नितीश बाबू तो खुद्दे ‘बैशाखी’ पर है, यानी ‘कोउ नृप होई हमै का हानि, चेरी छांड़ि कि होइब रानी’

पटना के चौहट्टा पर 130 - वर्ष पुराना खुदाबक्श खां ओरिएण्टल पब्लिक लाइब्रेरी। तस्वीर श्री राजीव कुमार @राजन का है।

पटना: पटना के चौहट्टा पर (अशोक राज पथ) कोई 130 वर्ष पुराना खुदाबक्श खां ओरिएण्टल पब्लिक लाइब्रेरी परिसर में सूई के बराबर छिद्र करने का अर्थ होगा – हम इतिहास को मिटा रहे है – उपरगामी सड़क के निर्माण के लिए, ‘निराधार सोच वालों’ को ‘आधार’ देने के लिए । यह प्रदेश के शैक्षिक वातावरण पर एक कुठाराघात होगा। सुन रहे हैं सम्मानित श्री नितीश कुमार जी। कल 13 अप्रैल है, यानि “बैशाखी” उत्सव और लोगबाग कह रहे हैं कि नितीश बाबू तो खुद्दे ‘बैशाखी’ पर है, यानी ‘कोउ नृप होई हमै का हानि, चेरी छांड़ि कि होइब रानी।’

बिल्ली के माथे के बराबर की चौड़ाई है पटना के अशोक राज पथ का। मगध के सम्राट अशोक के नाम पर है यह सड़क। राजनेताओं की मानसिकता देखिए की सम्राट अशोक के नाम वाले इस सड़क को लगभग राजापुर (गुलमी घाट) के आस-पास से पटना साहेब के दीदारगंज तक ही सिमित रखा। दीदारगंज का अपना इतिहास है “याक्षिणी” को लेकर। यह सड़क मूलतः गंगा के सामानांतर थी। अब तो नितीश बाबू गंगा को ही गंगा-पार भेज दिए हैं और अशोक राजपथ और गंगा के बीच मुंबई जैसा नरीमन पॉइंट बना रहे हैं। कहते हैं लोगबाग प्रातःकालीन भ्रमण-सम्मलेन करेंगे, व्यायाम करेंगे। नितीश बाबू पहले अपने लोगों की , अधिकारियों की मानसिकता बदलें।

नितीश बाबू का उपरगामी-सड़क योजना से इस ऐतिहासिक पुस्तकालय के एक हिस्से को तोड़ा जायेगा। कहा जा रहा है वहां खम्भा खड़ा करना है। सरकार में जो भी महानुभाव हैं, वे अपने प्रदेश के कितने पुस्तकालय में गए होंगे, यहाँ तक की अपने विद्यालय और महाविद्यालय के पुस्तकालयों में भी; यह तो वे ही जानते होंगे। लेकिन इतना पक्का है कि वे खुदाबख्स पुस्तकालय नहीं आये होंगे। इस भवन का लोहे वाला प्रवेश द्वार को नहीं छुए होंगे, अलमारी, किताब, पांडुलिपियों को छूने की बात पर चर्चा ही नहीं करें। दीवार से सटी गंगा की ओर जाने वाली गली के नुक्कड़ पर चाय नहीं पीये होंगे।

अगर शिक्षा के क्षेत्र में नेताओं की भूमिका की बात करें तो बिहार में कोई भी राजनेता का पुस्तकालय के निर्माण के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं है। हो भी कैसे? यह तो आज की पीढ़ी ही नहीं आने वाली पीढ़ियां भी शोध करेगी की बिहार विधान सभा में उनके पूर्वजों के कितने अनपढ़, अशिक्षित, अज्ञानी लोगों को चुनकर विधान सभा और विधान परिषद् में भेजा। वैसी स्थिति में, खुदाबख्स ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी क्या, सच्चिदाननंद सिन्हा पुस्तकालय का महत्व भी नहीं समझेंगे।

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पटना के चौहट्टा पर 130 – वर्ष पुराना खुदाबक्श खां ओरिएण्टल पब्लिक लाइब्रेरी। तस्वीर श्री राजीव कुमार @राजन का है।

कोई 243 सदस्यों की संख्या वाले विधान सभा में अगर किसी दिन यह प्रश्न मंत्री और सम्मानित सदस्यों के पूछा जाय की विधान सभा भवन की जमीन किसकी थी? या पटना उच्च न्यायालय की जमीन किसकी थी? तो प्रश्न सुनते ही अधिकांश माननीय सदस्यगण को गश आ जायेगा, चारो-खाने चित्त हो जायेंगे और चिचियाने लगेंगे “पढ़ल-लिखल के बुलाब हो….. पढ़ल-लिखल के, जानकार के बुलाब।” बेचारे नितीश कुमार अकेले क्या करेंगे, वह भी 243 सदस्यों वाली विधान सभा में 43 विधायकोण के लेकर। जो खुद वैशाखी पर हो, वह क्या करेगा?

वजह है: आज़ाद भारत में, बिहार में विगत 75 सालोँ में कोई भी राजनेता, मुख्य मंत्री पुस्तकालय तो नहीं ही बनाये। उनके लिए पुस्तकालय महत्वहीन है। अब अगर खुदाबख्स ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़कर उपरगामी सड़क के लिए पाया बनाएंगे, तो इससे अधिक तो वे सोच ही नहीं सकते। अब बात रही, पटना के लोगों का, बिहार के लोगों का, विद्वानों का, विदुषियों का, छात्रों का, छात्राओं का – वे सभी इस राजनीतिओक दौर में मानसिक रूप से इतने स्लोथ हो गए हैं। इसलिए तो श्री वसंत भर्ती जी ने अपने ब्लॉग में भी लिखा है: “आजाद भारत में जब हम दस या बीस रुपये में प्रकृति-प्रदत्त पानी की एक बोतल भी खरीद कर पीते हैं और शौचालय जाने हेतु कम-से-कम दो या पांच रुपए की राशि अदा करते हैं तो यह भी हमारी सरकार के गाल पर मारा हुआ एक झन्नाटेदार तमाचा है परन्तु यह भी हमारी सरकार पर अपना कोई असर नहीं छोड़ पाता क्योंकि यह सरकार तो अन्धी ही नहीं बल्कि बहरी भी होती है और इतना ही नहीं हमारी सरकार संवेदनहीन भी अव्वल दर्जे की होती है. दासी मन्थरा ने महारानी कैकेई को लक्षित करते हुए बड़ी माकूल बात कही थी-“कोउ नृप होई हमै का हानि, चेरी छांड़ि कि होइब रानी.”

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पटना के चौहट्टा पर 130 – वर्ष पुराना खुदाबक्श खां ओरिएण्टल पब्लिक लाइब्रेरी। तस्वीर श्री राजीव कुमार @राजन का है।

खुदाबक़्श पुस्तकालय की शुरुआत मौलवी मुहम्मद बक़्श जो छपरा के थे उनके निजी पुस्तकों के संग्रह से हुई थी। वे स्वयं कानून और इतिहास के विद्वान थे और पुस्तकों से उन्हें खास लगाव था। उनके निजी पुस्तकालय में लगभग चौदह सौ पांडुलिपियाँ और कुछ दुर्लभ पुस्तकें शामिल थीं। 1876 में जब वे अपनी मृत्यु-शैय्या पर थे उन्होंने अपनी पुस्तकों की ज़ायदाद अपने बेटे को सौंपते हुये एक पुस्तकालय खोलने की ईच्छा प्रकट की। इस तरह मौलवी खुदाबक्श खान को यह सम्पत्ति अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुई जिसे उन्होंने लोगों को सम्रपित किया। खुदाबक़्श ने अपने पिता द्वारा सौंपी गयी पुस्तकों के अलावा और भी पुस्तकों का संग्रह किया तथा 1888 में लगभग अस्सी हजार रुपये की लागत से एक दो मंज़िले भवन में इस पुस्तकालय की शुरुआत की और 1891 में 29 अक्टूबर को जनता की सेवा में खुदाबक्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के रूप में समर्पित किया। उस समय पुस्तकालय के पास अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी की चार हजार दुर्लभ पांडुलिपियां थीं।

सन 1969 में भारत सरकार ने संसद में पारित एक विधेयक के जरिये खुदा बख्श लाइब्रेरी को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के तौर पर मान्यता दी। लाइब्रेरी में फ़िलहाल अरबी, फारसी, संस्कृति और हिंदी की लगभग 21,000 से अधिक पांडुलिपियां और 2.5 लाख से अधिक किताबें हैं- उनमें से कुछ बहुत ही दुर्लभ हैं।

श्री पुंज प्रकाश के अनुसार, यह एक ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ है। अब, एलिवेटेड रोड के लिए नीतीश सरकार की योजना के तहत इसके ऐतिहासिक कर्जन रीडिंग हॉल को तोड़ने की तैयारी की जा रही है। इतिहास में दर्ज़ है कि 1891 में जब इसे खोला गया था तब खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी अपनी तरह की ऐसी पहली लाइब्रेरी थी जिसमें आम लोग जा सकते थे। करीब 12 साल बाद भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन पटना में गंगा किनारे स्थित इस लाइब्रेरी का दौरा करने पहुंचे तो इसमें संग्रहित पांडुलिपियों को देखकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इसके विकास के लिए धन उपलब्ध कराया। आभार जताने के लिए लाइब्रेरी की तरफ से 1905 में कर्जन रीडिंग हॉल की स्थापना की गई। उसके पश्चात यह रीडिंग हॉल पढ़ने की मुख्य जगह बन गई।

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पटना के चौहट्टा पर 130 – वर्ष पुराना खुदाबक्श खां ओरिएण्टल पब्लिक लाइब्रेरी। तस्वीर श्री राजीव कुमार @राजन का है।

लेकिन आज इसे एक एलिवेटेड रोड के निर्माण के बिहार पुल निर्माण निगम (पुल निर्माण निगम) ने तोड़ने का प्रस्ताव नीतीश कुमार के पास भेजा है और अगर सरकार ने मंजूरी दे दी तो इस रीडिंग हॉल और लाइब्रेरी के कुछ अन्य हिस्सों का अस्तित्व खत्म हो सकता है। प्रस्ताव में इसके अलावा पुस्तकालय के एक छोटे बगीचे को हटाने की भी तैयारी है। अब जहां तक सवाल आमजन का है तो पता नहीं समाज को हुआ क्या है कि ज़्यादातर को लाइब्रेरी से कोई लेना देना भी नहीं है और अब वहां जाकर पढ़ने वालों की संख्या लगभग ना के ही बराबर है।

कई सालों से पटना का ही सिन्हा लाइब्रेरी बंद पड़ा है और वहां की पुस्तकें सड़ रही हैं, लेकिन शायद ही इसके लिए कभी कोई आंदोलन हो। शर्म आती है आज यह सोचकर कि जिस प्रदेश में किसी काल में पूरी दुनियाभर से लोग ज्ञान अर्जित करने के लिए दिन-महीनों की पैदल यात्रा करके महीनों-महीना प्रवेश की प्रतीक्षा में आंखें बिछाए रहते थे, उसी मगध में अब एक कोई ढंग की पब्लिक लाइब्रेरी नहीं है और जो एकाध किसी प्रकार अपना अस्तित्व बचाने में क़ामयाब है, उसे भी तोड़ने-फोड़ने का प्रस्ताव पारित किया जा रहा है। अगर इसका पुरज़ोर और लगातार विरोध न हुआ तो सरकार में एक से एक ऐसे महाज्ञानी बैठे हैं, जिन्हें एक सभ्य समाज के लिए पुस्तक और लाइब्रेरी के महत्व का ज्ञान उतना ही है जितना आजकल के नेता और जनता को लोकतंत्र का है।

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