देश के सांसदगण ‘सोच बदलो-देश बदलेगा’ से ‘ऊपर’ हैं, अन्यथा वे कहते: ”पहले विद्यालय, अस्पताल; फिर नया संसद और सुसज्जता”

नए संसद भवन के निर्माण के लिए नींव रखते देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी 

विगत दिनों विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी कोई सौ साल बाद भारतीय संसद के सांसदों के सम्मानार्थ और उनके द्वारा निष्पादित किये जाने वाले कार्य आधुनिक सुख-सुविधाओं से सज्ज हो, एक नए संसद भवन के निर्माण हेतु नींव डाले। स्वागत योग्य है। लेकिन, शायद उस अवसर पर प्रधान मंत्री इस बाद को भारतीय मतदाताओं को बताना भूल गए :

एक: प्रधान मंत्री यह बताना भूल गए कि नए संसद भवन की सुख-सुविधाओं को वे ही सांसद उपयोग कर पाएंगे, जो भारतीय शैक्षणिक संस्थाओं से “सही मायने में” न्यूनतम स्नातकोत्तर की उपाधि से अलंकृत होंगे।

दो: नए भवन में प्रवेश लेते समय उन्हें वाराणसी के मणिकर्णिका घाट में महादेव का क़सम खाना होगा (गीता पर हाथ रखकर नहीं) कि उनके संसदीय क्षेत्र में कोई भी “अनपढ़” नहीं रहेगा, कोई भी “भूखा” नहीं सोयेगा, कोई भी “चिकित्सा के अभाव में” मृत्यु को नहीं प्राप्त करेगा। गीता पर हाथ रखकर कसम खाने की बात प्रधान मंत्री इसलिए नहीं करेंगे कि उन्हें गीता पर विस्वास नहीं है। बल्कि इसलिए कहेंगे कि अगर गीता पर हाथ रखकर लोग सच बोलते, तो भारतीय न्यायपालिका में – जिला न्यायालय से सर्वोच्च  न्यायालय तक – कोई चार करोड़ से अधिक मुक़दमे लंबित नहीं होते मुद्दत से। यह बात भारत के राष्ट्रपति भी जानते हैं, न्यायपालिका के सम्मानित न्यायमूर्ति भी जानते हैं, देश के विधि मंत्री भी जानते हैं।  

तीन: कोई सांसद किसी भी गैर-क़ानूनी कार्यों में जुड़े होंगे। उनके ऊपर किसी भी प्रकार का कोई मुकदमा नहीं होगा (चाहे न्यायलय उन्हें दोषी ठहराए अथवा नहीं) और ना ही, उनके संसदीय क्षेत्रों में किसी भी प्रकार कर कोई आपराधिक घटनाएं होंगी। अगर ऐसी कोई भी घटना होती है तो अपने क्षेत्र के प्रथम-नागरिक होने के नाते उस घटना का जबाहदेह वे होंगे। लेकिन इन बातों को माननीय मोदीजी नहीं कहे। 

सवाल यह है कि सौ वर्ष बाद प्रधान मंत्री देश को एक नए संसद भवन की आवश्यकता हो गई, यह समझ गए। लेकिन माननीय प्रधान मंत्री देश के  लोग आज जिस हालात में गुजर रहे हैं, चाहे शिक्षा की बात हो, स्वास्थ की बात हो, रोजगार की बात हो, उद्योग की बात हो, न्याय की बात हो, कानून-व्यवस्था की बात हो – इस बात को नहीं सोचे।  शायद इसे आवश्यक नहीं समझा गया।  भले राज्य सभा और लोक सभा के कुल सदस्यों की संख्या में आधे से अधिक माननीय सदस्य गण स्कूली-शिक्षा भी प्राप्त और पूरा नहीं किये हों। अब अगर देश के सांसद विद्यालय नहीं देखे हों,वे न तो देश के बच्चों के लिए, छात्र-छात्राओं के लिए विद्यालयों की आवश्यकता को समझेंगे और न ही उसके निर्माण को। 

अगर ऐसा होता तो आज कोई आठ सौ सांसद देश के 130 करोड़ लोगों के लिए पहले विद्यालय की, अस्पतालों की, रोजगारों के लिए आवाज उठाते, संसद के नए भवन के निर्माण हेतु “ताली नहीं बजाते”। जैसे आम जीवन में माता-पिता अपने पेट को काटकर पहले बच्चों को खिलाते हैं, जीवित रखने का हर प्रयास करते हैं; देश के ये सभी चयनित नेतागण जो देशवासियों का प्रतिनिधित्व करत्ते हैं – कह सकते थे ‘पहले विद्यालय, अस्पताल; फिर संसद और सुसज्जता। लेकिन नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधान मंत्री मोदी जी का स्लोगन “सोच बदलो – देश बदलेगा” इन सांसदों पर कोई अनुकूल प्रभाव नहीं डाल पाया। 

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एक आंकड़े के अनुसार, आज देश की सम्पूर्ण आवादी का कोई 21.9  फीसदी (269.8 मिलियन) लोग गरीब हैं और सरकार तथा समाज द्वारा खींची गयी गरीबी रेखा के नीचे हैं। शिक्षित लोगों संख्या भी 77 फीसदी कागज पर है जबकि जमीनी सतह पर कुछ और। लाख प्रयत्न के बाद भी महिलाओं को अभी तक रसोई से बाहर निकलने का मौका नहीं मिला है। सांसदों  की कुल संख्या में न्यूनतम 240 + संख्या महिलाओं की होनी चाहिए, नहीं है और जो हैं उन्हें उँगलियों पर गिन सकते हैं। भारत में आज भी समस्त 633 जिलों को मिलकर 12 लाख विद्यालय प्रारंभिक शिक्षा-शिक्षण दे रहे हैं। देश के 130 करोड़ आवाम के लिए महज 70,000 सरकारी अस्पताल हैं। जहाँ तक बेरोजगारों का सवाल है, यह तो सरकारी आंकड़े भी 26.58 मिलियन लिखते हैं। 

बहरहाल, विगत 10 दिसंबर को  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नए संसद भवन की आधारशिला रखी। उनके अनुसार नया भवन आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि का एक स्वाभाविक हिस्सा है।आजादी के बाद पहली बार लोगों की संसद बनाने का यह एक शानदार अवसर होगा, जो 2022 में स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह पर ‘न्यू इंडिया’ की जरूरतों और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करेगा।

भारत ही नहीं, बल्कि विश्व का इतिहास और पुरातत्व गवाह है कि भारत का वर्तमान संसद भवन विश्व के शानदार भवनों में से एक है जिसका निर्माण अंग्रेजो के द्वारा वर्ष 1921 में शुरू किया गया था और यह 1927 में बनकर तैयार हुआ था। भवन के निर्माण कार्य में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई थी। जबकि नए संसद भवन के निर्माण पर 971 करोड़ खर्च होंगे। वर्तमान संसद भवन का शिलान्यास ड्यूक आफ कनाट ने किया था और इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने किया था।

मोदीजी ने कहा कि आज का अवसर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक मील का पत्थर है, जो भारतीयता के विचार से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत के संसद भवन के निर्माण की शुरुआत हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं के सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है। उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा कि वे साथ मिलकर संसद के इस नए भवन का निर्माण करें। उन्होंने कहा कि हमारी संसद की इस नई इमारत से कुछ भी अधिक सुंदर या अधिक शुद्ध नहीं हो सकता, जब भारत अपनी आजादी के 75 साल मनायेगा।वर्तमान  संसद भवन विश्व के किसी भी देश में उपस्थित वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है।  इसका डिजाइन उस समय के मशहूर वास्तुविद लुटियंस ने किया था और इसका निर्माण कार्य सर हर्बर्ट बेकर के निरीक्षण में संपन्न हुआ था। गोलाईदार गलियारों के कारण शुरू में सर्कलुर हाउस कहा जाता था।

संसद भवन

ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन के लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने 1912-1913 में ब्रिटिश भारत के लिए एक नई प्रशासनिक राजधानी बनाने के लिए अपने व्यापक जनादेश के हिस्से के रूप में डिजाइन किया था। ऐसा कहा जाता है कि 11 वीं शताब्दी के चौसठ योगिनी मंदिर की गोलाकार संरचना ने भी भवन के डिजाइन को प्रेरित किया होगा। संसद भवन का निर्माण 1921 में शुरू हुआ और यह 1927 में बनकर तैयार हुआ था। 

प्रधानमंत्री ने उस क्षण को याद किया जब उन्होंने 2014 में संसद सदस्य के रूप में पहली बार संसद भवन में प्रवेश किया था। उन्होंने कहा कि पहली बार संसद भवन में प्रवेश करने से पहले, उन्होंने सिर झुकाया और लोकतंत्र के इस मंदिर को प्रणाम किया। उन्होंने कहा कि नए संसद भवन में कई नई चीजें तैयार की जा रही हैं जो संसद सदस्यों की दक्षता में वृद्धि करेंगी और उनकी कार्य संस्कृति को आधुनिक बनाएंगी। उन्होंने कहा कि यदि पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद भारत को दिशा दी, तो नया भवन देश को’आत्मनिर्भर’बनाने का साक्षी बनेगा।

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यदि पुराने संसद भवन में देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए काम किया गया था, तो 21वीं सदी की भारत की आकांक्षाओं को नए भवन में पूरा किया जाएगा।ज्ञातब्य हो कि इस ऐतिहासिक संसद भवन का उद्घाटन समारोह, जो तब इम्पीरियल काउंसिल में रखा गया था, 18 जनवरी 1927 को लॉर्ड इरविन , भारत के वायसराय द्वारा किया गया था। केंद्रीय विधान सभा का तीसरा सत्र 19 जनवरी 1927 को इस सदन में आयोजित किया गया था। पूरी इमारत का आकार गोलाकार है, जो अशोक चक्र पर आधारित है।भवन के केंद्र में सेंट्रल चैंबर है, और इसके चारों ओर अर्धवृत्ताकार हॉल हैं, जिनका निर्माण चैंबर आॅफ प्रिंसेस के सत्रों के लिए किया गया था (अब इसे लाइब्रेरी हॉल के रूप में उपयोग किया जाता है),राजय परिषद (अब राज्यसभा के लिए उपयोग किया जाता है) और केंद्रीय विधानसभा सभा (अब लोकसभा के लिए प्रयुक्त)। इमारत बड़े उद्यानों से घिरी हुई है और परिधि को बलुआ पत्थर की रेलिंग ( जाली ) से निकाल दिया गया है।संसद भवन का व्यास 170.69 मीटर है. इसकी परिधि 1/2 किलोमीटर से अधिक है. संसद भवन लगभग छह एकड़ में फैला हुआ है. इसमें 12 दरवाजे हैं, जिसमें गेट नम्बर 1 मुख्य द्वार है. पार्लियामेंट के पहले तल का गलियारा 144 मजबूत खंभों पर टिका है. प्रत्येक खंभे की लम्बाई 27 फीट (8.23 मीटर) है।

नए संसद भवन के निर्माण के लिए नींव रखते देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी 

बहरहाल, प्रधानमंत्री ने कहा कि अन्य जगहों में लोकतंत्र चुनाव-प्रक्रियाओं, शासन और प्रशासन से जुड़ा है। लेकिन भारत में लोकतंत्र जीवन मूल्यों के बारे में है, यह जीवन की पद्धति है और राष्ट्र की आत्मा है। उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र सदियों के अनुभव के माध्यम से विकसित एक प्रणाली है। भारत के लोकतंत्रमें एक जीवन मंत्र है, जीवन का एक तत्व है और साथ ही व्यवस्था की एक प्रणाली भी है। उन्होंने कहा कि यह भारत की लोकतांत्रिक ताकत है जो देश के विकास को नई ऊर्जा दे रही है और देशवासियों को नया विश्वास दे रही है। उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र का हर साल निरंतर नवीनीकरण होता है और यह देखा जाता है कि हर चुनाव के साथ मतदाताओं की संख्या बढ़ती जा रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में लोकतंत्र हमेशा से शासन के साथ मतभेदों को हल करने का एक साधन रहा है। विभिन्न विचारधाराएं, विभिन्न दृष्टिकोण एक जीवंत लोकतंत्र को सशक्त बनाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र इस लक्ष्य के साथ आगे बढ़ा है कि मतभेदों के लिए हमेशा जगह रहती है क्योंकि यह प्रक्रिया से पूरी तरह से पृथक भी नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि नीतियां और राजनीति भिन्न हो सकती हैं, लेकिन हम जनता की सेवा के लिए हैं और इस अंतिम लक्ष्य के लिए कोई विभेद नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बहसें, संसद के भीतर हों या बाहर, लेकिन इन बहसों में राष्ट्रसेवा के प्रति दृढ़ संकल्प और राष्ट्रहित के प्रति समर्पण निरंतर परिलक्षित होना चाहिए।प्रधानमंत्री ने लोगों से यह याद रखने का आग्रह किया कि लोकतंत्र के प्रति आशावाद को जगाये रखने की जिम्मेदारी लोगों की ही है, और यही संसद भवन के अस्तित्व का आधार है।

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उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि संसद में प्रवेश करने वाला प्रत्येक सदस्य जनता के साथ-साथ संविधान के प्रति भी उत्तरदायीहोता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के इस मंदिर का अभिषेक करने के लिए कोई रीति-रिवाज़ नहीं हैं। लोगों के प्रतिनिधि जो इस मंदिर में आयेंगे, वे ही इसका अभिषेक करेंगे। उन्होंने कहा कि उनका समर्पण, उनकी सेवा, आचरण, विचार और व्यवहार इस मंदिर का जीवन बन जाएगा। भारत की एकता और अखंडता के प्रति उनके प्रयास ऐसी ऊर्जा बन जाएंगे, जो इस मंदिर को जीवन प्रदान करेंगे। उन्होंने कहा कि जब प्रत्येक जनप्रतिनिधि अपने ज्ञान, बुद्धिमत्ता, शिक्षा और अनुभव को यहां पूरी तरह से प्रस्तुत करेगा, तो यह नया संसद भवन पवित्रता प्राप्त करेगा।प्रधानमंत्री ने लोगों से आग्रह किया कि वे भारत को सबसे पहले रखने का संकल्प लें, केवल भारत की प्रगति और भारत के विकास की पूजा करें, हर निर्णय देश की ताकत बढ़ाए और देश का हित सर्वोपरि हो। उन्होंने सभी से प्रतिज्ञा लेने को कहा कि उनके लिए राष्ट्रहित से बड़ा कोई हित नहीं होगा। देश के लिए उनकी चिंता उनकी अपनी व्यक्तिगत चिंताओं से अधिक महत्वपूर्ण होगी। देश की एकता, अखंडता से ज्यादा उनके लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं होगा। देश के संविधान की गरिमा को बनाये रखने और आदर्शों को पूरा करना ही उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होगा।

बहरहाल, एक आंकड़े के अनुसार, आज देश की सम्पूर्ण आवादी का कोई 21.9  फीसदी (269.8 मिलियन) लोग गरीब हैं और सरकार तथा समाज द्वारा खींची गयी गरीबी रेखा के नीचे हैं। शिक्षित लोगों संख्या भी 77 फीसदी कागज पर है जबकि जमीनी सतह पर कुछ और। लाख प्रयत्न के बाद भी महिलाओं को अभी तक रसोई से बाहर निकलने का मौका नहीं मिला है। सांसदों  की कुल संख्या में न्यूनतम 240 + संख्या महिलाओं की होनी चाहिए, नहीं है और जो हैं उन्हें उँगलियों पर गिन सकते हैं। भारत में आज भी समस्त 633 जिलों को मिलकर 12 लाख विद्यालय प्रारंभिक शिक्षा-शिक्षण दे रहे हैं। देश के 130 करोड़ आवाम के लिए महज 70,000 सरकारी अस्पताल हैं। जहाँ तक बेरोजगारों का सवाल है, यह तो सरकारी आंकड़े भी 26.58 मिलियन लिखते हैं। 

बहरहाल, टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने पिछले महीने मौजूदा संसद भवन के पास नये भवन के निर्माण के लिए टेंडर हासिल किया था। इसका निर्माण सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत किया जा रहा है. नया संसद भवन त्रिकोणीय होगा। लोकसभा सचिवालय के अनुसार संसद की नई बिल्डिंग में हर सांसद के लिए अलग कार्यालय होगा और हर कार्यालय सभी आधुनिक डिजिटल तकनीकों से लैस होगा। नए संसद भवन में कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, सांसद लॉज, लाइब्रेरी, कमेटी रूम, भोजनालय और पार्किंग की व्यवस्था होगी। इस भवन में 1400 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की जाएगी। 

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