मणिकर्णिका घाट पर डोमराजा परिवार के लोग भारतीय संभ्रांतों की तरह बातचीत के दौरान अपने कानो को खुजलाते नहीं और न उच्छ्वास ही लेते हैं

मणिकर्णिका घाट और न्याय ​
मणिकर्णिका घाट और न्याय ​

रीविजिटिंग बनारस किताब का डमी लेकर सुवह-सुवह मणिकर्णिका घाट पहुंचा। डोम राजा के पुत्र श्री विश्वनाथ चौधरी घाट के ऊपर वाले हिस्से में बैठे थे। इस हिस्से के पीछे एक शिवलिंग है, बाबा मसाननाथ । इस हिस्से के एक कोने में आग जल रही थी। सुखी लकड़ियाँ उसके चारो तरफ रखीं थी और नीचे दर्जनों पार्थिव शरीर अग्नि को समर्पित था । मैं चौधरीजी के साथ उसी जगह बैठ गया और बातें करने लगा । चौधरीजी मेरे पिता और पुरखों के बारे में भी पूछताछ किये और मैं उनके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दे रहा था।

कोने में रखी आग की एक चिनगारी ही काफी है एक पार्थिव शरीर को बाबा मसान के समक्ष जलने के लिए और फिर उसकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने के लिए।

चौधरीजी वे बहुत ही मृदुल व्यक्ति थे। भारतीय संभ्रांतों की तरह बातचीत करने के क्रम में अपने कानो को नहीं खुजलाते थे और न ही जम्हाई लेते थे। भारत के लोगों में यह क्रिया-प्रक्रिया आम-बात है।

मेरे हाथ में रखी पुस्तक पर महादेव का त्रिशूल देखकर वे किताब को अपने हाथ में लिए और फिर पन्ना-दर-पन्ना पलटने लगे। उनके चेरे पर एक आश्चर्य भी था और ख़ुशी भी। फिर वे मणिकर्णिका की बात करने लगे। कहते हैं इस घाट से अनेक पौराणिक कथाएं जुडी हुई है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्‍नी पार्वती को अकेला छोड़कर यहां काफी समय बिताया था। देवी ने गंगा नदी के तट पर अपनी कमाई खो देने के बारे में बतलाया और भगवान शिव से उसे खोजने का अनुरोध किया। जब किसी व्यक्ति का यहाँ दाह संस्‍कार होता है तो महादेव स्‍वंय उससे पूछते है और उसकी आत्मा को जन्‍म – मृत्‍यु के बंधन से मुक्‍त कर देते है। यहां एक कुआं जैसा भी है जिसे मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता है और यह माना जाता है कि जब भगवान शिव खोई हुई कमाई को खोज रहे थे, तो उन्‍होने इसे खोदा था।

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मणिकर्णिका घाट, वाराणसी का वह घाट है जहां पर्यटक मौत पर्यटन करते है। कई पर्यटक यहां हिंदू धर्म के दाह संस्‍कार को देखने और रीति – रिवाजों को समझने के वास्‍ते भी आते है। वैसे इस घाट पर महिलाओं को जाना वर्जित माना जाता है, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है क्योंकि पार्वती तो महिला ही थीं।

काशी का मणिकर्णिका श्मशान घाट के बारे में मान्यता है कि यहां चिता पर लेटने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है। दुनिया का ये इकलौता श्मशान जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। जहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं थमता। यहाँ पर एक दिन में करीब 300 शवों का अंतिम संस्कार होता है।

मणिकर्णिका घाट की इसके अलावा भी कई अन्य विशेषताएं है जो भारत के किसी अन्य श्मशान घाट में नहीं है। ऐसी ही दो विशेषताओं के बारे में हम अब तक आप सब को बता चुके है। पहली यह की मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता-भस्म से होली खेली जाती है और चैत्र नवरात्री अष्टमी को जलती चिताओं के बीच मोक्ष की आशा में सेक्स वर्कर भी पूरी रात नृत्य करती हैं।

यहाँ अंतिम संस्कार की कीमत चुकाने की परम्परा तकरीबन तीन हजार साल पुरानी है। मान्यता है कि श्मशान के रख रखाव का जिम्मा तभी से डोम जाति के हाथ था। चूंकि डोम जाति के पास तब रोजगार का कोई और साधन नहीं था लिहाजा दाह संस्कर के मौके पर उन्हें दान देने की परम्परा थी।
​वैसे यह परंपरा अब भारत के सभी दाह-संस्कार स्थलों पर है।

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दरअसल टैक्स वसूलने के मौजूदा दौर की शुरुआत हुई राजा हरीशचंद्र के जमाने से। हरीशचंद्र ने तब एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिये उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी। चूंकि बिना दान दिये तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी लिहाजा राजा हरीशचंद्र को मजबूरन अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा बतौर दक्षिणा कल्लू डोम को देना पड़ा। बस तभी से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परम्परा मजबूत हो गई।

चौधरी जी से बातचीत काफी देर चली। फिर उनके लोग मणिकर्णिका पर उस पुस्तक की पूजा किये और महादेव को समर्पित किये। इस दौरान चौधरी जी ने पूछा की आपको मणिकर्णिका से इतना लगाव क्यों है क्योंकि आज तक हमने अपने जीवन में किसी भी लेखक-लेखिका अतः विद्वान-विदुषियों ने मणिकर्णिका पर आकर मुझे पुस्तक नहीं दिखाए जबकि बनारस पर पुस्तकों का अम्बार है। हाँ, यह कुछ अलग है, बिलकुल अलग।

मैं उनकी बातें सुन रहा था फिर मुस्कुराते हुए मैंने कहा: इस घाट पर मेरे पिताजी वर्षों साधना किये यज्ञोपवित होने के पश्चयात। कोई नब्बे साल पहले। उनकी मृत्यु सन १९९२ में जून माह में हुयी कोई ७३ वर्ष की आयु में। मणिकर्णिका पर साधना के बाद वे कामाख्या गए थे। मृत्यु से पूर्व मणिकर्णिका और कामाख्या के बारे में उन्होंने बहुत कुछ बताया था। शायद यह उसी साधना का परिणाम को बाबा मसाननाथ – महादेव और मणिकर्णिका को नमन करने के लिए।

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पेट की नाभी से पहने धोती, देह और कंधे पर रखे गमछे को सँभालते चौधरी जी उठे और कहे : महादेव आपकी सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूरा करेंगे। इस किताब से छल-प्रपंच अथवा धोखा देने वालों को बाबा मसाननाथ देखेंगे। आप निश्चिन्त रहें।

मैं पैर छूकर प्रणाम करते बाबा मसानाथ की ओर निकल पड़े।

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