन्न हुआ और देश में पहली बार 17 अप्रैल 1952 को लोक सभा का गठन हुआ जो 4 अप्रैल 1957 तक का अपना कार्यकाल पूरा किया। पहले आम चुनाव के बाद से अब तक 17 लोक सभा का गठन हुआ है, स्वाभाविक है मंत्रियों का, चाहे “कैबिनेट” स्तर के हों या “राज्य” स्तर के, न्यूनतम 17 बार गठन अवश्य हुआ है।  और यही कारण है कि पहले मंत्रिमंडल में जहाँ मंत्रियों की संख्या 14 थी, आज 78 पहुँच गयी है। 

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मोदी जी का मंत्रिमंडल

भारत के 15 अगस्त, 1947 में आज़ाद होने के बाद देश के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 15 सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया था। इस मंत्रिमंडल में सभी वर्गों और समुदायों को उचित स्थान दिया गया, उन्हें भी जो विचारधारा के स्तर पर जवाहरलाल नेहरू के विरुद्ध थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार संभाला। 

पहले मंत्रिमंडल में चौदह मंत्रियों को शामिल किया गया था जिन्होंने 15 अगस्त 1947 से कार्य करना आरम्भ कर दिया था। उस मंत्रिमंडल में  जवाहर लाल नेहरु (प्रधानमंत्री), सरदार बल्लभ भाई पटेल (गृह मंत्री और सूचना व प्रसारण मंत्री), डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (खाद्य एवं कृषि मंत्री), डॉ. अबुल कलाम आजाद  (शिक्षा मंत्री), डॉ. जॉन मथाई (रेलवे एवं परिवहन मंत्री), सरदार बलदेव सिंह (रक्षा मंत्री), आर.के. शणमुखम शेट्टी (वित्त मंत्री), डॉ. बी आर अम्बेडकर (विधि मंत्री), जगजीवन राम (श्रम मंत्री), राजकुमारी अमृत कौर (स्वास्थ्य मंत्री), सी.एच. भाभा  (वाणिज्य मंत्री), रफी अहमद किदवई (संचार मंत्री), डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री) और वी.एन. गाडगिल (कार्य, खनन एवं  ऊर्जा) 

विदित हो कि भारत की अंतरिम सरकार 2 सितंबर 1946 को नव निर्वाचित संविधान सभा से गठन किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विधानसभा में सभी सीटों में से 69 प्रतिशत के साथ एक बड़ा बहुमत रखा, जबकि मुस्लिम लीग ने विधानसभा की लगभग सभी सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित रखीं। छोटे दलों के कुछ सदस्य भी थे, जैसे कि अनुसूचित जाति फेडरेशन, को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी। 

जून 1947 में, के प्रांतों से प्रतिनिधिमंडल सिंध, पूर्वी बंगाल, बलूचिस्तान, पश्चिम पंजाब, और यह उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत वापस ले लिया, फार्म के लिए पाकिस्तान की संविधान सभामें बैठक कराची। 15 अगस्त 1947 को, भारत का प्रभुत्व तथा पाकिस्तान का प्रभुत्व स्वतंत्र राष्ट्र बन गए, और संविधान सभा के सदस्य जो कराची वापस नहीं गए थे भारत की संसद। मुस्लिम लीग के केवल 28 सदस्य ही भारतीय सभा में शामिल हुए। बाद में, 93 सदस्यों को मनोनीत किया गया रियासतें। इस प्रकार कांग्रेस ने 82% बहुमत प्राप्त किया।

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1952 : पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी मंत्रिमंडल की सूची

खैर। 14 अगस्त, 1947 को भारत के पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी “प्रेस नोट” के अनुसार “The New Cabinet, which will function from August 15th 1947, will consist of the following members. Their portfolios are indicated opposite their names.” और देश के 17 वे लोक सभा और संभवतः 25 वें मंत्रिमंडल आते-आते ट्विट्टर पर सम्पूर्ण दस्तावेज भारत के 135 करोड़ लोगों के लिए ट्वीट किया जाता है, ताकि कोई भी खबर से अछूता नहीं रहे, भले उनके संसदीय क्षेत्र के लोक सभा सांसद को मंत्रिमंडल में ढुकाया गया हो अथवा नहीं। 

उन दिनों पत्र सूचना कार्यालय में जिन तथ्यों को “टाइप” किया जाता था और जो अधिकारी – प्रारम्भ से अंत (निर्गत) तक – उन तथ्यों से जुड़े होते थे, उन सबों का नाम टाइप किये गए दस्तावेजों पर उद्धृत होता था। यानी, गलती होने पर कोई अपनी जबाबदेही से मुकर नहीं सकते थे या फिर कन्धा नीचे कर अपनी जबाबदेही को अपने अधीन कार्य करने वाले छोटे कर्मचारी या अधिकारी के कंधे पर नहीं गिराते थे। इस कहानी के साथ प्रकाशित वह दस्तावेज गवाह है। 

1951-52 को हुए आम चुनावों में मतदाताओं की संख्या 17,32,12,343 थी, जो 2014 में बढ़कर 81,45,91,184 हो गई है। 2004 में, भारतीय चुनावों में 670 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (यह संख्या दूसरे सबसे बड़े यूरोपीय संसदीय चुनावों के दोगुने से अधिक थी) . सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) ने लोकसभा चुनावों के खर्चों पर एक रिसर्च प्रकाशित की है. इसके अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 में कुल 60 हजार करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिए गए. इस लिहाज से देखें तो औसतन हर वोट के पीछे 700 रुपये खर्च किए गए.

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बहरहाल, आंकड़ों के अनुसार भारत के प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से वर्तमान वित्तीय वर्ष में कुल 350 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो विगत वित्तीय वर्ष से कोई तीन फीसदी अधिक है। जबकि देश के संसद के निचली सदन के 543 सदस्यों के वेतन और अन्य खर्चों पर 176 करोड़ + रुपये खर्च किये जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, बजट-काल तक प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र को 372 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, जो घोषणा काल आते-आते 350 करोड़  रूपये में बदल गया। 

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