दरभंगा राज के कुमार यज्ञेश्वर सिंह का पार्थिव शरीर अपने अनुज के बच्चों को देखने हेतु तरस रहा था, लेकिन वे नहीं आये

बौआ कत छह........ राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का पार्थिव शरीर और प्रतीक्षा करती आखें

दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह तीन-तीन पत्नियों के होते हुए ‘संतानहीन’ मृत्यु को प्राप्त किये । लेकिन अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपने छोटे भाई दरभंगा के राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह और उनके पुत्रों को किसी भी स्तर पर कमजोर नहीं होने दिए। संपत्ति की तो बात ही नहीं करें। कल, राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के मझले पुत्र और राज दरभंगा के अंतिम राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह इस संसार से अनंत यात्रा पर निकल गए। कल 78 वर्ष की आयु में उनके पार्थिव शरीर को अग्नि के रास्ते महादेव के पास भेजा गया। कोरोना काल होने के बावजूद दरभंगा के ‘संवेदनशील महामानव’ आत्मा और शरीर के साथ राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह की पार्थिव शरीर को अंतिम विदाई दिए। दरभंगा राज के कुमार यज्ञेश्वर सिंह का पार्थिव शरीर अपने अनुज के बच्चों को देखने हेतु तरस रहा था, लेकिन वे नहीं आये…. वैसे दरभंगा राज की संस्कृति को बचने की बात, गरिमा को बचने की बात करते नहीं थकते।

राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह महाराज सर कामेश्वर सिंह के मझले भतीजे थे। वे अपने पिता और माता प्रेम किशोरी के राज दुलारे थे। माधेश्वर परिसर में कल शाही सम्मान के साथ दाह संस्कार किया गया। राजबहादुर विशेश्वर सिंह की दूसरी पत्नी के एकमात्र पुत्र थे राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह। मुखाग्नि बड़े पुत्र रत्नेश्वर सिंह ने दी। दरभंगा राज की परंपरा के अनुसार मुखाग्नि का कार्यक्रम 10 बजे के पूर्व संपन्न हुआ। दाह संस्कार के बाद 17 जनवरी से 13 दिनी कार्यक्रम माधेश्वर मंदिर परिसर में होगा। मौके पर दिवंगत यज्ञेश्वर सिंह के अनुज कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्रों को छोड़कर राज परिवार के कई सदस्य उपस्थित थे। 

माधवेश्वर परिसर दरभंगा राज की श्मशान भूमि है और यहां उनके परिवार के लोगों के अंतिम संस्कार होते हैं। इस परिसर में दर्जन भर मंदिर हैं और उनमें से अधिकतर मंदिर किसी न किसी महाराजा या महारानी की चिता पर बने हैं। श्यामा मंदिर महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर बना है। माधेश्वर मंदिर परिसर में दरभंगा राज परिवार के लोगों का दाह संस्कार इसके निर्माण के बाद से किया जा रहा है। सन 1775 में इसका निर्माण दरभंगा के तत्कालीन महाराज माधेश्वर सिंह ने कराया था। मंदिर निर्माण के बाद उनका निधन वाराणसी में हो गया। वहीं पर दाह-संस्कार किया गया। वहां से उनकी अस्थियां लाई गईं और मंदिर परिसर के एक स्थान पर रखी गईं। इसके बाद से यह परंपरा शुरू की गई कि जब भी राज परिवार में किसी का निधन होता तो अर्थी पहले इस अस्थि स्थल के पास रखी जाती है। फिर परिसर में स्थित श्मशान भूमि पर ले जाकर अंत्येष्टि की प्रक्रिया की जाती है। परिसर में पहला दाह संस्कार राजा रूद्र सिंह का 1850 में हुआ। इसके बाद से अब तक राज परिवार के करीब दो दर्जन सदस्यों का दाह संस्कार हो चुका है। इनमें सात महाराजाधिराज और उनके परिवार के अन्य सदस्य शामिल हैं।

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बहरहाल, दरभंगा के लेखक-पत्रकार और छायाकार संतोष कुमार कहते हैं: “यूं तो विश्वेश्वर सिंह के तीन संतान थे – राजकुमार जीवेश्वर सिंह, यज्ञेश्वर सिंह और राजकुमार शुभेश्वर सिंह । लोगों का ऐसा मानना रहा महाराजा कामेश्वर सिंह के देहांत के बाद अगर राजगद्दी के लिए सुयोग्य राजकुमार कोई तो वह थे राजकुमार जीवेश्वर सिंह क्योंकि राजकुमार जीवेश्वर सिंह हर क्षेत्र में निपूण थे। जीवेश्वर सिंह की पढ़ाई इंग्लैंड में हुई थी और वह ज्ञान, स्वभाव से काफी निपुण थे, उनमें प्रशासकीय क्षमता कूट कूट कर भरी हुई थी। परंतु 1962 में दरभंगा महाराज के आकस्मिक निधन के बाद राज परिवार बिखर सा गया। कारण जो भी रहा हो, 15 जनवरी 1988 में राजकुमार जीवेश्वर सिंह का निधन हो गया और 2006 में सबसे छोटे राजकुमार शुभेश्वर सिंह का निधन दिल्ली में हो गया।” 

राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का जन्म 5 जनवरी 1944 को विश्वेश्वर निवास महल जो कि वर्तमान में दरभंगा का पोस्टल ट्रेनिंग सेंटर, बेला है, में हुआ था। राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह की प्रारंभिक, प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा यही इसी शहर दरभंगा से ग्रहण किया था । उन्हें किताबों के बीच रहना पसंद था। इनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग किताबें ही थी । एक दार्शनिक रूप में इन्होंने अपने आप को अंतिम समय तक खड़ा कर लिया था । दरभंगा महाराज के गुजरने के बाद जहाँ पूरा राजपरिवार उथल-पुथल हो गया था, वही राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का 1962 से 1970 तक एक महत्वपूर्ण जीवन शैली में देखा गया जो इस राज परिवार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

“एक था राजकुमार: स्मृति शेष” में संतोष कुमार लिखते हैं: “1965 में राजकुमार ने फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी की स्थापना की । उस कंपनी का नाम था विजय सिचित्रा । उन्होंने इस कंपनी का नाम अपनी पत्नी के नाम पर रखा। उनकी पत्नी का नाम रानी विजय किशोरी है एवं चित्रा, जो मुंबई की एक कंपनी थी, दोनों ने मिलकर।  यह कंपनी बिहार, बंगाल, उड़ीसा, बांग्लादेश, भूटान तथा नेपाल में फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का जिम्मा लिया। इस कंपनी के द्वारा ही उन्होंने 1965 से लेकर 1969 तक की चार सुपरहिट फिल्मों का डिस्ट्रीब्यूशन भी किया। जिनमें से 1965 टार्जन और सर्कस, 1968 में झुक गया आसमां, 1968 में ही जुआरी और 1969 में शम्मी कपूर की सुपरहिट फिल्मों में शुमार प्रिंस थी।  

यह बात छुपी हुई नहीं है कि इन फिल्मों के द्वारा जहां शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, शशि कपूर, सायरा बानो, वैजयंती माला आदि कलाकारों ने पूरे भारत में अपने अभिनय का परचम लहराया, वही इन फिल्मों के गाने लोगों की जुबान पर रटे जा चुके थे। महत्वपूर्ण यह है कि उत्तर भारत में मिथिलांचल के क्षेत्रों में भी इन फिल्मों का प्रकाशन का जिम्मा कुमार यज्ञेश्वर सिंह के कंधे पर ही था। सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा था परंतु जिस प्रकार इतिहास गवाह है कि राजे रजवाड़ों का सप्ताह में कई प्रकार के परिवेश बदलते रहते हैं, ठीक ऐसा ही बदलाव इस दरभंगा के राजघरानों में भी हुआ। 

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संतोष कुमार आगे लिखते हैं : “बहुत सारी किवदंतियां इस राज परिवार में भी सुनने को मिली और उसका सबसे बड़ा प्रभाव राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह पर ही पड़ा। राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह को कई शौक थे जिसमें पशुओं के बीच रहना भी उनका एक शौक था। जानकारों की मानें तो पूरे विश्व के दर्जनों प्रकार के कुत्तों को उन्होंने विशेश्वर सिंह पैलेस में पाल हुआ था, जो शौक उनके पिताजी को भी था। साथ ही, एक भोजन प्रिय होने के साथ-साथ वह बेहतर बावर्ची का भी काम कर लेते थे। वह अपने जीवन के अंतिम दिनों तक मछली उनका सबसे प्रिय आहार रहा। राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह एक बेहतर संगीतकार भी थे गायन के साथ साथ हारमोनियम तथा गिटार बजाने की कला में भी निपुण थे।

पारिवारिक एवं राजनीतिक विविधताओं से हटकर उन्होंने अपने आप को एक कमरे में सीमित कर लिया और जीवन जीने के लिए दर्शनशास्त्र, इतिहास और राजनीति तथा सामाजिक विज्ञान के पुस्तकों का सहारा लिया। लोगों का ऐसा मानना है कि लगभग 35 वर्षों से वह एक कमरे में रहने के बावजूद भी अपने एक नौकर जो कि उनका भोजन तैयार करता था, के हाथों ही भोजन किया करते थे। 

संतोष कुमार लिखते हैं: “मैं कई बार उनसे मिलने गया परंतु उनसे बात ना हो पायी। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जब मैंने उनके कमरों को देखा जैसा कि मैंने कल भी उनके कमरे का निरीक्षण किया मुझे खिड़कियों, पलंगों कुर्सियों एवं यत्र तत्र कलम का गुच्छा ही दिखाई दिया जो की चीख चीख कर कह रहे थे कि उन्होंने कितनी सारी किताबें लिख डाली, सैकड़ों किताबें चीख चीख कर कह रही थी कि मैं इनका गवाह हूं और वह इंसान मेरे सामने आज सांस विहीन पड़ा हुआ है।”

उनके बड़े पुत्र कुमार रत्नेश्वर सिंह बताते है कि मेरे पिताजी का स्वभाव काफी सालिन रहा और वह पूरे दिन पठन-पाठन का कार्य करते रहते थे। लगातार 35 वर्षों से मैंने उनको कभी कोई ऐसा दिन ना देखा हो जब वह अपने किताबों से दूर रहे हो। रत्नेश्वर सिंह ने बताया कि मेरे पिताजी कई किताबें लिख चुके हैं परंतु यह दुर्भाग्य रहा कि उन किताबों का प्रकाशन ना हो सका। वह किताबें दर्शनशास्त्र राजनीति और सामाजिक विज्ञान से संबंधित है। निश्चित ही अगर आने वाले भविष्य में उनके द्वारा शोध एवं लिखे गए बहुमूल्य लेखों को प्रकाशित किया जाए तो दरभंगा के राजपरिवार के साथ-साथ यहां के नागरिकों का भी मार्गदर्शन बेहतर रूप से हो सकेगा। 

राजा बहादुर विशेश्वर सिंह ने दो विवाह किया था। पहली पत्नी से दो पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह एवं राजकुमार शुभेश्वर सिंह हुए थे । दूसरी पत्नी रानी प्रेम किशोरी से मझले राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह हुए थे। एक संयोग ही कह सकते हैं कि बड़े कुमार राजकुमार जीवेश्वर सिंह का देहांत 15 जनवरी 1988 को हुआ था और राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का देहावसान 15 जनवरी को ही हुआ। और यह भी महज संयोग ही कह सकते हैं कि 15 जनवरी 1934 को मिथिलांचल के क्षेत्र में जो भूकंप ने कोहराम मचाया उसके निशान आज भी देखने को मिलते हैं कि राजनगर से लेकर दरभंगा तक जो राजपरिवार के बहुमूल्य इमारतों को हिला दिया था। 

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राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह के शरीर को पार्थिव होने के साथ सैकड़ों, हज़ारों, लाखों बातें उनके शरीर के साथ ही पार्थिव हो गया। कल उनके बड़े पुत्र रत्नेश्वर सिंह जी से बात भी हुई। बातचीत के दौरान यह मालूम हुआ कि राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह दरभंगा राज के “पुरुषों” में शायद पहला व्यक्ति थे जो अपने जीवन का 78 वसंत बिना किसी बीमारी और बिना किसी पारिवारिक-सामाजिक द्वेष से जीवित रहे। इनके पिता कुमार विश्वेश्वर सिंह, दोनों भाई – कुमार जीवेश्वर सिंह और कुमार शुभेश्वर सिंह, इनके चाचा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह, इनके दादा महाराजा रामेश्वर सिंह, महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह और दरभंगा राज के अन्य महाराजाओं का शरीर अधिकतम 60-65 वर्ष आते-आते “पार्थिव” हो गया। कुमार यज्ञेश्वर सिंह के दो पुत्र – कुमार रत्नेश्वर सिंह और रजनेश्वर सिंह – हैं। रजनेश्वर सिंह को एक पुत्र है – ऋत्विक सिंह।

बहरहाल, जब दरभंगा के लोगों के मुख से, राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह को चाहने वालों के मुख से, सगे-सम्बन्धियों से यह सुना कि राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह के छोटे भाई कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्र अपने चाचा के अंतिम यात्रा में शरीक नहीं हुए, मन विचलित हो गया। दरभंगा के अख़बारों में यह पढ़ते आया हूँ कि कुमार शुभेश्वर सिंह के छोटे पुत्र दरभंगा राज की संस्कृति को, गरिमा को बरकरार रखना चाहते हैं। लेकिन कैसी गरिमा, कैसी संस्कृति – यह स्पष्ट नहीं हो सका। फिर सोचा, मुद्दत से दिल्ली-दरभंगा हवाई सेवा के लिए मारा-मारी हुई। सरकार की और से यह सुविधा भी बहाल किया गया। मिथिला के गरीब-से-गरीब लोग अपने माता-पिता-परिजनों की मृत्यु की सूचना पाकर उनके अंतिम यात्रा में शामिल हुए, अन्तःमन से श्रद्धांजलि दिए। लेकिन, कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्र नहीं आये। कहते हैं वे ‘दिल्ली में रहते हैं’ – और दिल्ली तो अब दूर रही नहीं। अगर व्यक्ति दिल्ली से दरभंगा पहुंचना चाहता तो एक घंटा 30 मिनट – और राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का पार्थिव शरीर, उनका परिवार, दरभंगा के लोग जो उस शवयात्रा में शामिल हुए, राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह के अनुज के छोटे पुत्र का इंतज़ार अवश्य करते – आखिर रक्त का सम्बन्ध है। लोगों का कहना है कि दाह संस्कार समय तक ऐसा लगता था कि कुमार यज्ञेश्वर सिंह का पार्थिव शरीर अपने अनुज के बच्चों को देखने हेतु तरसता रहा हो। ……..

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