‘बनारस में चाँद देखकर’ काशी के सांसद प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ‘दीप’ जलाये, देव-दीपावली उत्सव मनाये 

पीएम मोदी की मौजूदगी में मनाया गया देवदीपावली पर्व लाखों दीयों से जगमगाए मां गंगा के तट, छटा देख अभिभूत हुए प्रधानमंत्री मोदी
पीएम मोदी की मौजूदगी में मनाया गया देवदीपावली पर्व लाखों दीयों से जगमगाए मां गंगा के तट, छटा देख अभिभूत हुए प्रधानमंत्री मोदी

शिव की जटा पर विराजमान चंद्र देव की भांति विश्व की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक राजधानी काशी के 84 श्रृंखलाबद्ध अर्धचंद्राकार उत्तरवाहिनी गंगा घाटों पर बीते सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर स्वर्ग लोक से उतरकर देवताओं ने दीपावली मनायी। जिसके साक्षी स्वयं प्रधानमंत्री एवं काशी के सांसद नरेंद्र मोदी, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत लाखो लोग रहे। 

देव दीपावली के पावन अवसर पर राजघाट पर प्रधानमंत्री एवं नरेंद्र मोदी ने पहला दीप जलाया, वैसे ही काशी के आदिकेशव से अस्सी तक सभी घाट क्षण भर में ही असंख्य दीयों की रोशनी से जगमगा उठे। यह नजारा अद्भुत, अविस्मरणीय एवं अकल्पनीय रहा। वास्तव में काशी के गंगा घाटो पर विगत लगभग 105 वर्षो से मनाया जा रहा देव दिवाली इस बार ना भूतो ना भविष्यति की भांति खास रहा। पूरा देव दीपावली ग्रैंड शो के रूप में परिणित रहा। मानों काशी में पूरी आकाश गंगा ही उतर आयी हों।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर माँ गंगा की धारा के समान्तर ही प्रवाहमान होती है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं व इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था। मान्यता है कि देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस के घाटों पर आते हैं। काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन दीपदान करने का विशेष महत्व होता है। 

देव-दीपावली और बनारस का घाट 

मान्यता है कि भगवान शंकर ने खुद देवताओं के साथ गंगा के घाट पर दिवाली मनाई थी, इसीलिए देव दीपावली का धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने तीन¨लोकों में आतंक फैला रखा था जिससे सभी जगह¨ पर हाहाकार मच गया था और देवताओं की विनती पर भगवान शिव ने तीनों लोक में आतंक का पर्याय बने त्रिपुरासुर का वध किया था। भगवान शिव के इस सुकृत्य से उपकृत देवताओं ने स्वर्गलोक में दीप जलाकर कई दिनों तक दीपोत्सव मनाया था। 

वही एक अन्य मान्यता के अनुसार पूर्व काशिराज  देवदास ने देवताओं से नाराज़ होकर उनका काशी मे प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था जिस पर देवताओं  ने ब्रम्हा जी से गुहार लगाई थी और ब्रम्हाजी के निवेदन पर काशिराज ने यह प्रतिबंध समाप्त किया था और देवता कार्तिक महीने मे काशी के पंचगंगाघाट पर स्नान कर ख़ुशी मे दीपक जलाये और सजा कर दीपावली मनाई थी तब से यह परम्परा चली आ रही है। तब से कार्तिक पूर्णिमा को देवदीपावली मनाने की प्रथा लोक चलन में आई। धार्मिक नगरी वाराणसी का यह भव्य आयोजन चार दशक पूर्व शुरू हुआ था। काशी के पंच गंगा घाट पर मात्र पांच टिन तेल से दीपक को जलाकर शुरू हुआ यह देवदीपावली उत्सव आज वैश्विक उत्सव का स्वरूप ले चुका है। न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के तमाम देशों के पर्यटकों में इस उत्सव के साक्षी होने के लिए वाराणसी पहुंचते है।

ये भी पढ़े   सवाल 'पाग' का है! कहीं ऐसा तो नहीं कि बाजार की चमक-दमक ने मैथिलों के सांस्कृतिक संकेत पर अपना कब्जा बना लिया!

देवदीपावली की अगुवाई करने वाले मंगलागौरी मंदिर के महंत पं. नारायण गुरु ने बताया कि यह परम्परा तो सदियों पुरानी है बस बीच में मुगलो और अंग्रेजो के शासनकाल यह विलुप्त हो गई थी बस रह गई थी आकाशदीप प्रथा जो आज भी पूरे कार्तिक मास में घाटों पर जलती है। वर्ष 1985 में में देव दीपावली उत्सव की पुन:शुरुआत हुई थी। पंचगंगा घाट मोहल्ले में चाय-पान की दुकानों पर टीन के बड़े बड़े डिब्बे रख कर लोगो से तेल घी की मदद मांगी गई और लोगो ने इन डिब्बों में अपने घर से घी और तेल लाकर जमा किया सात दिनों में पांच डिब्बे तेल और एक डिब्बा घी जुटा कर बालाजी घाट से दुर्गा घाट के मध्य पांच घाटों पर इस पौराणिक पर्व का पुर्न आधुनिक संस्करण की शुरुआत हो गई। 

देव-दीपावली और बनारस का घाट 

नारायण गुरु के अनुसार इससे पूर्व रानी अहिल्याबाई ने काशी में देवदीपावली की लुप्त हो चुकी परंपरा को पुन: शुरू कराया था। उन्होंने पंचगंगा घाट पर हजारा दीपस्तंभ भी बनवाए थे। एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक पूर्णिमा को गंगा का दर्शन करने देवी-देवता काशी आते हैं। देवों के आगमन के उपलक्ष्य में देव दीपावली मनाई जाती है। वर्ष 1986 में पंचगंगा के अलावा मानमंदिर और दशाश्वमेध क्षेत्र के कुछ उत्साही युवको के साथ आने के बाद केंद्रीय देवदीपावली महासमिति का गठन हुआ। और 1986 में मानमंदिर घाट, तत्कालीन घोड़ा घाट और अहिल्याबाई घाट पर भी देवदीपावली का आयोजन हुआ। वर्ष 1990 तक यह उत्सव काशी के 31 घाटों पर विस्तारित हो चुका था। महासमिति के पदाधिकारी वागीशदत्त मिश्र ने बताया कि इसके बाद इस उत्सव को प्रत्येक घाट पर आयोजित करने के लिए मुहिम चलाई गई। 

1992 में अयोध्या में ढांचा विध्वंस की घटना के बाद देवदीपावली उत्सव का अप्रत्याशित विस्तार हुआ। संपूर्ण काशी से जनसहभागिता होने लगी। 1995 से 2000 के बीच इस उत्सव को विश्वव्यापी ख्याति मिलनी शुरू हुई। स्थिति यह हो गई कि देवदीपावली की शाम काशी के घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं रह गई। पं. वागीश दत्त मिश्र के अनुसार भीड़ को घाटों की ओर आने से रोकने के लिए काशी के कुंडों और तालाबों पर भी देवदीपावली के आयोजन का प्रस्ताव रखा गया। सन 2000 में सबसे पहले श्रीनगर कॉलोनी स्थित रामकुंड पर देवदीपावली मनाई गई। इस प्रयोग की सफलता ने अन्य लोगों को भी प्रेरित किया। देखते ही देखते सूरज कुंड,पिशाच मोचन तालाब, पुष्कर तालाब, ईश्वरगंगी पोखरा भी इस आयोजन से जुड़ गए। अब तो ग्रामीण क्षेत्रों के भी कुंडों-तालाबों के साथ-साथ शहर के गली-मोहल्ले में भी देवदीपावली उत्सव मनाया जाने लगा है।

सोमवार को देव दीपावली पर्व पर राजघाट पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान घाटों पर उमड़ी जन सैलाब को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्तिक पूर्णिमा एवं देव दीपावली की शुभकामना के साथ ही गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व की बधाई दी। हर-हर महादेव के उद्घोष से काशी के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ने कहा कि कोरोना काल ने बहुत कुछ भले ही बदल दिया हो, लेकिन काशी की शक्ति, उसकी ऊर्जा एवं भक्ति कोई नहीं बदल सकता। काशी जीवन्त हैं। काशी की गलियां ऊर्जावान है। यही काशी अविनाशी है। उन्होंने कहा कि 100 साल पहले जो मूर्ति माता अन्नपूर्णा की चोरी गई, वह वापस आ रही है। हमारे देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां हमारी विरासत हैं। उन्होंने कहा कि इतना प्रयास यदि पहले नहीं किया गया। ऐसी तमाम मूर्तियां हमारी विरासत हैं और विरासत का मतलब है देश की धरोहर। उन्होंने घाटों पर दीपको से किए गए सजावट का जिक्र करते हुए कहा कि काशी की विरासत अब लौट रही है, तो लगता है मां अन्नपूर्णा की वापसी से काशी सज कर स्वागत के लिए तैयार है।

ये भी पढ़े   काशी में 'उनकी' सरकार नहीं, 'उनकी सरकार' है, जिसे विश्व के लोग "काशी का कोतवाल" कहते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्तिक पूर्णिमा की निकले चांद की ओर इशारा करते हुए कहां की काशी में मनाई जा रही देव दीपावली का यह चांद साक्षी बन रहा है। देव दीपावली के महात्म की चर्चा करते हुए शास्त्रों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहां की काशी के लोग देव स्वरूप हैं। काशी के नर-नारी देवी व शिव के रूप हैं। उन्होंने कहा कि भारत हर क्षेत्रों में सशक्त हो रहा है। भारत आज सबका जवाब दे रहा है और मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। किसानों को बिचौलियों व उनका शोषण वालों से मुक्ति व निजात मिल रही है। रेहड़ी-पटरी वालों को भी बैंक सहायता दे रहा है। देश लोकल के लिए वोकल भी हो रहा है। इस दौरान उन्होंने जनसैलाब से वोकल फार लोकल का उद्घोष भी कराया। उन्होंने विशेष रूप से जोर देते हुए कहा कि लोकल फॉर वोकल जीवन का हिस्सा बनना चाहिए। सुधारों की सार्थकता सामने आने लगती है, तो विरोध शांत हो जाता है। 

देव-दीपावली और बनारस का घाट 

श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण कार्य का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि काशी में जब सुधार शुरू हुआ, तो कुछ लोगों ने जोरदार विरोध किया। किंतु काशी के लोगों ने उनको जवाब दिया। काशी का गौरव पुनर्जीवित हो रहा है। श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के माध्यम से बाबा विश्वनाथ का मां गंगा से संबंध पुनर्स्थापित हो रहा है।उन्होंने विशेष रूप से जोर देते हुए कहा कि नेक नियत से जब अच्छे कार्य किए जाते हैं तो विरोध के बावजूद उसकी सिद्धि होती है। काशी व अयोध्या धार्मिकता के साथ पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ रहा है और नई ऊंचाइयां तय कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देते हुए कहा कि देश की आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को 130 करोड़ देशवासियों के सहयोग व ताकत से पूरा करूंगा। काशीवासियों से अपनी भावुक व भावनात्मक संबंधों की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहां की कोरोना काल में भी हम आपसे दूर नहीं रहे। रोजाना कोरोना के संबंध में किए जा रहे कार्यों और लोगों को उपलब्ध कराए जा रहे सुविधाओं की जानकारियां लेता रहा। कोरोना का काल में बाहर से आए हुए लोगों को बढ़-चढ़कर सहयोग करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशीवासियों के इस सेवाभाव एवं समर्पण के लिए हाथ जोड़कर नमन किया। गरीब से गरीब लोगों की चिंता करने पर उन्होंने काशी वासियों को आश्वस्त किया कि आप लोगों की सेवा में कोई कमी नहीं रहने दूंगा। उन्होंने कहा कि कोरोना को परास्त करके देश विकास की पथ पर चल पड़ा है।

ये भी पढ़े   अभिव्यक्ति की पूर्णता ही कला है ..... 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरी काशी के भावनात्मक लगांव के लिये प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए कहां की 135 करोड़ लोगों को कोरोना से बचाने के बाद काशी में आगमन प्रधानमंत्री का हुआ है। उन्होंने कहा कि एक भारत- श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को 2014 में प्रधानमंत्री ने संकल्पना के रूप में लिया था, जो वर्तमान में परिणित हो रहा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जोर देते हुए कहा कि 500 वर्षों की ऐसी समस्या अन्यों के लिए जटिल एवं कठिन थी, वे चाहते ही नहीं थे समस्या का समाधान हो। लेकिन अयोध्या में मंदिर निर्माण शुरू कराकर काशी आगमन पर उन्होंने प्रधानमंत्री का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने काशी की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखते हुए इसे वैश्विक मंच पर स्थापित किया है।

देव-दीपावली और बनारस का घाट 

देव दीपावली उत्सव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के 23वे दौरे में मंदिरों की वेबसाइट का भी उद्घाटन किया तो वही वाराणसी व प्रयाग राज को जोड़ने वाली राजमार्ग के चौड़ीकरण का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद पीएम कॉरिडोर प्रोजेक्ट का जायजा लिया साथ ही दीप दान कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संग अलखनंदा क्रूज से चेत सिंह घाट पर आयोजित लेजर शो का आनंद लिया. पीएम इस मौके पर पूरे शिव भक्ति में लीन नजर आए. उन्होंने शिव भक्ति से जुड़ा एक वीडियो भी ट्विटर पर शेयर किया। लेजर शो देखने के बाद पीएम मोदी संत रविदास घाट पहुंचे. यहां उन्होंने संत रविदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इसके बाद पीएम मोदी भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली सारनाथ पहुंचे. यहां भी पीएम ने लेजर एंड साउंड शो देखा. इस शो को अमिताभ बच्चन ने आवाज दी है। इससे पहले राजघाट से पीएम ने काशी के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि काशी की भक्ति-शक्ति कोई नहीं बदला सकता है। (तस्वीरें: अजय मिश्र के सौजन्य से। अजय मिश्र बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं। टीवी के साथ-साथ प्रिंट का बेहतरीन अनुभव रखते हैं। बनारस की राजनीति के साथ-साथ संस्कृति को समझना हो तो अजय मिश्र बेहतर हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here