भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्, गोविन्दं भज मूढ़मते …. यानी चश्मा उतारो फिर देखो यारो

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नई दिल्ली टेलीविजन (एनडीटीवी) के प्रोमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय ने 2007 में अपने मौजूदा निवेशकों से शेयर वापस खरीदने की पेशकश की। सबसे पहले, एक अन्य इकाई जीए ग्लोबल इन्वेस्टमेंट्स से 7.73% हिस्सेदारी खरीदने की योजना थी। लेकिन इससे एक ऐसी शुरुआत हुई जिसे ओपन ऑफर कहा जाता है। ओपन ऑफर क्या है?

पूंजी बाजार के नियमों के अनुसार, प्रोमोटर्स (या सामान्य तौर पर किसी भी निवेशक) को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी के बड़े हिस्से को खरीदते समय कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। एक नियम अल्पसंख्यक शेयरधारकों से संबंधित है।

यदि आप कुछ सौ स्टॉक रखने वाली कंपनी में अल्पसंख्यक शेयरधारक हैं और आपको लगता है कि स्वामित्व संरचना में बड़े पैमाने पर बदलाव से कंपनी के भविष्य पर असर पड़ सकता है तो आपके पास निवेश से बाहर निकलने का पूरा अधिकार है। यही कारण है कि नियामक प्रवर्तकों (या निवेशकों) से अल्पसंख्यक शेयरधारकों के लिए एक अतिरिक्त खुली पेशकश करने के लिए कहता है, जब वे कुछ चुनिंदा निवेशकों से कंपनी का एक बड़ा हिस्सा खरीदते हैं। इस तरह, ओपन ऑफर आपको एक निश्चित कीमत पर अपने शेयर बेचने की अनुमति देगा और अगर आप चाहें तो निवेश से अलग हो सकते हैं।

इसलिए, रॉय दंपति ने जब कंपनी का 7.73% वापस खरीदा, तो उन्हें इस लेन-देन को पूरा करने के लिए एक खुली पेशकश करनी पड़ी। दुर्भाग्य से, उनके पास पैसे नहीं थे। इसलिए नकदी पूरी करने के लिए, उन्होंने एनडीटीवी के शेयरों को गिरवी रखकर इंडियाबुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड से लगभग ₹540 करोड़ उधार लिए।

लेकिन तभी, वैश्विक वित्तीय संकट ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया। एनडीटीवी के शेयरों का मूल्य गिर गया और ऋण के समर्थन में गिरवी रखे शेयर ने अपना अधिकांश मूल्य खो दिया। संभावना है कि इंडियाबुल्स ने अपने पैसे चुकाने की मांग की हो। इसलिए अक्टूबर 2008 में, प्रवर्तकों ने इंडियाबुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज को चुकाने के लिए आईसीआईसीआई बैंक से ₹375 करोड़ का एक और कर्ज लिया।

इस कर्ज की ब्याज दर 19% थी। स्थिति हताश करने वाली हो रही थी। इसी समय एक असामान्य सा हीरो पृष्ठभूमि में उभरता है – विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (या वीसीपीएल) के नाम से एक कर्जदाता। इस कंपनी ने एनडीटीवी को 10 साल की अवधि के लिए ब्याज मुक्त आधार पर ₹350 करोड़ का कर्ज दिया। बदले में, एनडीटीवी को वीसीपीएल को एक परिवर्तनीय (कनवर्टिबल) वारंट देनी पड़ी।

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परिवर्तनीय वारंट एक वित्तीय इंस्ट्रूमेंट है (चेक भी वित्तीय इंस्ट्रूमेंट कहा जाता है) जो आपको कुछ शर्तों को पूरा करने पर निश्चित मूल्य पर शेयर खरीदने की अनुमति देगा। इस तरह, वारंट रखने वाले वीसीपीएल के पास एनडीटीवी के शेयर का बड़ा हिस्सा प्राप्त करने का अवसर था। जब तक शेयरों का यह हिस्सा एनडीटीवी के प्रवर्तकों के पास था, सब ठीक था।

लेकिन मुश्किल समय चल रहा था और एनडीटीवी के प्रवर्तकों के पास बहुत विकल्प नहीं थे। इसलिए उन्हें मानना पड़ा। तय हुआ कि एनडीटीवी के 29 प्रतिशत शेयर एक अलग फर्म आरआरपीआर (राधिका राय प्रणय राय) के जरिए रखा जाए और वीसीपीएल से कहा गया कि वे आरआरपीआर का पूरा शेयर वारंट के रूप में उन्हें दे देंगे। इस तरह, संक्षेप में एक रहस्यमयी इकाई वीसीपीएल के पास आरआरपीआर में वारंट हो गए और इसके जरिए एनडीटीवी में ~29 प्रतिशत शेयर हासिल करने का मौका।

अब सवाल है कि, वीसीपीएल कौन है, किसकी है – रहस्यमयी ऋणदाता? और यहीं से मामला दिलचस्प होना शुरू होता है। वीसीपीएल की स्थापना 2008 में ही हुई थी। इसका कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है और ऐसा नहीं लगता कि वह इस एक लेन-देन के अलावा भी कुछ कर रही थी। तो अगला सवाल होगा, किसकी है यह कंपनी या फर्म।

वीसीपीएल को जानने की कोशिश में पता चलता है कि उसने एक अन्य कंपनी, शिनानो रिटेल से पैसा उधार लिया था। और अंदाजा लगाइए कि शिनानो का मालिक कौन है? रिलायंस। जी हां, अंग्रेजी में रिलायंस मतलब भरोसा नहीं, रिलायंस ही। इसका मतलब यह हुआ कि इन सभी वर्षों में भारत के सबसे बड़े कॉरपोरेट में से एक का एनडीटीवी में (अप्रत्यक्ष रूप से) हिस्सा था। उस रिलायंस ने वीसीपीएल से हाथ धो लिया। दो अन्य इकाइयां – एमिनेंट नेटवर्क्स और नेक्स्टवेव टेलीवेंचर्स इस कंपनी के स्वामित्व के लिए आगे आईं। अफवाह यह है कि नए स्वामी के भी रिलायंस से कुछ अप्रत्यक्ष संबंध थे।

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इसके बाद जब अडानी (पूरे नाम की जरूरत है क्या?) ने आगे बढ़कर वीसीपीएल को ₹113 करोड़ में खरीद लिया। और सौदे की घोषणा करने के कुछ ही मिनटों के भीतर इसने एक और धमाका किया। इसने एलान किया कि वीसीपीएल वारंट का उपयोग करेगा, जिसका मतलब हुआ आरआरपीआर का पूर्ण स्वामित्व। जो खेल हुआ है वह यही है। इसी से प्रणय राय और राधिका राय ने इस्तीफा दिया है और नए लोग निदेशक बनाए गए हैं जिनमें हिन्दी पत्रकारिता का एक जाना-माना नाम संजय पुगलिया का भी है। इस तरह, आरआरपीआर का स्वामित्व बदला है जिसके पास एनडीटीवी में 29% हिस्सेदारी है। इस तरह एनडीटीवी फिसलते हुए भी अपनी जगह पर है!

जून 2022 के शेयरहोल्डिंग पैटर्न के अनुसार प्रणय राय के 15.94 और रधिका राय के 16.32 प्रतिशत शेयर के साथ दोनों 32.26 प्रतिशत के मालिक हैं। आरआरपीआर होल्डिंग के 29.18 प्रतिशत अगर अडानी के पास हैं तो चार प्रतिशत शेयरों की खरीद से स्वामित्व बदल सकता है और जैसा ऊपर बताया गया वह किसी ना किसी नाम से है भी। लेकिन जैसा नियम है अडानी को इसके लिए खुली बिक्री का ऑफर करना होगा और यह ऑफर 5 दिसंबर तक खुला है। अभी तक राय दंपत्ति के काउंटर ऑफर की खबर नहीं है। इसलिए मुमकिन है खेल जल्दी ही पूरा हो जाए। इसमें कुछ तकनीकी पेंच भी हैं लेकिन जिसकी लाठी उसकी भैंस के जमाने में मामला दूर नहीं लगता है।

जो भी हो, अब अगर आप सोच रहे हैं कि वीसीपीएल के मालिकानों ने उसे अडानी को बेचने का फैसला क्यों किया, तो कोई भी अनुमान लगा सकता है। लेकिन इसके बाद जो होगा या हो सकता है वह एक के बाद एक कई तरह की प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करेगा। एक तो यही कि रवीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और जो वीडियो यू ट्यूब पर जारी किया उसे 24 घंटों में 50 लाख लोगों ने देखा। गुजरात में (और दिल्ली नगर निगम के लिए भी) मतदान है और एनडीटीवी (या एक स्वतंत्र मीडिया संस्थान) के साथ यह अन्याय और इसकी खबर का क्या असर होगा यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन खबरें तो बन और चल रही हैं।

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अब क्या हो सकता है

आप कह सकते हैं कि इतने पैसे लगाकर भी कुछ नहीं मिला। जैसा पहले कहा जा चुका है, कंपनी पर नियंत्रण बदलने की कोशिश करने के लिए अभी और शेयर चाहिए तथा इसके लिए नियमानुसार खुली पेशकश की गई है तथा ₹294 प्रति शेयर के हिसाब से ऑफर खुला है। यहां तक मामला स्क्रिप्ट के अनुसार लगता है। दूसरी ओर, एनडीटीवी तख्ता पलट की कोशिशों का विरोध कर रहा है लेकिन उसका हश्र सबको पता है। इसलिए फिल्म का क्लाइमैक्स स्क्रिप्ट के अनुसार होगा या नया घटेगा यह देखने वाली बात होगी। दूसरी ओर, एनडीटीवी के प्रवर्तक भी बाजार से शेयर खरीद कर अपना हिस्सा बढ़ा सकते हैं और इस तरह अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं लेकिन सारा खेल पैसे का है और राय दंपत्ति के पास पैसे होते तो यह स्थिति आती ही क्यों।

रहस्यमयी ऋणदाता के लिए! पता नहीं।

उपलब्ध शेयर होल्डिंग पैटर्न के अनुसार एनडीटीवी में एलटीएस इन्वेस्टमेंट फंड लिमिटेड के नाम से एक शेयरधारक है जिसके पास कंपनी का लगभग 9.75% हिस्सा है। इस फंड का अडानी के साथ एक अनोखा रिश्ता है। ऐसा लगता है कि फंड का लगभग 98% धन अडानी के चार शेयरों में ही निवेश किया गया है। इसलिए, फिल्म अभी जारी है देखते रहिए 6 बॉल में 36 रन बनाने जैसी स्थिति है और अभी हाल में खबर आई है कि एक नो बॉल हो जाए तो 42 रन बन सकते हैं। इसलिए जैसा क्रिकेट वैसा ही कॉरपोरेट वार। दांव नहीं लगाया हो तो आनंद पूरा है। इधर रहिए या उधर।

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