डा़ राजा रमन्ना केवल परमाणु वैज्ञानिक और प्रथम परमाणु परीक्षण के सूत्रधार ही नहीं थे, बल्कि एक बहुआयामी चरित्र के साथ-साथ एक कला प्रेमी भी थे।
बहुप्रतिभावान यह महान व्यक्तित्व जहां एक ओर वैज्ञानिक मस्तिष्क के धनी थे तो दूसरी ओर उनका दिल कला प्रेमी भी था। यह कहना कि डा़ राजा रमन्ना विज्ञान और कला का एक अप्रतिम मिश्रण थे कोई गलत नहीं होगा।
राजा रमन्ना के इस कला प्रेम को उकेरे बिना उनके व्यक्तित्व की व्याख्या सम्पूर्ण रूप से नहीं की जा सकती। उनका कला प्रेम अचानक या जीवन की किसी घटना विशेष के बाद उत्पन्न नहीं हुआ था बल्कि 28 जनवरी 1925 को कर्नाटक के टुमकुर में तिप्तुर नामक स्थान पर जन्मे राजा रमन्ना को बचपन से ही संगीत में गहरी रूचि थी। उनके पिता रमन्ना और मां रूकमणी ने उनके इस संगीत प्रेम को देखते हुए ही उन्हें पश्चिमी संगीत से अवगत कराया। उन्होंने प्रारम्भ से ही मुख्य रूप से साहित्य एवं पारम्परिक संगीत की शिक्षा ली।
राजा रमन्ना के कला प्रेमी दिल ने कभी वैज्ञानिक सोच का भी साथ नहीं छोडा इसीलिए उन्होंने भौतिकी में जहां एक ओर मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से बीएसई की डिग्री हासिल की वहीं दूसरी ओर 1974 में पारम्परिक संगीत में बीए की डिग्री भी हासिल की। इसके बाद बॉम्बे यूनीवर्सिटी से एमएससी की वहीं संगीत विषय में भी मास्टर्स की डिग्री हासिल की। इसके पश्चात राष्ट्रमंडल छात्रवृत्ति मिलने के बाद वह डॉक्ट्रेट के लिए इंग्लैंड चले गये। लंदन यूनीवर्सिटी के किंग्स कॉलेज से परमाणु भौतिकी मे डॉक्ट्रेट की। उन्होंने परमाणु ऊर्जा अनुसंधान संस्थान में परमाणु ईंधन चक्रों और रिएक्टर डिजाइनिंग में विशेषज्ञता हासिल की।
यहां भी राजा रमन्ना का संगीत प्रेम बादस्तूर जारी रहा और ओपेरा तथा आर्केस्ट्रा कार्यक्रमों में वह हमेशा हिस्सा लेते रहे। यूरोपीय संगीत और दर्शन के जुनून को उनके यूरोप प्रवास के दौरान और परवाज मिली। यहां कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी उन्होंने अपनी संगीत कला का प्रदर्शन किया। यूरोप प्रवास के दौरान उन्होंने यूरोपीय संगीत और दर्शन के बारे में और जानकारी हासिल की तथा प्यानो वादन भी किया।
देश वापसी के बाद भी उनका संगीत प्रेम यूं ही बना रहा और पाकिस्तान में भी उन्होंने पारम्परिक प्यानो पर व्याख्यान देने के साथ साथ अपनी कला का प्रदर्शन भी किया। दूसरी ओर विज्ञान से उनका प्रेम भी किसी तरह कम नहीं हुआ। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू किये गये परमाणु कार्यक्रम से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों में से वह एक रहे।
डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल करने के बाद लौटकर वह डा़ होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में भाभा अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ तकनीकी दल का हिस्सा बने। वर्ष 1958 में उन्हें इस कार्यक्रम का मुख्य निदेशक अधिकारी(सीडीओ) बनाया गया। तत्पश्चात डा़ होमी जहांगीर भाभा के निधन के बाद राजा रमन्ना को इस कार्यक्रम का मुखिया बनाया गया।
डा़ राजा रमन्ना के नेतृत्व में देश ने पहला परमाणु परीक्षण किया और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नयी पहचान मिली। उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कई नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया। डा़ राजा रमन्ना को शांति स्वरूप भटनागर पुरूस्कार, पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण के पुरूस्कारों से सम्मानित किया गया।
परमाणु वैज्ञानिक के रूप में राजा रमन्ना की ख्याति विश्व भर में हो गयी। उनके काम और प्रतिभा से प्रसन्न होकर इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने 1978 में वहां गये डा रमन्ना के सामने उनके देश के लिए परमाणु बम बनाने का प्रस्ताव रखा। डा़ रमन्ना इस प्रस्ताव को ठुकराकर स्वदेश लौट आये।
देश के परमाणु कार्यक्रम और पहले परमाणु परीक्षण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले डा़ राजा रमन्ना परमाणु ऊर्जा के विध्वंसकारी पहलू से भी भलीभांति परिचित थे और इस विनाशकारी ऊर्जा के गलत हाथों में पड़ने से रोकने के सबसे बड़े पैरोकारों में से एक थे इसीलिए वह परमाणु अप्रसार के लिए कड़ी नीतियां बनाये जाने के पक्षधर रहे। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में शांति बनाये रखने और इस क्षेत्र में परमाणु टकराव रोकने में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभायी।
डा़ राजा रमन्ना ने 1984 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संस्थान(आईएईए) में शामिल हुए और इसके 30वें अधिवेशन की अध्यक्षता भी उन्होंने की। इसके बाद 1990 मे वह रक्षा राज्य मंत्री भी बनाये गये। वर्ष 1997 से 2003 तक वह राज्य सभा सदस्य भी रहे। परमाणु वैज्ञानिक के रूप मे इन व्यस्तताओं के बाद भी संगीत उनके दिल के काफी करीब बना रहा। इसी के चलते इतने व्यस्त जीवन में भी उन्होंने संगीत पर एक किताब “ द स्ट्रक्चर ऑफ म्यूजिक इन रागा एंड वेस्टर्न सिस्टम (1993) और आत्मकथा “ इयर्स ऑफ पिल्ग्रिमेज (1991)” भी लिखी।
डा़ राजा रमन्ना के व्यक्तित्व के साथ वैज्ञानिक और कला दोनों ही पक्ष मजबूती से जुड़े रहे और आजीवन उन्होंने इन दोनों ही पहलुओं के साथ सामंजस्य बिठाने और दोनों को मजबूत बनाने का काम किया। उनके जीवन से जुड़े वैज्ञानिक पहलू ने जहां एक ओर उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलायी वहीं संगीत ने उनके कलात्मक पहलू को मजबूत कर उनके व्यक्तित्व को संपूर्णता प्रदान की। कलात्मक और वैज्ञानिक सोच के अद्भुत संयोजन वाले डा़ राजा रमन्ना 24 सितम्बर 2004 में पंचतत्व में विलीन हो गये। (वार्ता के सौजन्य से)