आज़ादी का ‘अमृत महोत्सव’ और आज़ाद भारत में जन्मी देश का 15वां राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, कल शपथ ग्रहण के बाद 21 तोपों की सलामी

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भारत के 15 वें राष्ट्राध्यक्ष के रूप में शपथ लेंगी।

नई दिल्ली (रायसीना हिल) : कल, दिनांक 25 जुलाई, 2022 श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी को 10 बजकर 15 मिनट पर आधुनिक भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ेगा। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भारत के 15 वें राष्ट्राध्यक्ष के रूप में शपथ लेंगी। स्वतंत भारत के इतिहास में शायद यह पहला अवसर होगा जब एक आदिवासी महिला देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान होंगी। वैसे श्रीमती मुर्मू देश की दूसरी महिला होंगी जो भारत का राष्ट्रपति बनेगी, परन्तु श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की तुलना पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल से नहीं की जा सकती है। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि समारोह कल सुबह करीब सवा 10 बजे संसद के केंद्रीय कक्ष में होगा, जहां प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाएंगे।

गृह मंत्रालय ने कहा कि इसके बाद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाएगी। इसके बाद राष्ट्रपति का संबोधन होगा। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार श्रीमती द्रौपदी मुर्मू और रामनाथ कोविंद 9.50 बजे एक साथ राष्ट्रपति भवन से काफिले में संसद भवन के लिए रवाना होंगे। प्रातः 10 :03 काफ़िला संसद भवन पहुंचेगा संसद के गेट नम्बर 5 पर, गेट नम्बर 5 पर दोनों उतर कर उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य लोगों के साथ सेंट्रल हॉल की तरफ़ रवाना होगा। सेन्ट्रल हॉल पहुँचने पर 10. 10 बजे राष्ट्रगान के साथ वे देश नई राष्ट्रपति के रूप में 10.15 बजे शपथ लेंगी। फिर नई राष्ट्रपति का भाषण होगा। दस बजकर 45 मिनट पर नई और निवर्तमान राष्ट्रपति संसद से राष्ट्रपति भवन रवाना होंगे। राष्ट्रपति भवन फोरकोर्ट में 10.50 बजे हैडिंग ओवर सेरेमनी और 11:00 बजे निवर्तमान राष्ट्रपति की राष्ट्रपति भवन से विदाई होगी। 

देश में कुल ऐसे अब तक 9 राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने 25 जुलाई को अपने पद की शपथ ली है। इनमें सबसे पहला नाम देश के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी का आता है। उन्होंने 25 जुलाई 1977 को देश के राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। दरअसल, देश में जब इंदिरा गांधी की सरकार ने इमरजेंसी लगाई थी तो उसके बाद जब पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुना हुआ तो पूर्व में जनता पार्टी के नेता रहे नीलम संजीव रेड्डी को जीत हासिल हुई थी।

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ऐसा नहीं है कि देश के सभी राष्ट्रपतियों ने 25 जुलाई को शपथ ली है। कुछ ऐसे भी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने 25 जुलाई को शपथ नहीं ली है। ऐसे राष्ट्रपतियों की संख्या पांच है जिन्होंने 25 जुलाई को शपथ नहीं लिया। इनमें सबसे पहला नाम देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का है उन्होंने 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। आज तक के इतिहास में वही एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें देश में एक से अधिक कार्यकाल के लिए चुना गया था। इसके बाद देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भी 25 जुलाई को शपथ नहीं ली थी, उन्होंने 13 मई 1962 को शपथ ली थी। जबकि जाकिर हुसैन ने 13 मई 1967 को देश के तीसरे राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी और देश के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरी ने 24 अगस्त 1969 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। देश के पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 24 अगस्त 1974 को शपथ ली थी। हालांकि, उनका अपने कार्यकाल के दौरान ही निधन हो गया था।

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आज़ाद भारत के 75 साल के इतिहास में पिछले डेढ़ दशक को महिलाओं के लिए खास तौर से विशिष्ट माना जा सकता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाली महिलाएं इस दौरान देश के शीर्ष संवैधानिक पद तक पहुंचने में कामयाब रहीं और 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल करने के बाद अब द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश की लोकतांत्रिक परंपरा की एक सुंदर मिसाल है।

क्या कभी किसी ने सोचा था कि दिल्ली से दो हजार किलोमीटर के फासले पर स्थित ओडिशा के मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के छोटे से गांव उपरबेड़ा के एक बेहद साधारण स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने वाली द्रौपदी मुर्मू एक दिन असाधारण उपलब्धि हासिल करके देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान होंगी और देश ही नहीं दुनिया की बेहतरीन इमारतों में शुमार किया जाने वाला राष्ट्रपति भवन उनका सरकारी आवास होगा।

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यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के साथ साथ वह देश की कुल आबादी के साढ़े आठ फीसदी से कुछ ज्यादा आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन जनजाति की बात करें तो वह संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। भील और गोंड के बाद संथाल जनजाति की आबादी आदिवासियों में सबसे ज़्यादा है। पारिवारिक जीवन की बात करें तो द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे।

मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है। उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था। अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं। द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।

उनके राष्ट्रपति बनने पर दुनियाभर के नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र की जीत करार दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने संदेश में कहा कि एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति जैसे पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि मुर्मू का निर्वाचन इस बात का प्रमाण है कि जन्म नहीं, व्यक्ति के प्रयास उसकी नियति तय करते हैं। वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्र प्रमुख पद पर पहुंचना उनकी ऊंची शख्सियत का ही परिणाम है।

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फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने मुर्मू को राष्ट्रपति बनने पर बधाई दी। वहीं, हाल ही में श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हारने वाले डलास अल्फापेरुमा ने कहा कि आजादी के बाद जन्म लेने वाली एवं जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश की राष्ट्रपति को बधाई। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर वह द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हैं। द्रौपदी मुर्मू के भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने के भले कितने भी राजनीतिक अर्थ लगाए जाएं लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि यह जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश के लोकतांत्रिक सफर में एक खूबसूरत पड़ाव है।

ज्ञातव्य हो कि वे देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनीं हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी रहे यशवंत सिन्हा को बड़े अंतर से हराकर ये जीत हासिल की है। मुर्मू ने निर्वाचक मंडल सहित सांसदों और विधायकों के 64 प्रतिशत से अधिक वैध वोट हासिल किए और भारी मतों के अंतर से चुनाव जीता। मुर्मू को सिन्हा के 3,80,177 वोटों के मुकाबले 6,76,803 वोट मिले। वह आजादी के बाद पैदा होने वाली पहली और शीर्ष पद पर काबिज होने वाली सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति होंगी। 

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