पटना से शिखा झा
भारत की बात छोड़िये, हमतो सिर्फ अपना बिहार की बात करते हैं जहाँ “लॉकडाउन” प्रदेश के छात्र-छात्राओं-अभिवावकों, शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए सभी व्यावहारिक दृष्टि से “लॉक्डअप” बन गया। और इसी लॉक डाउन के बीच विधान सभा का चुनाव तो छात्र-छात्राओं-शिक्षकों को कादो-कीचड़ में फेंक दिया है। जानते हैं क्यों? सरकार फरमान जारी कर दी – स्कूल/कालेज/शैक्षणिक संस्थाएं/ट्यूशन केंद्र/निजी कोचिंग क्लॉस बन्द और मोबाईल पर पढाई चालू। परन्तु, न तो मोबाईल हई, न कम्प्यूटर हई, न लैपटॉप हई अउ इन्टरनेट तो हइये न मास्टर साहेब, का पढ़बई ? कैसे पढ़बई – मुख्य मन्त्री जी के कहथुन न !!
अब सम्मानित नितीश बाबू को कौन समझाए कि “हुकुम !! ऑनलाईन पढाई करने के लिए कंप्यूटर/लैपटॉप/मोबाईल फोन के साथ-साथ इन्टरनेट की भी जरुरत होती है। और आप तो स्कूली छात्र-छात्राओं को पिछले चुनाव से पूर्व समाजवादी पार्टी वाली साईकिल बँटवा दिए थे, चुनाव जित गए। इस बार तो कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाईल फोन बंटवाना चाहिए न – चुनाव जितने के लिए। अब यह काम किये ही नहीं तो चुनाव कहा से जीतेंगे?”
बेगूसराय के मनोज कुमार अपने पांच साल पुराना गंजी (बनियान) को उठाते, सुटका हुआ गोल बैगन जैसा पेट दिखाते कहता है: “तीन महीना से अधिक हो गया है भर पेट खाए। पचपन किलो वजन था, आज 40 किलो हो रहा है। नितीश कुमार तो कभी खाना के लिए पूछे नहीं, मोबाईल पर पढने की बात करते हैं। एक बात और, इंटरनेट के लिए पीपल के पेड़ पर तार लटकाएंगे बच्चे लोग?”
बात बिलकुल सही है। इस “लॉकअप” में”इंटरनेट-सुविधा” की बात तो मुगलसराय के बाहर फेंक दीजिये, काहे कीपर्याप्त मात्रा में इस सुविधा को प्रदेश के लोगों को उपलब्ध कराना नितीश कुमार के वश की बातनहीं है। तनिक ‘ननकिरबा’, ‘ननकिरबी’, ‘बुतरू में कमासूत माय-बाबूजी’ के हालतके बारे में भी सोचिए नितीश बाबू। बच्चे तो चीड़-चीड़ हो ही गए हैं, बच्चों के अभिभावकगण, माता–पिता तोचिड़चिड़ाने का पराकाष्ठा पार कर चुके हैं – कारण सभी मनोवैज्ञानिकहैं। वैसे आपकी सरकार में शिक्षा मंत्रालय में बैठे मंत्री-संत्री-अधिकारीगण इसबात को नहीं समझ पाएंगे।
प्रदेश में सबसे समझदार नेता है रविशंकरप्रसाद जी। रविशंकर बाबू दिल्ली सल्तनत में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रीहैं। इनका मानना है कि बिहार में मोबाइल और इंटरनेट के उपभोक्ता राजधानीएक्सप्रेस जैसा बढे हैं। रविशंकर बाबू कहते हैं कि बिहार में वर्ष 2014-15 में इंटरनेट का इस्तेमाल करनेवालों की संख्या 80 लाख थी, जो अब बढ़कर तीन करोड़ 93 लाख हो गई है। इसी प्रकार वर्ष2014-15 में बिहार में चार करोड़ 20 लाख के पास मोबाइल थे, जिसकी संख्या बढ़कर छहकरोड़ 21 लाख से अधिक हो गई है। गजब की सांख्यिकी रखते हैं मन्त्रीजी।
वैसेउनकी सांख्यिकी को अगर करबिगहिया के तरफ रखकर, गांधी मैदान में बैठकर प्रदेश मेंइंटरनेट की सुविधा प्रदान करने वाले कम्पनियों से पूछेंगे तो उनका जबाग होगा:”बिहार में इंटरनेट डेन्सिटी 17 फ़ीसदी से अधिक है ही नहीं। यानिप्रत्येक पाँच व्यक्ति में चार व्यक्ति इण्टरनेट का इस्तेमाल नहीं करता है। वजह:पेट में खाना नहीं; हाथ में रोजगार नहीं, तन ढंकने के लिए कपडा नहीं, परिवार मेंसदस्यों की संख्या अधिकाधिक – अब जो पैसा मिले उससे पेट में अनाज डालें याइन्टरनेट का पैकेज लें। इस बात को सम्मानित रविशंकर बाबू नहीं समझेंगे।क्योंकि वे तो सिर्फ बिहार हैं नेता बने रहने के लिए, उनका ननकिरबा-ननकिरबी कउनोबिहार के स्कूल / कालेज में पढ़ते हैं।
वैसे बिहार में नेता तो प्रारम्भ से ही मतदाताओं कोबरगलाते आये हैं। राजनेता तो चाहते ही है बिहार के साथ – साथ देश में मतदाता कामेमोरी पॉवर में ह्रास हो, अशिक्षित रहें,अनपढ़ रहे, सोचने-विचारने की शक्ति उसमें नहीं हो और जीवन पर्यन्त उनके पक्ष में मतदान करते रहें। और अगर ऐसी मानसिक्ता नहीं है तो वर्तमान सांसदों / विधायकों का एक केस-स्टडी करें कोरोना-काल में तोआपको ज्ञात हो जायेगा की “आज 25 फ़ीसदी सम्मानित सांसदगण सिर्फ मैट्रिक, इंटर या स्कूली शिक्षा पास हैं यह उससे भी कम। सन 2014 के चयनित सांसदों की तुलना में यह 13 फ़ीसदी अधिक है। देश केविभिन्न राज्यों के विधायकों की बात नहीं करें तो बेहतर है।

एक बात और है, वह यह कि इस ऑन-लाईन पढ़ाई से देश के लगभग सभीआम-अभिभावकों को, माता-पिताओं को एक बात का अंदाजा जरूर लग गया है कि उनकेबच्चों की शिक्षा में कितनी गहराई है, विभिन्न विषयों में उसकी कितनी पकड़ है।दुर्भाग्य यह है कि आज भी जब बच्चे विगत सात महीनों से घर पर ही हैं, ऑन-लाईन पढाईभी कर रहे हैं; लेकिन अभिभावक-शिक्षक मीटिंग में यह कहते भी नहीं थकते की “बच्चेउनकी बात नहीं मानते – स्कूल में होने से कम से कम छः घंटा अनुशासन में तोहोते थे।
सबसे बडी समस्या यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में कंप्यूटर, लैपटो, मोबाईल और इंटरनेट का सम्पूर्ण अभाव। एकदम “ब्लैकऑउट” .चाहे अररिया, अलवर, औरंगाबाद, बांका, बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, पूर्वी चम्पारण, गया, गोपालगंज, जमुई, जहानाबाद, खगरिया, किशनगंज, कैमूर, कटिहार, लखीसराय, मधुबनी, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, पूर्णिया, रोहतास, समस्तीपुर, सहरसा, शिवहर, सुपौल, सारण, सीतामढ़ी, वैशाली, पश्चिम चम्पारण के किसी भी गाँव में चले जाएँ, मजाल है की बच्चों के पास पढ़ने के लिए ये मूलभूतसुविधा उपलब्ध हों।
ग्रामीणक्षेत्र के विद्यालयों में पढने वाले ज्यादातर बच्चों के पास मोबाइल नहीं हैं।गांवों में नेटवर्किंग की समस्या अलग से है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले गरीब तबके के बच्चों की संख्या सरकारी स्कूलों में ज्यादा होती है। ग्रामीणक्षेत्रों में अधिकांश लोगों के पास लैपटॉप और टैबलेट तो दूर स्मार्टफोन भी नहींहै वहीं जिले में कई गांव ऐसे भी हैं जहां बमुश्किल ही नेटवर्क आता है लिहाजाऑनलाइन पढ़ाई एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही है।
गया के शीतला देवी कहती हैं: “बाबूजी, अभी चुनाव है न, नेताजी के आदमी सब अपने साथ एगो चुनौटी जईसन सामान लेके चलैत हई । एन्ने नेताजी के भाषण खत्म होलै, ओन्ने शीशा वाला बक्सा (लॅपटॉप) में भाषण, फोटो बंद कर दे हथीन। स्कूल में ी सब सपना हव । शीतला देवी एक लाख फीसदी सही हैं।
लाॅकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा का प्रयोगजिले में फेल साबित हुआ था हालांकि जिन विद्यार्थियों के पास ऑनलाइन पढ़ाई का साधनउपलब्ध नहीं है, उन्हें स्टडी मटेरियल मुहैया कराने की बात विभाग की ओर से की जारही है, लेकिन सिर्फ “कागज” पर । बच्चों के परिवार के पास नेटप्लान भी कम राशि का होता है, जिससे नेट में बार-बार रुकावट आती है, पठन सामग्रीडाउनलोड होने में ज्यादा समय ले रही है, क्वालिटी भी खराब होती है जिससे उसे पढ़नाऔर समझना बच्चों के लिए मुश्किल होता है।
लॉकडाउन के दौरान स्कूलों की ओर से बिना किसी तैयारी के ऑनलाइन पढ़ाई कराएजाने से अभिभावक परेशान हैं। दिन में स्कूल वाले अपने निर्धारित समय के अनुसार जूमएप के जरिए जब पढ़ाना शुरू करते हैं तो नेटवर्क की परेशानी के चलते कई-कई बार लिंकटूट जाता है। ऐसे में अभिभावक तथा संबंधित विषय के टीचर पूरे दिन परेशान रहते हैं।अभिभावकों एवं इन विद्यालयों में शिक्षण कार्य में लगे कुछ शिक्षकों का कहना है किस्कूल प्रबंधन गर्मी की छुट्टी और लॉकडाउन के दौरान स्कूल नहीं खुलने की फीस वसूलीको सही ठहराने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर दे रहे हैं।
ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान घर में बच्चों कोस्क्रीन पर घंटों बैठना पड़ रहा है। बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कई तरह कीचुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऑनलाइन की वजह से सबसे ज्यादापरेशानी अभिभावकों को हो रही है। घर में फोन एक है और पढ़ने वाले बच्चे तीन हैं।साथ ही सभी के क्लास का समय एक ही है वहीं अभिभावक फोन लेकर काम पर चले जाते हैं।ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा अभिभावकों के सामने भी परेशानी खड़ी कर रहा है। जहां पहले से ही बच्चों में मोबाइल फोनके दुष्परिणाम और खतरनाक नतीजों ने मां-बाप और अभिभावकों की परेशानी बढ़ा रखी थी,वहीं एकाएक खासकर उन्हीं को मोबाइल के जरिए शिक्षा परोस देना कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया के लिए एकदूसरे अभिशाप से कम नहीं है।