बिहार ही नहीं, देश का शायद ही कोई विद्यालय अथवा महाविद्यालय होगा जिसके छात्र-छात्राएं “पूर्ववर्ती” होने के बाद भी अपने विद्यालय अथवा महाविद्यालय के शैक्षणिक स्वास्थ और वातावरण के प्रति संवेदनशील रहते होंगे, जिससे अगली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो सके और महाविद्यालय का नाम स्वर्णक्षरों में उद्धृत रह सके। बिहार की राजधानी पटना का 159-साल पूराना पटना कॉलेज अपने पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं की ‘असम्वेदनशीलता’, संस्थान के प्रति उनकी ‘उदासीनता’ का एक जीवंत दृष्टान्त है। नहीं तो अपने ज़माने का “पूर्व का ऑक्सफोर्ड” कहा जाने वाला पटना कालेज को नैक द्वारा सी-ग्रेड में नहीं रखा गया होता। यह अलग बात है कि आज ही नहीं, आज़ाद भारत में भी यह कालेज असंख्य और अनन्त छात्र-छात्राओं को महज एक विद्यार्थी से देश के विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के सर्वश्रेष्ठ नेता, अधिकारी और न्यायमूर्ति दिया – किसी से पलटकर नहीं देखा, पूछा।
आगामी 9 जनबरी को पटना का ऐतिहासिक कॉलेज “पटना कालेज” अपने स्थापना का 159 वां वर्ष में प्रवेश करेगा। सन 1857 के आज़ादी के आन्दोलन के शंखनाद के कोई पांच साल बाद 9 जनबरी, 1863 को पटना के गंगा नदी के किनारे इस शैक्षणिक संस्थान को स्थापित किया गया था। दुर्भाग्य यह है कि कभी अपने में स्वर्णिम इतिहास समेटे पटना कॉलेज ने समाज और शिक्षा जगत को काफी कुछ दिया, लेकिन कॉलेज की गौरवशाली परंपरा को बरकरार रखने के लिए छात्र, शिक्षक, सरकार और समाज मिलकर भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके। अब पटना कालेज “पूर्व का ऑक्सफोर्ड नहीं रहा। यह अफ़सोस की बात है।
वैसे कालेज के अधिकारीगण, शिक्षकगण कहते हैं कि जो हुआ उसे दोहराया नहीं जाए क्योंकि नैक का ग्रेडिंग किसी कॉलेज को आंकने का अंतिम मापदंड नहीं है। इसकी एक निर्धारित प्रक्रिया और फॉर्मेट है। उन्होंने कहा कि नैक से बेहतर ग्रेड के लिए 16 प्वाइंट पर काम करने की जरुरत होती है। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है।
बहरहाल, मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी पटना काॅलेज के संस्थापना दिवस पर बेहतरीन स्मारिका का प्रकाशन कर रहा है। ज्ञातब्य हो कि पटना कालेज का संस्थापना दिवस सन 1967 से ही नहीं मनाया जाता था। लेकिन 2010 के आस-पास पुनः इसकी शुरुआत की गयी। मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी इसका अधिकृत प्रकाशक हैं। एक बिहार का अकेला अधिकृत वार्षिक जर्नल (ISBN प्राप्त) की शुरुआत 15 वर्ष पहले से पटना विश्वविद्यालय ने करवाया है जिसके आधार पर ही कोई प्रोफेसर बन पाता है। प्रति वर्ष 400-500 पृष्ठों का एक भोलुम प्रकाशित होता है।
मेसर्स नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के श्री नरेंद्र कुमार झा कहते हैं कि “विश्वविद्यालय हमारे प्रतिष्ठान के माध्यम से प्रतिवर्ष पटना काॅलेज व पटना विश्वविद्यालय का जर्नल अलग-अलग प्रकाशित करवाती है। इसके अतिरिक्त पटना काॅलेज/ विश्वविद्यालय के एथेलेटिक पत्रिका व उनके साप्ताहिक समाचार पत्रिका का भी अधिकृत प्रकाशक है हमारा प्रतिष्ठान। उपरोक्त सभी प्रकाशन लगभग 55-60 वर्षों से बन्द था। हिन्दुस्तान में बहुत ही कम जर्नल ऐसे हैं जिसे केन्द्रीय शिक्षा विभाग ने केन्द्रीय स्तर पर आईएसबीएन प्रदान किया है। अतः हमलोग स्वयं विभिन्न आलेखों का सौ प्रतिशत परीक्षण करके/कराके ही प्रकाशित करते हैं। अन्यथा हमारा लाइसेंस ही रद्द हो जाएगा। अन्य जर्नलों में प्रकाशित 90 % सही आलेख, सही लोगों का नहीं रहने के कारण उसे वह लाइसेंस नहीं मिला है। हम यह भी बता दें कि राज्य सरकारों द्वारा 5 वर्ष के अन्दर संभवतः कम से कम 100 शिक्षकों की नौकरी भी इसी आधार पर छुड़वाई गई है।”
ज्ञातब्य हो कि पटना विश्वविद्यालय के ए-4 साईज की 300-500 पृष्ठों की स्मारिका का विमोचन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने १९१५ में किया था। अब हमलोग पटना विश्वविद्यालय के परिचयात्मक इतिहास के आलेखों का संग्रह कर रहे हैं। इसमें भारत के सभी विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त विदेश के कतिपय विश्वविद्यालय का भी इतिहास होगा, जिसका समापन 2024 से पहले करना है ।