कुछ तो वजह है: प्रधान मन्त्री अपने भाषण के दौरान उस भूस्वामी का भी नाम नहीं लिए जिसकी भूमि पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे दरभंगा में 

भारत का संविधान सभा, 1946  : निचली पँक्ति (बैठे हुए) बाएं से तीसरे महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा - फाईल फोटो 
भारत का संविधान सभा, 1946  : निचली पँक्ति (बैठे हुए) बाएं से तीसरे महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा - फाईल फोटो 

विगत दिनों प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी बिहार विधान सभा के दूसरे चरण के चुनाव प्रचार-प्रसार से सम्बन्धित यात्रा के क्रम में दरभंगा के राज मैदान में भी भाषण दिए । प्रधान मन्त्री महोदय अपने सम्बोधन की शुरुआत में सीता और राजा जनक का भी जिक्र किया। कवि विद्यापति  का भी नाम लिया। इतना ही नहीं, विद्यापति रचित  कवितायेँ भी पढ़े और मतदाताओं को भाजपा-जनता दल (यूनाइटेड) के अभ्यर्थियों के पक्ष में मतदान करने  को भी कहा। 

“जन्मभूमि अछि ई मिथिला, संभारू हे माँ…तनी आबि के अप्पन, नैहर संभारू हे माँ!”

राज मैदान से मतदाताओं को सम्बोधन करना, यानि दरभंगा राज की सम्पत्ति पर खड़े होकर लोगों से याचना करना की आप हमारे पार्टी, समर्थित पार्टी के पक्ष में मतदान करें ताकि हमारी, आपकी सरकार पुनः स्थापित हो । कोई 620 – साल पहले का इतिहास, यानि विद्यापति की याद ह्रदय में उद्वेलित हो गई प्रधान मंत्री को । इतना ही नहीं, कविवर की कविता भी “मन की बात” के रूप में “होठों” से सम्बोधन में फूट पड़ा। उपस्थित लोग-बाग़ ताली भी पीटे । घर पहुँचने के बाद थाली, गिलास, कटोरा भी पीटे ।  

लेकिन जो बात ह्रदय को बेध दिया, दो फाँक में विभाजित कर दिया – वह था जिस व्यक्ति के घर में पहुंचकर, जिनकी भूमि पर खड़ा होकर मतदाताओं से मतदान के लिए भिक्षाटन किये, उस व्यक्ति, या उस परिवार का नाम तक अपने होठों पर नहीं आने दिया। कुछ तो वजह है जिसके कारण प्रधान मन्त्री अपने भाषण के दौरान उस भूस्वामी का भी नाम नहीं लिए जिसकी भूमि पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे दरभंगा में। 

इतना ही नहीं, जिस दरभंगा राज ने, जिस दरभंगा राज के महाराजाओं ने भारतवर्ष के निर्माण में अद्वितीय योगदान दिया था, उसी दरभंगा राज के, राज परिवार के किसी भी सदस्यों का नाम तक नहीं लिया प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने। मंच पर बुलाना, उनसे जिले के बारे में हाल-चाल पूछना, दिवंगत राजा-महाराजाओं के बारे में, दिवंगत महारानियों के बारे में पूछना, परिवार की वर्तमान पीढ़ियों के बारे में पूछना, समाज और सरकार के प्रति उनकी भागीदारी को पूछना, मुकेश अम्बानी, कुमार मंगलम बिरला, गौतम अडानी, उदय कोटक, आनन्द महिन्द्रा, रतन टाटा, एन चंद्रशेखरन, अमिताभ बच्चन, अजय पीरामल, अज़ीम एच प्रेमजी, सज्जन जिंदल, अनिल अग्रवाल, उदय शंकर, श्रीश्री रविशंकर, बाबा रामदेव, संजीव गोयनका, अक्षय कुमार, नीता अम्बानी जैसे मोहतरम और उनकी मोहतरमाओं के कंधे पर हाथ रखकर तस्वीर खींचना, उसे स्वयं ट्वीट करना, विश्व में वायरल करना – यह सब नहीं हुआ। 

ये भी पढ़े   अगर वे कहते हैं 'ये कर देंगे, वो कर देंगे", तो 100/- रुपये के स्टाम्प पेपर पर अंगूठा लें, वे सभी झूठ बोलने में महारथ हैं 
भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा जब महामहीम राष्ट्रपति दरभंगा राज आये, आतिथ्य स्वीकारे  - फाईल फोटो 
भारत के प्रथम राष्ट्रपति के साथ महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा जब महामहीम राष्ट्रपति दरभंगा राज आये, आतिथ्य स्वीकारे  – फाईल फोटो 

कुछ तो वजह है जिसके कारण ऐसा नहीं हुआ। क्या दरभंगा राज की वर्तमान पीढ़ी देश के प्रधान मन्त्री के बगल में खड़े होकर, मुस्कुराकर बात करने के लायक नहीं हैं? जबकि ग्वालियर महाराजा की तीसरी – चौथी पीढ़ी तो प्रदेश से लेकर दिल्ली सल्तनत तक अपना बर्चस्व बरकरार रखे हुए हैं। कुछ तो वजह है जो शोध का विषय हो जायेगा आने वाले दिनों में। 

यदि देखा जाय तो आज भारत अथवा विश्व के किसी भी हिस्से से -पत्रिकाओं में जब भारतीय अथवा भारतीय मूल के लोगों के बारे में, समाज-सरकार में उनकी बर्चस्वता के बारे में कुछ भी प्रकाशित होता है तो उसका आधार यह नहीं होता कि वह पुरुष अथवा महिला कितने ‘विद्वान’ अथवा ‘विदुषी’ हैं। ज्ञान के मामले में वे ‘गौतम बुद्ध’ हैं अथवा ‘तीर्थंकर’ महावीर। युद्ध-कौशल में ‘रानी झाँसी’ हैं अथवा नहीं। शारीरिक शक्ति में वे महाराणा प्रताप अथवा शिवाजी हैं अथवा नहीं। आधार यह होता है की आर्थिक रूप से वह कितना मजबूत हैं। कितने पैसे वाले हैं। लक्ष्मी उनके घर में हैं अथवा नहीं। 

इन आधारों के मापदंडों पर यदि आज के ही नहीं, बीते कल और परसों के धनाढ्यों की बात करें तो दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह और उनका परिवार “सर्वश्रेष्ठ” थे, यह भारत के लोग जानते हैं।  भारत में राजनीतिक आज़ादी मिलने तक तक़रीबन 570 से अधिक “प्रिंसली स्टेट्स” और अनन्य राजा-महाराजा थे जिन्हे पांच, नौ, एग्यारह, तरह, पन्द्रह, सत्रह, उन्नीस, इक्कीस “बंदूकों की सलामी” प्राप्त करने का अधिकार था। राजनीतिक स्वतंत्रता मिलने के बाद, नए और स्वतन्त्र भारत में उन राजाओं, रैयतों का, जिन्होंने देश की आज़ादी की क्रांति में सभी दृश्टिकोण से अक्षुण भूमिका निभाए; उनकी आर्थिक – सामजिक – राजनीतिक अधिकारों में कमी आने लगी, आ गयी, यह सत्य है। 

ये भी पढ़े   शक के दायरे में हैं हामिद अंसारी क्योंकि "निगाहें मिलाने को जी चाहता है........"
दरभंगा राज परिसर में ट्रेन से उतरते पंडित जवाहरलाल नेहरू - फाईल फोटो 
दरभंगा राज परिसर में ट्रेन से उतरते पंडित जवाहरलाल नेहरू – फाईल फोटो 

आज भी अनेकानेक राजाओं का रुतबा उतना ही मजबूत हैं, जितना दरभंगा राज का पतन। आज राज दरभंगा में राजा बहादूरों का परिवार और पीढ़ियां तो हैं, लेकिन कल जिनके पूर्वजों की तूती बोलती थी, दरभंगा से दिल्ली तक, दिल्ली से इंग्लॅण्ड तक; आज किले के बाहर अथवा दिल्ली के राजपथ पर भी कोई जानता नहीं। 

अगर ऐसा नहीं होता तो विगत दिनों जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी दरभंगा राज के ही “राज मैदान” से अपनी और अपने द्वारा समर्थित पार्टी के अभ्यर्थी के लिए मतदान करने का आह्वान किये थे, राज दरभंगा का, महाराजाधिराज का, राज परिवार का “भारत के निर्माण में, शैक्षिक विकास में, आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विकास में योगदान का उल्लेख अवश्य किया होता । फिर ऐसी कौन सी अंदरूनी बात है जो आज राज दरभंगा, राज परिवार के वंशज, लोगबागों की क्षमता, उनके द्वारा सामाजिक कल्याणार्थ कार्य, प्रदेश और देश के शिक्षा, संस्कृति, उद्योंगों के विकास में महाराजा के देहावसान के बाद उनकी भूमिका देश के प्रधान मंत्री को अपनी ओर आकर्षित कर सके। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

माननीय इंदिरा गाँधी के साथ महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा में -  फाईल फोटो 
माननीय इंदिरा गाँधी के साथ महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा में –  फाईल फोटो 

दरभंगा राज  का इतिहास इतना सवल है, महाराजा सर कामेश्वर सिंह और तत्कालीन परिवार के लोगों का समाज के प्रति प्रतिबद्धता इतना मजबूत था कि महात्मा गाँधी के साथ – साथ देश के सम्मानित राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक उनके सामने नतमस्तक रहते थे। उस ज़माने में जहाँ भारत के दिग्गज नेतागण, चाहे महात्मा गाँधी हों अथवा मदनमोहन मालवीय दरभंगा राज को, राज-परिवार के लोगों को सम्मान से देखते थे।  मिलने, बात करने में सम्मानित महसूस करते थे – क्या आज की पीढ़ियों की मानसिकता में इतनी गिरावट आ गयी है की कोई उन्हें पहचानता भी नहीं। आज “अर्थ से समर्थवान” होने के वाबजूद, क्या वजह है कि राज दरभंगा को समाज, व्यवस्था, सरकार के लोग यहाँ तक कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी भी तबज्जो नहीं दिया ? 

ये भी पढ़े   गम दे गया मानवता के यार का जाना !!

यहाँ तक कि दरभंगा के लोगों का कहना है कि जब क्षेत्र की जनता ही नाम नहीं लेती तो पराए को क्या दोष दें ? अपने इतिहास, गौरव और विरासत से मिथिला बहुत दूर जा चुका है। अधिकांश को तो जानकारी ही नहीं है।” कभी तूती बोले जाने वाले राज दरभंगा की आवाज आने वाले समय में गुम तो नहीं हो जाएगी। अगर ऐसा है तो यह शुभ संकेत नहीं है – किसी के लिए भी। 

आख़िर महाराजा सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद विगत छः दसक में दरभंगा राज का ऐसा पतन क्यों हुआ जिसके कारण न तो अब दरभंगा जिला की वर्तमान पीढ़ी उनके बारे में जानती हैं और ना ही देश का प्रधान मंत्री ही क्यों न हों, नाम तक नहीं लेना चाहते ? अगर राज दरभंगा और समाज के प्रति महाराजाधिराज का समर्पण और प्रतिबद्धता आज की पीढ़ी को बताने में चूक गए तो कल नामोनिशान मिटा जायेगा। वैसे मिटने की शुरुआत हो चुकी है – प्रधान मन्त्री के भाषण में महाराजाधिराज का नाम नहीं लेना, राज दरभंगा के बारे में नहीं बोलना एक ज्वलन्त दृष्टान्त है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here