काशी विश्वनाथ कॉरिडोर: 650 करोड़ की परियोजना, अब तक 296 भवनों का अधिग्रहण, सैकड़ों टूटे

​एक दृश्य ​बनारस की गलियों का - तस्वीर आभार टी ओ आई
​एक दृश्य ​बनारस की गलियों का - तस्वीर आभार टी ओ आई

बनारस से अजय मिश्र द्वारा

बनारस – विश्व की सबसे प्राचीन जीवंत व धार्मिक नगरी वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर विश्व के करोडो श्रद्धालुओं का के आस्था का केंद्र है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग हजारों वर्षों से हिंदू आस्थावानों का विशिष्‍ट स्‍थान है। गंगा के अर्द्ध चंद्राकार तट पर बसी काशी के मध्य में स्थित मंदिर में बाबा विश्वनाथ के दर्शन पूजन के लिए रोजाना देश ही नहीं विदेशो से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते है। वही वर्त्तमान में अब श्रद्धालुओं की सुविधा और काशी में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर का विस्तारीकरण किया जा रहा है।

जिसके लिए मंदिर के उत्तरपूर्व दिशा में लगभग 25 हजार वर्ग मीटर के परिक्षेत्र में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण की योजना है। लगभग 650 करोड़ की इस परियोजना के तहत परिक्षेत्र में 296 भवनों का अधिग्रहण कर लिया गया है और डेढ़ सौ से ज्यादा भवन ढहा दिए गए है।

वही इस परियोजना का विरोध भी करने वाले सामने आ रहे है। कोई विरोध के नाम पर उच्चतम न्यायालय तक का दरवाजा खटखटा चुका है लेकिन उसे भी न्यायालय खाली हाथ लौटा चुका है। वही दूसरी तरफ ढहाए जा रहे भवनों में से मंदिर ही मंदिर निकल रहे थे। मंदिर और गलियों के इस शहर को यहां धर्म की ठेकेदारी करने वालों ने मंदिरों को भी नहीं बख्शा और सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिरों पर कब्जा कर मकान, दुकान, होटल बना लिया था। जहां मंदिर का शीर्ष हुआ करता था वहां टॉयलेट तक बनाए गए।

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर निर्माण के दौरान भवनों को गिराए जाने के क्रम में नए मंदिरों का पता लगने से हर कोई हैरान है। ऐसे-ऐसे मंदिरों के बारे में पता चला है जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी तक नहीं थी। अभी तक ऐसे सौ से ज्यादा मंदिरों का पता लग चुका है। इनमें से कई ऐसे मंदिर हैं जो अति प्राचीन हैं और भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं। वही हद तो यह है कि इन लोगों ने मंदिरों पर कब्जा करने के बावजूद कॉरिडोर निर्माण के दौरान मिलने वाला भारी-भरकम मुआवजाभी ले लिया है।

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मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने बताया कि विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण के तहत अब तक निर्धारित कुल 296 भवनों को चिन्हित किया गया है जिनका ध्वस्तीकरण में अति प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि चंद्रगुप्त काल से लेकर साढ़े तीन हजार साल पुराने मंदिर भी हमें मिले हैं। दरअसल इन मंदिरों को भवन स्वामियों ने चहारदीवारी के अंदर निजी वजहों से छिपाकर रखा था इनमें कई मंदिर तो काफी प्राचीन बताए जा रहे हैं। एक मंदिर को देखकर तो लोग हैरान हैं। ये मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के जैसा ही दिखता है।

करोडो रुपये की लागत से बन रहे विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना से श्रद्धालु गंगा जल लेकर सीधे बाबा विश्वनाथ तक पहुंचकर जल चढ़ा सकते हैं। बाबा विश्वनाथ के महात्म्य के कारण भारी संख्या में श्रद्धालु रोजाना बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं और यह इलाका काफी संकरा होने के कारण श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गंगा तट से काशी विश्वनाथ मंदिर तक बनने वाले कॉरिडोर को वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छानुसार सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर करने की योजना को मंजूरी दी गई। और इसके लोकार्पण के साथ ही मंदिर से ललिता घाट तक गंगा पाथवे बनाने का काम शुरू हुआ। यह पाथवे लगभग 700 मीटर लम्बा होगा। जिससे इस रास्ते के चौड़े हो जाने से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने के बाद आसानी से गंगा के किनारे पहुंच सकेंगे।

गौरतलब हैकि इस कॉरिडोर परियोजना की नींव साल 2008 में मायावती सरकार के कार्यकाल में रखी गई थी, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। साल 2018 के शुरू होते-होते मौजूदा प्रदेश सरकार ने इस परियोजना को फिर से जिंदा किया है। शुरुआत में इस परियोजना में 166 भवनों का अधिग्रहण होना था, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या 300 के आसपास पहुंच चुकी है। इस दौरान जिला प्रशासन ने भवन मालिकों को 26 हजार रुपए प्रति स्क्वायर फीट के हिसाब से मुआवजा दिया है। वहीं दुकानदारों को मुआवजा देने के साथ ही कॉरिडोर बनने पर दुकान आवंटित करने का भरोसा दिया है। आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को रोजगार भी देने का वादा किया गया है।

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​तस्वीर कंचन श्रीवास्तव के ट्वीटर पेज के सौजन्य से ​
​तस्वीर कंचन श्रीवास्तव के ट्वीटर पेज के सौजन्य से ​

प्रस्तावित काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के प्रस्तावित रूपरेखा के अनुसार कुल चार चरणों में निर्माण कार्य होगा। प्रथम और तीसरे चरण का काम पहले शुरू होगा। पहले चरण में मंदिर और आसपास का इलाका, जबकि तीसरे चरण में गंगा घाट के किनारा शामिल है। इसमें पहले चरण का काम इसलिए शुरू किया जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को सुविधा मिलनी शुरू हो जाए जबकि तीसरे चरण के काम से गंगा की ओर से कॉरिडोर दिखने लगेगा।दूसरे और चौथे चरण का निर्माण जहां होना है, वहां घनी आबादी का क्षेत्र है इसलिए दूसरे और चौथे चरण का काम बाद में शुरू किया जाएगा। इस ब्लूप्रिंट से कॉरिडोर की स्थिति काफी हद तक साफ हो गई है।

सतुआ बाबा आश्रम के महंत संतोष दास ने कहा कि विश्व की सबसे प्राचीन नगरी को अगर अध्यात्म, मान्यताओं और वैदिक ऋचाओं के साथ प्रमाणिकता मिलती है तो वो है काशी, जिसका किसी को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है। महंत संतोष दास के अनुसार मकानों को तोडऩे के बाद ऐसे प्राचीन मंदिर निकल रहे हैं कि कुछ कहा नहीं जा सकता। हमने तो चन्द्रगुप्त काल को ही पढ़ा है, लेकिन काशी की स्थापना गंगा से पहले की है और पृथ्वी के अनादिकाल से काशी बसी है जो पृथ्वी से अलग है।

उन्होंने बताया कि यहां चार से पांच हजार वर्ष पुराने मंदिर घरों के अंदर छिपे हुए मिल रहे हैं। इन मंदिरों का मिलना हमारे लिए बहुत शुभ संकेत हैं क्योंकि आने वाली पीढ़ी इन मंदिरों में पूजा करने के साथ ही इनके महत्व व काशी की प्राचीनता जान पाएगी।

अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वपुरी जी कहते हैं कि काशी के कंकड़-कंकड़ में शंकर हैं। ऐसे में अगर ये मंदिर निकलकर सामने आ रहे हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। हां, इतना जरूर है कि इतने प्राचीन मंदिरों की भनक लोगों को नहीं लगी। इन मंदिरों के कब्जेदारों के खिलाफ प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए। सनातन धर्म की रक्षा के साथ अगर विकास होता है तो हम इसका स्वागत करते हैं। विशालाक्षी मंदिर के महंत और वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ तिवारी कहते हैं कि आज से 450 साल पहले देश में मुस्लिम आक्रमणकारियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। मुस्लिम राजाओं ने देश के अन्य हिस्सों की तरह काशी में भी मंदिरों को तोडऩा शुरू किया। ऐसे में मंदिरों को बचाने के लिए यहां के लोगों ने नया तरीका अपनाया। लोगों ने मंदिरों के चारों ओर दीवार खड़ी कर दी जो बाद के सालों में मकान का रूप लेते गए।

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मुख्य कार्यपालक विशाल सिंह ने बताया कि विस्तारीकरण समय की मांग है। और लगातार बढ़ रही श्रद्धालुओं की संख्या के कारण जरूरी हो गया है। परियोजना में नक्काशीदार खंभे के अलावा दीवारों पर भी देवी देवताओं की आकृतियां उकेरी जाएंगी।

कॉरिडोर के दोनों तरफ देव प्रतिमाओं के विग्रह स्थापित किए जाने की भी योजना है। साथ ही कॉरिडोर में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं, उपनिषद और 18 पुराणों के मंत्र भी लगातार गूंजेंगे। उन्होंने बताया कि कॉरिडोर में एक बार में एक साथ दो हजार श्रद्धालुओं खड़े होने की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही यहां आरती पूजा के लिए टिकट काउंटर, पीने का पानी और श्रद्धालुओं के लिए शौचालय भी बनाया जाएगा। इसके अलावा श्रद्धालुओं के प्रसाद का काउंटर भी खोला जाएगा।

काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ विशाल सिंह ने कहा कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर नागर शैली में बना है। इसलिए कॉरिडोर के होने वाले सभी निर्माण कार्य उसी शैली में कराए जाएंगे। नागर शैली के लिए राजस्थान से पत्थर मंगाए जाएंगे। कॉरिडोर के भव्य प्रवेश द्वार, यज्ञशाला, भोजशाला, विग्रहों की फिर से स्थापना, सभागार आदि का निर्माण इसी शैली में होगा। वही दूसरी तरफ विरोधियो को भी कुछ राजनैतिक दलों का साथ मिलने से शहर की शांति भंग करने की लगातार कोशिशे हो रही है ताकि विस्तारीकरण व विकास का काम रुक जाए।

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