बुद्ध का विपरण और बोधगया की सड़कों पर पेट-पीठ एक हुए रोता, बिलखता भिखारी😢

नई दिल्ली में शांति के लिए एशियाई बौद्ध सम्मेलन की 12वीं आम सभा में सभा को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली: विगत दिनों जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि महात्‍मा बुद्ध की शिक्षाएं अतीत के स्‍मृति चिन्‍ह नहीं हैं, बल्कि वे हमारे भविष्य के लिए कम्‍पास की भांति दिशा-निर्देशक हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि गौतम बुद्ध का शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व का संदेश नफरत और आतंक की ताकतों के खिलाफ खड़ा है जिनसे विश्व को खतरा हैं। 

इसके आगे जब वे भारत को भगवान बुद्ध के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित राष्ट्र बताया और फिर प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के उस वक्‍तव्‍य को दोहराया जहां उन्होंने कहा था, “हमें उस राष्ट्र से संबंधित होने पर गर्व है जिसने दुनिया को ‘बुद्ध’ दिया है, न कि ‘युद्ध’- दस वर्ष पूर्व शिक्षक दिवस के अवसर पर बिहार के बोधगया में (5 सितम्बर, 2015) प्रधानमंत्री का वक्तव्य याद आ गया। 

5 सितम्बर, 2015 को भारत के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी बौद्ध की अनेकानेक गरिमाओं को उद्धृत किये थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री मोदी का पहला बिहार दौरा था। बिहार ही नहीं, बोधगया ही नहीं, सम्पूर्ण राष्ट्र के के लोगों में ख़ुशी की एक लहर जागृत हुयी थी कि प्रधानमंत्री की अगुआई में शायद इस प्रदेश का, बुद्ध के इस स्थल का कल्याण हो जाय। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और अन्य संस्थागत विरासतों के उपस्थिति के बाबजूद बिहार का बोधगया के पिछड़ापन पर ध्यान जाय। 

5 सितम्बर, 2015 को भारत के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी बुद्ध की नगरी बोधगया में

उस दिन मंच पर बिहार के तत्कालीन राज्यपाल श्रो रामनाथ कोविंद भी उपस्थित थे। केंद्रीय मंत्री श्री किरण रिजिजू भी बैठे थे। उस उपस्थिति के बाद श्री कोविंद साहब की मुलाकात राष्ट्रपति भवन में ही हुई। एक पिछड़े प्रदेश के राज्यपाल से भारत के राष्ट्रपति के रूप में प्रोनत्ति बुद्ध से जुड़े सभी लोगों के मन में, खासकर बोधगया के दबे-कुचले, पिछड़े लोगों के मन में विश्वास की एक किरण जगी – शायद मेरा भी कल्याण होगा । समय गुजरता गया। 

5 सितम्बर, 2015 को भारत के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी बुद्ध की नगरी बोधगया में

प्रधानमंत्री अपने दूसरे कालखंड में भी प्रवेश लिए। श्री कोविंद साहेब राष्ट्रपति के कार्यालय से अवकाश प्राप्त पर ‘पूर्व राष्ट्रपति’ हो गए। जिस भवन में अवकाश के बाद (12 जनपथ), उस आवास के पूर्व मालिक (दिवंगत राम विलास पासवान) ने अपने जीवन काल में बुद्ध को राजनीतिक गलियारे में स्वहित में खूब घुमाये, खूब बेचे। परन्तु गौतम बुद्ध को, उनके शहर बोधगया को अपने ही जगह  वह स्थान नहीं मिला सका (अब तक भी) जिसका वह हकदार था, आज भी है। इसे कहते हैं ‘लाभ के लिए राजनीति’, लेकिन आज प्रदेश के लोगों की निगाहें प्रधानमंत्री पर टिकी है, एक विश्वास के साथ – बुद्ध का कल्याण होगा । 

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वैसी स्थिति में जब नई दिल्ली में शांति के लिए एशियाई बौद्ध सम्मेलन की 12वीं आम सभा में सभा को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी की कि नैतिक अनिश्चितता के युग में, बुद्ध की शिक्षाएं सभी के लिए स्थिरता, सादगी, संयम और श्रद्धा का मार्ग प्रशस्‍त करती हैं, देश के राष्ट्रनेताओं, राष्ट्राध्यक्षों के प्रति विश्वास की लकीरें ओझिल और बोझिल दोनो होंने लगी।उपराष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा बुद्ध के उनके चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग हमें आंतरिक शांति, करुणा और अहिंसा के मार्ग की ओर ले जाते हैं – जो आज के संघर्षों का सामना कर रहे व्यक्तियों और राष्ट्रों के लिए एक परिवर्तनकारी रोडमैप है। लेकिन इस बात को क्या बिहार के नेतागण समझ पाएंगे?

5 सितम्बर, 2015 को भारत के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी बुद्ध की नगरी बोधगया में

यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल आग्रेनाइजेशन (यूनेस्को) ने विश्व धरोहरों की संभावित सूची में जिन ऐतिहासिक विरासतों को शामिल किया है, उनमें बिहार की दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरें भी हैं। एक है – विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष और दूसरा है – शेरशाह सूरी का सासाराम स्थित मकबरा। इसके पहले, यूनेस्को की धरोहर-सूची में बिहार से एकमात्र बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर ही शामिल था।

इन स्मारकों का बिहार और देश के लिए जो खास महत्त्व है, वह है बिहार के गौरवपूर्ण अतीत के साक्ष्य के तौर पर इनकी उपस्थिति। इतिहास में बिहार जिन कारणों से अहमियत रखता है, उनमें से एक है-महात्मा बुद्ध की तपोस्थली के रूप में इसकी पहचान। मौर्य और गुप्त साम्राज्य के साथ-साथ विश्व के संभवत: पहले गणराज्य के रूप में वैशाली का इतिहास बिहार की वह अहम पहचान है, जिसके आगे हर आख्यान, हर मिथक, हर किंवदती कम पड़ जाती है। 

The Prime Minister, Shri Narendra Modi being presented a memento, at the Mahabodhi Temple, in Bodh Gaya, Bihar on September 05, 2015.

बाद के वर्षो में अगर 1857 में कुंअर सिंह और पीर अली की भूमि के रूप में इसकी ख्याति रही तो आजादी के आंदोलन में चंपारण का विशेष महत्व रहा जिसने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनने की राह पर ला खड़ा किया। आजादी के बाद एक बार फिर इस राज्य ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जयप्रकाश आंदोलन के रूप में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया, जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी। लेकिन गौरवपूर्ण अतीत की परिणति कुछ दशक पहले इस रूप में हुई कि बिहार दीनता और आत्महीनता का प्रतीक बन गया। 

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बिहार में पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों की प्रचुर सूचि है। हिन्दू, जैन, बौद्ध एवं सिख धर्म से जुड़े उपासना स्थलों के साथ-साथ इस्लाम की सूफी परंपरा से जुड़े अनेक स्थल यहां मौजूद हैं। राज्य पर्यटन निगम ने इस आधार पर वर्गीकरण भी किया है – बुद्ध संभाग, जैन संभाग, रामायण संभाग, सूफी संभाग, गांधी संभाग और इको संभाग। ढाई सौ से ज्यादा ऐसे पर्यटन स्थलों की समृद्ध सूची से उत्तर प्रदेश छोड़कर शायद ही कोई अन्य राज्य बिहार से बराबरी कर सकता है।  

The Prime Minister, Shri Narendra Modi writing on visitors’ book at the Mahabodhi Temple, in Bodh Gaya, Bihar on September 05, 2015.

पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पहली जरूरत होती है पर्यटन स्थलों को उनके धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पर्यावरणीय महत्त्वों के आधार पर चिह्नित करना। उनकी महत्ताओं के बारे में अनेक माध्यमों से बार-बार बखान करना। इसमें राज्य के पर्यटन महकमे और सूचना प्रसार माध्यम की समन्वित भूमिका परिणामदायक होती है। इस मोर्चे पर आपराधिक उपेक्षा देखी जा रही है। 

इस सूचना क्रांति के युग में जब हाथ पुस्तक पलटने से ज्यादा माऊस पर जाते हैं; राज्य के सूचना विभाग, पर्यटन मंत्रालय एवं संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट जानकारियों के लिहाज से निराश करती हैं। वहां आठवीं कक्षा के इतिहास की पुस्तक जितनी भी जानकारी नहीं है। सरकारी साइटों से ज्यादा जानकारी विकिपीडिया या बिहार खोज खबर डॉट कॉम पर मिलती है। पर्यटन विकास निगम की वेबसाइट पर सरसरी नजर डालते समझ में आ जाता है कि विभाग की मंशा पर्यटकों को आकर्षित करने की तो नहीं ही है।

माना जाता है कि अगर आप मौलिक कुछ करने में सक्षम नहीं हों तो कोई बात नहीं, कम से कम अनुसरण की क्षमता तो होनी ही चाहिए। सरकारी साइटों पर जो जानकारी है, वह आधी-अधूरी है। पर्यटन निगम ने अपनी वेबसाइट पर जो जानकारी दी है, उसमें बौद्ध स्थल वैशाली, बोधगया, राजगीर,पावापुरी और नालंदा के साथ कुशीनगर का भी जिक्र है। कहना नहीं होगा कि कुशीनगर उत्तर प्रदेश में है। पहले यह गोरखपुर मंडल का हिस्सा हुआ करता था, अब स्वतंत्र जिला है। इसका बिहार से कोई मतलब नहीं है। 

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अब अगर इसे बुद्ध के निर्वाण स्थल के रूप में बुद्ध संभाग से जोड़ा गया है तो फिर सारनाथ, श्रावस्ती के साथ-साथ कपिलवस्तु (नेपाल) एवं लुंबिनी (नेपाल) ने क्या गलती की, जिसके कारण वे वेबसाइट पर स्थान नहीं पा सके? होना चाहिए था कि बुद्ध से जुड़े स्थलों को एक पैकेज के रूप में दिखाया जाता। इससे दुविधा नहीं होती।

The Vice President and Chairman, Rajya Sabha, Shri Jagdeep Dhankhar interacting with visiting delegates at the 12th General Assembly of the Asian Buddhist Conference for Peace (ABCP), in New Delhi on January 17, 2024.

बहरहाल, श्री धनखड़ ने सेवा-संचालित शासन के भारत के दृष्टिकोण पर बुद्ध की शिक्षाओं के गहरे प्रभाव के बारे में जानकारी दी। उन्होंने रेखांकित किया कि कैसे ये सिद्धांत नागरिक कल्याण, समावेशिता और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देने की देश की प्रतिबद्धता में एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं। बुद्ध के कालातीत ज्ञान पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि प्राणियों के लिए भी शांति का एक शक्तिशाली, सामंजस्यपूर्ण, संपूर्ण, निर्बाध मार्ग प्रदान करता है। आंतरिक शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने में बुद्ध के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक पथ की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए वे व्यक्तियों और राष्ट्रों को आंतरिक शांति, करुणा और अहिंसा की दिशा में मार्गदर्शन करने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डाला।

12वीं महासभा की विषय-वस्तु – “शांति के लिए एशियाई बौद्ध सम्मेलन-ग्लोबल साउथ का बौद्ध स्‍वर” का उल्लेख करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि यह विषय भारत की बढ़ती नेतृत्व भूमिका के अनुरूप है, जो ग्लोबल साउथ की समस्‍याओं को विश्‍व मंचों पर उठा रहा है। उन्होंने कहा कि जी-20 में भारत की अध्यक्षता से पता चलता है, भारत दुनिया की तीन-चौथाई आबादी वाले देशों की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

The Prime Minister, Shri Narendra Modi Some glimpses from Mahabodhi Temple Feeling very blessed, in Bodhgaya, Patna on September 05, 2015.

श्री धनखड़ ने कहा कि भारत इसके लिए प्रतिबद्ध है कि विश्‍व की युवा पीढ़ी भगवान बुद्ध के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्‍त करे। उन्‍होंने बौद्ध सर्किट और भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति केंद्र के विकास में भारत की सक्रिय भूमिका का उल्लेख करते हुए बताया कि इससे अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए बौद्ध विरासत स्थलों तक सुगम पहुंच को बढ़ावा दिया जा रहा है। सम्‍मेलन में केंद्रीय मंत्री श्री किरण रिजिजू, ,शांति के लिए एशियाई बौद्ध के अध्यक्ष डी चोइजामत्सडेम्बरेल, कंबोडिया के उप मंत्री डॉ. ख्यसोवनरत्न और विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

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