दिल्ली में पर्दे के पीछे​ उठापटक के बीच मोदी जी बना लिए अपनी सरकार

​मोदी जी की सरकार - मोदी जी का परिवार

गणेश प्रसाद झा

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह साफ हो गया कि भाजपा को केवल 240 सीटें ही मिलेंगी। उस समय श्री मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह और जेपी नड्डा ने विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया कि हम विपक्ष में बैठेंगे। और गठबंधन के साथियों को फोन करके बता दिया गया कि आप अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इंडी अलायंस को सरकार बनाना चाहिए। सबसे पहले चिराग पासवान और शिंदे ने कहा कि हम आपके फैसले में शामिल हैं और हम भी विपक्ष में बैठने के लिए तैयार हैं। ध्यान दें कि मोदी जी पार्टी कार्यालय में दोपहर चार बजे आने वाले थे, लेकिन वे देर शाम आए। देर से आने का कारण यही था।

दिल्ली के सत्ता के गलियारों में रहने वाले मेरे एक मित्र ने यह रोमांचक और बेहद नाटकीय घटनाक्रम, जो एक आम आदमी की समझ से परे है, मुझे 5 जून को ही बता दिया था। मोदी जी ने दोपहर में नायडू और नीतीश को फोन किया था ताकि उन्हें यह बता सकें कि आप अपना देख लीजिए, हमें कोई आपत्ति नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले को सुनकर दोनों हक्के-बक्के रह गए। दोनों ही ठंडे पड़ गए क्योंकि उन्हें इंडी दलों की स्थिति का पता था। मोदी जी के इस निर्णय की खबर इंडी दलों को भी पहुंचा दी गई।

कांग्रेस के अध्यक्ष खडगे जी और जयराम रमेश को तो झटका ही लग गया क्योंकि वे मानसिक रूप से इस स्थिति का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे। फिर भी उन्होंने यह खबर बाहर न आने देते हुए केवल शरद पवार को नीतीश और नायडू से बात करने के लिए कहा। उनकी विनती पर शरद पवार ने नीतीश कुमार को फोन किया।

नीतीश कुमार ने शरद पवार से पूछा कि आपको कैसे पता चला कि मोदी विपक्ष में बैठने को तैयार हो गए हैं? शरद पवार ने नीतीश से कहा कि मुझे यह नहीं मालूम। मुझे केवल आपसे संपर्क में रहने के लिए कहा गया है। तब नीतीश जी ने शरद पवार को सब कुछ बताया और यह भी पूछा कि सरकार बनाएंगे तो सभी के खाते में 8500 रुपये देने होंगे और संपत्ति का वितरण पिछड़े वर्ग के लोगों को करना होगा। यह दो बड़े वादे कांग्रेस ने लोगों से किए हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री कौन होगा? यह सुनकर पवार को समझ में आया कि उन्हें अंधेरे में रखा गया है। उन्होंने सबसे पहले अखिलेश यादव को फोन किया और बताया कि भाई, ऐसा हुआ है और कांग्रेस हमें अंधेरे में रखकर कुछ साजिश कर रही है। इतने पर पवार ने खडगे जी को फोन करके नाराजगी जताई कि आपने मुझे क्यों नहीं बताया कि भाजपा विपक्ष में बैठने को तैयार है? खडगे ने पवार से कहा कि यह खबर उड़ते-उड़ते आई थी इसलिए नहीं बताया। पवार ने कहा कि पहले प्रधानमंत्री तय करें और फिर आगे बढ़ें। इसबीच, अखिलेश यादव ने भी खडगे को फोन करके कहा कि मुझसे पूछे बिना कुछ नहीं करना, नहीं तो मैं अकेला अलग बैठ जाऊंगा। यह खबर इंडी गठबंधन में फैल गई, जबकि उस समय भी नतीजे आ ही रहे थे, लेकिन इस खबर से हर जगह बिल्कुल हड़कंप मच गया।

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इंडी दलों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि प्रति व्यक्ति 8500 रुपए हर महीने और अमीर लोगों के पैसे लेकर उनका वितरण पिछड़े वर्ग में कैसे किया जाए, क्योंकि कांग्रेस ने जल्द से जल्द पैसे देने का वादा किया था। पर्दे के पीछे जबरदस्त उठापटक चल रही थी। इंडी दलों को तो छोड़ें, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को भी उम्मीद नहीं थी कि मोदी जी और अमित शाह ऐसा फैसला लेंगे। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू ने भाजपा के बड़े नेताओं से फोन पर संपर्क किया और उन्हें आश्वासन दिया कि हम भाजपा के साथ ही रहना चाहते हैं, मोदी जी को तुरंत सरकार बनानी चाहिए।भाजपा की 240 सीटें और पासवान, शिंदे समेत दूसरे छोटे सहयोगी दलों को मिलाकर संख्या 264 हो जाती थी। इतना मजबूत विपक्ष होते हुए हम इंडी गठबंधन के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि मोदी जी और अमित शाह विपक्ष में बैठकर कोई भजन तो नहीं करने वाले थे, यह तय था। इधर मोदी जी और अमित शाह को जयंत चौधरी के जरिए इंडी गठबंधन के भीतर की गड़बड़ियों का पता चल गया था।

उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में भाजपा ने मुस्लिम वर्ग में यह अफवाह फैला दी कि कांग्रेस का सरकार बन गई है और बैंक में सभी को 8500 रुपए मिलेंगे। इस वजह से बंगलोर और लखनऊ में बैंकों में मुस्लिम महिलाओं की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं। इंडी गठबंधन के नेताओं के बीच सवाल खड़ा हो गया कि अगर हम सरकार बनाते हैं, तो हमें वादे के मुताबिक महिलाओं को तुरंत 100000 रुपये प्रति वर्ष देने होंगे, भले ही हम समान संपत्ति के वितरण को कुछ समय बाद करने का वादा कर सकते हैं। लेकिन यह 8500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह कैसे और कहां से देंगे? इस तरह प्रधानमंत्री बनना मतलब सूली पर चढ़ने जैसा होगा। महिलाओं की आधी जनसंख्या को ही मानें तो प्रति महिला एक लाख रुपये के हिसाब से साठ लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष होते हैं। और इधर तो लोग बैंकों में भी आना शुरू कर चुके हैं। भाजपा ने हवा फैला दी कि बैंक जाओ और पैसे ले लो।

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इस पर यह समाधान निकला कि फिर ऐसा करें कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू हमें मतलब इंडी दलों को समर्थन दें, कांग्रेस भी बाहरी समर्थन दिखाएगी और सरकार में शामिल नहीं होगी। मतलब ये पैसे देने और संपत्ति के समान वितरण करने का सवाल ही नहीं उठेगा। कांग्रेस बता सकेगी कि हमारी सरकार नहीं है, हमारी बात नहीं मानी जाती, इसलिए हम सरकार में शामिल नहीं हुए। इससे कांग्रेस फिर से अपनी जनता के बीच अच्छी छवि बनाए रख सकेगी। कांग्रेस एक बार फिर चित भी मेरी पट भी मेरी का खेल खेल रही थी।

इस पर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ने साफ कहा कि कांग्रेस का बाहर से समर्थन देने का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। उन्होंने ऐसे ही चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, गुजराल को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था और फिर अचानक वापस भी ले लिया था और इन सभी की सरकारें कुछ ही दिनों में गिर गई थीं। हम आपके साथ नहीं आएंगे, और वहां इतनी मजबूत विपक्ष होने पर मोदीजी शांत नहीं बैठेंगे। इतना ही नहीं, बिहार में भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लेगी यह अलग बात है। और बिहार में तेजस्वी का मुख्यमंत्री पद का दावा पहले से ही था, जिससे नीतीश कुमार के सामने इधर कुआं उधर खाई जैसी स्थिति थी। सोचिए, नतीजे आने के दौरान कितनी तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम पर्दे के पीछे चल रहा था। इसी वजह से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ठंडे पड़ गए और उन्होंने मोदीजी और अमित शाह से सरकार बनाने का अनुरोध किया और उनको समर्थन देने का आश्वासन दिया।

भाजपा नेतृत्व मन ही मन हंस रहा था। यह सब जानबूझकर नाटक किया गया था। उन्हें एक तरफ इंडी दलों और सभी हितधारकों को दिखाना था कि हर किसी को 8500 रुपये प्रति माह और संपत्ति का समान वितरण का उनका वादा कितना फर्जी है। साथ ही, यह दिखाना था कि यह आने वाले इंडी गठबंधन सरकार के लिए कैसे गले की फांस है। उसी समय, एनडीए के दो प्रमुख घटक दल नीतीश और नायडू की बार्गेनिंग पॉवर कम करनी थी, इसलिए हाथ ऊपर उठा देने का नाटक किया गया।नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का दिमाग दो घंटे में ठिकाने पर लाना पहला काम था, जो सफल रहा। फिर अमित शाह ने दूसरा बम फेंका कि सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी पूरी तरह भाजपा की होगी, मतलब गृह, वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय हमारे पास रहेंगे। मरता क्या न करता, दोनों ने तुरंत सहमति दे दी। उसके बाद रात साढ़े सात बजे नरेंद्र मोदी भाजपा कार्यालय पहुंचे और उन्होंने सरकार बनाने का ऐलान किया। मोदी जी का भाषण कितना आत्मविश्वास से भरा था, यह आप याद करें।

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इस तरह तेज राजनीतिक घटनाक्रम पर्दे के पीछे चल रहा था, जिसकी वजह से नीतीश कुमार बार-बार एनडीए की बैठक में कहते रहे कि सरकार जल्दी बनाओ और 9 जून की बजाय 8 जून को शपथ लो और हमारा टेंशन दूर करो। इधर 5 जून और 6 जून को भी लखनऊ और बंगलोर में लोग बैंकों और कांग्रेस कार्यालयों में पैसे लेने आते रहे। भाजपा ने हवा फैला दी थी कि जाओ पैसे मिल रहे हैं।

इसीलिए शाम को इंडी गठबंधन की बैठक में यह निर्णय हुआ कि हम कोई तोड़-फोड़ न करें, नहीं तो हमें लोकक्षोभ का सामना करना पड़ेगा और बदनामी होगी और फिर जनता हम पर विश्वास नहीं करेगी। राहुल गांधी की जल्दी से 8500 रुपये वाली घोषणा ऐसी विपत्ति बन गई। इसलिए खडगे जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम सही समय आने पर भाजपा सरकार को हराएंगे और हम कोई सरकार नहीं बनाएंगे।

इसे चाणक्य नीति कहते हैं, एक पत्थर से दो पक्षी मारना। एनडीए में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, इन दोनों पक्षों को ठिकाने लगा दिया गया। फिर 10 जून को घोषित मंत्रिमंडल के बंटवारे से पूरी स्थिति पर मोदी और शाह का नियंत्रण साबित होता है। यह अटलजी और आडवाणी जी की भाजपा नहीं है, यह ध्यान में रखते हुए हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसे ऑफेंसिव डिफेंस कहते हैं।इस बार भी मोदीजी पूरी ताकत के साथ एक्शन में हैं।

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