फिर बला टली मोदी सरकार की !

फिर बला टली मोदी सरकार की !

आज (2 जनवरी 2023) मोदी सरकार नववर्ष में महासंकटग्रस्त होने से बाल-बाल बच गई। अकथनीय वित्तीय अराजकता और गंभीर वैधानिक संकट टल गया। सोनिया-कांग्रेस सरकार के वित्त मंत्री रहे पलनिअप्पन चिदंबरम अपनी याचिका द्वारा इतनी विकराल सियासी तबाही सर्जा देते जितना स्व. राजनारायण जी द्वारा इंदिरा गांधी को अपस्थ करने वाली याचिका (12 जून 1975) से भी नहीं हुआ था। राजनारायण की याचिका यदि नारायण अस्त्र था, तो चिदंबरम की याचिका ब्रह्मास्त्र हो जाता, जो अमोघ होता है।

कानूनी संयोग यह रहा कि चिदंबरम के सभी बिंदुओं और तर्कों को न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना द्वारा स्वीकारे गये। मसलन नोटबंदी का अधिकार रिजर्व बैंक को है, न कि केंद्र सरकार को। मनमोहन काबीना के इस पूर्व वित्त मंत्री का आग्रह था कि नोटबंदी की रीति उचित होती यदि उसकी रिजर्व बैंक सिफारिश करता और संसद में उस पर विस्तृत चर्चा होती। चिदंबरम कैसे इस आशंका से अनभिज्ञ रहे कि प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदी की शाम ढले घोषणा के बाद भी कांग्रेसी लांछन लगते रहे कि दोनों बड़े नोट (पांच सौ और हजार रूपए वाले) भाजपाइयों द्वारा भुना लिए गये थे। उन्हें पूर्व सूचना थी अर्थात काले धन को सफेद बना लिया गया था। 

नोटबंदी से सरकार के तीन लक्ष्य थे : (1) जाली नोट का चलन थमता, (2) काले धन पर अंकुश लग जाता, और (3) मादक द्रव्य तथा आतंकवादियों को आर्थिक मदद का उन्मूलन हो जाता। खुली संसदीय चर्चा से यह महत्वपूर्ण निर्णय तो पूर्णतया फिस हो जाता और कई अपराधियों को अवसर भरपूर मिल जाता। प्रधानमंत्री ने घोषणा (8 बजे), मंगलवार, 8 नवंबर 2016 को की थी। रिजर्व बैंक का निर्णय ठीक ढाई घंटे पूर्व किया गया था। कानो कान खबर नहीं हुई थी।

ये भी पढ़े   ग्राहम बेल के टेलीफोन से आज के मोबाइल तक: यात्रा ट्रिंग-ट्रिंग, हेल्लो हेल्लो, रॉन्ग नंबर की

चार जजों ने पूर्ण सहमति व्यक्त की। सिवाय एक अकेली (न्यायमूर्ति नागरत्ना) के। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि : “नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत हुई थी। इसलिए हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी।” जस्टिस बी. आर. गवई ने सरकार के पक्ष में की टिप्पणी की और कहा कि केंद्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई भी खामी नहीं हो सकती, क्योंकि आरबीआई और सरकार के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इसलिए यह कहना प्रासंगिक नहीं है कि लक्ष्य हासिल हुआ या नहीं।”

नोटबंदी को गलत और त्रुतिपुर्ण बताने वाली 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि केंद्र के इस निर्णय में कुछ भी गलत नहीं था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ये फैसला RBI की सहमति और गहन चर्चा के बाद लिया गया है। इस बीच कोर्ट ने इस फैसले में कई बड़ी टिप्पणियां भी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये निर्णय एकदम सही था। कोर्ट ने इसी के साथ कहा कि 8 नवंबर 2016 को लाई गई नोटबंदी की अधिसूचना वैध थी और नोटों को बदलने के लिए दिया गया 52 दिनों का समय भी एकदम उचित था। नोटबंदी के फैसले को खारिज या बदला नहीं जा सकता है।

ठीक एक ऐसे वक्त पर विश्व बैंक की राय आयी कि भारत की अर्थव्यवस्था में 6.9 प्रतिशत होने वाली है। आज के इस फैसले से राष्ट्रीय अर्थनीति पटरी पर ही रहेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने ही 24 जून 2022 को इसी भांति नरेंद्र मोदी के विरूद्ध एक संवेदनशील याचिका खारिज कर दी थी। यदि तब वह अदालत स्वीकार कर लेती तो तभी, छः माह पूर्व ही भाजपा को नए प्रधानमंत्री की तलाश करनी पड़ती। वह थी, पत्रकार तीस्ता सीतलवाड द्वारा पेश श्रीमती जाकिया अहसान जाफरी की याचिका में आरोपी नरेन्द्र दामोदरदास मोदी 2002 के गुजरात दंगों के दोषी माने जाने की। यदि मोदी दण्ड के भागी बन जाते तो ? 

ये भी पढ़े   Child trafficking: Vulnerable in 7 North Bihar districts, 68 others in the country, 25-day combat operation to be launched from August 1

अत: उसी दिन राष्ट्रपति पद के लिये द्रौपदी मुर्मू के नामांकन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से वे कट जाते। नये भाजपा संसदीय नेता की खोज चालू हो जाती। मोदी के सार्वजनिक जीवन की सर्वथा इति हो जाती। राष्ट्र की प्रगति थम सी जाती। अर्थात ठीक वहीं दास्तां दोहरायी जाती जो 12 जून 1975, सैंतालीस साल पूर्व इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के लोकसभा निर्वाचन को निरस्त करने से उपजी थी। फिलहाल ऐसी दुरभिसंधि से मोदी महफूज रहे।

तब जजों के लिखा था कि तीस्ता ने न्यायालय के सामने झूठे आरोप लगा कर पीठ को भ्रमित करने की कोशिश की। एक अवसर पर तीस्ता चाहती थी कि अदालत उसके समर्थक पुलिस अफसर संजय भट्ट का बयान मान ले क्योंकि वह ”सत्यवादी” हैं। यही भट्ट आजकल (पालनपुर) जेल में बंद हैं क्योंकि हिरासत में उन्होंने एक कैदी की हत्या करा दी थी। इसी भट्ट का वक्तव्य था कि 27 फरवरी 2002 के दिन मुख्यमंत्री (मोदी) ने गांधीनगर में अफसरों के बैठक में कहा था : ”मुसलमानों को सबक सिखाना है।” जजों ने कहा कि : तीस्ता का यह बयान भी बिलकुल झूठा निकला। तो यह है किस्साये-तीस्ता जिसने गणतंत्र के माननीय प्रधानमंत्री के विरुद्ध एक घिनौनी साजिश की थी। विफल हुयी। देश बच गया था। जैसे आज दोबारा !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here