“जलपुरुष” का अपील “​गंगा पुत्र​”​ प्रधान मंत्री ​नरेन्द्र मोदी से: ​गंगा के साथ ”राष्ट्र माँ” जैसा व्यवहार करें

नई दिल्ली: रोमन मैग्सेसे अवार्ड, जमनालाल बजाज अवार्ड, स्टॉकहोम वॉटर प्राईज से अलंकृत भारत का जलपुरुष (वॉटरमैन) जब देश के प्रधान मन्त्री को “गँगा पुत्र” से अलङ्कृत करें, तो देश की संस्कृति और गँगा की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगते दिखाई देने लगता है। राजेन्द्र सिंह प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी को एक अपील में “गँगा पुत्र” क्यों कहे या क्यों लिखे यह तो वही बताएँगे, परन्तु अन्य सामाजिक-कार्यों से जुड़े लोगों की तरह “वाटरमैन” का अन्ततः “ठहराव” रायसीना हिल स्थित राज्य-सभा तो नहीं है ?

वैसे गँगा और शान्तनु के पुत्र देवव्रत, जिन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य जैसी प्रतिज्ञा लेके मृत्यु को भी अपने अधीन कर लिए थे और भीष्म पितामह के रूप में जाने गए, “गँगा पुत्र” के नाम से जाने जाते रहे हैं।

महाभारत के अनुसार भगवान् परशुराम के शिष्य “गँगा पुत्र भीष्म पितामह” शस्त्र विद्या के ज्ञानी थे। अपनी “भीष्म-प्रतिज्ञा” के कारण ही “महाभारत के गंगापुत्र” हस्तिनापुर का जीवनपर्यन्त “संरक्षण” किये।

अपील का यह प्रारूप जलपुरुष न्याय मूर्ति बी. देव गौडा, जनरल ए.के. सिंह, वेद प्रकाश वैदिक वरिष्ठ पत्रकार, अमरेन्द्र सिंह पंजाब, उमेन्द्र दत्त पंजाब, प्रेम कुमार हिमाचल प्रदेश, सुदर्शन दास उड़ीसा, जनरल गोवरधन सिंह जम्मू, महावीर त्यागी हरियाणा, ओसम बंदुपाध्य छत्तीसगढ़ को भी प्रेषित किया है। प्रारूप के नोट के उन्होंने लिखा है: “आदरणीय आपको प्रो. जी. डी. अग्रवाल की प्राणों की रक्षा के लिए एक अपील का प्रारूप भेजा रहा है, आप इससे सहमत हैं तो यह अपील स्वयं प्रधानमंत्री को आप अपने ईमेल से भेज दें। और उसकी सूचना हमें भी दे जिससे हम गंगा समूह में आपको शामिल कर सकें।”

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बहरहाल, जलपुरुष, राजेन्द्र सिंह​ ने प्रो. जी. डी. अग्रवाल की प्राण रक्षा हेतु ​एक ​अपील​ किया है।

जी डी अग्रवाल

अपील में कहा गया है कि प्रो. जी. डी. अग्रवाल के आमरण अंशसन का आज 23वां दिन है। उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। लेकिन भारत सरकार को एक भी चिंता नहीं है। अभी तक उनके साथ अनशन स्थल पर पहुंच कर किसी ने बातचीत नहीं की। हम सबको गंगा जी को बचाने हेतु उनके प्राणों की रक्षा करने की अपील करते हैं। जो देश अपनी संस्कृति, सभ्यता और इतिहास के स्मृति चिन्हों को याद नहीं रखता उस देश की, संस्कृति व सभ्यतायें मिट जाती है। इसलिए आज हम राष्ट्रीय महत्व की निष्प्राण स्मृतियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर सजों कर रखते हैं।
ताजमहल, लालकिला, खजुराहो के मन्दिर कुछ ऐसी ही स्मृतियां हैं। लेकिन जो जीवित हैं। राष्ट्रीय अस्मिता और पहचान के ऐसे जीवंत चिन्हों को हम राष्ट्रीय प्रतीक घोषित कर उनकी सुरक्षा, संरक्षा और संवर्धन के प्रति संकल्पबद्ध होते हैं। राष्ट्रीय पक्षी-मोर, राष्ट्रीय पशु-बाघ और राष्ट्रीय पुष्प-कमल कुछ ऐसे ही जीवंत प्रतीक हैं। धरोहर और प्रतीक के इस अंतर को अच्छे से जानर समझकर ही भारत सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था, लेकिन आजतक उसकी पालना के लिए कोई कानून नहीं बनाया। इसलिए राष्ट्र नदी गंगा का संरक्षण और प्रबंधन हेतु संवैधानिक मान्यता व संरक्षण की मांग भारत सरकार के सामने रखी है।

आखिरकार गंगा के प्रवाह को हम निष्प्राण कैसे मान सकते हैं?

भारत का समाज गंगा के नीर में नारी रूप के दर्शन करता है और इसे माँ मानकर पूजता है। गंगा में भारतीय संस्कृति के प्राण बसते हैं। गंगा की दो बूंद हमारे संस्कारों का हिस्सा है। मृत्यु पूर्व दो बूंद गंगा जल पाने की लालसा अभी मरी नहीं है। यह मरे नहीं। गंगा इसे जीवित रख सके। इसके लिए जरूरी है कि पहले गंगा खुद अमृतमयी बने।

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आज गंगा प्रदूषण, शोषण और अतिक्रमण की राक्षसी प्रवृतियों कब्जे में हैं। गंगा की प्रदूषण नाशनी शक्ति कहीं लुप्त हो गई है। मां गंगा आज कोमा में है। गंगा भारत की स्वच्छ, सदानीरा, समृद्ध नदियों तथा संस्कृति का प्रतिनिधि प्रवाह हैं आखिर! हम इसे कैसे मरने दे सकते हैं? जरूरी है कि गंगा का प्रवाह पुनः अमृतमयी बने। इसे राष्ट्रीय सम्मान मिले।

गंगा के पुत्र प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी गंगा के साथ राष्ट्र माँ का सा व्यवाहर करें। सभ्यतायें मर जाती हैं, मिट जाती हैं; लेकिन किसी राष्ट्र की संस्कृति का मर जाना, मिट जाना एक राष्ट्रीय आघात से कम नहीं। क्या भारत इतने बड़े आघात के लिए तैयार है? यदि नहीं! तो गंगा को संविधान और अपने मानस में एक राष्ट्रीय नदी प्रतीक के रूप में समान, सरक्षण, प्रबंधन करने वाला कानून बनाये।! आज हम सब संकल्पबद्ध होकर प्रधानमंत्री से कानून बनाकर प्रो. जी. डी. अग्रवाल (स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद जी) के प्राणों की रक्षा के लिए अपील करते हैं।

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