मुंगेर / पटना /नई दिल्ली : बिहार ही नहीं, अविभाजित भारत में शिक्षा के विकास के मामले में दरभंगा के महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह का योगदान ‘अक्षुण’ है, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन पटना विश्वविद्यालय के मामले में मुंगेर के जमींदार देवीकी नंदन प्रसाद सिंह के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता है। दुर्भाग्य से, प्रदेश के लोगों ने प्रदेश की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक विकास के मामले में अपने प्रदेश के राजाओं और जमींदारों की भूमिका को ‘भुला’ ही नहीं, अपितु मानसिक तौर पर ‘दफना’ भी कर दिया। आगामी वर्षों में हम पटना विश्वविद्यालय के ‘व्हीलर सीनेट हॉल’ का सौ वर्ष मनाएंगे।
अपने ही प्रदेश में उन लोगों को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे हकदार थे। यह अलग बात है कि प्रदेश की गलियों, चौराहों पर राजनेताओं की मूर्तियां चतुर्दिक लगे हैं। लेकिन ‘शिक्षा’ के मामले में शैक्षणिक संस्थानों में उन लोगों के नामों को नेश्तोनाबूद कर दिया गया। अगर ऐसा नहीं होता तो पटना विश्वविद्यालय के ‘सीनेट’ और ‘सिंडिकेट’ में उन राजाओं और जमींदारों का स्थान आज भी ‘सुरक्षित’ रहता। परन्तु जब प्रदेश का उप-नेतृत्व ‘नवमीं कक्षा’ उत्तीर्ण नेता करे, ‘सीनेट’ और ‘सिंडिकेट’ का अर्थ और भावार्थ समझना नामुमकिन है।
राजा देवीकी नंदन प्रसाद सिंह के आज के वंशज श्री शरद सिंह से बात करने पर उन्होंने कहा: “पटना विश्वविद्यालय हमारे पूर्वजों के ऐतिहासिक योगदान के निमित्त तत्कालीन व्यवस्था द्वारा चिकित्सा महाविद्यालय और साइंस कॉलेज में दो-दो सीट दिया गया था। पहले यह स्थान पटना विश्वविद्यालय सीनेट के लिए निमित्त हुआ, परन्तु तत्कालीन व्यवस्था से अनुरोध करने पर दो-दो स्थान दो कालेजों में सुरक्षित रखा गया। पिछले कई वर्षों से हम सभी प्रदेश के राज्यपालों की लिखते आये हैं, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो पाया। कोई दो दशक पहले सरकार के द्वारा आरक्षण को समाप्त कर दिया गया। स्वाभाविक है सरकारी निर्णय के बाद हम सभी हताश हो गए।”
सूत्रों का कहना है कि दरभंगा के महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह पटना के गंगा-तट पर करीब 15 एकड़ और अधिक भूमि पर बने ऐतिहासिक ‘दरभंगा हॉउस’ का सम्पूर्ण परिसर के साथ-साथ भविष्य में प्रदेश में शिक्षा और विज्ञान को अधिकाधिक मजबूत बनाने के लिए करीब सात लाख रूपये का दान स्वाधीनता मिलने के करीब आठ साल बाद सन 1955 में किये। लेकिन मुंगेर के जमींदार देवीकी नंदन प्रसाद सिंह दरभंगा के महाराजाधिराज से कोई 29-वर्ष पूर्व पटना विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रों, शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के कार्यों में कोई बाधा न हो, ऐतिहासिक ‘सीनेट हॉउस’ बनाने में ‘अकेला योगदान’ किये।
पटना विश्वविद्यालय के एक अवकाश प्राप्त प्राध्यापक का कहना है कि “जब प्रदेश में शिक्षा को अपाहिज कर गंगा में डुबकी लगाने के लिए छोड़ दिया गया, आप सीनेट और सिंडिकेट की बात करते हैं। आज ‘सीनेट’ और ‘सिंडिकेट’ का अर्थ और भावार्थ बताने वालों की भी किल्लत है शैक्षणिक संस्थानों में। हम किस संस्कार और गरिमा की बात करते हैं? पटना विश्वविद्यालय का सीनेट हॉल अपने ही प्रदेश के एक नागरिक का देन है जिन्होंने आज से सौ वर्ष पहले शिक्षा के महत्व को समझा। शिक्षाओं की बैठकी का महत्व समझा। दीक्षांत समारोह का महत्व समझा। आज अगर विश्वविद्यालय अथवा प्रदेश की सरकार उस स्थान पर मॉल या वातानुकूलित बाजार खोलने की बात कर दे तो यकीन कीजिये प्रदेश के लाखों लोग पैसे फूंकने को तैयार हो जाएंगे । आज शिक्षा का कोई मोल नहीं है। शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। प्रदेश में जो भी पढ़ने पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं हैं वे अपने जीवन निर्माण के लिए, पढ़ने के लिए प्रदेश से पहले ही बाहर निकल जाते हैं।”
पटना विश्वविद्यालय के आज के छात्र- छात्राएं, शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारी इस बात से अनभिज्ञ होंगे कि आज से सौ साल पहले, यानी सन 1917-1922 के कालखंड में पटना विश्वविद्यालय का ‘अस्थायी कार्यालय’ पटना उच्च न्यायालय का परिसर था। पटना उच्च न्यायालय भवन से ही पटना विश्वविद्यालय का प्रशासनिक कार्य चलता था। सुनकर, पढ़कर अजीब तो लगेगा, लेकिन सच यही है।
इतना ही नहीं, स्थान के अभाव में संकायों (फैकल्टी) की बैठक न्यू कॉलेज (पटना कॉलेज) के विशाल कक्ष में हुआ करता था। साथ ही, पटना विश्वविद्यालय सीनेट की बैठक पटना सचिवालय के सम्मेलन कक्ष में होता था । लाट साहेब (राज्यपाल) का ‘दरबार कक्ष’ का इस्तेमाल पटना विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के लिए किया जाता था।
वह तो मुंगेर के जमींदार राजा देवीकी नंदन प्रसाद सिंह घन्यवाद के पात्र थे जिन्होंने पटना विश्वविद्यालय में एक ऐसे विशाल कक्ष के निर्माण में मदद किया जो उस कालखंड में ही नहीं, बल्कि आने वाली शैक्षिक पीढ़ियों के लिए एक उपहार स्वरुप सिद्ध हुआ । यह विशाल कक्ष सभी दृष्टि से तत्कालीन छात्र-शिक्षकों की कठिनाईओं को दूर कर दी।
मुंगेर के जमींदार राजा देवीकी नंदन प्रसाद सिंह पटना विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल का निर्माण कार्य का सम्पूर्ण खर्च वहां किये। उस कालखंड में इसके निर्माण पर कुल 125000/- रुपये खर्च हुए थे। करीब एक हज़ार लोगों की बैठने की क्षमता वाले इस सीनेट हॉल का निर्माण कार्य सन 1926 में पूरा हो गया। इस विशाल हॉल का नाम ‘सर हैनरी व्हीलर’ के नाम पर रखा गया जो उस समय अविभाजित बिहार-उड़ीसा प्रान्त के राज्यपाल थे। सर हैनरी सन 1926 में ‘व्हीलर सीनेट हॉल’ का लोकार्पण किया।
इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण उस समय हुआ था जब मातृभूमि की आज़ादी के लिए देश के नौजवान संगठित हो रहे थे। इसी समय भगत सिंह किसानों और श्रमिकों को रैली के माध्यम से अपने हक़ के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज बुलंद किये थे। यह अलग बात है कि आज 92-साल बाद भी भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी, जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए फांसी के फंदों को चूमा, ‘शहीद’ का दर्जा नहीं मिला। खैर।
ज्ञातव्य है कि व्हीलर सीनेट हॉल अपने अस्तित्व काल में लार्ड माउंटबेटन, सरदार वल्लभभाई पटेल, सरोजनी नायडू, सी. डी. देशमुख, विजया लक्ष्मी पंडित, जयप्रकाश नारायण, जगदीश चंद्र बॉम सी.वी. रमन, सत्येन्द्रनाथ बोस जैसे महान हस्तियों को अपने छत के नीचे छात्रों को, शिक्षकों को सम्बोधित करते देखा है। अपने निर्माण के एक दशक बाद 17 मार्च, 1936 को इसी सीनेट हॉल में रवीन्द्रनाथ टैगोर का अभिनन्दन समारोह का भी आयोजन हुआ था। आज़ादी के पूर्व वर्ष में जवाहरलाल नेहरू को भी इसी हॉल में तत्कालीन सांप्रदायिक दंगों के कारण शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था।
पटना विश्वविद्यालय की स्थापना अक्टूबर, 1917 में बिहार और उड़ीसा के अलग प्रांत के निर्माण के बाद की गई थी। बिहार में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक सकारात्मक कदम उठाया गया है। जुलाई 1919 में पटना कॉलेज में विभिन्न कला विषयों में स्नातकोत्तर कक्षाएं शुरू की गईं। उच्च वैज्ञानिक शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए 1927 में साइंस कॉलेज एक अलग इकाई बन गया।
सीनेट हॉल किसी भी विश्वविद्यालय का एक अभिन्न अंग होता है । पटना शहर के मध्य अशोक राजपथ पर स्थित व्हीलर सीनेट हॉल न केवल पूर्वी भारत के लोगों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के क्षेत्र में अन्य इमारतों की तुलना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि विगत सौ वर्षों में इस विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं-शिक्षकों को गौरवान्वित भी किया है । गर्मियों में बढ़ते उच्च तापमान को ध्यान में रखते हुए, इमारत में ऊंची छत, विशाल ऊंचे खंभे और पर्याप्त वेंटिलेशन के साथ सौंदर्यपूर्ण रूप से डिजाइन किया गया था। बढ़िया गैलेरिया अतिरिक्त, हॉल में पुरानी लकड़ी की मेज और पुराने बिजली के पंखे इसकी शोभा बढाती थी।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उचित देख-रेख नहीं होने के कारण सन 2014 और उससे पहले की अवधि में, व्हीलर हॉल जीर्ण-शीर्ण स्थिति में था । बहरहाल, बिहार सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (राज्य शाखा) ने सीनेट हॉल, पटना कॉलेज और दरभंगा हाउस को अत्यधिक मूल्यवान विरासत संरचनाओं के रूप में घोषित किया ताकि उनका नियमित रखरखाव हो सके ।
क्रमशः……..