भारत के 130 करोड़ लोग, 9110 लाख मतदाता और सम्मानित श्री मोदीजी का रंग-बिरंगा बंडी 

भारत के 130 करोड़ लोग, 9110 लाख मतदाताओं की औकात और सम्मानित श्री मोदीजी का रंग-बिरंगा बंडी 

आजकल सभी लोग देश में ज्ञान बाँट रहे हैं। जैसे ही आप ऑक्सीजन की बात करेंगे, सोसल मीडिया पर चतुर्दिक टनाटन पोस्ट होने लगेंगे, नाम, पता, फोन नंबर गिरने लगेंगे, रास्ता बनाते लगेंगे। कोई कहेंगे हल्दी पियो, कोई कहेंगे पोटली बांधो, कोई कहेंगे आपके पास सिलिंडर हो तो फलाने जगह दौड़ जाइए। विस्वास तो इतना क्विंटल देंगे, जितना देश के नेता लोग फेंकते हैं।

अरे भाई !!! एक आदमी 40 सेकेण्ड से अधिक सांस नहीं रोक सकता और शरीर में जब ऑक्सीजन-स्तर गिरने लगता है, तब जीवन और मृत्यु का सवाल हो जाता है। कोरोना-19  देव के कारण शरीर में ऑक्सीजन-स्तर में उसी तरह गिरावट होती है जैसे समाज में लोगों का चरित्र। जब स्वयं पर विश्वास नहीं हो तो दूसरों को विश्वास नहीं दिलाएं, क्योंकि विश्वास जब टूटता है तो हुज़ूर पूछिए नहीं – ह्रदय के अंदर क्या होता है। 

बहरहाल, मैं कोरोना वायरस संक्रमण से देश में जो स्थिति है, कोई टिका-टिपण्णी नहीं करूँगा। सिर्फ आप सबों से, चाहे आप रिक्शा चलाते हों, रेड़ी चलाते हों, सड़क के किनारे जूता सिलते हों, किसी पंचायत का मुखिया हों, किसी जिले का जिलाधिकारी हों, किसी थाने का प्रभारी हो, किसी जिला का पुलिस अधीक्षक हों, प्रदेश सरकार में मंत्री हों, प्रदेश का मुख्य मंत्री हों, दिल्ली सचिवालय में बांस पर चढ़े ऊँचे अधिकारी हों, दिल्ली के राजपथ के दोनों तरफ स्थित भवनों में केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री हों या देश के प्रधान मंत्री हों – अपनी सुरक्षा, अपने परिवार, परिजनों की सुरक्षा खुद करें। खुद जीवित रहेंगे तो दूसरों को जीवित रख पाएंगे। क्योंकि जब कोविड साहेब मगज में और फेंफड़े में बैठते हैं पालथी मारकर, तब 100 सांस भी नहीं लेने देंगे। ऑक्सीजन पी जाते हैं शरीर का और जब लोगों से ऑक्सीजन की मदद की बात करेंगे तो “गच्चा” दे देंगे, सच नहीं बोलेंगे। खैर। 

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बहरहाल, हम तो प्रधान मंत्रीजी का रंग-बिरंगा बंडी देखकर हल्दी-चन्दन-कपूर-लौंग को सोचते लाबी सांस लेते रहिये, छोड़ते रहिये। कोरोना जी खुद भाग जाएँगी, क्योंकि भारत के 130 करोड़ लोग, 9110 लाख मतदाताओं की औकात नहीं है ऐसे वस्त्र पहनने की। मेरी तो है नहीं। 

जब श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी भारत के राष्ट्राध्यक्ष थीं, तब भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय और राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी तस्वीरों को हम इकठ्ठा करते थे। इसके दो कारण थे –  एक: पता नहीं कब किस तस्वीर की जरुरत हो जाय क्योंकि पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी तस्वीरों की ‘औकात’ ही कुछ और होती है। यह पत्रकार और छायाकार दोनों स्वीकार करेंगे। दूसरा कारन: महामहिम राष्ट्रपति के अलमारी में साड़ियों का संकलन देखना था, एक कहानी के लिए। यह देखना चाहते थे की महामहिम अपनी साड़ियों को “पुनः पहनती” हैं अथवा नहीं। या फिर, इतने दिनों के बाद पहनती हैं की देखने वालों के मानस-पटल पर यह बात डिलीट हो गया हो कि ‘मैडम यह साड़ी फलाने दिन पहनी थीं।” 

साड़ियों के मामले में दक्षिण भारत की सुश्री जयललिता का भी जबाब नहीं था। मुझे याद है सुश्री जयललिता एक बार जब दिल्ली आयी थीं, उनके साथ क्या-क्या नहीं आया था। उस ज़माने में जो पत्रकार बंधु कहानियां लिखे थे, याद कर सुश्री जयललिता की आत्मा को शांति अवश्य देंगे। साड़ी क्या, चप्पल और सैंडिल की संख्या भी गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड के लायक था। 

श्रीमती  प्रतिभा जी के बाद देश के दो राष्ट्रपति महोदय वस्त्र के मामले में किसी भी प्रकार का “रिकार्ड”, चाहे ‘लघु’ हो अथवा ‘दीर्घ’ में विस्वास नहीं करते दिखाई दिए। सम्मानित प्रणब मुखर्जी जब बहुत प्रसन्न होते थे, माँ भगवती की पूजा-अर्चना करते थे, तब धोती-कुर्ता-अंगवस्त्र गज़ब का दीखता था। भारत ही नहीं, विश्व के छायाकार उस तस्वीर को संकलित करना चाहते थे। वर्तमान महामहिम की तो बात ही अलग है। 

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लेकिन महामहिम से नीचे (पद और प्रोटोकॉल में), यानी देश के प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की तो बात ही “अलबेला” है। माननीय मोदी जी “वस्त्र के मामले में दिल्ली के रायसीना हिल पर जमते ही, राजपथ पर भ्रमण-सम्मलेन करते ही, हमेशा ‘न केवल छायाकारों को आकर्षित करते रहे बल्कि वाद-विवाद में भी रहे। ग़जबे का पसंद है मोदीजी का, जहाँ तक वस्त्रों का सवाल है। एक शुरुआत किया हूँ फिर से पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी माननीय श्री नरेंद्र मोदीजी की तस्वीरों को इकठ्ठा करना – ग़जबे, ग़जबे रंग-बिरंगा बंडी का, कुरता का, ठंढी में कोट का। आप भी देखिये। भारत का 99.98 फ़ीसदी आवाम और 100 फ़ीसदी मतदाताओं की तो औकात नहीं होगी पहनने की। हाँ, माननीय श्रीमोदी जी को पहने देखकर आत्मा तो ज़ुरा सकता है। 

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