पटना / नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जन्म (1 मार्च, 1951) के 15-साल बाद 1 जनवरी, 1966 को बिहार सहित भारत के सिनेमा गृहों में विश्व भारती फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के तहत आर. चंद्रा के निर्माण और निर्देशन में एक सिनेमा आया था। इस सिनेमा में तनूजा, राजीव, सुषमा शिरोमणि प्रमुख भूमिका में थे। सिनेमा का नाम था ‘नई उम्र की नई फसल’ और इसका शूटिंग हुआ था अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में।
इस सिनेमा में बहुत कर्णप्रिय गीत थे। उन्हीं गीतों में एक गीत श्री गोपालदास ‘नीरज’ द्वारा शब्दवद्ध था जो आज भी अपने शब्दों और संगीत के मोल से जीवित है, भले वर्तमान काल में लोगों का चरित्र लुढ़का-लुढ़की खेल रहा हो। कवि और लेखकों की बात नहीं करूँगा। साथ ही, उनके बारे में, उनकी दक्षता, कर्मण्यता के बारे में भी बात नहीं छेड़ूँगा जो प्रदेश के शिक्षा-पर्यटन मंत्रालय का भार अपने कंधे पर लिए बैठे हैं। क्योंकि उनके बारे में तो प्रदेश का बच्चा-बच्चा सहित देश के आलोचक, विश्लेषक सभी जानते हैं। खैर। उस गीत के संगीतकार थे रोशन और गायक थे मोहम्मद रफी साहब। कुछ याद आया ? गीत के बोल थे –
स्वप्न झड़े फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी
बाग़ के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाए धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िंदगी फिसल गई
पात पात झड़ गए कि शाख़ शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी, न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए
छंद हो दफ़्न गए …..
नीरज साहब का यह गीत शब्दों के माध्यम से जीवन की सच्चाई को इंद्रधनुष में ढूंढता है, सात रंगों में। नीरज कहते हैं कि हमारे स्वप्न फूल की तरह मुरझाकर गिर गए। जब जीवन में खुशियाँ नहीं होती हैं तब अपने अंतरंग मित्र भी शूल के समान लगने लगते हैं। नीरज के शब्द खड़ी बोली और उर्दू मिश्रित तो है ही, यह वर्णात्मक शैली और करुणा रस पर आधारित है ।
यह बात मुख्य रूप से बिहार के ‘ऐतिहासिक’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए लिख रहा हूँ ‘कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे।’ सुन रहे हो नीतीश। बिहार के निर्माण के बाद नीतीश कुमार इकलौता मुख्यमंत्री हैं जो अब तक के 21 पूर्व के मुख्यमंत्रियों से सबसे अधिक समय मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे हैं। लेकिन कल जब दिल्ली में पर्यटन मंत्रालय द्वारा भारत के संसद के ऊपरी सदन में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गाँव की सूची जारी किये तो नीतीश कुमार के प्रदेश के 45103 गाँव में एक्को गो गाँव का नाम नहीं दिखा ‘सर्वश्रेष्ठ’ गाँव की सूची में। उसे देख सोचने पर मजबूर हो गया – कौन सा विकास कर रहे हैं तथाकथित विकास पुरुष।
सुन रहे हैं नीतीश जी।
भारत में कुल 747 जिले, 5,410 तहसीलें और 6,49,481 गाँव है। इन गांव में आंध्र प्रदेश में 28,293 , अरुणाचल प्रदेश में 5,616 , बिहार में 45,103, असम में 26,247, छत्तीसगढ़ में 20,335, गुजरात में 18,676, हरियाणा में 7007, गोवा में 411, झारखण्ड में 32,623, हिमाचल में 20,752, केरल में 15,53, हिमाचल प्रदेश में 20,752, महाराष्ट्र में 44,198, मध्यप्रदेश 55,429, कर्णाटक 29,736, मेघालय 6,861, मणिपुर 2,639, नागालैंड में 1,454 , राजस्थान में 44,981, मिजोरम में 853, ओडिशा में 51,583, पंजाब में 51,583, सिक्किम में 460, तमिलनाडु में 17,089 पश्चिम बंगाल में 40,996, उत्तराखंड में 16,919, त्रिपुरा में 901, तेलंगाना में 10,430 और उत्तर प्रदेश में 1,07,753 हैं। बिहार के सहरसा जिले में बनगाँव, जिसकी पहचान सदियों से रही है, जनसँख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा गाँव है।
बहरहाल, पर्यटन मंत्रालय ने सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य ऐसे गांव को सम्मानित करना है, जो सांस्कृतिक और प्राकृतिक संपदा को संरक्षित करने वाले पर्यटन स्थल का सबसे अच्छा उदाहरण हो, समुदाय आधारित मूल्यों और जीवन शैली को बढ़ावा देता हो और आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय स्थिरता के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धता रखता हो। निम्नलिखित श्रेणियों के तहत आवेदन आमंत्रित किए गए थे: (i) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – हेरिटेज, (ii) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – कृषि पर्यटन, (iii) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – शिल्प, (iv) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – जिम्मेदार पर्यटन, (v) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – वाइब्रेंट विलेज, (vi) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – साहसिक पर्यटन, (vii) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – समुदाय आधारित पर्यटन और (viii) सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव – कल्याण। इन तमाम श्रेणियों में बिहार का एक भी गांव नहीं है जबकि बिहार में घुटना कद के नेता से लेकर मुख्यमंत्री तक, चपरासी से लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव तक, सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले सामाजिक सुधारक से लेकर दलालों तक – सभी बिहार है, बिहार है चिचियाते थकते नहीं।
कहते हैं कि आवेदन पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन प्रस्तुत किए गए और इसी माध्यम पर उनकी जांच की गई तथा जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन किया गया। वर्ष 2023 में आयोजित सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता के पहले संस्करण में कुल 35 गांवों को सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में मान्यता दी गई। जिसमें जिसमें जम्मू और कश्मीर के दवार गाँव, केरल के कंथालूर गाँव, मध्यप्रदेश के माडला, मिजोरम के रीइक, उत्तराखंड के सरमोली, गाँव को स्वर्ण गाँव की श्रेणी में सूचीवद्ध किया गया। आंध्रा प्रदेश के लेपाक्षी, अरुणाचल प्रदेश के शेरगाओं, उत्तर प्रदेश के कारूआना, छत्तीसगढ़ के सरोधादादर, लद्दाख के हेमिस, लक्षद्वीप के कल्पेनी, गुजरात के खिजड़िया, ओडिशा के रघुराजपुर, राजस्थान के मेनार को रजत श्रेणी में स्थान मिला। हिमाचल प्रदेश के छितकुल, हरियाणा के तालाब, झारखण्ड के मैक्लुस्कीगंज, कर्नाटक के हम्पी, मध्यप्रदेश के खोखरा, महाराष्ट्र के पटगांव, मेघालय के कांगथोंग, नागालैंड के डाइजेफे, पुडुचेरी के तिरुनल्लार, पंजाब के नवापिंड सरदान, राजस्थान के नौरंगाबाद-सरदारान, सिक्किम के किताम, तमिलनाडु के वेट्टाइकरनपुदुर, तमिलनाडु के उलद्दा, तेलंगाना के चंदलापुर, त्रिपुरा के विद्यासागर, पश्चिम बंगाल के किरितेश्वरी, असम के बिश्वनाथ घाट, दादर-नागर-हवेली के देवका और गोवा के कोटिगाओ को कांस्य श्रेणी में स्थान मिला।
सुन रहे हैं नीतीश जी। आपके 45103 गाँव में एक भी गाँव नहीं है। यानी आप प्रदेश के नाम पर, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चिपके रहने लिए ही सोचते रह गए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह को देखते, मुस्कुराते रहे गए और उधर कारवां गुजर गया खुमार देखते रहे।
उधर, भारत सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत, दिनांक 14 सितंबर, 2006 के एसओ 1533 (ई) के द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना जारी की है। इस अधिसूचना की अनुसूची में सूचीबद्ध सभी नई परियोजनाओं और/या कार्यकलापों या वर्तमान परियोजनाओं के आधुनिकीकरण के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक है। समय-समय पर संशोधित ईआईए अधिसूचना 2006 में पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) देने की प्रक्रिया की परिकल्पना की गई है, जिसमें स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, सार्वजनिक सुनवाई और मूल्यांकन शामिल है। इसमें ईआईए अध्ययन आयोजित करना शामिल है, जो इको-सिस्टम की संवेदनशीलता, उत्सर्जन, निर्वहन और पर्यावरण पर सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और मानव-स्वास्थ्य के साथ परस्पर संबंधित लाभदायक एंव नुकसानदायक, दोनों ही प्रभावों को ध्यान में रखते हुए संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए है।
ऐसे अध्ययनों के आधार पर, पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) तैयार की जाती है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ संभावित आपदाओं सहित स्थल-विशिष्ट आपदा न्यूनीकरण योजना सम्मिलित होती है, जिसमें बाढ़, आकस्मिक बाढ़, शहरी बाढ़, हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ), सूखा, चक्रवात और नदी/तटीय कटाव शामिल हैं। केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न उपायों को लागू कर रही हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने चक्रवात, बाढ़, सूखा, सुनामी, भूस्खलन, लू आदि जैसी उग्र मौसम संबंधी आपदाओं के प्रबंधन के लिए कई आपदा-विशिष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके अतिरिक्त, 15वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं पर, सरकार ने वर्ष 2021-2026 की अवधि के लिए राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (एनडीएमएफ) के लिए 13693 करोड़ रुपये और राज्य आपदा न्यूनीकरण कोष (एसडीएमएफ) के लिए 32031 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी है। सरकार ने न्यूनीकरण परियोजनाओं को शुरू करने और उनकी निगरानी के लिए धन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ‘एसडीएमएफ/एनडीएमएफ के गठन और प्रशासन’ पर दिशानिर्देश भी जारी किए हैं।
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों को विभिन्न विषयों के संबंध में कानून बनाने की विशेष शक्ति प्रदान करती है। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार भूमि राज्य का विषय है और इसी के अनुरूप पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्य सरकारों की ओर से पेश प्रस्तावों के आधार पर पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र या पारिस्थितिकी-नाज़ुक क्षेत्र घोषित करता है। इसके अलावा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों के आसपास पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र भी घोषित करता है। इसका उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र या अन्य प्राकृतिक स्थलों जैसे विशेष इकोसिस्टम के लिए एक प्रकार का “शॉक एब्जॉर्बर” या संक्रमण क्षेत्र बनाना है, जो उच्च संरक्षण वाले क्षेत्रों से कम संरक्षण वाले क्षेत्रों के बीच दबाव क्षेत्र के रूप में काम करेगा। मंत्रालय ने 485 संरक्षित क्षेत्रों के लिए पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने वाली कुल 345 अधिसूचनाएं प्रकाशित की हैं। इनमें आंध्र प्रदेश के 13 संरक्षित क्षेत्रों के संबंध में 11 और गुजरात के 23 संरक्षित क्षेत्रों के संबंध में 22 पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचनाएं शामिल हैं।
पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचना में यह अनिवार्य किया गया है कि अधिसूचना के प्रकाशन के दो साल के भीतर संबंधित राज्य सरकारें क्षेत्रीय मास्टर प्लान तैयार कर लें। यह मुख्य रूप से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के भीतर विकास को नियमित करने और अधिसूचना के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय मास्टर प्लान में पर्यटन मास्टर प्लान और ईएसजेड के भीतर स्थित मानव निर्मित या प्राकृतिक संरचनाओं को सूचीबद्ध करने वाले विरासत स्थलों को शामिल करना भी अनिवार्य है, ताकि स्थानीय समुदायों की आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए पर्यटन गतिविधियों को चलाया जाए और साथ ही संरक्षण एवं सतत विकास के बीच संतुलन बनाया जाए। मंत्रालय की विभिन्न केन्द्र प्रायोजित योजनाओं और केन्द्रीय क्षेत्र योजनाओं के तहत प्राप्त धनराशि का उपयोग पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों सहित ऐसे क्षेत्रों के संरक्षण, स्थिरता और विकास के लिए भी किया जाता है।