मानवीयता सिर्फ ‘माँ’ में होती है चाहे ‘विधवा’ ही क्यों न हो, राजनेताओं में नहीं !!!

​वृन्दावन की एक विधवा - ईश्वर पर्रिकर की आत्मा को ​शांति दे
​वृन्दावन की एक विधवा - ईश्वर पर्रिकर की आत्मा को ​शांति दे

वृन्दावन/गोवा/नई दिल्ली : गोआ के पूर्व मुख्य मंत्री मनोहर पर्रिकर को बनारस, मथुरा, वृन्दावन की विधवाएँ जानती नहीं थीं, देखी भी नहीं थीं परन्तु अश्रुपूरित आखों से होली-कार्यक्रम स्थगित की। लेकिन गोवा के राजनेतागण नए मुख्य मंत्री के चुनाब और शपथ ग्रहण रात दो बजे सम्पन्न किये – कहीं मौका हाथ से निकल नहीं जाय। इसे कहते हैं “राजनीति” और राजनीति में “मानवीयता” का कोई स्थान नहीं होता। मानवीयता तो सिर्फ “माँ” में होती है चाहे “विधवा” ही क्यों न हो और यान मानवीयता चाहे अपने संस्तान के लिए हो अथवा किसी अपरिचित के लिए।

बनारस, मथुरा, वृन्दावन में दसकों से रहने वाली विधवाएँ जो अपने ही परिवार और परिजनों से मुदत्तों से उपेक्षित रह जीवन की अंतिम साँसे गिन रहीं है; गोवा के दिवन्गत मुख्य मन्त्री मनोहर पर्रिकर को नहीं जानती थीं, देखने की बात तो दूर; लेकिन जैसे ही उनकी अन्तिम साँस बंद होने की बात देश को मालूम हुआ; वृन्दावन में उपस्थित हज़ारों विधवाएं जो पिछले सात वर्षों से रंगों का पर्व “होली” खेलकर अपने जीवन में खुशियां लाती थीं, उस अदृश्य मानव-पुत्र के लिए सम्पूर्ण कार्यक्रम रद्द कर दीं ।

उन विधवाओं का कहना था : “हमारा बेटा मर गया फिर होली कैसे खेलें।”

​वैसे होली के एक-दो दिन पूर्व यहाँ हज़ारों-हज़ार विधवाएं सुलभ इंटरनेशनल सोसल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन के तत्वावधान में आयोजित होली-मिलन-खेल वृन्दावन के ठाकुर गोपीनाथ मंदिर में पिछले सात वर्षों से धूमधाम से मनाते आये हैं। इस सामूहिक होली कार्यक्रम के कवरेज के लिए देश-विदेश से करीब ढाई-तीन सौ पत्रकार एवं फोटो जर्नलिस्ट भी उपस्थित हुए थे।

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​परन्तु मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद​ भले ही उनके पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार भी नहीं हो पाया था,​ गोवा में सियासी उठापटक ​अपने उत्कर्ष पर पहुँच गया था। राजनीतिक हालात ​ऐसी हो गयी थी की रात के दो बजे एक विशेष आयोजन करना पड़ा और प्रमोद सावंत ​को​ गोवा ​का नया मुख्यमंत्री ​बनाया गया। सावंत ने​ रात 2 बजे राजभवन में आयोजित समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ​ली। सावंत को गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने पद और गोपनीयता की शपथ ​दिलाई।

प्रमोद सावंत के साथ-साथ दो ​उप-मुख्य मंत्री भी शपथ ​लिए। एम जी पी के सुदिन धवलिकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई ​उप-मुख्य मंत्री बनाए ​गए। देर रात आयोजित समारोह में प्रमोद सावंत और दो ​ उप-मुख्य मंत्री​ के अलावा 9 विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ​ली। शपथ समारोह से पहले प्रमोद सावंत ने कहा कि पार्टी ने जो जिम्मेदारी मुझे दी है उसे निभाने की मेरी पूरी कोशिश ​रहेगी। “मैं जो भी कुछ हूं मनोहर पर्रिकर की वजह से ही ​हूँ। उन्होंने ही मुझे राजनीति में ​लाये और उन्हीं के बदौलत मैं गोवा विधानसभा का स्पीकर ​बना। ”

ठाकुर गोपीनाथ मंदिर में उपस्थित विधवाएं होली त्यौहार आने से कोई महीनो पहले से इस रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन अन्तःमन से करतीं हैं। जीवन के अंतिम वसंत में सुलभ संस्था के संस्थापक डॉ बिन्देश्वर पाठक उन्हें “जीने का वजह” दिए। जीवन में अस्सी से अधिक पतझड़ देखने के बाद अब इस वसंत को देखकर वे सभी जीना चाहती है। परिवार और परिजनों से उपेक्षित होने के वावजूद आज भी उनके मन में मानवीयता की मृत्यु नहीं हुयी है और यही कारण है कि मनोहर पर्रिकर जैसे लोग की मृत्यु के बाद उन्हें हंसना गँवारा नहीं हुआ जबकि राजनीतिक गलियारे में ऊनि मृत्यु पर को दुःख हो अथवा नहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं की निगाहें मुख्य मंत्री की कुर्सी पर केंद्रित थी।

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सुलभ फाउण्डेशन के संस्थापक डा. बिन्देश्वर पाठक ने कहा​: “विधवाओं और महिलाओं ने स्वयं यह प्रस्ताव रखा कि पर्रिकर के निधन के चलते होली मनाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया जाए, जिसे सभी ने पूर्ण सम्मान के साथ शिरोधार्य कर लिया।​”

गौरतलब है कि सुलभ फाउण्डेशन वर्ष 2012 से उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर वृन्दावन, वाराणसी तथा उत्तराखण्ड आदि में रहकर भजन-कीर्तन और भिक्षावृत्ति के सहारे अपना बाकी जीवन जैसे-तैसे काट रहीं विधवा एवं परित्यक्त महिलाओं को सम्मानजनक जीवन देने का प्रयास कर रहा है। इस प्रयास के तहत इन महिलाओं को रोटी, कपड़ा और मकान मुहैया कराने के अलावा सामाजिक सम्मान दिलाने के लिए होली, दिवाली, रक्षाबंधन तथा दुर्गापूजा आदि त्यौहारों के अवसर पर समाज के अन्य वर्गों के समान ही खुशी मनाने तथा खुशियां बांटने का मौका देने की शुरुआत की गई।

पर्रिकर केंद्रीय रक्षा मंत्री के पद से मार्च 2017 में इस्तीफ़ा दे चौथी बार गोवा के मुख्यमंत्री बनकर अपने गृह राज्य लौट गए ​थे। हालांकि पर्रिकर ने पहले ही घोषित कर दिया था कि ये उनका अंतिम कार्यकाल है और आगे से चुनाव नहीं ​लड़ेंगे। उन्होंने एक टीवी चैनल से एक बार कहा था​:, “मैं अपनी ज़िंदगी के अंतिम 10 साल ख़ुद के लिए जीना चाहता ​हूँ। मैंने राज्य को काफ़ी कुछ वापस दिया ​है। मैं इस कार्यकाल के बाद मैं चुनाव लड़ने या चुनाव का हिस्सा नहीं बनूंगा, चाहे पार्टी की ओर से कितना ही दबाव ​आये। ”

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