आइये, वातानुकूलित कक्ष में बैठकर ‘डिजिटली बैठक में गपिया कर’, कोरोना जी को भारत से जाने का निहोरा करें 

आप क्या कहते हैं? नो पॉलिटिक्स प्लीज 

चलिए छोड़िये, डॉ हर्षवर्धन को छोड़कर आपने कहीं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी या अन्य महानुभावों को – मोहतरमा और मोहतरम सहित – देश के किसी भी कोरोना संक्रमित चिकित्सालयों में भ्रमण-सम्मेलन करते देखा है? आपने देश के किसी भी मुख्यमंत्रियों को, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्रियों को,  स्वास्थ्य सचिवों को जीवन-मृत्यु से जूझते संक्रमित मरीजों के लिए ऑक्सीजन का सिलिण्डर उठाकर ले जाते देखा है ? या अभी तक राज्यों के कोई भी उच्च न्यायालय ने अपने-अपने प्रदेशों की सरकारों को आदेश दी है कि वह किसी भी कीमत पर अस्पतालों में / चिकित्सालयों में ऑक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था तत्काल प्रभाव से करे या अनुशासनिक कार्रवाई के लिए तैयार रहे ? नहीं न।

काश !!!!! महाराजाधिराज दरभंगा जीवित होते !!!! जो जीवित हैं उनसे तो अपेक्षा करना ही व्यर्थ है। 

आज सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आया जिसमें उसने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि शीर्ष अदालत के अगले आदेश तक रोजाना दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति जारी रखनी होगी । साथ ही न्यायालय ने कहा कि इस पर अमल होना ही चाहिए तथा इसके अनुपालन में कोताही उसे “सख्ती” करने पर मजबूर करेगी। 

न्यायालय का आदेश सर-माथे पर।  देश का प्रत्येक नागरिक, जो सांस ले रहा है, शीर्ष अदालत के आदेश का सम्मान करता है। लेकिन अगर यह प्रश्न पूछना न्यायालय के सम्मान पर ठेस नहीं हो तो एक एक सवाल उठता है कि क्या दिल्ली ही भारत है ? क्या दिल्ली के अस्पतालों में ही कोविड-संक्रमित या अन्य मरीज जीवन-मृत्यु से जूझ रहे हैं ? क्या दिल्ली के लोगों की जिंदगी ही बहुत महत्वपूर्ण है ? जबकि सम्पूर्ण देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोग, बच्चे, वृद्ध, युवक, युवतियां, महिलाएं, दिव्यांग जीवन-मृत्यु से जूझ रहे, एक-एक सांस के लिए तड़प रहे। उनके लिए शीर्ष अदालत की क्या सोच है ? देश के अन्य राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के लिए क्या आदेश है ताकि वहां भी लोगों की जान बच सके ? वे भी तो भारत के ही लोग है।  वे भी तो देश के मतदाता ही है।  वे भी देश की अर्थव्यवस्था में अपना-अपना योगदान देते हैं। फिर उनके साथ यह दोहरी नीति क्यों? शीर्ष अदालत तो स्वयं सक्षम है आदेश निर्गत करने के लिए – एक साथ सबों को। 

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सरकारी आंकड़ों के हिसाब से आज सुवह आठ बजे तक भारत की चौहद्दी के अंदर 2,34,083 कोरोना संक्रमित लोग मृत्यु को प्राप्त किये हैं, जबकि दिल्ली में अब तक 18398+335 लोगों की सांसे अटकी है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि केंद्र को राष्ट्रीय राजधानी को हर दिन 700 मीट्रिक टन तरल चिकित्सीय ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।

दो दिन पहले, शीर्ष अदालत ने दिल्ली को कोविड के मरीजों के लिए 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति के निर्देश का अनुपालन नहीं करने पर केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा शुरू की गई अवमानना की कार्यवाही पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि ‘‘अधिकारियों को जेल में डालने से” ऑक्सीजन नहीं आएगी और प्रयास जिंदगियों को बचाने के लिए किए जाने चाहिए। पीठ ने कहा, “हम चाहते हैं कि दिल्ली को हर दिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाए और यह होना ही चाहिए, हमें उस स्थिति में आने पर मजबूर न करें जहां हमें सख्त होना पड़े।”

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई कार्यवाही में दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने शुक्रवार को पीठ को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी को “आज सुबह नौ बजे तक 86 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिली और 16 मीट्रिक टन मार्ग में है। साथ ही कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक दिन के लिए आपूर्ति की गई और फिर “टैंकर नहीं हैं” और परिवहन में दिक्कतें हैं जैसे कई विरोध-पत्र दायर किए जा रहे हैं। पीठ के लिए न्यायमू्र्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने शुक्रवार को सुनवाई से पहले मुद्दे पर न्यायमूर्ति शाह से विचार-विमर्श किया है और दिल्ली को हर दिन 700 मीट्रिक टन एलएमओ दिए जाने को लेकर सर्वसम्मति बनी है।

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पीठ ने कहा, “हम चाहते हैं कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन एलएमओ दी जाए और हमारा मतलब है कि यह निश्चित तौर पर होना चाहिए। इसकी आपूर्ति करनी ही होगी और हम दंडात्मक कार्रवाई नहीं करना चाहते। हमारे आदेश को अपलोड होने में दोपहर तीन बजेंगे लेकिन आप काम पर लगें और ऑक्सीज का प्रबंध करें।’’ इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह पूरे भारत में वैश्विक महामारी की स्थिति है और हमें राष्ट्रीय राजधानी को ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने के तरीके तलाश करने होंगे।

बहरहाल, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भारत के किसी भी कोरोना संक्रमित चिकित्सालय का निरीक्षण अथवा भरम नहीं की हैं। वैसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं गए हैं। इतना ही नहीं,  भारत के कुल  3,287,263 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में फैले विधान सभा, विधान परिषद्, लोक सभा, राज्य सभा के विधायिका और संसदीय क्षेत्र से आने वाले कुल 5443 राजनेतागण, जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी सम्मिलित हैं; देश में आये इस कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को, चिकित्सालयों का भ्रमण-सम्मलेन नहीं किए हैं। दिल्ली सल्तनत में बैठ कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिआ गाँधी भी संभवतः 10-जनपथ के मुख्य द्वार तक भी नहीं आयी होंगी। उनकी सुरक्षा कवच बनाये रखने वाले सुरक्षा-कर्मियों से उनका, या उनके परिवार, परिजनों का हाल चल पूछीं होंगी; लेकिन केंद्र सरकार पर कोरोना वायरस महामारी को लेकर अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटने और जनता को निराश करने का आरोप लगा दी। इतना ही नहीं, वे कहती हैं “मौजूदा  हालात पर चर्चा के लिए तत्काल एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए।” सवाल यह है कि क्या ये राजनेता सभी एकत्रित होंगे? क्या सभी एक साथ चलकर देश में तड़पते, बिलखते, मरते लोगों से, उनके परिवार-परिजनों से रूबरू होंगे? उन्हें तत्काल ऑक्सीजन सिलिंडर उठाकर अपने हाथों से पहुंचाएंगे? शायद नहीं और यह भारत के 130 + करोड़ लोगों और मतदाताओं के लिए एक दिवास्वप्न ही रहेगा। 

सोनिया गाँधी “जबाबदेही” तय करने की बात कर रही हैं।  सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष अपनी लोक सभा संसदीय क्षेत्र रायबरेली के मतदाताओं का हाल-चल पूछने व्यक्तिगत रूप से गयी हैं? वे भी तो सरकार और उसके नुमाइंदों की तरह “डिजिटल बैठक” करती हैं और कहती हैं कि “स्वास्थ्य संबंधी संसद की स्थायी समिति की बैठक बुलाई जाए ताकि महामारी से बेहतर ढंग से निपटने के लिए कदम उठाना और जवाबदेही तय करना सुनिश्चित हो सके।” यहाँ तो “अस्थायी उपचार का भी नामोनिशान नहीं है, और स्थायी बैठक की बात करती हैं। “

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सोनिया जी कहती हैं कि ‘‘देश एक अप्रत्याशित स्थिति का सामना कर रहा है। हजारों लोगों की मौत हो गई है और लाखों लोग बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह देखना दुखद है कि लोग अस्पतालों में और सड़कों पर अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं तथा किसी भी तरह चिकित्सा सुविधा चाहते हैं।’’ लेकिन क्या भारत का एक नागरिक होने के नाते, एक ऐतिहासिक राजनीतिक पार्टी की अध्यक्ष होने के नाते खुद उन तड़पते, मरते, बिलखते लोगों के लिए क्या की? क्या इसका जबाब है उनके पास? शायद नहीं। 

उन्होंने सवाल किया, ‘‘ मोदी सरकार क्या कर रही है? लोगों की पीड़ा और दर्द को कम करने की बजाय उसने जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों से पल्ला झाड़ लिया है।’’ लेकिन भारत के लोग ही नहीं, कांग्रेस पार्टी के जमीनी कार्यकर्त्ता उनसे भी सवाल पूछ रही है कि उन्होंने उनके लिए, इस त्रादसी के समय क्या किया? सोनिया गाँधी दावा करती हैं और कहती है कि ‘‘विशेषज्ञ की सलाह की उपेक्षा करते हुए मोदी सरकार ने ऑक्सीजन, दवाओं और वेंटिलेंटर की आपूर्ति को मजबूत नहीं किया। हमारे लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार टीकों का समय पर ऑर्डर देने में विफल रही। इसके साथ ही, वह उन परियोजनाओं के लिए हजारों करोड़ रुपये आवंटित करती रही जिसका जनता के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है।’’ 

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