नितीश जी कहते है वे प्रदेश के ‘शिल्पकार’ हैं, लेकिन मतदाता भी एक बार सोचे जरूर ‘ऊँगली में कालिख़ पोतने से पहले’

अगर बिहार के वर्तमान मुख्य मंत्री नितीश कुमार वाला जनता दल (यूनाइटेड) और अन्य सहयोगी पार्टियाँ चुनाव जीतकर वापस आती हैं और नितीश कुमार की आगुआई में पुनः सरकार बनाते हैं, तो देश में अब तक 43 सबसे अधिक दिनों तक मुख्य मंत्रियों की कुर्सियों पर बैठने वाले सातवें स्थान से छठे स्थान पर आ जायेंगे। आकंड़ों के हिसाब से अब तक उनकी अवधि 15 साल के करीब है।

नितीश कुमार पहली बार 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने, पर्याप्त बहुमत नहीं था इस लिए इस्तीफा दे दिया। दूसरी बार 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई, पूरे पांच साल तक चली सरकार। तीसरी बार ये 26 नवंबर 2010 से 17 मई 2014 तक बीजेपी के साथ मिलकर फिर सरकार बनाई, परन्तु, लोकसभा चुनाव के पहले गठबंधन टूटने के कारण जीतनराम मांझी को सीएम बनाया। चौथी बार 22 फरवरी 2015 से अभी तक बीजेपी के सहयोग से मुख्य मंत्री की कुर्सी पर आसीन हैं।

अब तक की सांख्यिकी के अनुसार नितीश कुमार से अधिक समय तक बिहार के मुख्य मंत्री बने रहने में श्री कृष्ण सिंह का ही नाम है। इतना ही नहीं, देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी श्री नितीश कुमार से लगभग तीन साल कम अवधि तक गुजरात के मुख्य मंत्री थे।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल, वह भी गोलघर और बिस्कोमान की ऊंचाई से अभी ऊँचा, यह है कि इन 15 सालों में नितीश कुमार बिहार के विकास के लिए क्या किये ? बिहार के मतदाताओं के लिए क्या किये ? बिहार की महिलाओं के लिए क्या किये ? स्कूल-जाते बच्चे-बच्चियों के लिए क्या किये ? सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों के लिए क्या किये ? प्रदेश के बेरोजगार युवक/युवतियों के लिए क्या किये ? प्रदेश के पुलिस कर्मियों के लिए क्या किये ? सरकारी दफ्तरों में अनुशासन कायम हो – इसके लिए क्या किये ? प्रदेश में भ्रष्टाचार में गोता लगाने वाले बाबू लोगों के लिए क्या किये ? प्रदेश में कितने उद्योगों का स्थापना किये ? कितने रुग्ण, बंद उद्योंगो को खोलकर रोजगार का इंतज़ाम किये ? यानि “रिपोर्ट कार्ड पहले – अंगूठा करना बाद में।

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अगर प्रदेश के मतदाता अपने-अपने क्षेत्रों के सभी 243 विधायकों को रिपोर्ट-कार्ड प्रस्तुत करने के लिए बाध्य कर दे, या झंडा उठा ले की बिना रिपोर्ट-कार्ड की प्रस्तुति के वे आगामी आगामी चुनाव में उन्हें मतदान नहीं करेंगे, अथवा “नो” वाला बटन दबा दें, तो आगामी महीनों में अपनी-अपनी मूछों पर तेल-घी लेपने वाले विधायक और विधायक के नेता क्या करेंगे?

सवाल बहुत बड़ा है। सवाल का उत्तर सिर्फ यह नहीं है कि “वर्चुअल रैली” में अपनी सरकार का ‘रिपोर्ट कार्ड’ “वर्चुअली” प्रस्तुत कर देना की हमने, हमारी पार्टी ने विगत 15 -सालों में 600,000 लोगों को रोजगार दिया – तो यह हज़म नहीं होता। और अपनी कामयाबी की तुलना राष्ट्रीय जनता दल के लालू यादव और उनकी पत्नी श्रीमती राबड़ी देवी से करें और यह कहें की “फलनमा मुख्य मंत्री 95 734 लोगों को ही रोजगार दे पायी अपने 15 साल की सत्ता में – यह गलत है। यानि जनता दल (यूनाइटेड) नेता की सोच राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं तक ही सीमित हो जाती है, जहाँ तक तुलनात्मक अध्यन का सवाल है। /

इस बात पर सन 1974 की बिहार विद्यालय परीक्षा परिणाम से सम्बंधित एक बात बताता हूँ। परिणाम घोषित होने के बाद एक ग़रीब पिता, पुत्र का परीक्षा परिणाम घोषित होते ही पूछे: “क्या हुआ रिजल्ट/” बेटा इधर-उधर दखते कहता है: बाबूजी, इंजिनियर साहेब का बेटा जो पटना कॉलेजिएट में पढता था, वह फेल कर गया। पिता की बेचैनी बढ़ने लगी। फिर पूछे: तुम्हारा क्या हुआ। बेटा कुछ क्षण रूककर कहा: आपके मित्र डाक्टर साहेब का भी बेटा फेल कर गया। अब तक बाबूजी हथ्थे से कबड़ गए थे, फिर पूछे, तुम्हे क्या हुआ? बेटा मुस्कुराते कहता है: “हम कउनो उससे अधिक पढ़ाकू थे क्या?

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नितीश बाबू, अपनी उपलब्धि अथवा अनुपलब्धियों की तुलना अगर आप राष्ट्रीय जनता दल के लालू यादव या राबड़ी देवी के मुख्य मंत्रित्वकाल से करते हैं, प्रदेश के लोगों को, देश के लोगों को या विश्व को बताते हैं “मुस्कुराते हुए” तो यह आपकी सोच का, आपकी मानसिकता का मजाक उड़ाता है। तुलनात्मक सांख्यिकी ही देना था, सोचना ही था तो श्रीकृष्ण सिंह के साथ तुलना करते; गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात से तुलना करते। देखिये न !! गुजरात के मुख्य मंत्री देश का प्रधान मंत्री बन गए और जिनसे आप स्वयं को, अपनी पार्टी की उपलब्धियों की तुलना किये वे “न्यायालय” का “जेल” का चक्कर लगा रहे हैं।

नितीश जी, बात करैला और नीम से भी कड़ुआ है, लेकिन सत्य तो यही है। आप मन ही मन मानेंगे भी।

बहरहाल, नितीश कुमार भले “स्वयंभू प्रवक्ता होकर कोविड -19 के बारे में कहते फिरें की वे कैसे इसे रोके, ताकि प्रदेश के लोगों में जान-माल कम हो, यह तो उनकी आत्मा ही गवाह होगी। ऐसा भी नहीं हो सकता है कि देश के सभी लोग, प्रदेश के सभी लोग, सम्वाद की दुनिया से जुड़े सभी लोग “झूठे” हैं, और नितीश बाबू और उनके चेले-चपाटी हरिश्चन्द्र हैं। वैसे बोलने की स्वतंत्रता तो सभी को। संविधान के सूची में लिखा है।

अभी था तो हम सभी 3Rs पढ़ते थे, जानते थे। नितीश बाबू के लोग अब 3Cs को शब्दकोष में ढुकाए, यानि क्राईम , करप्शन और कम्युनलिज्म। हम सभी अपराधों की श्रेणियों पर ध्यान नहीं देते और सिर्फ एक सांख्यिकी देते हैं कि आपके राज्य में विगत 10 सालों में, यानि 2010 से अब तक कुल 63,974 लोगों की हत्या हुयी है। क्या आप या आपकी सरकार, पुलिस यह बता सकती है कि जो मारे गए, उनके परिवार को न्याय मिला? क्या जिन्होंने जघन्य हत्या किये, उन्हें आपकी सरकार दण्डित की? आप तो तुरंत कह देंगे की हमारा काम, हमारी पुलिस का काम उस अपराधी को पकड़ना है, दंड देना या नहीं देना तो न्यायलय का काम है १ हैं न नितीश बाबू?

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नितीश बाबू, आप तो पराकाष्ठा उस समय पार कर दिए जब आपने आधिकारिक तौर पर यह कह दिए कि “प्रदेश के आज की पीढ़ी को नशाबंदी के बारे में बापू (महात्मा गाँधी) का पाठ पढ़ने की जरुरत नहीं है। हमारी सरकार प्रदेश के युवाओं और महिलाओं के मांग पर शराब-बंदी किये।”

नितीश बाबू, आपका शराब बंदी का फैसला निश्चित रूप से बेमिशाल है, और इसमें आपके तत्कालीन डी जी पी गुप्तेश्वर पांडे का बहुत ही बेहतरीन सहयोग रहा है। लेकिन आज तक की स्थिति अवलोकन किया जाय तो ऐसा लगता है आप न केवल अपने प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का राजनीतिक दृष्टि से किया, स्वहित में; बल्कि उन महिलाओं के कंधे पर बन्दुक रखकर चलाया जो “अशिक्षित” ही नहीं, “अनपढ़” और “गंवार” हैं। आपके प्रदेश में महिलाओं की साक्षरता दर 52 फीसदी के आस-पास है, पुरुषों की साक्षरता दर से 20+ फ़ीसदी कम है। एक संयुक्त अभियान के तहत इन्ही 20 + फीसदी महिलाओं की को लेकर “शराब-बंदी” की राजनीति हुई। आज नहीं तो कल, यह बात बिहार के अधिकारी ही कहेंगे, वह भी प्रेस कांफ्रेंस करके – फिर नहीं कहियेगा की “सब राजनीति है” और मुझे बदनाम करने के लिए किया गया है।

खैर, हम सभी आपको शुभकामनाएं देते हैं आप विजय हों, भाग्यशाली हों, इतिहास के रचनाकार को, बिहार की राजनीति के शिल्पकार हों – लेकिन महादेव से प्रार्थना भी करते हैं कि प्रदेश के मतदाताओं को भी “सोचने” की शक्ति अवश्य दे – वह भी “ऊँगली में कालिख़ पोतने से पहले।

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