पटना : बिहार ही नहीं, देश का शायद ही कोई विद्यालय अथवा महाविद्यालय होगा जिसके छात्र-छात्राएं “पूर्ववर्ती” होने के बाद भी अपने विद्यालय अथवा महाविद्यालय के शैक्षणिक स्वास्थ और वातावरण के प्रति संवेदनशील रहते होंगे, जिससे अगली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो सके और महाविद्यालय का नाम स्वर्णक्षरों में उद्धृत रह सके। बिहार की राजधानी पटना का 159-साल पूराना पटना कॉलेज अपने पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं की ‘असम्वेदनशीलता’, संस्थान के प्रति उनकी ‘उदासीनता’ का एक जीवंत दृष्टान्त है। नहीं तो अपने ज़माने का “पूर्व का ऑक्सफोर्ड” कहा जाने वाला पटना कालेज को नैक द्वारा सी-ग्रेड में नहीं रखा गया होता। यह अलग बात है कि आज ही नहीं, आज़ाद भारत में भी यह कालेज असंख्य और अनन्त छात्र-छात्राओं को महज एक विद्यार्थी से देश के विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के सर्वश्रेष्ठ नेता, अधिकारी और न्यायमूर्ति दिया – किसी से पलटकर नहीं देखा, पूछा।
सन 1857 के आज़ादी के आन्दोलन के शंखनाद के कोई पांच साल बाद 1863 को पटना के गंगा नदी के किनारे इस शैक्षणिक संस्थान को स्थापित किया गया था। दुर्भाग्य यह है कि कभी अपने में स्वर्णिम इतिहास समेटे पटना कॉलेज ने समाज और शिक्षा जगत को काफी कुछ दिया, लेकिन कॉलेज की गौरवशाली परंपरा को बरकरार रखने के लिए छात्र, शिक्षक, सरकार और समाज मिलकर भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके। अब पटना कालेज “पूर्व का ऑक्सफोर्ड नहीं रहा। यह अफ़सोस की बात है।
वैसे कालेज के अधिकारीगण, शिक्षकगण कहते हैं कि जो हुआ उसे दोहराया नहीं जाए क्योंकि नैक का ग्रेडिंग किसी कॉलेज को आंकने का अंतिम मापदंड नहीं है। इसकी एक निर्धारित प्रक्रिया और फॉर्मेट है। उन्होंने कहा कि नैक से बेहतर ग्रेड के लिए 16 प्वाइंट पर काम करने की जरुरत होती है। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि पटना काॅलेज आज भी बिहार में उच्च शिक्षा का सबसे पुराना केन्द्र है। यह बिहार का प्राचीनतम और भारत का पांचवा प्राचीनतम काॅलेज है। इस कॉलेज की स्थापना अंग्रेज और भारतीयों के सहयोग से हुई। जुलाई 1835 में पटना हाई स्कूल की स्थापना हुई।
1839 में गवर्नर जनरल लार्ड ऑकलैंड के आदेश से पटना में एक केन्द्रीय कॉलेज को स्थापित करने की योजना बनी और 1841-42 में पटना हाई स्कूल में कुछ बदलाव करके इस योजना को साकार रूप प्रदान किया गया। 26 सितम्बर 1844 को इस स्कूल कॉलेज का दर्जा प्राप्त हो गया। किन्तु ढाई वर्ष पश्चात ही यह कॉलेज बंद हो गया क्योंकि इस कॉलेज को चलाने में पटनावासियों ने रुचि नहीं ली। 1856-57 में पुनः कॉलेज खोलने की योजना असफल रही। योजना बनाने वालों के बीच आपसी मतभेद रहा। फलस्वरूप अप्रैल 1858 में पटना हाई स्कूल भी बंद हो गया।

कहा जाता है कि बिहार में आधुनिक शिक्षा की स्थापना दिवस के अवसर पर 28 अप्रैल 1858 को पटना हाई स्कूल के बदले पटना में एक जिला स्कूल खोलने की योजना बनी और पटना हाई स्कूल का नाम ही पटना जिला स्कूल पड़ा। इस तरह, एक लम्बा सफर तय करने के पश्चात् पटना जिला स्कूल को पटना कॉलेज के रूप में स्थापित करने का सरकारी आदेश 15 नवम्बर 1861 को पास हुआ। इसी आदेश के अनुसार पटना जिला स्कूल अगस्त 1862 में पटना कॉलेजिएट स्कूल का रूप ले लिया। इसी पटना कॉलेजिएट स्कूल को 9 जनवरी 1863, शुक्रवार के दिन कॉलेज का दर्जा प्राप्त हो गया। इसका नाम गाॅवर्नमेंट कॉलेज हो गया। 1862 ईस्वी में शिक्षा निदेशक के आदेश से प्राचार्यों और शैक्षणिक सेवा करने वालों को अधिक वेतनमान निर्धारित किए गए। 1863 से काॅलेज के हेडमास्टर को प्रोफेसर इंचार्ज कहा जाने लगा। पटना कॉलेज में (माह:अप्रैल) 1863 में 312 छात्र पढ़ते थे । 19 फरवरी 1867 से यहाॅ॑ केवल कालेज स्तर की पढ़ाई होने लगी और पटना कॉलेज के प्रथम प्राचार्य जे० के० रोजर्स बने। जे० डब्ल्यू० मैक्रिण्डल 1880 तक प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहे।
1865 के बाद पटना काॅलेज ने सैकड़ों विद्वान प्रशासक, देशभक्त, अधिकारी, वकील, जज, पत्रकार और लेखक पैदा किया। देखते-देखते, ऐसी स्थिति हो गई कि बिहार का लगभग प्रत्येक बड़ा आदमी पटना कॉलेज का छात्र रहा। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह, सर्वोदय नेता जय प्रकाश नारायण, महान कवि और साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर, अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ सच्चिदानन्द सिन्हा, सर सुल्तान अहमद, प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा, सैयद हसन अस्करी, योगेन्द्र मिश्र, जगदीश चन्द्र झा, विष्णु अनुग्रह नारायण, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गोरखनाथ सिंह, केदारनाथ प्रसाद, आदि पटना कॉलेज के छात्र रहे।
पटना काॅलेज में पंडित राम अवतार शर्मा (संस्कृत), डाॅ अजीमुद्दीन अहमद (अरबी और फारसी), सर यदुनाथ सरकार (इतिहास), डाॅ सुविमल चन्द्र सरकार (इतिहास), डाॅ डी०एम० दत्त (दर्शन शास्त्र), डाॅ ज्ञानचन्द्र (अर्थशास्त्र), डाॅ एस०एम० मोहसिन (मनोविज्ञान), एस०सी० चटर्जी (भूगोल), परमेश्वर दयाल (भूगोल), विश्वनाथ प्रसाद (हिन्दी), नलिन विलोचन शर्मा (हिन्दी) जैसे राष्ट्र प्रसिद्ध शिक्षक थे।
पटना कॉलेज में बी०ए० की पढ़ाई 1865 से होने लगी। 1864 -1865 में जे०के० रोजर्स और चार शिक्षक थे। प्रोफेसर ए०ओ० बैंक रसायन शास्त्र, भौतिकी और गणित पढ़ाते थे। पटना कॉलेज में इस तरह वकालत, विज्ञान, इंजीनियरिंग और कला की पढ़ाई होती थी। कैलाश चन्द्र बंदोपाध्याय प्रथम प्राइवेट छात्र थे जिन्होंने 1869 में एम०ए० पास किया। वे एमए, मानसिक एवं नैतिक दर्शन, कला में प्रतिष्ठा (Honours of Arts) की उपाधि लेने वाले पहले विद्यार्थी थे जो द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।
1905 में पटना कॉलेज का महत्व बढ़ने लगा। कलकत्ता विश्वविद्यालय से इसे काफी अनुदान मिलने लगा। इस कॉलेज के प्रोफेसर डी०एन० मल्लिक भौतिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश भेजे गए। शिक्षकों की संख्या बढ़ने लगी। 1907 में पटना कॉलेज में करीब 120 छात्र थे जिनमें से 90 बिहारी थे। 1862-63 में यहाँ एक पुस्तकालय की स्थापना हुई। 1866 में पटना कॉलेज के पुस्तकालय में करीब चार हजार पुस्तकें थीं। 1899 में पटना कालेज पुस्तकालय में पुस्तकालय अध्यक्ष की नियुक्ति की गई।

मई 1964 से पटना कॉलेज में वकालत की पढ़ाई होने लगी। मई 1864 में नोबिन चन्दर डे वकालत पढ़ाने के लिए प्राध्यापक नियुक्त किए गए। वे बीए, बीएल, विधि व्याख्याता पटना कॉलेज के पहले भारतीय प्रोफेसर थे। 1868 में वकालत पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 57 थीं। 1881 में छात्रों की कुल संख्या 162 और मार्च 1900 में 205 हो गई। 1909 आते-आते पटना कॉलेज का अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व हो चुका था। इस वर्ष के छात्रों की संख्या इतनी बढ़ी कि बहुतों का यहां नामांकन नहीं हो पाया था।
1919 से भारतीय प्रशासनिक सेवा में भारतीय छात्र भी सम्मिलित होने लगे। 1921 में नीलमणि सेनापति और रशिदुज जमन तथा 1922 में अभय पद मुखर्जी आई०सी०एस० पास किए। ये लोग पटना काॅलेज के ही छात्र थे। 1912 में बंगाल से हटकर बिहार और उड़ीसा अलग प्रान्त बना दिए गए। अक्टूबर 1917 को कलकत्ता विश्वविद्यालय से अलग पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। 1913 में ही प्रथम बार पटना कॉलेज के उत्तर में स्थित गंगा घाट पर वायसराय लॉर्ड हार्डिंग आए और इस अवसर पर एक ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। गांधीजी के नेतृत्व में प्रारम्भिक स्वतंत्रता संघर्ष में इस कॉलेज के छात्रों की भूमिका अति सराहनीय रही। गांधीजी के कहने पर कॉलेज के कुछ छात्रों ने 1920 के आन्दोलन में भाग लिया और जय प्रकाश नारायण उन्हीं छात्रों में से एक थे।
1940 में शिक्षकों के मामले में दूसरे चरण की शुरुआत हुई। इस वर्ष तक पटना कॉलेज के अधिकांश में शिक्षकों का कार्यकाल समाप्त हो गया। कई शिक्षकों की मृत्यु हो गई। इसी समय से विद्वानों के नए झुंड से पटना काॅलेज पुनः विकास की ओर बढ़ चला। इन विद्वानों में प्रमुख थे – प्रोफेसर वाई०जे० तारापोरेवाला, प्रोफेसर गोरखनाथ सिन्हा, प्रोफेसर काली किंकर दत्ता, श्री जगदीश नारायण सरकार, डाॅ सुधाकर झा, प्रोफेसर एस०के० घोष, के० अहमद, एफ० रहमान, डी०एन० दत्त, कार्तिक नाथ मिश्र, प्रोफेसर महेन्द्र प्रताप, डाॅ ज्ञानचन्द्र, डाॅ इकबाल हुसैन, प्रोफेसर ए० मन्नान, प्रोफेसर टी०बी० मुखर्जी, प्रोफेसर सैयद हसन अस्करी, प्रोफेसर विमान बिहार मजुमदार, नर्मदेश्वर प्रसाद, ए०एस० अल्टेकर, वी०पी० सिन्हा, एच०एन० घोषाल, अजीमुद्दीन अहमद, एस०आर० बोस, रमोला नन्दी, हरिमोहन झा, धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी इत्यादि। छात्राओं की संख्या 1932-33 में 2 थी जो बढ़कर 1936 में 15, 1938-39 में 32, 1939-40 में 42 और 1951-52 में 62 थी।
पटना कॉलेज शिक्षा का एक महान केन्द्र बन चुका था। 1937 में इस कॉलेज की लाइब्रेरी में पुस्तकों की संख्या 15000 से ज्यादा थी। छात्रों के लिए एक मैगजीन रूम की व्यवस्था 1939 में की गई। 1950 में पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या 37000 हो गई। 1928 में पटना काॅलेज के स्टाफ-क्लब में चाय मिलने लगी। 1930 से हॉकी-क्रिकेट आदि खेले जाने लगे। 1949 से यहां के छात्र एन०सी०सी० का प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे। बाहर से आने वाले छात्रों को रहने के लिए एक छात्रावास की व्यवस्था प्रथम बार की गई जो कॉलेज के पास में ही स्थित था। इसके प्रथम अधीक्षक संस्कृत के प्रोफेसर छोटे राम तिवारी थे। इसमें आवासियों की संख्या 30 थी । पटना काॅलेज के शिक्षा-स्तर को ऊंचा उठाने में छात्रावासों की भूमिका अति प्रशंसनीय रही। मिंटो हिन्दू हॉस्टल का ‘एस्से क्लब’ काफी प्रसिद्ध संस्था थी। सभी छात्रावासों में एक पुस्तकालय की व्यवस्था की गई। छात्रावास के अंतेवासियों की सामाजिक भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। मिंटो मुस्लिम होस्टल में प्राचार्य जैक्सन के नाम पर एक पुस्तकालय की स्थापना 1912 में हुई। इसी पुस्तकालय के कारण 1929 में मिंटो मुस्लिम होस्टल का नाम जैक्सन होस्टल हो गया।
1944-45 में पटना कॉलेज के चार छात्रावासों – मिंटो, जैक्सन, इकबाल और रानी घाट छात्रावास में जितने कमरे थे उनमें से मात्र 30 या 35 प्रतिशत कमरों में ही छात्र रहते थे और शेष खाली पड़ा रहता था। धीरे-धीरे छात्रावासों में रहने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि होने लगी और 1949 में कॉलेज परिसर में ही न्यू हाॅस्टल नामक नया छात्रावास बना।
पटना कॉलेज के प्राचीन गौरवमय गाथा को जितना लिखा जाए उतना कम होगा। आज के पटना काॅलेज में शायद ही 1940-50 का पटना कॉलेज दिखाई दे। 1940-50 में कहा जाता था कि “पटना कॉलेज विद्या का पवित्र मंदिर है। इस मंदिर में आकर श्रद्धा और विनय के व्यवहार से अपने व्यक्तित्व को निखारने का सुअवसर नहीं गंवाना चाहिए”। पटना कालेज देश के प्राचीन शिक्षण संस्थानों में से एक है। साथ ही यह सह-शिक्षा का भी बिहार में सबसे पुराना केन्द्र है।
इस वर्ष स्थापना का 160 वर्ष पूरा कर रहा हैं । विगत 159 वर्षों में इस कॉलेज ने जो कीर्तिमान स्थापित किया है उसके कारण इसे बिहार एवं बिहार के बाहर देश के दूसरे हिस्से में भी मानक शिक्षण संस्थान के रूप में प्रतिष्ठा मिली है। शिक्षा, न्याय, कला एवं साहित्य, राजनीति, समाज सेवा, प्रशासनिक सेवा इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में इस कॉलेज का योगदान अग्रगण्य रहा है। बिहार के अनेकानेक महान एवं मार्गदर्शक व्यक्तियों का निर्माण इसी कॉलेज से सम्भव हुआ है। विद्वान प्रोफेसरों और मेधावी छात्रों की अटूट परम्परा ही कालेज की स्थायी गरिमा का आधार है।